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Anuja sharma
सबकी बात न माना कर ख़ुद को भी पहचाना कर -कुंवर बेचैन ©Anuja sharma #Tea #Nojoto #कुंवर बेचैन
Dr Upama Singh
तुमने सिर्फ़ एक स्त्री की सुंदरता देखी पुरुष ने उसके भावनाओं को कभी न समझा एक स्त्री की सुंदरता श्रृंगार के पीछे उसके दर्द को ना कभी जाना #कुंवर अभिज्ञान #YourQuoteAndMine Collaborating with कुंवर सा
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आपने सिर्फ़ उसके आँखों का काजल देखा आंँसुओं और दर्द भरी आँखों को ना देखा #कुंवर अभिज्ञान #YourQuoteAndMine Collaborating with कुंवर सा
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इन मस्त भरी आँखों के दीवाने हज़ार देख ले कोई एक नज़र दिल में खिल गया मोहब्बत का बहार #कुंवर अभिज्ञान #YourQuoteAndMine Collaborating with कुंवर सा
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बुरा वक्त भी गुज़र जाता है जब रूह इश्क़ में फना हो जाता है #कुंवर अभिज्ञान #YourQuoteAndMine Collaborating with कुंवर सा
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read moreकुंवर
मैं मुखर्जी नगर की सुब्ह हूँ, तुम चांदनी चौक की शाम प्रिय। मैं गरम चाय का प्रेमी हूँ, तुम सर्द व्हिस्की का जाम प्रिये।। इस दिल्ली में कितने दिल टूटे, ये यूँ ही नहीं बदनाम प्रिये, खैर"कुंवर छोटा सा शायर ठहरा, तुम उँचे घर का नाम प्रिये।। ©Indra_Pratap_Singh #कुंवर #rajaipsingh #Love #shayri #hindi_poetry #AWritersStory
शिव झा
24 जुलाई/बलिदान-दिवस *नरसिंहगढ़ का शेर : कुंवर चैनसिंह* भारत की स्वतन्त्रता के लिए किसी एक परिवार, दल या क्षेत्र विशेष के लोगों ने ही बलिदान नहीं दिये। देश के कोने-कोने में ऐसे अनेक ज्ञात-अज्ञात वीर हुए हैं,जिन्होंने अंग्रेजों से युद्ध में मृत्यु तो स्वीकार की; पर पीछे हटना या सिर झुकाना स्वीकार नहीं किया। ऐसे ही एक बलिदानी वीर थे मध्य प्रदेश की नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुँवर चैनसिंह। व्यापार के नाम पर आये धूर्त अंग्रेजों ने जब छोटी रियासतों को हड़पना शुरू किया, तो इसके विरुद्ध अनेक स्थानों पर आवाज उठने लगी। राजा लोग समय-समय पर मिलकर इस खतरे पर विचार करते थे; पर ऐसे राजाओं को अंग्रेज और अधिक परेशान करते थे। उन्होंने हर राज्य में कुछ दरबारी खरीद लिये थे, जो उन्हें सब सूचना देते थे। नरसिंहगढ़ पर भी अंग्रेजों की गिद्ध दृष्टि थी। उन्होंने कुँवर चैनसिंह को उसे अंग्रेजों को सौंपने को कहा; पर चैनसिंह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। अब अंग्रेजों ने आनन्दराव बख्शी और रूपराम वोहरा नामक दो मन्त्रियों को फोड़ लिया। एक बार इन्दौर के होल्कर राजा ने सब छोटे राजाओं की बैठक बुलाई। चैनसिंह भी उसमें गये थे। यह सूचना दोनों विश्वासघाती मन्त्रियों ने अंग्रेजों तक पहुँचा दी। उस समय जनरल मेंढाक ब्रिटिश शासन की ओर से राजनीतिक एजेण्ट नियुक्त था। उसने नाराज होकर चैनसिंह को सीहोर बुलाया। चैनसिंह अपने दो विश्वस्त साथियों हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ के साथ उससे मिलने गये। ये दोनों सारंगपुर के पास ग्राम धनौरा निवासी सगे भाई थे। चलने से पूर्व चैनसिंह की माँ ने इन्हें राखी बाँधकर हर कीमत पर बेटे के साथ रहने की शपथ दिलायी। कुँवर का प्रिय कुत्ता शेरू भी साथ गया था। जनरल मेंढाक चाहता था कि चैनसिंह पेंशन लेकर सपरिवार काशी रहें और राज्य में उत्पन्न होने वाली अफीम की आय पर अंग्रेजों का अधिकार रहे; पर वे किसी मूल्य पर इसके लिए तैयार नहीं हुए। इस प्रकार यह पहली भेंट निष्फल रही। कुछ दिन बाद जनरल मंेढाक ने चैनसिंह को सीहोर छावनी में बुलाया। इस बार उसने चैनसिंह और उनकी तलवारों की तारीफ करते हुए एक तलवार उनसे ले ली। इसके बाद उसने दूसरी तलवार की तारीफ करते हुए उसे भी लेना चाहा। चैनसिंह समझ गया कि जनरल उन्हें निःशस्त्र कर गिरफ्तार करना चाहता है। उन्होंने आव देखा न ताव,जनरल पर हमला कर दिया। फिर क्या था, खुली लड़ाई होने लगी। जनरल तो तैयारी से आया था। पूरी सैनिक टुकड़ी उसके साथ थी; पर कुँवर चैनसिंह भी कम साहसी नहीं थे। उन्हें अपनी तलवार, परमेश्वर और माँ के आशीर्वाद पर अटल भरोसा था। दिये और तूफान के इस संग्राम में अनेक अंग्रेजों को यमलोक पहुँचा कर उन्होंने अपने दोनों साथियों तथा कुत्ते के साथ वीरगति पायी। यह घटना लोटनबाग, सीहोर छावनी में 24 जुलाई, 1824 को घटित हुई थी। चैनसिंह के इस बलिदान की चर्चा घर-घर में फैल गयी। उन्हें अवतारी पुरुष मान कर आज भी ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। घातक बीमारियों में लोग नरसिंहगढ़ के हारबाग में बनी इनकी समाधि पर आकर एक कंकड़ रखकर मनौती मानते हैं। इस प्रकार कुँवर चैनसिंह ने बलिदान देकर भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया। #इतिहास #जीवनी #कुंवर #महाराज #InspireThroughWriting
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read moreVeer Kabir
🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते र🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿🌻🌿 हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये, ज़िन्दगी भोर है सूरज से निकलते रहिये. एक ही ठांव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये. आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह, दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये. शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है, आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये. प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ 'कुँअर' मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿हिये. -कुंवर बैचेन 🌻🌿 #gif
अमित ओझा
भारत महापुरषों का देश है जहाँ एक से बढ़कर एक महापुरुष पैदा हुए, जिनमे वीर कुंवर सिंह भी एक थे. बिहार की माटी के लाल बाबू वीर कुंवर सिंह को बिहार का बच्चा बच्चा भी जानता है,क्योंकि उनकी आन बान शान और सम्मान में हम सब बचपन से होली और अन्य लोकगीतों में देश के लिए उनके त्याग और बलिदान की कथा सुनते आ रहे हैं. जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी ब्रिटिश हुकूमत से लड़कर उनके दांत खट्टे कर दिए थे. जी हां आज में 1857 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिहार का नेतृत्व करने वाले वीर सपूत वीर कुंवर सिंह जी की जीवनी के बारे में बताने जा रहा हूँ. जी हाँ जैसा की आप सभी अब जानने लगे है की आजादी के बाद कई दशकों तक एक शाजिश के तहत हमारे देश के विभिन्न राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथा को दबाने और महज कुछ जो सत्ता के आस पास रहने वाले थे उनका नाम ऊपर लेन की साजिशें चली और उसका परिणाम ये हुआ की जो जीर शहीद वास्तव में स्मरणीय होना चाहिए उन्हें भुला दिया गया और उन्ही में से एक है हमारे वीर कुंवर सिंह जिनका शौर्य शहीदी दिवस23 अप्रैल को था. वीर कुंवर सिंह का जन्म सन 1777 में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह और माता का नाम महारानी पंच रतन देवी था. इनके पूर्वज मालवा के प्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे. बचपन से ही कुंवर सिंह अपने पूर्वजों की भांति कुशल यौद्धा थे. इनके पास बड़ी जागीर थी लेकिन एस्ट इंडिया कम्पनी ने जबरन कुंवर सिंह की जागीर को हड़प लिया था. जिससे कुंवर सिंह अंग्रेज और ईस्ट इंडिया कंपनी से खफा थे. वीर कुंवर सिंह की शादी राजा फ़तेह नारायण सिंह की बेटी से हुई जोकि मेवारी सिसोदिया राजपूत थे जो गया जिले के ज़मींदार थे. जागीरदार साहेबजादा सिंह के घर पैदा हुए कुंवर सिंह बचपन से ही वीरता एवं साहस का परिचय दे रहे थे. सन 1848-49 ई• डलहौजी की विलय नीति ने राजों- रजवाड़ो में भय पैदा कर दिया था, जिससे कुंवर सिंह अपनी वीरता दिखाने को आतुर हो उठे.रही- सही कसर नई इनफील्ड रायफलों ने पूरी कर दी, जिससे हिंदुओ एवं मुसलमानों दोनों की धामिॅक भावनाएं आहत हो रही थी. उस समय अंग्रेजों ने जो किसानों पर अत्याचार किया उससे किसान और आम जनता में अत्यंत ही रोष पैदा हो गया था जिसे वीर कुंवर सिंह ने नेतृत्व प्रदान किया,जिसकी तपिश ने सरकार की चूलें हिला दी. 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया. मंगल पाण्डे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया. बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी. मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी. ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया. 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा. जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई. बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए. आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया.।