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Best मारी Shayari, Status, Quotes, Stories

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Manoj Kumar

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चाय पीने से पहले फूक
मारी जाती है
लड़की पटाने से पहले
आंख मारी जाती है


मनोज नीबोरिया
9039295754

Vikas Singh

राम राम सभी को

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English बोलण का शोंक नही...
मारी देसी भाषा ही मारी शान है।।
जरूरत नही हमने किसी दिखावे की 
मारा देसी पणा ही मारी शान है।।

be are proud to Haryanvi... राम राम सभी को

Nisha khan

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"दर्द से गुफ्तगू"
बस कर न अब बहुत हुआ 
कितनी बार कहूं मुझे अकेला रहने दे
क्यो तू मेरे साथ अब भी बना हुआ है
जब लोग ही साथ छोड़ के चले गये 
तेरे साथ कौन सा मुझे सुकून मिलता है
तेरे साथ फिरू मैं मारी मारी दिल दुःखयारी
तु साथ होता है तो सच कहती हूँ 
तकलीफ होती है दिल से आह निकलती हैं 
क्या कहूँ मैं तुझे जब तु साथ होता है 
खुशियाँ भी मेरे दर से बेरंग लौट जाती है
तुम दोनों की क्यो नही बनती 
तुम दोनों की दुश्मनी में मैं पिस जाती 
जा अब तु तुझसे कोई लगाव नहीं 
छोड़ दें अब मुझे अकेला लोगों की तरह

Santosh Siyag

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थोडी ‪ ‎style क्या मारी …इतने में रोता है क्या …अभी ‎तो‬ सिर्फ एंट्री मारी है…‪आगे – आगे ‪ देख ‬ होता है क्या …😎😎

Manoj Das

सत्य वचन

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*जीव हत्या करना मांस खाना अल्लाह का आदेश नहीं है*

वर्तमान में सर्व मुसलमान समाज मांस खा रहे हैं नबी मुहम्मद जी परमात्मा की बहुत नेक आत्मा थीं। उन्होंने कभी मांस नहीं खाया, न अपने 1,80,000 शिष्यों को खाने को कहा। केवल रोजा ,बंग तथा नमाज किया करते थे गाय आदि को बिस्मिल (हत्या) नहीं करते थे

"नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया,
1लाख 80 कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगंबर पाक़ पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।"

फिर मुसलमान भाई निर्दोष जीवो की हत्या करके पाप के भागी क्यों बन रहे हैं..??

"मारी गऊ शब्द के तीरं ऐसे होते मुहम्मद पीरं।”

मोहम्मद जी ने वचन से गाय मारी और वचन से ही जीवित कर दी।
मुहम्मद जी जैसी भक्ति कोई मुसलमान नहीं कर सकता। मुहम्मद जी ने जब वचन की सिद्धि से मरी गाय जीवित की तो लोगों ने इसे पर्व का रूप दे दिया।

दूधु दही घृत अंब्रित देती। निरमल जाकि काइआ।
गोबरि जाके धरती सूची, सातै आणी गाइआ(गाय)।।

मुसलमान गाय भखी, हिन्दु खाया सूअर
गरीबदास दोनों दीन से, राम रहिमा दूर।।

आज मुस्लिम और हिंदू दोनों ही मजहब निर्दोष जीवो की हत्या कर मांस का भक्षण कर रहे हैं जैसे हिंदू सूअर का मांस खा रहा है तो मुसलमान गाय बकरे आदि का मांस खा रहे हैं। अब इन दोनों मजहब से ही अल्लाह परमात्मा कोसों दूर हैं और यह दुगुने पाप बढ़ाकर नरक जाने की तैयारी कर रहे हैं।

अर्थात इन सभी बातों से स्पष्ट है कि कुरान में मुसलमान समाज को बहुत दयालु, अहिंसावादी व्यक्तित्व विचारधारा वाला व्यक्ति बनने के लिए कहा गया है परंतु आज के समय में वे इन बेजुबान तथा निर्दोष जीवों को मारकर खा रहे हैं और अब मुसलमान समाज स्वयं विचार करें कि आखिर आप किस महापुरुष की अनुपालना करके इतना बड़ा महापाप कर रहे हैं।

मुस्लिम धर्म के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए देखें-
"साधना चैनल" 7:30 से 8:30 pm तक सत्य वचन

Yogesh BASWAL

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👉 हम थोड़ी सी #Style क्या मारी... दुश्मनों की #आँखे 👀 बड़ी हो गयी...
अभी तो #Entry 🙋 मारी हैं... आगे-आगे #Dekho, होता हैं क्या..
 Yogesh

Girish Mishra Syahee

Chal Na Yaar Fir Milte hai

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भूल के सारी बंदिश को , आज दिल की बाते सुनते है,
कुछ कच्चे-पक्के धागो से, बिखरी यादो को बुनते है ||
हम नायक भी खलनायक भी, इस खुद की लिखी कहानी के ,
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है |
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है ||
चाय की उस उजरि टपरी पर फिर घूम के आते है, 
सूना है लोग अब भी वंहा चाय संग मट्ठी ही खाते है |
क्या टॉयलेट के बहार, अब भी कतारे लगती होंगी ,
क्या सरोजनी की लड़किया, अब भी वहां सजती होंगी |
क्या कोई फिर से प्लेट में , खाना छोड़ कर जाता होगा |
क्या पनिशमेंट में अब भी, खेम चंद पगलाता होगा ||
याद करो क्या दिन थे वो भी , जब रिंकू मेश चलाता था ,
सरा गला खाना खा कर भी, तब अपना दिन कट जाता था |
बिस्तर पर सोते ही अपने, सरप्राइज वेल बज जाते थे | 
बिना सेविंग पकडे गए तो , होज कंधे पर सज जाते थे |
उस्तादों की उस्तादी भी तब, कहाँ समझ में आती थी ,
उन् सब को मिल कर बस, अपनी ही मारनी होती थी |
किसी के घर से आया खाना, हम खूब लूट कर खाते थे |
कभी कभी छोटी बातो पर, तब काजू भी बन जाते थे |
कुछ की बनी कहानी थी, कुछ अब तक वंहा बेचारा था ,
थे हम कवारे बहुत ही तनहा, बस हाथो का बचा सहारा था |
कुछ रंग थे जो अपने दामन में, वो चुरा गया बंजारा था ,
खुला खुला शौचालय भी, तब कितना हमको प्यारा था ||
स्कोप मीनार से किस वर्कर ने,किसको आँखे मारी थी |
इतना खाना क्यों बचा थाल में, किसकी ये अय्यारी थी ,
वक़्त ने साधा एक नज़र से , एक जंग की तब तैयारी थी 
वो बड़े जोड़ की लात पेट में, किसने चार्ली को मारी थी ||
रिंगटोन में किसकी फ़ोन पर, कौन घास घास चिल्लाता था,
वो कौन था जो जरा जरा कर के, पूरा खाना खा जाता था ,
किसने अपनी ड्राइविंग में, गाडी दिवार पर चढ़ाई  थी, 
रेस्क्यू करके खोखहर ने, तब किसकी जान बचाई थी ||
आयोडेक्स की मालिश थी , कोई घुटनो पर तेल लगता था ,
उस्तादों की चाट चाट कर , पांडे अच्छे नंबर पाता था |
राका का वो सावधान , तब सबका दिल दहलाता था ,
बेरोजगारी के उस दौर में , भाई साब 17 माल घुमाता था |
दिल्ली की सब लड़की राका पर अपनी जान लुटाती थी |
मधुवन में सब मिलकर उसे, चिन्गोटी कटा करती थी |
हर शनि और रविवार को , जब सब गायब हो जाते थे |
तब हम चारो ही बैठ अकेले, मकरा मारा करते थे  ||
उन् सारी यादो को फिर से, दुहराने को दिल करता है,
आये बुढ़ापा उससे पहले , जी लेने को दिल करता है |
फास्मा की दीवारों पर हमने, मिलकर लिखी कहानी थी ,
नौ महीने की थी वो ट्रेनिंग, बस उतनी ही मेरी जवानी थी ||
कैद हुए क्यों हम दीवारों में, चल ना यार निकलते है ,
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है ||
उन् हसीं पलो को फिर जीने को, चल ना यार फिर मिलते है || Chal Na Yaar Fir Milte hai

Faizal Shahidi

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अब राह दिखा दो दुनियां को,
क्या देख रहे अन्तर्यामी,
​यह मानवता की नादानी,
यह मानवता की नादानी।
जो आदर की अधिकारी है,
वह फिरती मारी-मारी है,
चिथड़ों में लिपटी बूढी माँ,
बेटे करते हैं मनमानी,
यह मानवता की नादानी।
निजता का बोध सभी को है,
प्रतिकार, विरोध सभी को है,
खुद कीचड़ में धँसते जाते,
पर ना होती कुछ हैरानी,
यह मानवता की नादानी।
हो हृदय लबालब प्रेम भरा,
जो पिय के खातिर जिया-मरा,
मुश्किल से मिलती धरती पर,
मीरा सी कोई दीवानी,
यह मानवता की नादानी।
अब कौन ठानता यह मन में,
‘आदर्श बनाएं जीवन में,
पदचिन्ह हमारे ऐसे हों,
जिनको पहचाने अनुगामी,’
यह मानवता की नादानी।
ओछी चाहत है, प्यार नहीं,
वह भावपूर्ण रसधार नहीं,
मतलब के साथी बहुतेरे,
इच्छाएं हैं बहुआयामी,
यह मानवता की नादानी।
तुम वीर बनों, बदनाम नहीं,
कुछ भी उबाल का नाम नहीं,
ऐसा लगता है नस-नस में,
लहू नहीं बहता है पानी,
यह मानवता की नादानी।
जो इक मसाल सी जलती थी,
इक क्रांति हृदय में पलती थी,
जो रुख मोड़े धाराओं की,
खो गयी जवानी तूफानी,
यह मानवता की नादानी ....!!!

Tanha Shayar hu Yash

अगर छोटे मोटे बंदर की पूंछ उखाड़ी तो क्या उखाड़ी - अगर सागर में जाकर मछली ही मारी तो क्या मारी - हम वो है जो शेर के जबड़े में हाथ डालकर उसके दांत तोड़ते है और सागर में हवेल की सवारी करते है ।

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अगर छोटे मोटे बंदर की पूंछ उखाड़ी 
तो क्या उखाड़ी - 
अगर सागर में जाकर मछली ही मारी 
तो क्या मारी - 
हम वो है जो शेर के जबड़े में 
हाथ डालकर उसके दांत तोड़ते है 
और सागर में हवेल की सवारी करते है । अगर छोटे मोटे बंदर की पूंछ उखाड़ी 
तो क्या उखाड़ी - 
अगर सागर में जाकर मछली ही मारी 
तो क्या मारी - 
हम वो है जो शेर के जबड़े में 
हाथ डालकर उसके दांत तोड़ते है 
और सागर में हवेल की सवारी करते है ।

Shiv Kumar Gurjar

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वक़्त ने ये कैसी ठोकर मारी
 के जिंदगी ऐ जीने से ही हारी

लाख कोशिशे करता हू कि हंसता रहूं
तबस्सुम के आशियाने में ही बसता रहूं 
पर शायद रब को मंजूर नही खुशी हमारी 

वक़्त ने ये कैसी ठोकर मारी
के जिंदगी ऐ जीने से ही हारी

एक दर्द मेरे सीने में कही पल रहा है
खुशियों का लम्हा दिल से ढल रहा है 
बेरंग सी हो गई हाथों की धारी

वक़्त ने ये कैसी ठोकर मारी
के जिंदगी ऐ जीने से ही हारी 

                     Gurjjar_boy_shivkumar
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