Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best ancientindia Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best ancientindia Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutlove towards god related poem in hindi by ancient poets, ancient temples of india with pictures, ancient greek love poems, ancient egyptian love poems, ancient chinese love poems,

  • 7 Followers
  • 8 Stories

SumitGaurav2005

अद्भुत थे हमारे प्राचीन शिल्पकार #ancientindia #ancient #History #Sculpture #murtikar #Shilpkaar #sumitgaurav #sumitkikalamse #sumitmandhana inspirational quotes motivational quotes in hindi loves quotes life quotes in hindi life quotes

read more

Shayra

MaGiC_MOment

MaGiC_MOment

Springblossoms

#adishankaracharya 🙏 The one who never believed in caste system. The one who believed in beauty and existence of soul 🌺 Just for a moment, eliminate discrimination towards anything like discrimination between results of your action or your physical and inner beauty, or between your thoughts. You will see yourself as a calmly flowing river when you realise everything and anything has its own importance and function in your life. When you practice this, slowly you attain peace and can see unwant

read more
Learning and living life 
Without any discrimination
Is the way towards wisdom.  #adishankaracharya 🙏

The one who never believed in caste system. The one who believed in beauty and existence of soul 🌺

Just for a moment, eliminate discrimination towards anything like discrimination between results of your action or your physical and inner beauty, or between your thoughts. You will see yourself as a calmly flowing river when you realise everything and anything has its own importance and function in your life. When you practice this, slowly you attain peace and can see unwant

Chandra Sekhar Bhol

Don't blame the online mode of education,
Never tell, it is spoiling the students' career;
It is our ancient culture; which have made Ekalabya as a famous archer 🏹 #education #educationquote #ancientindia #ancienttime #students #archer #archery

Raju Mandloi

हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ स्थल, पशु-पक्षी और पेड़-पौधे

भारत में आज भी कई ऐसे पौराणिक स्थल मौजूद हैं, जिनका संबंध देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों से बताया जाता है। ये स्थान आज हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों के लिए पवित्र तीर्थस्थान माने जाते हैं, इनका उल्लेख हिन्दू पुराणों में भी मिलता है, वैदिक संस्कृति प्रकृति की उपासक रही है, इस संस्कृति में प्रकृति के सभी तत्व जैसे जल (वरुण), वायु (वायुदेव), अग्नि (अग्निदेव), वर्षा (इंद्र), सूर्य, चंद्र, आदि को देव मान कर उनकी पूजा की जाती रही है, कई ऐसे पशु-पक्षी और पेड़-पौधे हैं, जिन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अहमियत दी जाती है, प्रकृति की उपासना का पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है l 

जिस तरह 7 पुरी (काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, पुरी, कांची और अवंति / उज्जैन ) हैं, जिस तरह पंच तीर्थ (पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार एवं प्रयाग) हैं, जिस तरह 9 पवित्र नदियां (गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, विस्ता) हैं, जिस तरह  पवित्र वटवृक्ष (प्रयाग में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट-बौद्धवट और उज्जैन में सिद्धवट ) हैं, और जिस तरह अष्ट वृक्ष (पीपल, बढ़, नीम, इमली, कैथ, बेल, आंवला और आम) हैं, उसी तरह 5 पवित्र सरोवर भी हैं। 

'सरोवर' का अर्थ तालाब, कुंड या ताल नहीं होता। सरोवर को आप झील कह सकते हैं। भारत में सैकड़ों झीलें हैं लेकिन उनमें से धार्मिक, आध्यात्मिक और पर्यटनीय महत्व है। श्रीमद् भागवत और पुराणों में प्राचीनकालीन पवित्र ऐतिहासिक सरोवरों का वर्णन मिलता है।

 कैलाश मानसरोवर : बस यही एक मानसरोवर है, जो अपनी पवित्र अवस्था में आज भी मौजूद है, क्योंकि यह चीन के अधीन है। कैलाश मानसरोवर को सरोवरों में प्रथम पायदान पर रखा जाता है। इसे देवताओं की झील कहा जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे शिव का धाम माना जाता है l मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है। संस्कृत शब्द 'मानसरोवर', मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- 'मन का सरोवर'। हजारों रहस्यों से भरे इस सरोवर के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा।

हिमालय क्षेत्र में ऐसी कई प्राकृतिक झीलें हैं उनमें मानसरोवर सबसे बड़ा और केंद्र में है। लद्दाख की एक निर्मल झील। मानसरोवर लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यह समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14,900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान इसका पानी मीठा हो गया है, लेकिन जो कुछ चीजें यहां पाई जाती हैं, उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें महासागर वाले गुण हैं।

कहते हैं कि इस सरोवर में ही माता पार्वती स्नान करती थीं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। यह स्थान पूर्व में भगवान विष्णु का स्थान भी था। हिन्दू पुराणों के अनुसार यह सरोवर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। बौद्ध धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।

नारायण सरोवर ; का संबंध भगवान विष्णु से है। 'नारायण सरोवर' का अर्थ है- 'विष्णु का सरोवर'। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है। इसी संगम के तट पर पवित्र नारायण सरोवर है। पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है। इस पवित्र नारायण सरोवर की चर्चा श्रीमद् भागवत में मिलती है। इस पवित्र सरोवर में प्राचीनकालीन अनेक ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं। आद्य शंकराचार्य भी यहां आए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस सरोवर की चर्चा अपनी पुस्तक 'सीयूकी' में की है।
 
नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं। गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित है नारायण सरोवर। नारायण सरोवर पहुंचने के लिए सबसे पहले भुज पहुंचें। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद से भुज तक रेलमार्ग से आ सकते हैं। प्राचीन कोटेश्वर मंदिर यहां से 4 किमी की दूरी पर है।

पुष्कर सरोवर : राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। यहां विश्व का प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है, जहां देश-विदेश से लोग आते हैं। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है। पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र के यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। सांची स्तूप दानलेखों में इसका वर्णन मिलता है। 

पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् 125 का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर 3,000 गायों एवं एक गांव का दान किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती का पद्मावतीपुरम यहां जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं।

पुष्कर सरोवर 3 हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं। ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आद्य शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था।

तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्द्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है। झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।

बिंदु सरोवर : बिंदु सरोवर 5 पवित्र सरोवरों में से एक है, जो कपिलजी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000 वर्ष तक तप किया था। कपिलजी का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर पर था, जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता और भगवान विष्णु के अवतार हैं।  अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित ऐतिहासिक सिद्धपुर में स्थित है विन्दु सरोवर। इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती और गंगा के मध्य अवस्थित बताया गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। महान ऋषि परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध यहां सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था। वर्तमान गुजरात सरकार ने इस बिंदु सरोवर का संपूर्ण पुनरुद्धार कर दिया है जिसके लिए वह बधाई की पात्र है। इस स्थल को गया की तरह दर्जा प्राप्त है। इसे मातृ मोक्ष स्थल भी कहा जाता है।

पंपा सरोवर : मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है। पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है, जो आजकल हास्पेट नामक कस्बे में स्थित है। कर्नाटक में बैल्लारी जिले के हास्पेट से हम्पी जाकर जब आप तुंगभद्रा नदी पार करते हैं तो हनुमनहल्ली गांव की ओर जाते हुए आप पाते हैं शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह स्थान जहां शबरी राम को बेर खिला रही है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।

अमृत सरोवर; कर्नाटक के नंदी हिल्स पर स्थित पर्यटकों को नंदी हिल्स की सैर के दौरान अमृत सरोवर की यात्रा की सलाह दी जाती है जिसका विकास बारहमासी झरने से हुआ है। इसी कारण इसे 'अमृत का तालाब' या 'अमृत की झील' भी कहा जाता है। अमृत सरोवर एक खूबसूरत जलस्रोत है, जो इस इलाके का सबसे सुंदर स्थल है l अमृत सरोवर सालभर पानी से भरा रहता है। यह स्थान रात के दौरान पानी से भरा और चांद की रोशनी में बेहद सुंदर दिखता है। पर्यटक, बेंगलुरु के रास्ते से अमृत सरोवर तक आसानी से पहुंच सकते हैं, जो 58 किमी की दूरी पर स्थित है। योगी नंदीदेश्वर मंदिर, चबूतरा और श्री उर्ग नरसिम्हा मंदिर यहां के कुछ प्रमुख आकर्षणों में से एक है, जो अमृत सरोवर के पास स्थित हैं।

अन्य सरोवर; इसके अलावा कपिल सरोवर (राजस्थान- बीकानेर), कुसुम सरोवर (मथुरा- गोवर्धन), नल सरोवर (गुजरात- अहमदाबाद अभयारण्य में), लोणास सरोवर (महाराष्ट्र- बुलढाणा जिला), कृष्ण सरोवर, राम सरोवर, शुद्ध सरोवर आदि अनेक सरोवर हैं जिनका पुराणों में उल्लेख मिलता है। लोणार सरोवर; महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में लोणार सरोवर विश्वप्रसिद्ध है। माना जाता है कि यहां पर लवणासुर का वध किया गया था जिसके कारण इसका नाम लवणासुर सरोवर पड़ा। बाद में यह बिगड़कर 'लोणार' हो गया। लोणार गांव में ही यह सरोवर स्थित है। 

ऋषियों के अनुसार सप्त पूरी के यह सात शहर सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के बावजूद भारत की एकता को भी दर्शाते है। 

अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥

इस श्लोक का सरल अर्थ यह है कि अयोध्या, मथुरा, माया यानी हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, अवंतिका यानी उज्जैन, द्वारिकापुरी, ये सातों मोक्षदायीनी पवित्र नगरियां यानी पुरियां हैं। ये सात शहर अलग-अलग देवी-देवताओं से संबंधित हैं। अयोध्या श्रीराम से संबंधित है। मथुरा और द्वारिका का संबंध श्रीकृष्ण से है। वाराणसी और उज्जैन शिवजी के तीर्थ हैं। हरिद्वार विष्णुजी और कांचीपुरम माता पार्वती से संबंधित है। 

अयोध्या ; रामायण में बताया गया है कि अयोध्या राजा मनु द्वारा बसाई गई थी। ये नगर सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। ये प्राचीन नगरियों में से एक है। इसीलिए यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, जैन धर्म से जुड़ी निशानियां दिखाई देती हैं। यहा श्रीराम जन्म स्थान भी है।

मथुरा ; भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। यहां श्रीकृष्ण ने कई लीलाएं की थी। इसी वजह से इसका धार्मिक महत्व काफी अधिक है। मथुरा उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है।

उज्जैन ; मध्य प्रदेश के इंदौर के पास स्थित है उज्जैन। इसे उज्जयिनी और अवंतिका के नाम से भी जाना जाता है। ये शहर शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। यहां भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग महाकालेश्व स्थित है। इसके साथ ही हर बारह वर्ष में यहां कुंभ का मेला भी लगता है।

काशी ; उत्तर प्रदेश के काशी को वाराणसी के नाम भी जाना जाता है। ये शहर गंगा नदी किनारे बसा हुआ है। यहां काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। गंगा नदी और शिव मंदिर के कारण इस शहर का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। ये भी सप्त पुरियों में से एक है।

द्वारिका धाम ; गुजरात में श्रीकृष्ण का मुख्य धाम द्वारिका स्थित है। ये तीर्थ चार धाम में से एक है। द्वारिका धाम समुद्र किनारे स्थित है। 

हरिद्वार ; उत्तराखंड में सप्तपुरियों में से एक हरिद्वार स्थित है। यहां गंगा नदी बहती है। हरिद्वार में कुंभ मेला लगता है। प्राचीन समय में जब देवताओं और दानवों के बीच अमृत के लिए युद्ध हुआ था, तब हरिद्वार में भी अमृत की बूंदे गिरी थीं। इसीलिए यहां भी कुंभ मेला लगता है।

कांचीपुरम ; तमिलनाडु में देवी पार्वती से संबंधित कांचीपुरम स्थित है। यहां वेगवती नदी बहती है। ये शहर भी सप्तपुरियों में से एक है। यहां कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका इतिहास प्राचीन समय से जुड़ा है।

गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संनिधिम कुरु ||

भारत में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा और कावेरी नदी का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नदियों में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। भारत में इन नदियों की विधि- विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। 

गंगा नदी ; सबसे अधिक धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी में स्नान मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। गंगा नदी हिमालय से निकलती है और वाराणसी, प्रयाग और हरिद्वार से होकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। भारत में गंगा को सिर्फ नदी नहीं माना जाता है। भारत में गंगा को मां का दर्जा दिया जाता है। भारत में गंगा नदी को मां गंगा, गंगा जी, गंगा मईया, देवी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें गंगा भारत की तीसरी सबसे बड़ी नदी है और गंगा नदी की लंबाई लगभग 2525 किलोमीटर है।

यमुना नदी ; धार्मिक पुराणों के अनुसार यमुना नदी को भगवान श्री कृष्ण की संगनी कहा जाता है। भारत में यमुना नदी को को मां का दर्जा दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यमुना नदी भक्ति का प्रतीक है। यमुनोत्री से निकलकर यमुना नदी दिल्ली, आगरा और इटावा से होकर प्रयागराज में गंगा नदी से मिल जाती है। यमुना नदी को "यमुना मैया" के नाम से भी जाना जाता है और यमुना नदी की लंबाई 1376 किलोमिटर है।

नर्मदा नदी ; का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। महाकाल पर्वत के अमरकंटक स्थान से निकलकर नर्मदा नदी पश्चिम दिशा की तरफ बहती हुई खम्बात की खाड़ी में मिल जाती है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात में बहती है और आज भी मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा नदी की परिक्रमा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। नर्मदा भारत के पवित्र नदियों के एक सबसे पवित्र नदी है जो अमरकंटक से निकल कर विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला के बीच बहती है और गुजरात के अरब सागर की खाड़ी मे मिल जाती है. नर्मदा नदी डेल्टा नही बनती और भारत मे पश्चिम की ओर बहती है, नर्मदा नदी को "रेवा नदी" के नाम से भी जाना जाता है। भारत में नर्मदा नदी को भी मां का दर्जा दिया जाता है। नर्मदा नदी की लंबाई 1312 किलोमिटर है।

कावेरी ; की सबसे प्रमुख नदी है। ब्रह्मगिरि पर्वत से निकलकर कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। कावेरी को दक्षिण भारत में सबसे पवित्र नदी माना जाता है। कावेरी को "दक्षिण भारत की गंगा" भी कहा जाता है। हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान "तिरुचिरापल्ली" कावेरी नदी के तट पर ही बसा हुआ है। कावेरी नदी को भी भारत में मां का दर्जा दिया जाता है। कावेरी नदी की लंबाई लगभग 800 किलोमीटर है।

ब्रह्मपुत्र नदी ; को भारत की सबसे प्राचीन नदियों में से एक माना जाता है। तिब्बत के मानसरोवर झील से निकलर ब्रह्मपुत्र नदी भारत में अरुणाचल प्रदेश और असम से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी को ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी को अलग- अलग नामों से जाना जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में 'सांपो', अरुणाचल में 'डीह' और असम में 'ब्रह्मपुत्र' और चीन में 'या-लू-त्सांग-पू', 'चियांग' और 'यरलुंग जैगंबो जियांग' के नाम से जाना जाता है। बांग्ला में ब्रह्मपुत्र नदी को जामुन नदी और असम में शोक नदी भी कहा जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी एशिया की प्रमुख नदियों में से एक है और यह निर्वहन द्वारा दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी नदी है, इस नदी को पुरुष का नाम मिला है जिसका मतलब होता है ब्रह्मा का बेटा. गंगा और ब्रह्मपुत्र मिल कर दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा बनती है, ब्रह्मपुत्र नदी भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है और इसकी लंबाई लगभग 2900 किलोमिटर है।

सरस्वती नदी ; एक प्राचीन नदी है जी कि वैदिक युग के दौरान उत्तर भारत में प्रवाहित होती थी, हालांकि आज सरस्वती नदी का भौतिक अस्तित्व रेगिस्तान में खो है लेकिन इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम मे गंगा, यमुना के साथ सरस्वती नदी का अस्तित्व आज भी है!

कृष्णा नदी ; पवित्र रूप में हिंदुओं द्वारा प्रतिष्ठित है और इसमे नहाने से पापों से मुक्ति मिलती है ऐसा माना जाता है. कृष्णा नदी के तट पर हरिपुर में संगमेश्वर शिव मंदिर, विजयवाड़ा और रामलिंग सांगली, मल्लिकार्जुन मंदिर स्थित है!

महानदी ; का अर्थ होता है महान नदी, जो की पूर्व मध्य भारत में प्रमुख नदी है। महानदी ओडिशा के राज्य में एक महत्वपूर्ण नदी है जिस पर भारत का एक सबसे लंबा बाँध हीराकुंड बांध बना हुआ है.

क्षिप्रा नदी ; विंध्य पर्वत माला से निकलती है उत्तर मे चंबल नदी में शामिल होने के बाद मालवा पठार को पार दक्षिण मे बहती है. उज्जैन एक प्राचीन भारत जो बारह ज्योतिर्लिंग मे से एक श्री महाकालेश्वर के रूप में जाना जाता है क्षिप्रा नदी के तट पर बसा है.

हिंदू धर्म का प्रकृति से गहरा नाता है. वृक्षों को हिंदू धर्म में पूजा जाता है. वृक्ष लगाने को भी पुण्य माना जाता है. धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है, वृक्ष लगाने को भी पुण्य माना जाता है. हिंदू धर्म में बरगद को बहुत महत्व है. पौराणिक मान्यता के अनुसार बरगद में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास माना गया है. बरगद को साक्षात शिव भी कहा गया है. बरगद को देखना शिव के दर्शन करना है.

दुनिया भर में हैं केवल चार वटवृक्ष (प्रयागराज में अक्षयवट, उज्जैन में सिद्धवट, गया में बौद्ध वट,  मथुरा-वृंदावन में वंशीवट)

अक्षयवट; अक्षय का आशय जिसका कभी क्षय न हो. अक्षयवट का जिक्र रामचरित मानस (RamCharit Manas) समेत तमाम पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेखित है. कहा जाता है कि 14 वर्ष के वनवासकाल में श्रीराम (Lord Rama), सीता (Sita) और लक्ष्मण (Laxman) ने तीन दिनों तक इस वटवृक्ष के नीचे निवास किया था. महाकवि कालीदास ने रघुवंश में प्रयागराज स्थित अक्षयवट का जिक्र किया है. कहा जाता है कि अक्षयवट के पास ही कामकूप नामक एक तालाब भी था और वृक्ष के नीचे पाताल पुरी मंदिर था. अक्षयवट के प्रति अंधश्रद्धा का आलम यह था कि मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग अक्षयवट पर चढ़कर तालाब में कूदकर जान देते थे। सन 643 ई में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग जब भारत आया तो कुंभ स्नान के दौरान उसने अक्षयवट का भी दर्शन किया. 

सिद्धवट उज्जैन के पवित्र शहर में स्थित है। इस जगह के पास ही शिप्रा नदी बहती है। भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन (Ujjain) में केवल अकाल मृत्यु के भय से ही मुक्ति नहीं मिलती है बल्कि यहां पर मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. शिप्रा तट (Shipra River) के किनारे स्थित सिद्धवट मंदिर की प्राचीन समय से ही काफी मान्यता है. स्कंद पुराण के मुताबिक इस वट वृक्ष को माता पार्वती ने लगाया था. यहां पर दूध अर्पित करने और पूजा करने से पितरों की शांति के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है, इस जगह को इसकी पवित्रता के कारण प्रयाग का अक्षयवट कहा जाता है। यहाँ आने पर आप शिप्रा नदी में प्रचुर मात्रा में कछुए देख सकते हैं। सिद्धवट घाट अंतिम संस्कार के बाद की प्रक्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है। 

बोधि वृक्ष बिहार के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का पेड़ है। इसी पेड़ के नीचे ईसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस पेड़ की भी बड़ी विचित्र कहानी है, जिसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पेड़ को दो बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, लेकिन हर बार चमत्कारिक रूप से यह पेड़ फिर से उग आया था।

वंशीवट द्वापर युग में कन्हैया जी की बाल लीलाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस वटवृक्ष से कान लगाकर ध्यान से सुनने पर आज भी वंशीवट से वंशी और मृदंग की ध्वनि आती है। इसी स्थान पर द्वापर युग में कन्हैया जी बालपन में नित्य गइया चराने जाते थे। रास बिहारी जी ने इस स्थान पर अनेकों बाल लीलाएं की और अनेक राक्षसों का वध भी किया। यह वट वृक्ष बेणुवादन, दावानल का पान, प्रलम्बासुर के वध का साक्षी रहा है। मान्यता है कि इसी वटवृक्ष पर बैठकर बिहारी जी वंशी बजाया करते थे और गोपियाँ वंशी की धुन में खो जाया करती थीं। वंशीवट ब्रजमण्डल में भांडीरवन के भांडीरवट से थोड़ी ही दूरी पर अवस्थित है। यह श्रीकृष्ण की रासस्थली है। यह वंशीवट वृन्दावन वाले वंशीवट से पृथक है। श्रीकृष्ण जब यहाँ गोचारण कराते, तब वे इसी वट वृक्ष के ऊपर चढ़कर अपनी वंशी से गायों का नाम पुकार कर उन्हें एकत्र करते और उन सबको एकसाथ लेकर अपने गोष्ठ में लौटते। कभी-कभी श्रीकृष्ण सुहावनी रात्रि काल में यहीं से प्रियतमा गोपियों के नाम 'राधिके ललिते विशाखे' पुकारते। इन सखियों के आने पर इस वंशीवट के नीचे रासलीलाएँ सम्पन्न करती थीं।

धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है. मान्यता है कि जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है. हम आपको ऐसे दस वृक्षों के बारे में बता रहे हैं जिनका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है.

बरगद या वटवृक्ष : हिंदू धर्म में बरगद को बहुत महत्व है. पौराणिक मान्यता के अनुसार बरगद में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास माना गया है. बरगद को साक्षात शिव भी कहा गया है. बरगद को देखना शिव के दर्शन करना है.

पीपल: हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है. पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक देवी-देवताओं का वास होता है. गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं.' पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी बहुत काम आते हैं.

आम का पेड़: आम का फल दुनियाभर में अपने स्वाद के लिए जाना जाता है. लेकिन हिंदू धर्म में अनुयायियों के लिए आम के पेड़ का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है. हिंदू धर्म में जब भी कोई शुभ कार्य होते हैं तो घर या पूजा स्थल के द्वार व दीवारों पर आम के पत्तों की लड़ी लगाई जाती है. धार्मिक पंडाल और मंडपों में सजावट के लिए आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है.

बिल्व वृक्ष: बिल्व अथवा बेल (बिल्ला) विश्व के कई हिस्सों में पाया जाने वाला वृक्ष है. हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है.

अशोक का पेड़: हिन्दू धर्म में अशोक वृक्ष को पवित्र और लाभकारी माना गया है. मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है. मान्यता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है.

नारियल का वृक्ष: हिंदू धर्म में नारियल का बहुत महत्व है. नारियल हिंदू धर्म के सभी पूजा-पाठ का जरूरी हिस्सा है. पूजा के दौरान कलश में पानी भरकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है. यह मंगल प्रतीक है. नारियल का प्रसाद भगवान को चढ़ाया जाता है. नारियल के वृक्ष भारत में प्रमुख रूप से केरल,पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में खूब उगते हैं. महाराष्ट्र में मुंबई तथा तटीय क्षेत्रों व गोआ में भी इसकी उपज होती है.

नीम का वृक्ष: नीम का पेड़ सदियों से भारत में पाया जाता रहा है. यह पेड़ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यानमार (बर्मा), थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका आदि देशों में भी पाया जाता है. नीम में चमत्कारी औषधीय गुण होते हैं. नीम को मां दुर्गा का रूप माना जाता है. इसके कहीं कहीं नीमारी देवी भी कहते हैं. नीम की पेड़ की पूजा की जाती है.

केले का पेड़: हिंदू धर्म के धार्मिक कार्यों में केले का प्रयोग किया जाता है. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है. केले के पत्तों पर प्रसाद बांटा जाता है.

अनार: पूजा के दौरान पंच फलों में अनार की गिनती की जाती है. मान्यता है कि अनार के वृक्ष से जहां सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता हैं. वहीं इस वृक्ष के कई औषधीय गुण भी हैं.

खेजड़ी का पेड़: हिंदू धर्म में शमी या खेजड़ी के वृक्ष की भी पूजा की जाती है. दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा रही है. लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है. पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं. शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है. वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है.

वैदिक संस्कृति प्रकृति की उपासक रही है, इस संस्कृति में प्रकृति के सभी तत्व जैसे कई ऐसे पशु-पक्षी और पेड़-पौधे हैं, जिन्हें धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अहमियत दी जाती है, प्रकृति की उपासना का पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है l शकुन शास्त्र के अनुसार यदि आप सुबह-सुबह किसी जरूरी काम के लिए निकल रहे हों और आपको कोई हंस, सफेद घोड़ा, मोर, तोता दिख जाए तो इसे शुभ संकेत समझें l

शेर; राजसी बाघ, तेंदुआ टाइग्रिस धारीदार जानवर है। इसकी मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर गहरी धारीदार पट्टियां होती हैं। लावण्‍यता, ताकत, फुर्तीलापन और अपार शक्ति के कारण बाघ को भारत के राष्‍ट्रीय जानवर के रूप में गौरवान्वित किया है। शेर को एक शक्तिशाली जानवर समझा जाता है. इसे जंगल का राजा भी कहा जाता है. हिन्दू धर्म में शेर का महत्व बहुत ही ज़्यादा है. ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा शेर की सवारी करती हैं. 

हाथी ; को इंद्र देवता का साथी माना जाता है. वे हाथी पर सवारी करते हैं. हाथी का दूसरा रूप भगवान गणेश हैं. हिन्दू धर्म में आज भी हाथी की पूजा की जाती है.

हंस; ज्ञान की देवी मां सरस्वती का वाहन हंस माना जाता है. हंस पवित्र, जिज्ञासु और समझदार पक्षी होता है. हंस अपने चुने हुए स्थानों पर ही रहता है. इसकी खासियत हैं कि यह अन्य पक्षियों की अपेक्षा सबसे ऊंचाई पर उड़ान भरता है और लंबी दूरी तय करने में सक्षम होता है.

बैल / गाय; भगवान शिव का वाहन माना जाता है नंदी. विश्‍व की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है. सुमेरियन, बेबीलोन, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है. इससे पता चलता है कि प्राचीनकाल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है. भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है. भारतीय संस्कृति में गाय को मां कहा जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह गाय का दूध है. इसे अमृत समझा जाता है.

 मोर; पावों क्रिस्तातुस, भारत का राष्ट्रीय पक्षी एक रंगीन, हंस के आकार का पक्षी पंखे आकृति की पंखों की कलगी, आँख के नीचे सफेद धब्बा और लंबी पतली गर्दन। इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगीन होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अति मनमोहक कांस्य हरा 200 लम्बे पंखों का गुच्छा होता है। मादा भूरे रंग की होती है, नर से थोड़ा छोटा और इसमें पंखों का गुच्छा नहीं होता है। नर का दरबारी नाच पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना सुंदर दृश्य होता है।

बंदर; कोई बच्चा बहुत उछल-कूद करे, तो मज़ाक-मज़ाक में उसे बंदर या लंगूर कह कर पुकारा जाता है. लेकिन प्राचीन मिस्र में लंगूर को पवित्र माना जाता था. विज्ञान और चांद के देवता ठोठ को अधिकतर लंगूर के रूप में दर्शाया जाता था.

बुज्जा; सारस जैसा दिखने वाला यह पक्षी भी मिस्र सभ्यता के देवता ठोठ से नाता रखता है. ऐसी मान्यता है कि मिस्र की लिपि की रचना ठोठ ने ही की थी और वे सभी देवताओं के बीच संवाद के लिए ज़िम्मेदार हैं.

सोचने वाली बात ये है कि अगर पशु-पक्षीओं को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो, शायद पशु-पक्षी के प्रति हिंसा का व्यवहार और ज़्यादा होता. भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की रक्षा का एक संदेश दिया है. हर पशु-पक्षी किसी न किसी भगवान का प्रतिनिधि है, उनका वाहन है, इसलिए इनकी हिंसा नहीं करनी चाहिए. इतना ही नहीं, विश्व के अन्य देशों में भी जानवरों को धर्म के काफ़ी करीब माना गया है, इस धरती पर जितना अधिकार हमारा है, उतना ही अधिकार जानवरों का भी है. ये अलग बात है कि हम उन पर अपना अधिकार जमा चुके हैं और इस धरती को अपने कब्ज़े में ले लिया है. हम मानवों ने इस धरती को कई चीज़ों में विभाजित कर दिया है.

हिन्दुओं ने अपने पवित्र स्थानों को परंपरा के नाम पर अपवित्र कर रखा है। उन्होंने इन पवित्र स्थानों को मनोरंजन और पर्यटन का केंद्र तो बना ही रखा है, साथ ही वे उन स्थलों को गंदा करने के सबसे बड़े अपराधी हैं। गंगा किनारे अपने मृतकों का दाह-संस्कार करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। गंगा में पूजा का सामान फेंकना और जले हुए दीपक छोड़ना किसी भी हिन्दू शास्त्र में नहीं लिखा है। फिर भी ऐसा कोई हिन्दू करता है तो वह गंगा और सरोवरों का अपराधी और पापी है।

Spiritual Bharat #भगवान #सनातनभारत #हिन्दू #तीर्थ #तीर्थस्थल #Gurukul #ancientindia #ancienthistory #anci #भारतीयसंस्कृति


About Nojoto   |   Team Nojoto   |   Contact Us
Creator Monetization   |   Creator Academy   |  Get Famous & Awards   |   Leaderboard
Terms & Conditions  |  Privacy Policy   |  Purchase & Payment Policy   |  Guidelines   |  DMCA Policy   |  Directory   |  Bug Bounty Program
© NJT Network Private Limited

Follow us on social media:

For Best Experience, Download Nojoto

Home
Explore
Events
Notification
Profile