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Anand Tripathi 'रवि'
मेरी वाली Pretend करती है जब तब ऐसे जैसे Literature से जुड़ाव कुछ ख़ास ना हो उसका पर हरकतें हर तरह से साहित्य की हैं हुज़ूर के जैसे बातों को अधूरा छोड़ देना... #साहित्यिक_सहायक #साहित्य_संजीवनी
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माँ शारदा तेरी छाँव में अगर शरण मिल जाए सच कहता हूँ माँ शारदा विचार ही बदल जाए सुनता हूँ तेरी दरिया ,दिन-रात बहती है एक बूँद जो मिल जाए,संस्कारों की कली खिल जाए माँ शारदा तेरी छाँव में,अगर शरण मिल जाए सच कहता हूँ माँ शारदा,विचार ही बदल जाए ये मन बड़ा चंचल है, कैसे मैं तेरा स्वागत करूं जितना इसे समझाऊँ, उतनी ही चंचलता बढ़ जाए माँ शारदा तेरी छाँव के,अगर शरण मिल जाए सच कहता हूँ माँ शारदा,विचार ही बदल जाए विद्या से न गिरने देना, चाहे लाख तू मुश्किलें देना विद्या से जो गिर जाए,मुश्किल है संभल पाए माँ शारदा तेरी छाँव में,अगर शरण मिल जाए सच कहता हूँ माँ शारदा,विचार ही बदल जाए ।। माँ शारदा बस एक तमन्ना है, तुम सामने हो मेरे मेरी जान निकल जाए, माँ शारदा तेरे छाँव की अगर संस्कार मिल जाए सच कहता हूँ माँ शारदा विचार ही बदल जाए।। Day _ 10 प्रतियोगिता _"हम लिखते रहेंगे" Team 17 __" साहित्य संजीवनी " शीर्षक _ " सरस्वती वंदना " शब्द _ स्वागत , संस्कार , विचार , दरिया , विद्या
Day _ 10 प्रतियोगिता _"हम लिखते रहेंगे" Team 17 __" साहित्य संजीवनी " शीर्षक _ " सरस्वती वंदना " शब्द _ स्वागत , संस्कार , विचार , दरिया , विद्या
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मेरे यारो ये साथ का पल अब एक ख़्वाब में बदल रहा आया वो समय जिसमे अलविदा कहना पड़ रहा रोज सुबह-रात वाली गपशप होंगी खत्म अब अब अलग होंगे रिश्ते और अलग होंगे अभिमान समूह की यह प्रतियोगिता जहाँ जमती थी हमारी कविता रिक्त हो जाएगा उस समूह का स्थान अब आ गया वह मोड़ जिसमे अलविदा कहना पड़ेगा अब नासमझ ही थे जब आए थे ये पल भी कैसे चले आए थे हाथ भी मिला कुछ इस क़दर हम सब सूझबूझ से समझने लग गए एक प्रतियोगिता के दिन जल्दी खत्म हो गए एक पल में गुजरने का ये दौर भी थम गया आ गया वो मोड़ जिसमे अलविदा कहना पड़ रहा मेरे दोस्तों ठीक से देख लो,कही कुछ छूटा न हो कही तुम्हारी वजह से कोई दिल रूठा न हो भूलकर सब रंजिशे,एक रिश्ता बना लो फिर से मिलने का वादा कर लो,क्योंकि जा रहा वक़्त जो वो दोबारा आने से रहा,दिल थामे आँखे पोछ रहा " छोड़ कर चले जाएंगे जब तो यह घर खाली रह जाएगा " Day _ 9 प्रतियोगिता _"हम लिखते रहेंगे" Toeam . 17 __" साहित्य संजीवनी " शीर्षक _ " विदाई की घड़ी " शब्द _ रिश्ते, ख़्वाब, सूझबूझ, अभिमान, कदर
" छोड़ कर चले जाएंगे जब तो यह घर खाली रह जाएगा " Day _ 9 प्रतियोगिता _"हम लिखते रहेंगे" Toeam . 17 __" साहित्य संजीवनी " शीर्षक _ " विदाई की घड़ी " शब्द _ रिश्ते, ख़्वाब, सूझबूझ, अभिमान, कदर
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किसी भी तौर से अब ये किस्सा खत्म हो जाए मैं मरने वाला हूँ तो ये कहानी खत्म हो जाए मेरी आँखों में आँसू देने वाले मेरी बद्दुआ सुन ले तू खुश रह जा तेरी आँखों का पानी खत्म हो जाए बड़ा अच्छा था मेरा महफ़िल बताने आए है कितने अजनबी लोग है मेरी लाश उठाने आए है अंधेरे खामोशी से आए है यानी मुमकिन है दीये की मैय्यत पर अपने अश्क़ बहाने आए है मेरे घाव सही हो जाए अजनबी में हुनर नही अपनों के हाथ लगे है तब ये जख्म ठिकाने आए है पछतावा, गुज़ारिश,अजनबी सब पास तो है पर मेरे नही ये सब हिज्र के मारे है बस मन बहलाने आए है जरा सी एक गुज़ारिश है किसी सूरत पर मर जाते अगर बस साँस ली होती तो इस आदत से मर जाते अदावत,बेरुखी,तंजो,मजम्मत आजमाए सब मोहब्बत आजमाता तो हम हैरत से मर जाते गई शब ख्वाब में आकर जहर लेने ही वाला था अगर वो सिसकी न लेता तो इस आदत से मर जाते ये दुनिया और इसका किस्सा ने ज़िंदा रखा वरना अजनबी के गली में हम फुरसत से मर जाते मोहब्बत में पछतावा हुआ तो ये ख्याल आया यहाँ भी बच गए होते अगर तो सोहरत से मर जाते अंधेरे में गढ़ते थे परछाई कमाल के बेरूप,रंग के थे परछाई कमाल के मैं उसको भूलने की गुज़ारिश करू पर उसके महफ़िल ने खत रखे है संभाल के लहरों से जीतने का गुमान है तुम्हे उम्र गुज़र गई है यहाँ दरिया को पाल के कल अजनबी से मिल के इतनी खुशी हुई आँसू निकलने लगे मेरे रुमाल के " लुट गए मोहब्बत पर जान देने वाले मर मिटे मोहब्बत पर कुर्बान होने वाले दिल ए महफ़िल तो आबाद थी इश्क़ के जुनून से फिर ऐसा क्या हुआ कि वस्ल की रात, आखिरी रात हुई ।। " Day _ 8 प्रतियोगिता _"हम लिखते रहेंगे " Team . 17 __" साहित्य संजीवनी "
" लुट गए मोहब्बत पर जान देने वाले मर मिटे मोहब्बत पर कुर्बान होने वाले दिल ए महफ़िल तो आबाद थी इश्क़ के जुनून से फिर ऐसा क्या हुआ कि वस्ल की रात, आखिरी रात हुई ।। " Day _ 8 प्रतियोगिता _"हम लिखते रहेंगे " Team . 17 __" साहित्य संजीवनी "
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सुबह सवेरे आकर मेरा घर आँगन चहकाती थी आवाज़ में गीत मधुर वो गाती थी कभी यहाँ, कभी वहाँ पल में उड़ जाती थी साथ मे आशा की नई उम्मीदे लेकर आती थी वह नन्ही सी चिड़िया रानी जीवन का सही अर्थ बताती थी सुबह सवेरे आकर मेरा घर-आँगन चहकाती थी छोटा-सा एक घोसला उसने बना रखा था अपना सुंदर सा आशियाना मेरे आँगन में सजा रखा था उसके आस-पास घूमकर मुझे बताया करती थी घर है मेरा दूर रहो,यह कहकर परिणाम समझाया करती थी कुछ साथिया थे उसके ध्यान बड़ा वो रखती थी माँ होने का ज़िम्मेदारी का ख्याल बड़ा वो रखती थी उन नन्ही सी जानो के लिए हर वक्त परिश्रम करती थी धूप-बारिश से बचे रहे वो इसलिए जर काम याद से किया करती थी संघर्ष करती आगे बढ़ती उसने कठनाइयों से लड़ने की ठानी थी, तिनका-तिनका जोड़कर उसे जीवन का सफर जो सजाती थी अपने नन्ही सी जान का ध्यान उसे ही रखना था, उसके पालन-पोषण के लिए कर्म उसे ही करना था जो भी मिल जाए धन्यभाव से उठाती थी, अपने बच्चो को बड़े प्यार से खिलाती थी आसमाँ में सफर बनाना सीख लिया उस वक्त माँ के आशियाने से रिश्ते तोड़ा था तिनका-तिनका जोड़कर जिसके घोसला बनाया उन बच्चो ने उसका वो प्यारा सा बसेरा बड़े प्यार से छोड़ा था वह चिड़िया खुश थी उसके बच्चो ने उड़ना सिखाया था आसमान को छूकर सपनो को पूरा करना सिखा था अंदर से जो टूट चुकी माँ की ममता रोई थी अपने बच्चों से जुदा होकर कौन सी माँ सुकून से सोई थी।। Day _ 7 प्रतियोगिता _ "हम लिखते रहेंगे " Team . 17 __" साहित्य संजीवनी " Team Captain __ Sushma Nayyar Team Members__ 1_ Sanjay Sahai 2 _ Ujjawal Pratap Singh 3_ Pooja Jain
Day _ 7 प्रतियोगिता _ "हम लिखते रहेंगे " Team . 17 __" साहित्य संजीवनी " Team Captain __ Sushma Nayyar Team Members__ 1_ Sanjay Sahai 2 _ Ujjawal Pratap Singh 3_ Pooja Jain
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ये संसार ही इतना गन्दा हो गया है,जैसे बलात्कार भी धंधा हो गया है ये दरिंदे कही बाहर से नही आते,इसी समाज का हिस्सा होते है आज इसकी कल उसकी जिंदगी का किस्सा होते है मौत आई है मुझे कई बार,एक बार नही सौ बार कभी मारा मुझे संसार ने,कभी उन्ही की रिवाज़ ने कभी मरी है दहेज के जहर से,कभी जली उसी की कहर से बाप ने कभी दुनिया दिखाकर मारा,कभी मारा माँ के कोख में आड़ ली कभी मौत की चादर में,तो छुपी कभी एकतरफा चाहत की चादर में ज़िंदा रहकर भी मरी थी,जब बनी थी किसी शिकार में मेरी ललकार फंसी थी जलाया गया कभी सती बनाकर,तो मौत आई कभी निर्भया बनाकर मरी उस पल भी थी जब हर लिया चीर मेरा मरी उस पल भी थी जब बाजार में बिक गया था शरीर मेरा न देखी भी मेरी उम्र उन्होंने,न देखा कोई मंदिर मुहर्त कौन कहता है राख होता है,मैंने तो ख्वाबो को मिटते देखा है पुजारी हो अहंकार के,उसे नोच खाने को उतारू है फिर भी वो कोठे पर बैठी औरत ही बाज़ारू है राह में चलते कभी ,तो कभी तन्हाई की उन झूलो से घर की दहलीज़ से कभी छुट्टी उन स्कूलों से वो आँगन की ललकार चुराई गई है वो तवायफ थी नही उसे तवायफ बनाई गई है मैं गुड्डे-गुड़ियों संग खेल रही,कब जीवन मेरा खेल हुआ संसार की नज़रों से कैसे बचू मेरे घर मे मुझ संग गंदा खेल हुआ।। "मैं महज दर्शक हूं साहब मुझे तालियों में बजता शोर कर दो मैं नारी हूँ साहब मुझे कमजोर कर दो ।" †**********************************************†*******************†************* Day _ 6 प्रतियोगिता _ "हम लिखते रहेंगे " Team . 17 __" साहित्य संजीवनी "
"मैं महज दर्शक हूं साहब मुझे तालियों में बजता शोर कर दो मैं नारी हूँ साहब मुझे कमजोर कर दो ।" †**********************************************†*******************†************* Day _ 6 प्रतियोगिता _ "हम लिखते रहेंगे " Team . 17 __" साहित्य संजीवनी "
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Topic:- पापा कहते है No.2:- गरीबी है बड़ी जालिम,वह दस्ती साँप जैसे हो मकान की छत नही पक्की,बरसती आग जैसी हो छोड़ के माँ के आँचल को ,गृह में अपनी अपनी पत्नी को बिलखते अपने बच्चो को,पापा शहर जाते है कमाने पेट भर रोटी पापा शहर जाते है।। वो राते है बड़ी भीगी,मुझे अब भी डराती तूफान एक साथ आया ,पूरा घर है उजाड़ती माँ सोना चाहती थी,मगर कहां नींद आती है पति प्रदेश हो जिसका,वह स्त्री कहा कुछ कह पाती है कमाने सुख,चैन नींद पाप शहर जाते है कमाने पेट भर रोटी पापा शहर जाते है।। कविता है बड़ी दुर्लभ,ये साँसे रोक जाती है मैं रोना तक नही चाहता,सिसकियां आ ही जाती है जब बैठू अकेले में आंखे खूब रोती है जिस्म से जान जुदा हो ऐसी बात होती है सुना था बचपन में मैंने पापा शहर जाते है वह आँगन था बड़ा प्यारा,बड़ा सुंदर,बड़ा सवारा जिसमे रहती बहना दो,मैं और मेरा भाई बेचारा पढ़ लिख बने काबिलबस इसलिए पापा शहर जाते है कुछ वंश भी सहारा बने शायद इसलिए पापा कमाने जाते है। पापा को शहर जाना था सो वो चले गए मेरे आवाज़ लगाने से क्या होगा मैं कितना चीखू ,चिल्लाऊं परिवार को याद करके,पापा नही आएंगे काम छोड़के।। " उड़ेंगे आज आज़ाद परिंदे काव्य के आकाश में आज गज़ब सी शान होगी हर एक परवाज़ में ।। " Day _ 5 , प्रतियोगिता का नाम_ हम लिखते रहेंगे Team . 17 __" साहित्य संजीवनी " Team Captain __ Sushma Nayyar
" उड़ेंगे आज आज़ाद परिंदे काव्य के आकाश में आज गज़ब सी शान होगी हर एक परवाज़ में ।। " Day _ 5 , प्रतियोगिता का नाम_ हम लिखते रहेंगे Team . 17 __" साहित्य संजीवनी " Team Captain __ Sushma Nayyar
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बारिशो का नुकसान करना पड़ता है कश्ती में पूरा जहान करना पड़ता है जब सितारा बनने की चाहत होती है उससे पहले खुद को बेनाम करना पड़ता है तुमने मुझे पा तो लिया संभालने में हड़बड़ी कर दी उसने बस एक बूँद रखी थी जुदाई के बीच मैं गुस्से में आया पूरी बारिश ज़मीन पर उतार दी एक वक्त बाद रास्ता मोड़ना भूल जाता है समुंद्र से नदी को जुड़ना पड़ता है मत कैद किया करो अपने ऐश के लिए बहुत वक्त बाद निकले तो पंछी पिंजरे से उड़ना भूल जाता है समुंद्र समेत लेते है काँच भी मगर मुश्किल तब जब दुनिया भी बिखरा होता है जिसके एक दीदार के लिए एक उम्र गुजार दी वह चेहरा थककर भी निखरा होता है दर्द तो वो करते है जो बहुत छोटे और महीन होते है दिखता वही है जो जख्म उभरा होता है जरा सी एक तमन्ना है मेरी एक सूरत से मर जाते अगर सिर्फ साँस ली होती तो इस आदत से मर जाते गई शब ख्वाब में आ के ज़हर देने वाला था अगर सिसकी न लेता तो हम फुरसत से मर जाते ये दुनिया और उसके तंज ने ज़िंदा रखा वरना फ़रिशतो की गली में तो बरकत से मर जाते कश्ती बना रेगिस्तान में बहा दो अब तो समुंद्र को ये सजा दो ऐसी हवस जब हो हश्र की फिर घर मे लगाकर आतिस हवा दो "जाने वालों से संसार नहीं रुकता रुक जाती है धड़कन मगर दुनिया का व्यापार नहीं रुकता ।। " जन्म और मृत्यु इन दो ध्रुवों के बीच में ही जीवन चक्र चलता है । दुनिया में आने वाले हर प्राणी को इस दुनिया से जाना है यही कड़वा सच है । परंतु यह अंतिम विदाई किसी को अश्रुपूर्ण नेत्रों से मिलती है मिलती है और किसी को स्वार्थ भरे दिलों से । आज प्रतियोगिता के चौथे दिन का सफर जीवन की इसी सच्चाई को अपने भावों और शब्दों में पिरोते हुए हम तय करेंगे ।
"जाने वालों से संसार नहीं रुकता रुक जाती है धड़कन मगर दुनिया का व्यापार नहीं रुकता ।। " जन्म और मृत्यु इन दो ध्रुवों के बीच में ही जीवन चक्र चलता है । दुनिया में आने वाले हर प्राणी को इस दुनिया से जाना है यही कड़वा सच है । परंतु यह अंतिम विदाई किसी को अश्रुपूर्ण नेत्रों से मिलती है मिलती है और किसी को स्वार्थ भरे दिलों से । आज प्रतियोगिता के चौथे दिन का सफर जीवन की इसी सच्चाई को अपने भावों और शब्दों में पिरोते हुए हम तय करेंगे ।
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मैं शहीद हुआ पर मरा नही ये ज़िन्दगी थी माँ तेरा बेटा खुदा नहीं कोशिश करके न बदला कुछ भी मौत से मेरी कुछ लाल हुई बस चुनरी तेरी धर्म के नाम पर कर रहे बमबारी भूलकर किनारा कर गए ये दुनियादारी बहा रहे मासूमो का लहू अब तो खुदा का है सहारा,बता दे मैं जियूँ या मरु तिनके-तिनके से मेरा आशियाना बनता है उस आशियाने में कई मंजिल बसता है एक बारूद का गोला सब मुश्किल कर देता है सोचकर देखो,डर लगता है क्या कसूर था उन मासूमो का जिसने हिरोशिमा और नागासाकी में जान दी आज भी भुगत रहे वो लोग जिन्होंने पैदा होकर साँस तक नही ली पूरा शहर चुटकी में भाप हो गया पलक झपकते ही पूरा शहर साफ हो गया रह गए उस बम के छोटे-छोटे टुकड़े जो आज भी कह रहे है,ना आना इधर,इसमें है खतरनाक किरणे।। खून पसीने से सीचूँगा ये मिट्टी जब जाकर मेरे हलक भी दो निवाले होंगे तपती धूप में जलना होगा बेपरवाह मैं जलूँगा तब जाकर मेरे घर मे उजाले होंगे।। Day 3 टीम नंबर .17 _ " साहित्य संजीवनी " सर्वसम्मति से चुने गए शब्द और शीर्षक__ शब्द _ ज़िंदगी, मुश्किल , कोशिश , किनारा , मंज़िल आज का शीर्षक है_ " देखो उम्मीद मत खोना "
Day 3 टीम नंबर .17 _ " साहित्य संजीवनी " सर्वसम्मति से चुने गए शब्द और शीर्षक__ शब्द _ ज़िंदगी, मुश्किल , कोशिश , किनारा , मंज़िल आज का शीर्षक है_ " देखो उम्मीद मत खोना "
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फिर किसी के लब की दुआ और किसी के हाथों का सलाम हुआ जाए आओ ढूंढते है कोई अलिफ़ फिर किसी की सुबह-शाम हुआ जाए । ज़िंदगी तो गुजरती है गुजर जाएगी यू भी चलो इबादत_ए_ इश्क़ करे और कतरा-कतरा खूबसूरती से तमाम हुआ जाए । अभी तो आशिक़ी में है जी भर के खुशियां लौटाएगा दो पल हँसी के बचा लेना तेरे गम में काम आएगा । सोचा था सफर इश्क़ का है पर अकेले ही जाएंगे करेंगे इश्क़ की नौकरी पर कभी काम पर नही जाएंगे तुम से मिले तो पता ही बदल गया मेरी महफ़िल का लोग अक्सर मुझे तेरे ख्यालो में भटकता हुआ पाएंगे वादा किया है यारो से अमावस में चाँद दिखाने का तुम कुछ देर के लिए छत पर आ जाना हम शर्त जीत जाएंगे। मैखाने बन्द है शहर में तेरी आँखों का दीदार भी नही होता ख्वाहिश उठी जो पीने की तो आशिक़ कहां जाएंगे । वो कोई और होंगे जो इश्क़ सूरत देखकर दर बदल देते है हमें तो मोहब्बत सीरत से है जब तक जीएंगे महक तेरी दिल में बसाएंगे । रगों से खून निकल जाए तो अपना खून भी रंग बदल देता है तुम्हे भी छूट है तुम भी बदल जाना हम भी सुकून से याद किए जाएंगे ।। टीम 17 __" साहित्य संजीवनी " #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #हमलिखतेरहेंगे #साहित्य_संजीवनी एक विनम्र निवेदन टीम कोरा कागज से कि मैंने पहले जो पोस्ट डाली थी उस पर टीम के सदस्य collab नहीं कर पा रहे हैं इसीलिए मुझे फिर से कोलैब ऑप्शन ऑन करके पोस्ट डालनी पड़ रही है । इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं । #YourQuoteAndMine
टीम 17 __" साहित्य संजीवनी " #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #हमलिखतेरहेंगे #साहित्य_संजीवनी एक विनम्र निवेदन टीम कोरा कागज से कि मैंने पहले जो पोस्ट डाली थी उस पर टीम के सदस्य collab नहीं कर पा रहे हैं इसीलिए मुझे फिर से कोलैब ऑप्शन ऑन करके पोस्ट डालनी पड़ रही है । इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं । #YourQuoteAndMine
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