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Anamika Nautiyal

अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त
 (मरे लोग) 
#अनाम_ख़्याल
#अनाम_अंतर्द्वंद्व
#अंतर्द्वंद५
#pc_byअनाम
#मरे_लोग
#negativethinking

Anamika Nautiyal

#किट्टू #अनाम_ख़्याल #अनाम_अंतर्द्वंद्व #अंतर्द्वंद४ #pc_byअनाम हमेशा की तरह नींद और मेरी दुश्मनी कट्टर दुश्मनों की तरह चलती ही आ रही थी ,मगर पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही तनातनी थी। मैं सफेद झंडा लिए संधि को जाती तो नींद मुझ से कोसों दूर भागती जाती और इसके चलते मुझे "कुन फाया कुन" नामक नींद की दवा लेनी पड़ती थी....मगर कल की रात नींद मेरी प्रियतमा बन मेरे पास यूँ दौड़ी चली आई मानो प्रणय की रात्रि हो... इन सब की वजह थी किट्टू!!

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अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त
 (किट्टू) 
#किट्टू
#अनाम_ख़्याल
#अनाम_अंतर्द्वंद्व
#अंतर्द्वंद४
#pc_byअनाम 

हमेशा की तरह नींद और मेरी दुश्मनी कट्टर दुश्मनों की तरह चलती ही आ रही थी ,मगर पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही तनातनी थी। मैं सफेद झंडा लिए संधि को जाती तो नींद मुझ से कोसों दूर भागती जाती और इसके चलते मुझे "कुन फाया कुन" नामक नींद की दवा लेनी पड़ती थी....मगर कल की रात नींद मेरी प्रियतमा बन मेरे पास यूँ दौड़ी चली आई मानो प्रणय की रात्रि हो... इन सब की वजह थी किट्टू!!

Anamika Nautiyal

#अंतर्द्वंद्व३ #अनाम_अंतर्द्वंद्व कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही तय हो जाते हैं और कुछ रिश्ते हम ख़ुद बनाते हैं पर कभी-कभी लगता है कि यह रिश्ते बनाना ज़रूरी है क्या ?कभी अपने बनाए हुए रिश्तों से उम्मीद करना अपेक्षाएँ रखना और मन मुताबिक व्यवहार ना पाने पर बार-बार उन्हीं बातों को सोचना और खुद को कष्ट देना...क्या जीवन भर हम सब से यही करते रहते हैं।रिश्ते बनाओ उन्हें सींचों और कभी कभी ख़राब पुष्प की तरह उन्हें निकाल कर फेंक दो। सारी उमर यही सब करने में बीत जाती हैं। ख़ुद के लिए तो जैसे कभी समय ही न

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अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त
(डर) #अंतर्द्वंद्व३ 
#अनाम_अंतर्द्वंद्व

कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही तय हो जाते हैं और कुछ रिश्ते हम ख़ुद बनाते हैं पर कभी-कभी लगता है कि यह रिश्ते बनाना ज़रूरी है क्या ?कभी  अपने बनाए हुए रिश्तों से उम्मीद करना अपेक्षाएँ  रखना और मन मुताबिक व्यवहार ना पाने पर बार-बार उन्हीं  बातों को सोचना और खुद को कष्ट देना...क्या जीवन भर हम सब से यही करते रहते हैं।रिश्ते बनाओ उन्हें सींचों और कभी कभी ख़राब पुष्प की तरह उन्हें निकाल कर फेंक दो। सारी उमर  यही सब करने में बीत जाती हैं। ख़ुद के लिए तो जैसे कभी समय ही न

Anamika Nautiyal

मेरा ताल्लुक पहाड़ की तलहटी पर बसे अत्यंत दुर्गम क्षेत्र के एक गाँव से रहा, सुख सुविधाओं के अभाव और थोड़ी सी ज़रुरत पर शहर का मुँह देखना आम बात थी। वहाँ तीन चार गाँव का मिलाकर एक स्कूल था जो मेरे गाँव से बहुत दूर था। मेरे माता पिता ने मुझे उस स्कूल में भेजने के बजाय मेरा दाखिला शहर में करवा दिया, हालाँकि मेरी दसवीं तक की शिक्षा उसी स्कूल में हुई 11वीं में विज्ञान विषय की अनुपलब्धता के कारण मुझे शहर के स्कूल जाना पड़ा। कोई पहचान का तो नहीं था, वैसे तो बहुत लोग थे पर ऐसा कोई नहीं जो मुझे अ

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 अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त 
(10₹)  



  मेरा ताल्लुक पहाड़  की तलहटी पर बसे अत्यंत दुर्गम क्षेत्र के एक गाँव से रहा, सुख सुविधाओं के अभाव और थोड़ी सी ज़रुरत पर शहर का मुँह देखना आम बात थी। वहाँ तीन चार गाँव का मिलाकर एक स्कूल था जो मेरे गाँव से बहुत दूर था। मेरे माता पिता ने मुझे उस स्कूल में भेजने के बजाय मेरा दाखिला शहर में करवा दिया, हालाँकि मेरी दसवीं तक की शिक्षा उसी स्कूल में हुई 11वीं  में विज्ञान विषय की अनुपलब्धता के कारण मुझे शहर के स्कूल जाना पड़ा। कोई पहचान का तो नहीं था, वैसे तो बहुत लोग थे पर ऐसा कोई नहीं जो मुझे अ

Anamika Nautiyal

कहाँ से शुरू करूँ अक्सर इसी सोच में डूब जाती हूँ,,,और यह यह शुरू का पेंच शुरुआत ना करने का डर मन में बैठा देता है। हम जो कुछ भी लिखते हैं उसका आरंभ हम विशेष प्रकार से करना चाहते हैं। विशेष होना तो आम है किंतु आम होना विशेष । ख्यालों की एक लड़ी मेरे अंतः करण में अक़्सर भावनाओं के माध्यम से बुनी जाती है और मेरे लिए मुश्किल होता है उन्हें शब्दों के रूप में व्यक्त करना। वैसे भी शब्दों में इतना सामर्थ्य कहाँ कि वे भावनाओं को दर्शा सकें अपितु शब्द तो केवल एक सूक्ष्म सा माध्यम है। इस जीवन में हमें

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अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त 
(आरंभ) 

कहाँ से शुरू करूँ अक्सर इसी सोच में डूब जाती हूँ,,,और यह यह शुरू का पेंच शुरुआत ना करने का डर मन में बैठा देता है। हम जो कुछ भी लिखते हैं उसका आरंभ हम विशेष प्रकार से करना चाहते हैं।
विशेष होना तो आम है किंतु आम होना विशेष ।

ख्यालों की एक  लड़ी मेरे अंतः करण में अक़्सर भावनाओं के माध्यम से बुनी जाती है और मेरे लिए मुश्किल होता है उन्हें शब्दों के रूप में व्यक्त करना। वैसे भी शब्दों में इतना सामर्थ्य कहाँ कि वे भावनाओं को दर्शा सकें अपितु शब्द तो केवल एक सूक्ष्म सा माध्यम है। इस जीवन में हमें


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