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Arpit Singh
★मैं कितना तुममें हूँ...★ किसी दिन पश्चिम से आती हुई किरण मेरे आँगन को चूमेंगी उस दिन आंकलन करूँगा कि, मैं कितना तुममें हूँ. वादियों से निकलती सर्द हवाओं का हर वो मार्ग जो तुम तक जाती होगी वो हल्की सी धूप कल आयेगी और हँसों के जोड़े नहा-निखर कर मेरे बरामदे से तुम्हारी ठिठुरन पर व्यंग्य करेंगे. तुम्हारी अट्टालिका से गुजरती हुई वो रेशमी शिराएँ जो आभास करवायेगी तुम्हारे अश्वेत ज़ुल्फों का उस सेमल के पुष्प की पांचों पंखुड़ियां जिसमें छिपी ओस की बूंदें तुम्हारे नयनों की धार से मिलके सागर ढूँढेगी. तुम्हारी हर दमक पर सुनहरी सर्वरी कोहरे की चादर ओढेगी सूने अम्बर साक्ष्य रहेंगे शरद और तुम्हारी रुसवाई का फिर भी मेरे नयन तुम्हारे प्रेम को जीवंत मान विवेचन करेंगे कि, मैं कितना तुममें हूँ... #शरद_की_शाम (same mentioned below👇👇👇) #मैऔरतुम #love#nature #naturediariesbyarpit #yqdidi #yqbaba #mothertongue_verse
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वो शाम ग्रीष्म की बहती हवा अनोखी रत्नमयी पूनम में नाचती अबलखा मैनो की जोड़ी... धरा को चूमती बूँद घटा की लौटती मनमोहक हरियाली झूलती वट की सुंदरतम छटा और बलखाती मक्के की सुनहरी बाली... देख विहग की नभ में उड़ान तारे छूते मन के पंछी वो डूबता हुआ अल्हड़ रवि और शोभती उससे हर फूल कली... शाँत और स्थिर नीरनिधि मन को भाता शीतल समीर महकता ग़ुलाब खिला हुआ कमल छिपता चाँद और सितारों की झिलमिल... सतरंगी पुष्पलताओं का अपना श्रृंगार मरु में बर्फ़ और वर्षा का हित अंबार देख प्रकृति की ग्रीष्म लीला हर मन ढूँढने निकले अम्बर नीला... #ग्रीष्म_की_शाम #ग्रीष्मऋतु #nature #naturediariesbyarpit #yqbaba#yqdidi#yqhindi #mothertongue_verse
Arpit Singh
प्रश्न भी तुम, उत्तर भी तुम आवाज भी तुम, आगाह भी तुम धूप भी तुम, छाँव भी तुम घाव भी तुम, मरहम भी तुम अरुण भी तुम, शशि भी तुम चंदन भी तुम, चांदनी भी तुम नीर भी तुम, समीर भी तुम ग्रीष्म भी तुम, शिशिर भी तुम तमस भी तुम, किरण भी तुम साहस भी तुम, धैर्य भी तुम अश्क भी तुम, मोती भी तुम मान भी तुम, मर्यादा भी तुम रक्त भी तुम, वाहिनी भी तुम फूल भी तुम, माला भी तुम घटा भी तुम, बरसात भी तुम संध्या भी तुम, सुबह भी तुम प्रेम भी तुम, ईर्ष्या भी तुम भाव भी तुम, भंगिमा भी तुम खुशी भी तुम, संगीत भी तुम आदि भी तुम, अनंत भी तुम... क्रमशः✍️✍️✍️ #सिर्फतुम #कविता #कल्पना (same mentioned below👇👇👇) #yqdidi#yqbaba#yqhindi #mothertongue_verse
Arpit Singh
भावनाओं के बीच होती निष्कर्षविहीन भित्ति न जाने भुरुह को कब क्यूँ और कैसे भूमिहीन कर देती है औ' कल्पित मंदहास्य से विवेचित होकर मरदुम समस्त बंधनों से स्वमुक्ति पाकर विहग के जैसे बहुतेरे उद्देश्यों को अपने कंधों पे लिए उड़ चलते हैं गगन में फलतः तथाकथित मौसमीय कुसुम की खूबसूरत पंखुरियाँ अपने माधुर्य के दंभ में उस मरदुम की भर्त्सना करती रहती है उसी भूमिहीन भुरुह की भाँति जिसका कोई शिला नहीं होता है औ' छेड़ देती है एक कृत्रिम संग्राम... #विचलित_मन #कविता #कल्पना #yqbaba#yqdidi#yqhindi #mothertongue_verse
Arpit Singh
फिर कभी अमावस की रातें होगी चाँद खिल रहा होगा रातें तारों से जगमगा रही होगी झींगुर को तन्हाई सुनाई दे रही होगी जुगनुओं की बारात में नाचते हुए चकोर इसी उम्मीद में कि,आज चाँद के करीब होने का एहसास होगा निशा के अंतिम पहर में यायावर सा भटकता हुआ एक अलग अंदाज में आऊँगा मैं हँसते हुए,हालचाल पूछने तुम और तुम्हारी यादों का इससे पहले कि अरुण अपनी लालिमा से ढँक दे इस सुखद क्षण को... #चाँद #मैऔरतुम #poetry #yqhindi #yqbaba#yqdidi #mothertongue_verse
Arpit Singh
उर में दबी हुई टेक आज मुझे अपने में ही सारगर्भित होना कहके नजरें फेर लेने जैसी अमंद प्रयास कर रही है गरल तरंग की चाल में चलते हुए मेरे मन की धाराएँ उदधि की माप से परे तुम्हारे उदित स्वप्न और सारे सुम मणि जो उस छद की भित्ती भाँति मुझे कचोटती है एवं जिसमें क्षेम की अत्यन्ति हुई हो मेरे लिए अज्ञेय है तुम्हारी छपछपाती पलकें जो भींगी हो नयनों के सलिल से और वो स्याही जिससे तुमने मेरी नादानियों को पन्नों पे उकेरा है सहसा ही तुम्हारे कलम की निब विकीर्ण भी हो जाती होगी मेरे नाम पे... #विचलित_मन #कविता #कल्पना #yqbaba#yqdidi #mothertongue_verse
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ढलती शाम उदासीन पंछियां रूठे हुए पेड़ छिपता चाँद बादलों की घेराबंदी स्थिर नदियाँ अधखिले फूल अलसायी भोर तपन से इठलाता मुस्काता अरुण शातिर हवाएँ दंभ से अपने कर विचलित हर शरीर फिर भी तुम्हारे प्रेम को पाने की चाह में उत्सुकता को छोड़ कोसों दूर तुमसे उसी मरैया पे मिलने को आतुर है मेरा मन जहाँ हमदोनो के अलावा कोई न हो,शून्य भी नहीं #विचलित_मन #प्रेम #कविता #yqhindi #yqbaba #yqdidi #mothertongue_verse
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हँसते रहे वो सितारे शशि को साथ लेके पल्लवित मंजर और शीतल हवाएँ अकेले पड़ गए हैं इन वीरान जग में न कोई जुगनू न कोई तीतर पखेरू की कलकल भी है नदारद छुपी हुई चाँदनी प्रथम मेघ की बाट जोहे है अंधकार में मगन कि अब खुले नभ में विचरण करना भी एक जादुई किस्सा हो गया है 🐉🐊🐢 #Nature #yqbaba #yqdidi #विचलित_मन #yqhindi #mothertongue_verse
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#क्योंकि_मैं_वसंत_हूँ #naturediariesbyarpit #nature #वसंत(Same Mentioned below👇) #poetry #yqbaba #yqdidi
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आ चल चलते हैं❤️ (Same mentioned below👇👇) #poetry #yqbaba #yqdidi #mothertongue_verse
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