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Sushma
गलत सही कि परीभाषा भुला चुके हैं सब "क्योंकि वो गलत तो हम क्यों नहीं " - यहीं मानते हैं सब मन पे कहाँ काबू हैं किसी का, बस चलते जा रहे हैं सभी जाना कहाँ हैं, मंजिल क्या हैं कहाँ पता हैं किसी को... अपने फैंसले ख़ुद किया करो सोच विचार कर , वरना शिकार हो जाओगे किसी और के फैसले का.... ©Sushma #समाज_और_इनकी_सोच #समाज_और_संस्कृति #समाज_की_हकीकत #समाज_की_कड़वी_सच्चाई
Insprational Qoute
पग पग पर रुढ़ियों का बखान होता है संकुचित सोच का मान होता है, आज संकुल समाज कालग्रास के मुख में जा रहा है,ऐसा अंत होता हैं, ऐसा यह समाज है परिवर्तन इनको बिल्कुल भी न भाये, एक रीत है पूर्वजों की बस उन पर चल यह जीना चाहे, नित्य नियम नियमित करते कर्मकांड, अंधविश्वास की डगर अपनाये, समाज और इनकी सोच में आज देखो भारत विकासशील ही कहलाये, कभी भेदभाव,जातिप्रथा, छुआछूत,यह प्राचीन से लेकर आज आधुनिक समय के उपनाम है, आज इन आयामों पर घात प्रतिघात कर शिक्षा का दीप जला युवाओं को जगाना मेरा काम है। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
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read moreAnanya Singh
हाँ वो आई थी, संग अपने ढेरों सपने लायी थी। बसाएगी वो भी अब अपनी एक नई दुनिया, वो भी यह अरमान सजाये दिल में, इस घर की चौखट पर आई थी । पर यहाँ कुछ ज़िम्मेदारियां थी पहले से, कुछ रिश्ते थे उलझे से, कुछ अनकहे जज़्बात थे समझने को, तो कुछ इन्तेहाँ थे ज़माने के। खुद ममता की छाँव से निकल , अब उसको ममता बिखेरनी थी। दुखा न दे वो दिल उन मासूमो का, अब उसे यह भी सम्भालना था। तराजू में रख उसने अपनी ममता थी बाटी, ना अपने को जयदा न उनको कम थी बाटी । समाज को उमीदें थी उससे ममता के त्याग की, पर देना ना था अधिकार उसको माँ की चिन्ता भरी फटकार की। बोलने से पहले आज भी उसको सोचना पड़ता है, गलत न समझे समाज यह देखना पड़ता है, माना वो भी माँ है उन बच्चों की पर आज भी केहता समाज उसको "सौतेली माँ" जो है। Thank u so much 😊for your lovely pokes 🤗❤ Clain Sumit Rai Rajesh Kumar😉 Shubham Shukla Yashwant Soni itne log hi mention ho paa rhe hai 🙆baakiyo ko sorry and thanks a lot for pokes🤗 हाँ वो आई थी, संग अपने ढेरों सपने लायी थी।
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read moreसाहस
संसार गलत था माना, पर हमारा प्यार होना नहीं खुद्दार। तुमने किया मुझे दागदार, आज धुले बिन बन रही इज्जतदार।। हम ठहरे कामगार तो समाज की बोली से चलाई कटार। यही था वो उम्र भर का प्यार, जिससे ठंडी की मन का जहर।। #वो_बेवफा_नही #समाज_और_इनकी_सोच #मोहब्बत_बेहिसाब #सच्चाई_बस_ये_है #yqbaba #yqdidi #mythoughts #YourQuoteAndMine Collaborating with विनोद चौधरी
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read morei am Voiceofdehati
★श्रद्धांजलि★ गांव में एक गरीब मर गया था भूख से सभी आए शोक व्यक्त किए अनाज दिया आश्वासन दिया चले गए। लेकिन किसी ने बगल के दूसरे गरीब से नहीं पूछा कि तुम्हारे पास खाने को है या नहीं शायद लोगों को श्रद्धांजलि देकर सहायता करना शोभनीय लगता है? #श्रद्धांजलि गांव में एक गरीब मर गया था भूख से सभी आए शोक व्यक्त किए अनाज दिया आश्वासन दिया चले गए। लेकिन किसी ने बगल के दूसरे गरीब से नहीं पूछा कि तुम्हारे पास खाने को है या नहीं शायद लोगों को श्रद्धांजलि देकर सहायता करना शोभनीय लगता है? #सोच #समाज_और_इनकी_सोच #मेरीक़लमसे #लोगो_की_सोच #voiceofdehati #mythoughts #yqdidi
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read moreDR. SANJU TRIPATHI
समाज और इनकी सोच खोखले, दकियानूसी और दोगले विचारों से भरी पड़ी है। हर कदम पर अंधविश्वास, मान-सम्मान और संकीर्ण मानसिकता मुंह बाए खड़ी है। आधुनिकता का जामा पहनने का दिखावा करते, पर अपनी सोच बदलने से डरते हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के नारे लगाते और उन्हें ही हमेशा दोयम दर्जे पर रखते हैं। बेटा- बेटी को बराबर बताते हैं, पर भ्रूण परीक्षण कराकर बेटी का अस्तित्व मिटाते हैं। मान- मर्यादा और संस्कारों के नाम पर आज भी, लोग ऑनर किलिंग करवाते रहते हैं। रूढ़िवादी सोच को मिटाने की बातें करके, कुरीतियों और कुप्रथाओं को निभाते रहते हैं। महिलाओं और बच्चों को बढ़ाने की बातें करते, नए-नए नियम और कानून बनाते रहते हैं। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
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read moreAnil Prasad Sinha 'Madhukar'
समाज और इनकी सोच, संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हैं, इक्कीसवीं सदी के लोग हैं सभी, रूढ़िवादी सोच दिखाते हैं। एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारा ये लगाते हैं, कुंठित समाज के लोग अभी भी, भ्रूण परीक्षण करवाते हैं। दहेज प्रथा अभिशाप कहकर, समाज के ठेकेदार बन जाते हैं, लोलुपता बढ़ जाती इनकी, जब ख़ुद बेटे का ब्याह रचाते हैं। ऐसे समाज के लोगों की, हमें मानसिकता बदलनी होगी, मन घृणित होता यह सोचकर, हम किस समाज से आते हैं। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..! 👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8) में लिखें..! 👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..! 👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
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