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Best neha_ram Shayari, Status, Quotes, Stories

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नेहा उदय भान गुप्ता

मेरी सूनी गोदी में आके, किलकारी कर तूने खेला है,
सूना सूना आँगन, तूने हसीं ठिठोले का डारा डेरा है।
मातृत्व जगाया मुझमें, परि पूर्ण हुई आने से मैं तेरे,
चहूँ ओर है फ़ैला खिलौना, तूने हर सामान बिखेरा है।।
सूने घर को आबाद किया, तुझपे जीवन निसार दूँ।
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ।।

मांँ बेटे के नाते का तुमने, स्नेह का डोर खींचा है, 
माँ कहकर तुमने, वात्सल्यता से मुझको सींचा है।
भूल गई सारे रिश्ते नाते, जबसे कोख में तू आया,
मेरा अंश मेरा बीज, तेरा स्थान बेटा सबसे ऊँचा है।
आ मेरे कलेजे के टुकड़े, तुझको जी भरके प्यार दूँ
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ।।

नज़र ना लगे तुझे जमाने की, अपने आँचल में छुपा लूँ
तेरी सूरत पे मैंने, अपनी ममता का सारा कोष लूटा दूँ।
जब से आया गोद में मेरे तू बेटे, मैंने ये जग बिसराई है,
तुम्हें निहारे बस अंखियाँ मेरी, सीने से तुझे लगा लूँ।।
लगा कर काला टीका, आ बेटे तेरी नज़र उतार दूँ।
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ

पीकर छाती का अमृत , मेरे स्त्रीत्व को धन्य किया है,
अपने नटखटपन में, तूने मुझको मेरा बचपन दिया है।
हुई मेरी उमरिया लम्बी, सुन कर तेरी तोतली बतिया,
राम कृष्ण बनके, यशोदा कौशल्या जैसा मान दिया है।।
तू मेरा जीवन, तुझ पर मैं तो अपना सर्वस्व लूटा दूँ।
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ।। 
#kkकाव्यमिलन 
#कोराकाग़ज़काव्यमिलन
#काव्यमिलन_5
#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़   
#neha_ram

नेहा उदय भान गुप्ता

तुमसे ही आस है, तुमसे ही मेरे विश्वास की डोर बँधी है।
हे राघव, हे रघुनन्दन, तुमसे ही प्रीत की लगन लगी है।।

मैं अज्ञानी हूँ जोगन तेरी, मुझे जीवन का मार्ग दिखा लो
ना जानूँ मैं पूजा पाठ, मुझको भक्ति का रस सिखा दो।।

भजन तुम्हारी नित्य करूँ, बन कर मीरा चहुँ ओर फिरु।
गाऊँ बस मैं राम कथा, मैं तो राम कहानी सुनाती चलूँ।।

भय, मोह, माया, लोभ, मोह से, मुझको तू पार लगा दो।
बँधे ना दुनियाँ के जंजाल से, खुद में ही अनुराग लगा दो

भूल जाए संसार की रीति, बस तुझ संग ही प्रीति लगा दे
नही सीखनी मुझे दुनिया दारी, तू अपनी नीति सिखा दे। 

तेरी कृपा की छाँव में, अब तो रघुनन्दन मुझको रहना है।
छल कपट के इस मायाजाल से, तुझको करुणा करना है

मेरा अनुनय विनय स्वीकार करो, करती रहूँ तेरा वंदन मैं
तेरे जैसा दूजा ना कोई, हर क्षण हर पल, तुझे पुकारूँ मैं 
#kkकाव्यमिलन 
#कोराकाग़ज़काव्यमिलन
#काव्यमिलन_4
#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़   
#neha_ram

नेहा उदय भान गुप्ता

काव्य मिलन — 3 माफ़ करो ना अध्यापक जी मुझको, गर्मी बहुत पड़ रहा है। लिखने का मन नही है मेरा, माथे से पसीना टपक रहा है। कान ना पकड़ा करो तुम हमारे, हाथ पे ना डन्डा मारो तुम। सर्दियों में लिख करके आऊँगी, प्यारी बात मान लो मेरी तुम।

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अध्यापक और बच्चा..
अनुशीर्षक में पढ़े..👇 काव्य मिलन — 3

माफ़ करो ना अध्यापक जी मुझको, गर्मी बहुत पड़ रहा है।
लिखने का मन नही है मेरा, माथे से पसीना टपक रहा है।

कान ना पकड़ा करो तुम हमारे, हाथ पे ना डन्डा मारो तुम।
सर्दियों में लिख करके आऊँगी, प्यारी बात मान लो मेरी तुम।

नेहा उदय भान गुप्ता

काव्य मिलन —2 करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम। लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

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करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। 
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। 
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

ना मिले अधिकार कभी, तो लड़कर मिट जाने को है होता। 
धधक उठेगी अब ज्वाला नीरनिधि से, क्यों अब तक सोता।

कोई फ़र्क नही इसे, तीन दिवस से हूँ मैं इससे पंथ माँगता। 
भूल गया ये ऋण हमारे पूर्वजों का, क्या सागर इसे नही जानता।

है क्षमता मुझमें इतनी की, पल भर में ही मैं तुझको सूखा दूँ। 
पर लिया तुमने परीक्षा मेरी, की नही तुझे अब कोई क्षमा दूँ।

दण्ड का अपराधी तू है, क्षण भर में ही तेरे गर्व को मैं चूर करूँ। 
करके ब्रम्हास्त्र का संधान, जल के स्थान पर बालू और रेत करूँ।

देखा अब तक संसार ने राम की कृपा, अब कोप भी देखेगा। 
लहरे उठ रही है अब तक जहाँ से, अब वहाँ से नाद उठेगा।। काव्य मिलन —2

करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम।
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का।
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

नेहा उदय भान गुप्ता

काव्य मिलन —1 कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम, हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी। विरह में तेरे व्याकुल मैं हूँ भटक रही, तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।

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कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम,
हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी।
विरह में तेरे व्याकुल मैं  हूँ भटक रही,
तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।

अपने नाम के पीछे तेरा नाम लगाऊँ,
कहलाऊँ मैं तो बस तेरी ही दुल्हनियाँ।
प्रेम का ऐसा पर्याय सिखा दो मुझको,
मैं भटक रही बनकर तेरी जोगनिया।।

प्रेम अनूठा, सच्चा व समर्पित अपना हो,
मेरी माथे पर सजी वो सिन्दूर तुम्हारा हो,
बना लो तुम मुझको अपना जीवन साथी,
तेरे आँगन में बस तेरी नेह का बसेरा हो।।

अपने राजा राघव की रानी बन जाऊँ मैं,
मिल जाए मुझको तेरे प्रेम का आलिंगन,
लाड़ लगा ले हम दोनों अपने उपवन में,
प्राप्त होता रहे मुझे तेरे प्रेम का छुअन।।

सांझ सवेरे बस तुझको ही निहारती रहूँ,
बन जाऊँ  तेरे अधरो की मधुर मुस्कान।
गुलाबी तन को सींचू मैं तेरे श्रृंगार रस से,
तुम हो रघुनन्दन मेरे यौवन की पहचान।।

झूम रही है ये तो पवन अलबेरी बदलिया,
मेरा चंचल रंगी चितवन भी मचल रहा है।
प्यासे मेरे लबों को चूम लो आज तुम राम,
तड़पती निगाहें व जिया मेरा धड़क रहा है।। काव्य मिलन —1


कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम,
हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी।
विरह में तेरे व्याकुल मैं  हूँ भटक रही,
तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।

नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

मेरी सूनी गोदी में आके, किलकारी कर तूने खेला है,
सूना सूना आँगन, तूने हसीं ठिठोले का डारा डेरा है।
मातृत्व जगाया मुझमें, परि पूर्ण हुई आने से मैं तेरे,
चहूँ ओर है फ़ैला खिलौना, तूने हर सामान बिखेरा है।।
सूने घर को आबाद किया, तुझपे जीवन निसार दूँ।
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ।।

मांँ बेटे के नाते का तुमने, स्नेह का डोर खींचा है, 
माँ कहकर तुमने, वात्सल्यता से मुझको सींचा है।
भूल गई सारे रिश्ते नाते, जबसे कोख में तू आया,
मेरा अंश मेरा बीज, तेरा स्थान बेटा सबसे ऊँचा है।
आ मेरे कलेजे के टुकड़े, तुझको जी भरके प्यार दूँ
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ।।

नज़र ना लगे तुझे जमाने की, अपने आँचल में छुपा लूँ
तेरी सूरत पे मैंने, अपनी ममता का सारा कोष लूटा दूँ।
जब से आया गोद में मेरे तू बेटे, मैंने ये जग बिसराई है,
तुम्हें निहारे बस अंखियाँ मेरी, सीने से तुझे लगा लूँ।।
लगा कर काला टीका, आ बेटे तेरी नज़र उतार दूँ।
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ

पीकर छाती का अमृत , मेरे स्त्रीत्व को धन्य किया है,
अपने नटखटपन में, तूने मुझको मेरा बचपन दिया है।
हुई मेरी उमरिया लम्बी, सुन कर तेरी तोतली बतिया,
राम कृष्ण बनके, यशोदा कौशल्या जैसा मान दिया है।।
तू मेरा जीवन, तुझ पर मैं तो अपना सर्वस्व लूटा दूँ।
आ जा मेरे बेटे राज दुलारे, तुझको मैं लाड़ लगा लूँ।। 
#kkकाव्यमिलन 
#कोराकाग़ज़काव्यमिलन
#काव्यमिलन_5
#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़
#कोराकाग़ज़   
#neha_ram

नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

तुमसे ही आस है, तुमसे ही मेरे विश्वास की डोर बँधी है।
हे राघव, हे रघुनन्दन, तुमसे ही प्रीत की लगन लगी है।।

मैं अज्ञानी हूँ जोगन तेरी, मुझे जीवन का मार्ग दिखा लो
ना जानूँ मैं पूजा पाठ, मुझको भक्ति का रस सिखा दो।।

भजन तुम्हारी नित्य करूँ, बन कर मीरा चहुँ ओर फिरु।
गाऊँ बस मैं राम कथा, मैं तो राम कहानी सुनाती चलूँ।।

भय, मोह, माया, लोभ, मोह से, मुझको तू पार लगा दो।
बँधे ना दुनियाँ के जंजाल से, खुद में ही अनुराग लगा दो

भूल जाए संसार की रीति, बस तुझ संग ही प्रीति लगा दे
नही सीखनी मुझे दुनिया दारी, तू अपनी नीति सिखा दे। 

तेरी कृपा की छाँव में, अब तो रघुनन्दन मुझको रहना है।
छल कपट के इस मायाजाल से, तुझको करुणा करना है

मेरा अनुनय विनय स्वीकार करो, करती रहूँ तेरा वंदन मैं
तेरे जैसा दूजा ना कोई, हर क्षण हर पल, तुझे पुकारूँ मैं 
#kkकाव्यमिलन 
#कोराकाग़ज़काव्यमिलन
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#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़
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काव्य मिलन — 3 माफ़ करो ना अध्यापक जी मुझको, गर्मी बहुत पड़ रहा है। लिखने का मन नही है मेरा, माथे से पसीना टपक रहा है। कान ना पकड़ा करो तुम हमारे, हाथ पे ना डन्डा मारो तुम। सर्दियों में लिख करके आऊँगी, प्यारी बात मान लो मेरी तुम।

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अध्यापक और बच्चा..
अनुशीर्षक में पढ़े..👇 काव्य मिलन — 3

माफ़ करो ना अध्यापक जी मुझको, गर्मी बहुत पड़ रहा है।
लिखने का मन नही है मेरा, माथे से पसीना टपक रहा है।

कान ना पकड़ा करो तुम हमारे, हाथ पे ना डन्डा मारो तुम।
सर्दियों में लिख करके आऊँगी, प्यारी बात मान लो मेरी तुम।

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काव्य मिलन —2 करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम। लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

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करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। 
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। 
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

ना मिले अधिकार कभी, तो लड़कर मिट जाने को है होता। 
धधक उठेगी अब ज्वाला नीरनिधि से, क्यों अब तक सोता।

कोई फ़र्क नही इसे, तीन दिवस से हूँ मैं इससे पंथ माँगता। 
भूल गया ये ऋण हमारे पूर्वजों का, क्या सागर इसे नही जानता।

है क्षमता मुझमें इतनी की, पल भर में ही मैं तुझको सूखा दूँ। 
पर लिया तुमने परीक्षा मेरी, की नही तुझे अब कोई क्षमा दूँ।

दण्ड का अपराधी तू है, क्षण भर में ही तेरे गर्व को मैं चूर करूँ। 
करके ब्रम्हास्त्र का संधान, जल के स्थान पर बालू और रेत करूँ।

देखा अब तक संसार ने राम की कृपा, अब कोप भी देखेगा। 
लहरे उठ रही है अब तक जहाँ से, अब वहाँ से नाद उठेगा।। काव्य मिलन —2

करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम।
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का।
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

काव्य मिलन —1 कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम, हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी। विरह में तेरे व्याकुल मैं हूँ भटक रही, तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।

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कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम,
हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी।
विरह में तेरे व्याकुल मैं  हूँ भटक रही,
तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।

अपने नाम के पीछे तेरा नाम लगाऊँ,
कहलाऊँ मैं तो बस तेरी ही दुल्हनियाँ।
प्रेम का ऐसा पर्याय सिखा दो मुझको,
मैं भटक रही बनकर तेरी जोगनिया।।

प्रेम अनूठा, सच्चा व समर्पित अपना हो,
मेरी माथे पर सजी वो सिन्दूर तुम्हारा हो,
बना लो तुम मुझको अपना जीवन साथी,
तेरे आँगन में बस तेरी नेह का बसेरा हो।।

अपने राजा राघव की रानी बन जाऊँ मैं,
मिल जाए मुझको तेरे प्रेम का आलिंगन,
लाड़ लगा ले हम दोनों अपने उपवन में,
प्राप्त होता रहे मुझे तेरे प्रेम का छुअन।।

सांझ सवेरे बस तुझको ही निहारती रहूँ,
बन जाऊँ  तेरे अधरो की मधुर मुस्कान।
गुलाबी तन को सींचू मैं तेरे श्रृंगार रस से,
तुम हो रघुनन्दन मेरे यौवन की पहचान।।

झूम रही है ये तो पवन अलबेरी बदलिया,
मेरा चंचल रंगी चितवन भी मचल रहा है।
प्यासे मेरे लबों को चूम लो आज तुम राम,
तड़पती निगाहें व जिया मेरा धड़क रहा है।। काव्य मिलन —1


कर लेना राघव आज मेरा वरण तुम,
हर घड़ी ना लो परीक्षा तुम मेरी इतनी।
विरह में तेरे व्याकुल मैं  हूँ भटक रही,
तुम मेरे, मैं भी हूँ तेरी अनमोल रतनी।।
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