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Nazar Biswas
बहती नदी सा वक़्त कैसा कल कल बहता जाता, रेत के जैसे फिसलन इसकी, हाथ कभी ना आता। क़ीमत जो भी जाने इसकी निरंतर आगे बढ़ता जाता, अनदेखा जो किया इसे जीवन में वो पछताता। घुल मिल लेना सबसे ही तुम, कल का क्या ठिकाना? अभी यहीं हैं किसने जाना, बन जाए गुज़रा ज़माना। वक़्त से पहले वक़्त का होजा, वक़्त में ही ढल जाना, जो इसमें ना ढलता है वो हाथ ही मलता रह जाता। वक़्त रुपी ख़ज़ाने को नष्ट ना करना, व्यर्थ ना करना, कहे में इसकी जो ना रहता, अफ़सोस की धारा बहाता। आलस छोडो, हिम्मत जोड़ो, काम में चित्त लगाना, कौन बिगाड़ेगा क्या तेरा? वक़्त भी बने दीवाना। (बहती नदी सा वक़्त - 02) #kkबहतीनदीसावक़्त #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #nazarbiswas
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read moreashutosh anjan
दिल के उलझें बिखरें तारों को सुलझाऊँ कैसे, नज़दीकियाँ हमारें दरमियाँ फ़िर बढ़ाऊँ कैसे। बहती नदी सा वक़्त अब इम्तिहानों में गुज़रता है, बिन इम्तिहाँ के नाव दिल की पार लगाऊँ कैसे। सुना है! क़दम बस महफिल में पड़ते है उनके, इक पल में अपनी तरबियत भूल जाऊँ कैसे। तन्हाई से रुसवाईयाँ भी बहुत है मुझें मग़र, सर-ए-बज़्मो दिलचस्पी बढाऊँ तो बढाऊँ कैसे। अजी! मोबाइल के ज़मानें में कौन मांगता है पता, अब ख़त लिखकर फिर हाल-ए-दिल बताऊँ कैसे। उसके हुस्न की जादूगरी से सिल जाते है लब मेरे, 'अंजान'अपनी कहानी मंज़िल तक पहुँचाऊँ कैसे। बहती नदी सा वक़्त(ग़ज़ल) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkबहतीनदीसावक़्त #yqbaba
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read moreभाग्य श्री बैरागी
"माना कि वक्त में घुमाव हैं, उतार हैं तो कई चढ़ाव हैं। अल्फाज़ भी, ख़ामोशी भी, स्थिरता और सही सुझाव हैं। चंचल मन सा, कोमल भी, सत्य जैसा विपरीत बहाव हैं। वक्त सा भी है, कहाॅं शिक्षक? वक्त पर किसका रहा प्रभाव है? "कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें" 🌸🌸🌸🌸02/15🌸🌸🌸🌸🌸 "उम्र के शुरुवात होने से लेकर आज तक, वक्त बहता ही रहा है नदी सा।" तब मेरी कहानियों के किरदार मेरे नायक नायिकाएं मेरे सोचने के तरीके को हर बार बदलते आए, मैं किसी के लिए भी एक दम कांच सा मन लेकर सामने न आई जो की असल में कोई आता ही नहीं, बस कुछ लोग अपने व्यवहार और बोल चाल में दो चीज़ रखते आए हैं, एक वह मन जो केवल हम जानते हैं और एक वह मन जो सबको दिखाना है। मुझसे ये दोमुहा व्यवहार किसी के साथ नहीं हो सका शायद यही वजह रही कि मैं बड़बोली केवल मेरे जानने वालों के साथ रही। इसी कारण आज ज
🌸🌸🌸🌸02/15🌸🌸🌸🌸🌸 "उम्र के शुरुवात होने से लेकर आज तक, वक्त बहता ही रहा है नदी सा।" तब मेरी कहानियों के किरदार मेरे नायक नायिकाएं मेरे सोचने के तरीके को हर बार बदलते आए, मैं किसी के लिए भी एक दम कांच सा मन लेकर सामने न आई जो की असल में कोई आता ही नहीं, बस कुछ लोग अपने व्यवहार और बोल चाल में दो चीज़ रखते आए हैं, एक वह मन जो केवल हम जानते हैं और एक वह मन जो सबको दिखाना है। मुझसे ये दोमुहा व्यवहार किसी के साथ नहीं हो सका शायद यही वजह रही कि मैं बड़बोली केवल मेरे जानने वालों के साथ रही। इसी कारण आज ज
read moreDr Upama Singh
“बहती नदी सा वक़्त” अनुशीर्षक में बहती नदी सा वक़्त कहां है ठहरता किसी के लिए जैसे नदी का पानी बहता रहता वही पानी दुबारा नहीं छू सकते जो धारा नदी की बह चुकी वो फिर लौट कर नहीं आएगी ठीक उसी तरह वक़्त भी किसी के लिए नही ठहरता नदी की धारा की तरह वक़्त भी अविरल चलती रहती है। #kkबहतीनदीसावक़्त #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #कोरा काग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #similethougths
Neha Pathak
*बहती नदी सा वक़्त* बहती नदी सा वक़्त किनारे पे मेरा घर है। कभी ज्वार-भाटा आएगा बस यही डर है। मैं हिम्मत हूँ और तू मेरी ताक़त है। लहरों की हर आहट पर मेरी नज़र है। मैं तैर कर निकल जाऊँगी उस पार साथी। जिस पार मेरी ख़्वाहिशों का नगर है। क़सम खाई है हमने वक़्त के साथ चलने की। अब ना रात उतनी है और ना दूर सहर है। 'नेहा' तू सफ़र है चाहतों का ख़ुशियों का दर है। दुनिया का क्या मुझे तो अपनी ख़बर है। #कोराकाग़ज़ #kkबहतीनदीसावक़्त #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #yqbaba #yqdidi #neha
Rimjhimシ︎
कोशिश बहुत करी रोकने की लेकिन उसने एक ना सुनी पकड़ कर रखी तारिख लेकिन उसने खिसका दिया पन्ना डाँटा बहुत गुस्से में उसने भी अपनी अकड़ दिखाई समझाया उसे जी जान लगाकर लेकिन वो ढीठ था सबके पसीने छूट गए लेकिन वो ना रुका ना थमा बहती नदी सा बहता चला गया कोई कर भी क्या सकता था आखिर वो समय था #kkबहतीनदीसावक़्त #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #जन्मदिनमहाप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #rzwotm #rzwotm_oct #deewani03
Divyanshu Pathak
बहती नदी सा वक़्त ---------------------- कल! आज और फिर कल बन जाता है। जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है। यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए। कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है। बहती नदी सा वक़्त छोड़ता निशाँ अपने! शान्त रहता है तो कभी ज्वार बन जाता है। इस वक़्त के कई पहलू हमने देखे हैं। कभी गांधी तो कभी बोस बन जाता है। किनारे पर बैठ कर रेत से खेलते रहते हो! इंसान तो वक़्त की कठपुतली बन जाता है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा वक़्त है। 'पंछी' वही है जो अहिंसा परमो धर्म् बन जाता है। बहती नदी सा वक़्त ---------------------- कल! आज और फिर कल बन जाता है। जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है। यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए। कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।
बहती नदी सा वक़्त ---------------------- कल! आज और फिर कल बन जाता है। जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है। यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए। कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।
read moreअभिलाष सोनी
विषय :- बहती नदी सा वक़्त (02-10-2021) ******************************************* बहती नदी सा वक़्त हमारा, लौट के ना आएगा दोबारा। जी लो जी भर के हर पल यहाँ, सच्चा साथी यही हमारा। मिलती नहीं सोहरत उसे, जो वक़्त से कर लेता है किनारा। बहते चलो इस वक़्त की धार में, तरक्की का है यही सहारा। वक़्त का परिंदा रुकता नहीं, चलता रहता है निरंतर धारा। वक़्त के साथ जो चल नहीं पाता, होता नहीं उसका गुजारा। वक़्त बलवान, वक़्त मूल्यवान, वक़्त की चाल जैसे इशारा। समेट लो ख़ुशियाँ वक़्त की झोली से, तोहफा यही सबसे प्यारा। वक़्त के साथ पता चलता अपनों का और कौन है हमारा। दिया है जिसने वक़्त पे साथ, वही सच्चा साथी हमारा। विषय :- बहती नदी सा वक़्त (02-10-2021) बहती नदी सा वक़्त हमारा, लौट के ना आएगा दोबारा। जी लो जी भर के हर पल यहाँ, सच्चा साथी यही हमारा। मिलती नहीं सोहरत उसे, जो वक़्त से कर लेता है किनारा। बहते चलो इस वक़्त की धार में, तरक्की का है यही सहारा।
विषय :- बहती नदी सा वक़्त (02-10-2021) बहती नदी सा वक़्त हमारा, लौट के ना आएगा दोबारा। जी लो जी भर के हर पल यहाँ, सच्चा साथी यही हमारा। मिलती नहीं सोहरत उसे, जो वक़्त से कर लेता है किनारा। बहते चलो इस वक़्त की धार में, तरक्की का है यही सहारा।
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