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Ghumnam Gautam

अभिशापित आघातों से 
ज़हर बुझी कुछ बातों से
निष्प्राण पड़े हैं मेरे स्वप्न―
पिछली पन्द्रह रातों से

©Ghumnam Gautam #निष्प्राण #स्वप्न #अभिशापित #आघात 
#ज़हर #ghumnamgautam

Juhi Grover

पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, नभ सब ज़िन्दगी का आह्वान, प्रकृति के पांचों मूल तत्व,भगवान् का अद्भुत वरदान। जीवन की हर ज़रूरत का प्रकृति ने मिटाया व्यवधान, मग़र प्रकृति के विनाश का भी मानव ही बना सामान। पृथ्वी रैन बसेरा है मानव, जानवर, जीव-जन्तु सबका, कर देता मानव ही दूषित, दबा प्लास्टिक ले रहा जान।

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पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, नभ सब ज़िन्दगी का आह्वान, 
प्रकृति के पांचों मूल तत्व,भगवान् का अद्भुत वरदान।

जीवन की हर ज़रूरत का प्रकृति ने मिटाया व्यवधान,
मग़र प्रकृति के विनाश का भी मानव ही बना सामान।

पृथ्वी रैन बसेरा है मानव, जानवर, जीव-जन्तु सबका, 
कर देता मानव ही दूषित, दबा प्लास्टिक ले रहा जान।

जल ही जीवन है,मत जाने दो व्यर्थ बोलते सब विद्वान,
दुरुपयोग इसका आम हो गया,जीवन हो गया निष्प्राण।

अग्नि मानी जाती रही है वर्षों से शुद्धिकरण का पर्याय,
जला जला कर प्लास्टिक हो रहा इस का भी अपमान।

वायु को बनाया था हमारी साँसों को बढ़ाने का ज़रिया,
प्रदूषित कर मानव ने धुएं से कमाया मौत का सामान।

नभ के सूरज, चाँद, सितारों ने छिपा रखा अथाह ज्ञान,
भूमंडलीय ऊष्मीकरण से है ओज़ोन परत का नुकसान।

प्रकृति के तत्वों को खुद ही अभिशाप बना रहा इन्सान,
जीवन के मूल्यों को निराधार ही बस बना रहा इन्सान।

कीमत चुकानी पड़ेगी जब इस विनाश की प्रत्येक को, 
पतन हो रहा धीरे-धीरे सृष्टि का, अलोप हो रहा प्राण।

ज्ञान ज़रूरी है अपने ही प्राणों के अब संरक्षण के लिए,
बचाना है जीवन को, जागरूकता का ज़रूरी अभियान। पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु, नभ सब ज़िन्दगी का आह्वान, 
प्रकृति के पांचों मूल तत्व,भगवान् का अद्भुत वरदान।

जीवन की हर ज़रूरत का प्रकृति ने मिटाया व्यवधान,
मग़र प्रकृति के विनाश का भी मानव ही बना सामान।

पृथ्वी रैन बसेरा है मानव, जानवर, जीव-जन्तु सबका, 
कर देता मानव ही दूषित, दबा प्लास्टिक ले रहा जान।

Aprajita Jha

तेरे बिन जो सांसे लूँ,उसे निष्प्राण कहती हूँ
तेरे बिन मैं पूरी हूँ,इसे मैं झूठ कहती हूँ
तु दूर गया,तो मुझे रातों की शोखि हुई हासिल
तो मैं अपने प्यार को दूसरा नाम "प्राण" देती हूँ
      #yqdidi #yqbaba  #yqhindi  #सांसे #प्राण  #स्वप्न #निष्प्राण      #YourQuoteAndMine
Collaborating with Pranshu Dubey

Chandra Pokhriyal

अकेला पढ़ा हूँ ढेर! फ़र्श पर कपड़े की गठरी सा न मान, न सम्मान निर्जीव, निष्प्राण बेडौल निराकार शो खत्म होने के बाद क्यों ऐसा तिरस्कार?

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 अकेला पढ़ा हूँ
ढेर! फ़र्श पर
कपड़े की गठरी सा
न मान, न सम्मान
निर्जीव, निष्प्राण
बेडौल निराकार
शो खत्म होने के बाद
क्यों ऐसा तिरस्कार?

Chandra Pokhriyal

अकेला पढ़ा हूँ ढेर! फ़र्श पर कपड़े की गठरी सा न मान, न सम्मान निर्जीव, निष्प्राण बेडौल निराकार शो खत्म होने के बाद क्यों ऐसा तिरस्कार?

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अकेला पढ़ा हूँ
ढेर! फ़र्श पर
कपड़े की गठरी सा
न मान, न सम्मान
निर्जीव, निष्प्राण
बेडौल निराकार
शो खत्म होने के बाद
क्यों ऐसा तिरस्कार?


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