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Best इक्कीसवींसदीकेयेबीसबरस Shayari, Status, Quotes, Stories

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Divyanshu Pathak

#गाँव_में_रहने_वाली_माँ आठ बजते ही नहाती है। कपड़े धोती है। भगवान भी तो उसी के हिस्से में आते हैं सारे। उनकी पूरी सेवा करते करते ग्यारह बज ही जाते हैं। तब तक कोई न कोई चिल्लाता है चूहे दौड़ रहे हैं पेट में!और ये सुनते ही अन्नपूर्णा बन एक बजे तक सबको खाना खिला कर मुस्कुराती है। खुद को खाने का वक़्त तीन बजे मिलता है। :

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सुबह तीन बजे से उठकर लग जाती है,
घर को स्वर्ग बनाने की मशक्कत में मेरी माँ।
मवेशियों के लिए चारा सानी पानी,
झाड़ू सफ़ाई करते करते पाँच बज जाते हैं,
तब जाकर बनाती है चाय सबके लिए।
चार चुस्कियों के साथ
रसोई और कमरों को धो पोंछ कर,
पवित्र कर देती है।

कैप्शन
पढ़ ही डालिए! #गाँव_में_रहने_वाली_माँ 
आठ बजते ही नहाती है।
कपड़े धोती है।
भगवान भी तो उसी के हिस्से में आते हैं सारे।
उनकी पूरी सेवा करते करते ग्यारह बज ही जाते हैं।
तब तक कोई न कोई चिल्लाता है चूहे दौड़ रहे हैं पेट में!और ये सुनते ही अन्नपूर्णा बन एक बजे तक सबको खाना खिला कर मुस्कुराती है।
खुद को खाने का वक़्त तीन बजे मिलता है।
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Divyanshu Pathak

सरकारें मौन। मौन स्वीकृति भी आग में घी का कार्य कर रही है। बहुमत की सरकारें भी देश हित के स्थान पर निजी स्वार्थ को ही बड़ा मानें, तो क्या कहना चाहिए उनको? नाकारा या नपुंसक? उनकी कृपा से आज हर जाति-समाज आरक्षण की तख्तियां हाथ में उठा चुका है। ‘हमें भी आरक्षण दो या आरक्षण समाप्त करो’ का नारा बुलंदी पर है। दूसरी ओर शिक्षित व्यक्ति की क्षमता क्या रह गई? हर स्तर पर नीति में खोट दिखाई दे रही है। क्यों? #GoodMorning #पाठकपुराण #इक्कीसवींसदीकेयेबीसबरस #pic_click_by_पाठक_पुराण

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पिछले सात दशकों में आरक्षण का घुण

देश की संस्कृति,समृद्धि,अभ्युदय सब को खा गया।

शिक्षा नौकर पैदा कर रही है। खेती, पशु-पालन,

पुश्तैनी कार्य छूटते जा रहे हैं।

गुणवत्ता खो रही है।

निर्यात के स्थान पर आयात बढ़ रहा है।

पेंसिल छीलने का शार्पनर और नेलकटर भी विदेशी? सरकारें मौन। मौन स्वीकृति भी आग में घी का कार्य कर रही है। बहुमत की सरकारें भी देश हित के स्थान पर निजी स्वार्थ को ही बड़ा मानें, तो क्या कहना चाहिए उनको? नाकारा या नपुंसक? उनकी कृपा से आज हर जाति-समाज आरक्षण की तख्तियां हाथ में उठा चुका है। ‘हमें भी आरक्षण दो या आरक्षण समाप्त करो’ का नारा बुलंदी पर है। दूसरी ओर शिक्षित व्यक्ति की क्षमता क्या रह गई? हर स्तर पर नीति में खोट दिखाई दे रही है। क्यों?
#goodmorning #पाठकपुराण #इक्कीसवींसदीकेयेबीसबरस
 #pic_click_by_पाठक_पुराण

Divyanshu Pathak

#1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है मैं कहता रहा हूँ। आगे भी शासन और प्रशासन की गतिविधियों में अपने शब्दों से सहयोग देता रहूँगा। #सार्वजनिक_अनुशासन_की_कमी_एवं_अशिक्षा का प्रभाव तो था ही,इसके साथ ही समाज में नए वर्ग भी देखे जो, स्वयं के लाभ से आगे कुछ नही सोचते।तो वहीं नशे की गिरफ़्त में बच्चों से लेकर युवा और हर उम्र के लोगों को तड़पते देखा।हद तो ये थी कि शराब की माँग को लेकर मोदी जी तक के लिए अनुरोध वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किए गए। देश किधर जा रहा है किसी को नहीं पता बस सब अपने फा

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लॉक डाउन के साथ शुरू हुई कोरोना के साथ जंग
हमको पहले एक माह के अंत में ही बीस साल पीछे धकेल कर ले गई।
देश के गाँव की आबादी मंहगाई के साथ अपने उत्पाद
(अनाज,दूध,सब्जियाँ, दालें,)
सस्ती क़ीमत पर बेचने को मजबूर हुए।
मुझे आश्चर्य तो दूध की क़ीमत को लेकर हुआ जो
25 रुपये प्रति लीटर के भाव स्थानीय दूधियों द्वारा ख़रीदा जा रहा था।
गेहूँ,सरसों,बगैरह भी और चक्की या मिल वाले स्टॉक करने में व्यस्त थे।
किराने से लेकर फलवाले तक 6 गुनी क़ीमत वसूल रहे थे।
जर्दा तंबाकू सिगरेट बगैरह के 15 से 20 गुना। हद है। #1_मई_तक_लॉकडाउन_के_साथ_राजस्थान_सतर्क_है मैं कहता रहा हूँ। आगे भी शासन और  प्रशासन की गतिविधियों में अपने शब्दों से सहयोग देता रहूँगा। #सार्वजनिक_अनुशासन_की_कमी_एवं_अशिक्षा  का प्रभाव तो था ही,इसके साथ ही समाज में नए वर्ग भी देखे जो, स्वयं के लाभ से आगे कुछ नही सोचते।तो वहीं नशे की गिरफ़्त में बच्चों से लेकर युवा और हर उम्र के लोगों को तड़पते देखा।हद तो ये थी कि शराब की माँग को लेकर मोदी जी तक के लिए अनुरोध वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किए गए।
देश किधर जा रहा है किसी को नहीं पता बस सब अपने फा

Divyanshu Pathak

सच तो यह है प्रकृति की चौरासी लाख योनियों में मनुष्य के अतिरिक्त कोई भी प्राणी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता। इस चक्र में मनुष्य का होना ही समस्या है। पेड़ के हर पत्ते को जड़ के साथ एक रहकर जीना ही पड़ेगा। विकल्प नहीं है। व्यक्ति अकेला “वसुधैव कुटुम्बकम” के बाहर सुखी कैसे रहेगा। जो भी डाल पेड़ से कटेगी, सूख जाएगी। :

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विज्ञान ने आदमी की उम्र तो बढ़ा दी,
किन्तु शक्ति भी उसी अनुपात में
कम करता गया।
विज्ञान व्यापार बन गया।
शिक्षा ने भौतिकवाद को बढ़ावा दिया और
विज्ञान ने सुविधाएं उपलब्ध करवा दीं।
कृत्रिम रूप से उम्र को बढ़ा देना और 
बीमारी की राह पर खड़ा कर देना
क्या एक ही बात नहीं है? सच तो यह है प्रकृति की चौरासी लाख योनियों में
मनुष्य के अतिरिक्त कोई भी प्राणी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता।
इस चक्र में मनुष्य का होना ही समस्या है।
पेड़ के हर पत्ते को जड़ के साथ एक रहकर जीना ही पड़ेगा।
विकल्प नहीं है।
व्यक्ति अकेला “वसुधैव कुटुम्बकम” के बाहर सुखी कैसे रहेगा।
जो भी डाल पेड़ से कटेगी, सूख जाएगी।
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Divyanshu Pathak

22-12- 2018 विकास के आगे घुटने टेकता जीवन #विज्ञान_का_ताण्डव आज हमको #covid_19_march_22_at_8_am_to_9_pm के रूप में देखने को मिला । गुलाब कोठारी जी की हमने तब भी नही सुनी थी । : एक तरफ भारतीय खाद्य सामग्री का स्थान तेजी से पाश्चात्य सामग्री लेती जा रही है, वहीं कोई भी खाद्य सामग्री ऐसी नहीं बची, जो कीटनाशक के प्रभाव से अछूती बची हो।

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विकास के आगे घुटने टेकता जीवन

सारी नीतियां पलायनवादी हैं।
कोई भी जिम्मेदारी उठाने की
क्षमता एवं मानसिकता इनमें नहीं है।
तब कौन बचाएगा कृषि और पशुधन?
कौन बचाएगा धरती?
तब कैसे बच पाएंगे किसान और गांव?
प्रकृति से छिटक जाएगा इंसान।
कलियुग के बाद प्रलय की
पूर्ण तैयारी हो रही है। 22-12- 2018
विकास के आगे घुटने टेकता जीवन
#विज्ञान_का_ताण्डव आज हमको #covid_19_march_22_at_8_am_to_9_pm के रूप में देखने को मिला ।
गुलाब कोठारी जी की हमने तब भी नही सुनी थी ।
:
एक तरफ भारतीय खाद्य सामग्री का स्थान तेजी से पाश्चात्य सामग्री लेती जा रही है,
वहीं कोई भी खाद्य सामग्री ऐसी नहीं बची,
जो कीटनाशक के प्रभाव से अछूती बची हो।

Divyanshu Pathak

💕🙏सुप्रभातम💕🙏 : मुझे तो लगता है कि नेताओं की कसरत मात्र कुर्सी हथियाने की ही रही। : बोफोर्स, सत्यम, सवाल के बदले धन, महिला आरक्षण, पेयजल आदि मुद्दे गायब रहे। : काल का एक ऐसा अंश आया मानो कि लगता था लोकतंत्र ध्वस्त हो चला है या भारतीय दंड संहिता ने समर्पण कर दिया हो । स्वतंत्रता के झंडे के नीचे लोग अपने ही प्रदेश में कैद होकर रह गए थे। दूसरा कोई देश होता तो फंसे हुए लोगों को निकालने की व्यवस्था होती, खाद्य सामग्री और दवाएं उपलब्ध कराई जाती, बच्चों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचाने की व्यवस्था की जात

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21वीं सदी का ये भारत पिछले 70 सालों से चुनाव देखते आ रहा है।
दोनों बड़ी पार्टियों के घोषणा पत्र अगर हम ध्यान से पढ़ें तो पिछली बार के घोषणापत्र जैसे ही हैं और इनमें नीतिगत कोई अंतर नहीं निकलेगा यह तो बस रस्म अदायगी बनकर रह गई थी ।
हर 5 साल बाद हमने एक जैसे ही घोषणा पत्र सुने थे।
क्या यही हमारे लोकतंत्र की अवधारणा थी?
देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी चर्चा किए बिना ही नेतृत्व सामने वाली पार्टी पर प्रहार शुरू करता रहा।
बेरोजगारी, शिक्षा, चिकित्सा, पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया और भ्रष्टाचार बढ़ाकर आतंकवाद को पनपाते रहे।
ऊपर से वंशवाद जातिवाद को सभी ने हवा दी।
जातिवाद को खत्म कर आरक्षण रखना चाहते हैं यह तो आश्चर्य ही है ।
 💕🙏#सुप्रभातम💕🙏
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मुझे तो लगता है कि नेताओं की कसरत मात्र कुर्सी हथियाने की ही रही।
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बोफोर्स, सत्यम, सवाल के बदले धन, महिला आरक्षण, पेयजल आदि मुद्दे गायब रहे।
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काल का एक ऐसा अंश आया मानो कि लगता था लोकतंत्र ध्वस्त हो चला है या भारतीय दंड संहिता ने समर्पण कर दिया हो । स्वतंत्रता के झंडे के नीचे लोग अपने ही प्रदेश में कैद होकर रह गए थे।
दूसरा कोई देश होता तो फंसे हुए लोगों को निकालने की व्यवस्था होती, खाद्य सामग्री और दवाएं उपलब्ध कराई जाती, बच्चों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचाने की व्यवस्था की जात

Divyanshu Pathak

💕🙏नमस्कार 💕🙏 : बढ़ती जनसंख्या के दबाव और अंधाधुंध तरीके से औद्योगिकीकरण व शहरीकरण की मार झेल रहे हमारे देश में इन समस्याओं से निपटने के नाम पर आधे अधूरे मन से बनाई गई लचर नीतियां आग में घी का काम कर रहीं हैं । यह भारत सहित दुनिया के अधिकांश गरीब और विकासशील देशों की कहानी है । : भारत का पर्यावरण इसके विशाल पड़ोसी चीन की तुलना में कुल मिलाकर ज्यादा बेहतर है क्योंकि भारत काफी धीमी गति से विकास कर रहा है लेकिन यह स्थिति बदल रही है अब शहर के भूजल में पारे की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा देश

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21वीं सदी के इन 20 वर्षों में दुनिया के बाकी 142 देश शानदार प्रगति कर रहे हैं जिनमें - चीन ब्राजील रूस इंडोनेशिया तुर्की केन्या दक्षिण अफ्रीका के साथ हमारा भारत भी शामिल है ।
इस विकास की हमारे देश ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है।
आबादी की बेलगाम बढ़ोतरी और अनियंत्रित अनियोजित औद्योगिकीकरण ने कई शहरों को पर्यावरणीय नर्क बना डाला और तमाम नगर इसी राह पर चल रहे हैं।
देश के 88 में से 75 जॉन बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं और पवित्र नदियों का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा है। 💕🙏#नमस्कार 💕🙏
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बढ़ती जनसंख्या के दबाव और अंधाधुंध तरीके से औद्योगिकीकरण व शहरीकरण की मार झेल रहे हमारे देश में इन समस्याओं से निपटने के नाम पर आधे अधूरे मन से बनाई गई लचर नीतियां आग में घी का काम कर रहीं हैं । यह भारत सहित दुनिया के अधिकांश गरीब और विकासशील देशों की कहानी है ।
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भारत का पर्यावरण इसके विशाल पड़ोसी चीन की तुलना में कुल मिलाकर ज्यादा बेहतर है क्योंकि भारत काफी धीमी गति से विकास कर रहा है लेकिन यह स्थिति बदल रही है अब शहर के भूजल में पारे की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा देश

Divyanshu Pathak

💕🙏सुप्रभातम💕🙏 : राजनीति अर्थशास्त्र और संस्कृति में पहला स्थानांतरण पश्चिमी जगत में उदय हुआ । यह प्रक्रिया 15 वी शताब्दी में प्रारंभ हुई और 18वीं सदी के अंतिम दशकों में बड़ी नाटकीय रफ्तार से परवान चढ़ी। जिसे हम आधुनिकता का निर्माण समझते हैं । विज्ञान और तकनीक वाणिज्य और पूंजीवाद कृषि और औद्योगिक क्रांतियों के साथ पश्चिमी देशों के सुदीर्घ राजनैतिक प्रभुत्व को भी जन्म दिया । "संयुक्त राज्य अमेरिका का उदय" इसी स्थानांतरण की देन है ।

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 दुनिया बदल रही है ये बदलाब हर क्षेत्र में ,हर एक हिस्से में हो रहे है।आर्थिक,राजनैतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में शक्तियों का बंटवारा नए सिरे से हो रहा है।
पिछले पांच सौ बर्षों के दौरान शक्ति के तीन भौगौलिक स्थानांतरण हुये हैं ।
ताकत बंटवारे के क्षेत्र में बुनियादी बदलाव अंतरराष्ट्रीय जीवन की शक्ल फिर से तय कर रहे थे।

कैप्शन पढ़कर देखिए 💕🙏#सुप्रभातम💕🙏
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राजनीति अर्थशास्त्र और संस्कृति में पहला स्थानांतरण पश्चिमी जगत में उदय हुआ ।
यह प्रक्रिया 15 वी शताब्दी में प्रारंभ हुई और 18वीं सदी के अंतिम दशकों में बड़ी नाटकीय रफ्तार से परवान चढ़ी।
जिसे हम आधुनिकता का निर्माण समझते हैं ।
विज्ञान और तकनीक वाणिज्य और पूंजीवाद कृषि और औद्योगिक क्रांतियों के साथ पश्चिमी देशों के सुदीर्घ राजनैतिक प्रभुत्व को भी जन्म दिया ।
"संयुक्त राज्य अमेरिका का उदय"
इसी स्थानांतरण की देन है ।


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