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Raju Mandloi

#Vedanti

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नमस्ते जी
🙏
क्या मनुस्मृति जातिवाद की पोषक है?

मनुस्मृति के विषय में यह प्रचलित किया गया है कि मनुस्मृति जातिवाद की पोषक है, उसमें नारी जाति को तुच्छ माना गया है। सत्य यह है कि मनुस्मृति में मध्य काल में कुछ मुर्ख लोगों ने मिलावट कर मनु महर्षि को जातिवादी और नारी जाति के साथ भेदभाव करने का प्रयास किया था। जब दोष किसी अन्य का है तो उसके लिए दोषी मनु महर्षि को क्यों माने? कालांतर में कुछ लोग सत्य को जानते हुए भी स्वीकार नहीं करते और मनुस्मृति दहन दिवस जैसे कृत्यों को कर सस्ती लोकप्रियता बटोरने का प्रयास करते हैं। इस लेख के माध्यम इस शंका का समाधान किया गया है कि "क्या महर्षि मनु जातिवाद के पोषक थे?"

मनुस्मृति जो सृष्टि में नीति और धर्म (कानून) का निर्धारण करने वाला सबसे पहला ग्रंथ माना गया है उस को घोर जाति प्रथा को बढ़ावा देने वाला भी बताया जा रहा है। आज स्थिति यह है कि मनुस्मृति वैदिक संस्कृति की सबसे अधिक विवादित पुस्तक बना दी गई है | पूरा का पूरा दलित आन्दोलन मनुवाद' के विरोध पर ही खड़ा हुआ है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मनु की निंदा करने वाले इन लोगों ने मनुस्मृति को कभी गंभीरता से पढ़ा भी नहीं है। स्वामी दयानंद द्वारा आज से 140 वर्ष पूर्व यह सिद्ध कर दिया था की मनुस्मृति में मिलावट की गई है। इस कारण से ऐसा प्रतीत होता है कि मनुस्मृति वर्ण व्यवस्था की नहीं अपितु जातिवाद का समर्थन करती है। महर्षि मनु ने सृष्टि का प्रथम संविधान मनु स्मृति के रूप में बनाया था। कालांतर में इसमें जो मिलावट हुई उसी के कारण इसका मूल सन्देश जो वर्णव्यवस्था का समर्थन करना था के स्थान पर जातिवाद प्रचारित हो गया।

मनुस्मृति पर दलित समाज यह आक्षेप लगाता है कि मनु ने जन्म के आधार पर जातिप्रथा का निर्माण किया और शूद्रों के लिए कठोर दंड का विधान किया और ऊँची जाति विशेषरूप से ब्राह्मणों के लिए विशेष प्रावधान का विधान किया।

मनुस्मृति उस काल की है जब जन्मना जाति व्यवस्था के विचार का भी कोई अस्तित्व नहीं था | अत: मनुस्मृति जन्मना समाज व्यवस्था का कही पर भी समर्थन नहीं करती | महर्षि मनु ने मनुष्य के गुण- कर्म – स्वभाव पर आधारित समाज व्यवस्था की रचना कर के वेदों में परमात्मा द्वारा दिए गए आदेश का ही पालन किया है (देखें – ऋग्वेद-१०.१०.११-१२, यजुर्वेद-३१.१०-११, अथर्ववेद-१९.६.५-६) |

यह वर्ण व्यवस्था है। वर्ण शब्द “वृञ” धातु से बनता है जिसका मतलब है चयन या चुनना और सामान्यत: प्रयुक्त शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है।

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था को ही बताया गया है और जाति व्यवस्था को नहीं इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में कहीं भी जाति शब्द ही नहीं है बल्कि वहां चार वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन है। यदि जाति का इतना ही महत्त्व होता तो मनु इसका उल्लेख अवश्य करते कि कौनसी जाति ब्राह्मणों से संबंधित है, कौनसी क्षत्रियों से, कौनसी वैश्यों और शूद्रों से सम्बंधित हैं।
इस का मतलब हुआ कि स्वयं को जन्म से ब्राह्मण या उच्च जाति का मानने वालों के पास इसका कोई प्रमाण नहीं है | ज्यादा से ज्यादा वे इतना बता सकते हैं कि कुछ पीढ़ियों पहले से उनके पूर्वज स्वयं को ऊँची जाति का कहलाते आए हैं | ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सभ्यता के आरंभ से ही यह लोग ऊँची जाति के थे | जब वह यह साबित नहीं कर सकते तो उनको यह कहने का क्या अधिकार है कि आज जिन्हें जन्मना शूद्र माना जाता है, वह कुछ पीढ़ियों पहले ब्राह्मण नहीं थे ? और स्वयं जो अपने को ऊँची जाति का कहते हैं वे कुछ पीढ़ियों पहले शूद्र नहीं थे ?

मनुस्मृति ३.१०९ में साफ़ कहा है कि अपने गोत्र या कुल की दुहाई देकर भोजन करने वाले को स्वयं का उगलकर खाने वाला माना जाए | अतः मनुस्मृति के अनुसार जो जन्मना ब्राह्मण या ऊँची जाति वाले अपने गोत्र या वंश का हवाला देकर स्वयं को बड़ा कहते हैं और मान-सम्मान की अपेक्षा रखते हैं उन्हें तिरस्कृत किया जाना चाहिए |

मनुस्मृति २. १३६: धनी होना, बांधव होना, आयु में बड़े होना, श्रेष्ठ कर्म का होना और विद्वत्ता यह पाँच सम्मान के उत्तरोत्तर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत्र या वंश को सम्मान का मानदंड नहीं माना गया है |

वर्णों में परिवर्तन :

मनुस्मृति १०.६५: ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है | इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं |

मनुस्मृति ९.३३५: शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्रह्म जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है |

शूद्र भी पढ़ा सकते हैं :

शूद्र भले ही अशिक्षित हों तब भी उनसे कौशल और उनका विशेष ज्ञान प्राप्त किया जाना चाहिए |

२.२३८: अपने से न्यून व्यक्ति से भी विद्या को ग्रहण करना चाहिए और अन्य कुल में जन्मी उत्तम स्त्री को भी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए|

२.२४१ : आवश्यकता पड़ने पर अ-ब्राह्मण से भी विद्या प्राप्त की जा सकती है और शिष्यों को पढ़ाने के दायित्व का पालन वह गुरु जब तक निर्देश दिया गया हो तब तक करे |

ब्राह्मणत्व का आधार कर्म :

मनु की वर्ण व्यवस्था जन्म से ही कोई वर्ण नहीं मानती | मनुस्मृति के अनुसार माता- पिता को बच्चों के बाल्यकाल में ही उनकी रूचि और प्रवृत्ति को पहचान कर ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वर्ण का ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेज देना चाहिए |

कई ब्राह्मण माता – पिता अपने बच्चों को ब्राह्मण ही बनाना चाहते हैं परंतु इस के लिए व्यक्ति में ब्रह्मणोचित गुण, कर्म,स्वभाव का होना अति आवश्यक है| ब्राह्मण वर्ण में जन्म लेने मात्र से या ब्राह्मणत्व का प्रशिक्षण किसी गुरुकुल में प्राप्त कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता, जब तक कि उसकी योग्यता, ज्ञान और कर्म ब्रह्मणोचित न हों

२.१५७ : जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण सिर्फ़ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते हैं वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है |

२.२८: पढने-पढ़ाने से, चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्यभाषण आदि व्रतों का पालन करने से, परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद, विज्ञान आदि पढने से, कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है |

शिक्षा ही वास्तविक जन्म :

मनु के अनुसार मनुष्य का वास्तविक जन्म विद्या प्राप्ति के उपरांत ही होता है | जन्मतः प्रत्येक मनुष्य शूद्र या अशिक्षित है | ज्ञान और संस्कारों से स्वयं को परिष्कृत कर योग्यता हासिल कर लेने पर ही उसका दूसरा जन्म होता है और वह द्विज कहलाता है | शिक्षा प्राप्ति में असमर्थ रहने वाले शूद्र ही रह जाते हैं |

यह पूर्णत: गुणवत्ता पर आधारित व्यवस्था है, इसका शारीरिक जन्म या अनुवांशिकता से कोई लेना-देना नहीं है|

२.१४८ : वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है | यह जन्म मृत्यु और विनाश से रहित होता है |ज्ञानरुपी जन्म में दीक्षित होकर मनुष्य मुक्ति को प्राप्त कर लेता है| यही मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य है| सुशिक्षा के बिना मनुष्य ‘ मनुष्य’ नहीं बनता|

इसलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होने की बात तो छोडो जब तक मनुष्य अच्छी तरह शिक्षित नहीं होगा तब तक उसे मनुष्य भी नहीं माना जाएगा |

२.१४६ : जन्म देने वाले पिता से ज्ञान देने वाला आचार्य रूप पिता ही अधिक बड़ा और माननीय है, आचार्य द्वारा प्रदान किया गया ज्ञान मुक्ति तक साथ देता हैं | पिताद्वारा प्राप्त शरीर तो इस जन्म के साथ ही नष्ट हो जाता है|

२.१४७ : माता- पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है| वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है|

अत: अपनी श्रेष्टता साबित करने के लिए कुल का नाम आगे धरना मनु के अनुसार अत्यंत मूर्खतापूर्ण कृत्य है | अपने कुल का नाम आगे रखने की बजाए व्यक्ति यह दिखा दे कि वह कितना शिक्षित है तो बेहतर होगा |

१०.४: ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्याध्ययन से दूसरा जन्म प्राप्त करते हैं | विद्याध्ययन न कर पाने वाला शूद्र, चौथा वर्ण है | इन चार वर्णों के अतिरिक्त आर्यों में या श्रेष्ट मनुष्यों में पांचवा कोई वर्ण नहीं है |

इस का मतलब है कि अगर कोई अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाया तो वह दुष्ट नहीं हो जाता | उस के कृत्य यदि भले हैं तो वह अच्छा इन्सान कहा जाएगा | और अगर वह शिक्षा भी पूरी कर ले तो वह भी द्विज गिना जाएगा | अत: शूद्र मात्र एक विशेषण है, किसी जाति विशेष का नाम नहीं |

अन्य कुल में जन्में व्यक्ति का तिरस्कार नहीं :

किसी व्यक्ति का जन्म यदि ऐसे कुल में हुआ हो, जो समाज में आर्थिक या अन्य दृष्टी से पनप न पाया हो तो उस व्यक्ति को केवल कुल के कारण पिछड़ना न पड़े और वह अपनी प्रगति से वंचित न रह जाए, इसके लिए भी महर्षि मनु ने नियम निर्धारित किए हैं |

४.१४१: अपंग, अशिक्षित, बड़ी आयु वाले, रूप और धन से रहित या निचले कुल वाले, इन को आदर और / या अधिकार से वंचित न करें | क्योंकि यह किसी व्यक्ति की परख के मापदण्ड नहीं हैं|

शूद्रों के प्रति आदर :

मनु परम मानवीय थे| वे जानते थे कि सभी शूद्र जानबूझ कर शिक्षा की उपेक्षा नहीं कर सकते | जो किसी भी कारण से जीवन के प्रथम पर्व में ज्ञान और शिक्षा से वंचित रह गया हो, उसे जीवन भर इसकी सज़ा न भुगतनी पड़े इसलिए वे समाज में शूद्रों के लिए उचित सम्मान का विधान करते हैं | उन्होंने शूद्रों के प्रति कभी अपमान सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं किया, बल्कि मनुस्मृति में कई स्थानों पर शूद्रों के लिए अत्यंत सम्मानजनक शब्द आए हैं |

मनु की दृष्टी में ज्ञान और शिक्षा के अभाव में शूद्र समाज का सबसे अबोध घटक है, जो परिस्थितिवश भटक सकता है | अत: वे समाज को उसके प्रति अधिक सहृदयता और सहानुभूति रखने को कहते हैं |

कुछ और उदात्त उदाहरण देखें –

३.११२: शूद्र या वैश्य के अतिथि रूप में आ जाने पर, परिवार उन्हें सम्मान सहित भोजन कराए |

३.११६: अपने सेवकों (शूद्रों) को पहले भोजन कराने के बाद ही दंपत्ति भोजन करें |

२.१३७: धन, बंधू, कुल, आयु, कर्म, श्रेष्ट विद्या से संपन्न व्यक्तियों के होते हुए भी वृद्ध शूद्र को पहले सम्मान दिया जाना चाहिए |

मनुस्मृति वेदों पर आधारित :

वेदों को छोड़कर अन्य कोई ग्रंथ मिलावटों से बचा नहीं है | वेद प्रक्षेपों से कैसे अछूते रहे, जानने के लिए ‘ वेदों में परिवर्तन क्यों नहीं हो सकता ? ‘ पढ़ें | वेद ईश्वरीय ज्ञान है और सभी विद्याएँ उसी से निकली हैं | उन्हीं को आधार मानकर ऋषियों ने अन्य ग्रंथ बनाए| वेदों का स्थान और प्रमाणिकता सबसे ऊपर है और उनके रक्षण से ही आगे भी जगत में नए सृजन संभव हैं | अत: अन्य सभी ग्रंथ स्मृति, ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, गीता, उपनिषद, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र, दर्शन इत्यादि को परखने की कसौटी वेद ही हैं | और जहां तक वे वेदानुकूल हैं वहीं तक मान्य हैं |

मनु भी वेदों को ही धर्म का मूल मानते हैं (२.८-२.११)

२.८: विद्वान मनुष्य को अपने ज्ञान चक्षुओं से सब कुछ वेदों के अनुसार परखते हुए, कर्तव्य का पालन करना चाहिए |

इस से साफ़ है कि मनु के विचार, उनकी मूल रचना वेदानुकूल ही है और मनुस्मृति में वेद विरुद्ध मिलने वाली मान्यताएं प्रक्षिप्त मानी जानी चाहियें |

शूद्रों को भी वेद पढने और वैदिक संस्कार करने का अधिकार :

वेद में ईश्वर कहता है कि मेरा ज्ञान सबके लिए समान है चाहे पुरुष हो या नारी, ब्राह्मण हो या शूद्र सबको वेद पढने और यज्ञ करने का अधिकार है |

देखें – यजुर्वेद २६.१, ऋग्वेद १०.५३.४, निरुक्त ३.८ इत्यादि और मनुस्मृति भी यही कहती है | मनु ने शूद्रों को उपनयन ( विद्या आरंभ ) से वंचित नहीं रखा है | इसके विपरीत उपनयन से इंकार करने वाला ही शूद्र कहलाता है |

वेदों के ही अनुसार मनु शासकों के लिए विधान करते हैं कि वे शूद्रों का वेतन और भत्ता किसी भी परिस्थिति में न काटें ( ७.१२-१२६, ८.२१६) |

संक्षेप में –

मनु को जन्मना जाति – व्यवस्था का जनक मानना निराधार है | इसके विपरीत मनु मनुष्य की पहचान में जन्म या कुल की सख्त उपेक्षा करते हैं | मनु की वर्ण व्यवस्था पूरी तरह गुणवत्ता पर टिकी हुई है |

प्रत्येक मनुष्य में चारों वर्ण हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र | मनु ने ऐसा प्रयत्न किया है कि प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान जो सबसे सशक्त वर्ण है – जैसे किसी में ब्राह्मणत्व ज्यादा है, किसी में क्षत्रियत्व, इत्यादि का विकास हो और यह विकास पूरे समाज के विकास में सहायक हो |

महर्षि मनु पर जातिवाद का समर्थक होने का आक्षेप लगाना मूर्खता हैं क्यूंकि दोष मिलावट करने वालो का हैं न की मनु महर्षि का।

डॉ विवेक आर्य

©Raju Mandloi #Vedanti

VEDANTI PANDEY

VEDANTI PANDEY

हम तो हथेली पर जान लिए बैठे हैं 
 अपने कंधों पर देश का सम्मान लिए बैठे हैं #IndianArmy #Soldier #Hatsoff #jaihind #JaiBharat #VandeMatram #vedantiwrites #Vedanti #vedantidiary #VEDANTIPANDEY

VEDANTI PANDEY

शब्द नही एहसास लिखते हैं
हम तो अपने  जज़बात लिखते हैं #shabd #ehsaas #jazbat #shayari #poetry  #nojoto #hindi #vedanti #vedantiwrites #vedantidiary

VEDANTI PANDEY

गलती ना तेरी थी
गलती न मेरी थी
ग़लत तो बस वक़्त था
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 Devanshi Pandey

VEDANTI PANDEY

VEDANTI PANDEY

उस कश्ती पर बैठ के क्या फ़ायदा
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VEDANTI PANDEY

VEDANTI PANDEY

मैं अगर लिखूं
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VEDANTI PANDEY

तुमने खत- ए- इजहार लिखा था
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