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भाग्य श्री बैरागी
मुझसे रोशनी का मजमा बहुत दूर लगा है, अंधेरी तन्हाइयों का साथ, सदा भरपूर लगा है। सितम पर भी ज़ुल्म हुए हैं किस्मत के, लिखा इश्क तो, चाॅंद का भी दाव पर नूर लगा है। मैंने तो माॅंगा एक गुलाब उसकी बगिया का, जिनकी महफिल की अंगूठियों में कोहिनूर लगा है। मुझे पागल करार देने को कोई पीछे नहीं, अपनी ज़रूरत पर, वो ही कहने में मुझे हूर लगा है। खुदा का दर इतना सस्ता कब से हुआ, जो हर इंसान उसे ख़ुद ही करने में मशहूर लगा है। कहो फिर ये बेईमानी किसका गुण है? अगर ईमानदारी ही रोज़मर्रा में सबका सुरूर लगा है। किस्मत को कोसूॅं या बद्किस्मती का दोष है, मैं किसको दोष दूॅं, इनमे से ये किसका फितू़र लगा है। अपने कामों के लिए 'भाग्य' पहली पसंद हूॅं, मेरी ही बारी आने पर, हर इंसाॅं बेहद मगरूर लगा है। मुझसे रोशनी का मजमा बहुत दूर लगा है, अंधेरी तन्हाइयों का साथ, सदा भरपूर लगा है। सितम पर भी ज़ुल्म हुए हैं किस्मत के, लिखा इश्क तो, चाॅंद का भी दाव पर नूर लगा है। मैंने तो माॅंगा एक गुलाब उसकी बगिया का, जिनकी महफिल की अंगूठियों में कोहिनूर लगा है।
मुझसे रोशनी का मजमा बहुत दूर लगा है, अंधेरी तन्हाइयों का साथ, सदा भरपूर लगा है। सितम पर भी ज़ुल्म हुए हैं किस्मत के, लिखा इश्क तो, चाॅंद का भी दाव पर नूर लगा है। मैंने तो माॅंगा एक गुलाब उसकी बगिया का, जिनकी महफिल की अंगूठियों में कोहिनूर लगा है।
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बेशक कुछ तज़ुर्बों की ही मोहताज है ये ग़ज़ल, नज़रें उठा कर भी तुमने देखा तो ये लिख जाया करेंगी। ख़्वाबों की तश्तरी में कलम और तुम्हें रखूॅंगी, तुम्हारे नाम के गुलाबों से, तश्तरी सज जाया करेंगी। बनाते होंगे शायर इश्क में अश्कों के समंदर, जज़्बाती बूॅंदों से, मेरी चश्म-ए-झील भर जाया करेंगी। इश्क में लैला-मजनू एक शायर की करामात है, कहो तो ग़ज़ल भी आसमां हरा,ज़मीं नीली कह जाया करेंगी। तुम गुनगुना दो जो मिसरा मेरी ग़ज़ल का, कमबख्त़ सबके होंठों पर सदियों तक बैठ जाया करेंगी। ख़ुदा की इनायतों से अब किस्मतवार कहलाते हैं, ये ग़ज़ल मुझ बैरागी का 'भाग्य' भी रच जाया करेंगी। #भाग्य_ग़ज़ल #एक_और_ग़ज़ल #भाग्य_की_कलम_से #yqdidi #yqhindi #मेरी_बै_रा_गी_कलम
भाग्य श्री बैरागी
मन महल में कई नज़्में सजाई हैं, कोने-कोने में हमने ख़ामोशी सजाई है। बेदर्दी हैं ये सदियों बराबर दूरियाॅं, हम जैसे रात की, चंदा से जुदाई है। हॅंसी जो देखें, होंठो पर तुम्हारे, किस्मत ओढ़ती खुशियों की रजाई है। अब तो सरपरस्ती खुदा ने बख्शी, सरेआम मैं पहनती, जो चूनर तुमने रंगाई है। आशिक़ हूॅं जबसे इश्क की तुम्हारे, 'भाग्य' ने होंठों पर बस गज़लें सजाई हैं। #भाग्य_ग़ज़ल #मेरी_बै_रा_गी_कलम #yqdidi #yqhindi #एक_और_ग़ज़ल
भाग्य श्री बैरागी
व्यस्त नही थोड़े अस्त-व्यस्त हैं, जिसे देखो वो अपने में मस्त हैं। चाँद बदली से छटा या उसपे ग्रहण लगा है, किसको पड़ी उसकी सब अपने में मस्त हैं। घनघोर सायों से रातें काली हुई या उजाली है, जीवन में सब अपने, अपने में ही मस्त हैं। किसको ढूँढू, कहाँ ढूँढू, इल्ज़ाम किसे लगाऊँगी, थाने में थानेदार और का़तिल भी अपने में मस्त हैं। पाना पाकर खोना भी अजीब शिकस्त है, जिनको पाया वो भी अपने में मस्त हैं। तन्हाई और बज़्मों के साकी भी साथी नहीं 'भाग्य', मय किसी और को परोसते वो अब अपने में मस्त हैं। #cinemagraph #मेरी_बै_रा_गी_कलम #एक_और_ग़ज़ल #yqdidi #yqhindi #रातकाअफ़साना #भाग्य_ग़ज़ल
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