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Sneh Lata Pandey 'sneh'
यामिनी है दीप्तिमय जगमगाते दीप हैं। दिख रहे ज्यूँ गहन नभ में बिखरते सीप हैं। ये छटा है रात्रि की मसूरी के पहाड़ की। पर्वतों के साथ में जननाते स्वप्न के संगीत हैं। ©Sneh Lata Pandey 'sneh' #पहाड़ पर घर #मसूरी की छटा
Akram Qumar
यादें... कुछ साल पहले मैंने मसूरी में एक बेहद, बेइंतिहा, बला की ख़ूबसूरत क्रिश्चयन लड़की को तोते वाले हरे रंग की जैकेट पहने देखा फिर मसूरी की कोई भी हरियाली मुझे समझ ही नहीं आई, सारा टूर सिर्फ उसके साथ मनघढ़ंत काल्पनिक कहानियाँ सोचते सोचते गुज़र गया, कभी ड्राइवर तो कभी गाइड तो कभी ज़रूरत के वक्त मदद करने वाला हीरो बन जाता। बड़ी दिलचस्प बात है कि मैं कल्पनाओं में कभी भी राजकुमार, या पैसे वाला बनना नही पसंद करता। उस दिन मैंने जान लिया इश्वर की सबसे सुंदर कृति मनुष्य है और सबसे अच्छा जीवन आम इंसानों का।
Aman Singh
कोई तुम्हें न बदले उससे बेहतर क्या है, कोई तुम्हें तुम हीं रहने दे उससे बेहतर क्या है !! उसे आईलाइनर पसंद था, मुझे काजल। वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी, और मैं अदरक की चाय पे। उसे नाइट क्लब पसंद थे, मुझे रात की शांत सड़कें। उसे शांत लोग मरे हुए लगते थे। मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था। राइटर बोरिंग लगते थे उसे, पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं लिखता। वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी, मैं असम चाय के बागानों में खोना चाहता था। मसूरी के लाल डिब्बे में बैठकर सूरज डूबना देखना चाहता था। उसकी बातों में महँगे शहर थे, और मेरा तो पूरा श
उसे आईलाइनर पसंद था, मुझे काजल। वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी, और मैं अदरक की चाय पे। उसे नाइट क्लब पसंद थे, मुझे रात की शांत सड़कें। उसे शांत लोग मरे हुए लगते थे। मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था। राइटर बोरिंग लगते थे उसे, पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं लिखता। वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी, मैं असम चाय के बागानों में खोना चाहता था। मसूरी के लाल डिब्बे में बैठकर सूरज डूबना देखना चाहता था। उसकी बातों में महँगे शहर थे, और मेरा तो पूरा श
read moreAnuj Aggarwal
उसे अईलाइनर पसंद था मुझे काजल. वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफ़ी पे मरती थी और मैं अदरक की चाय पे. उसे नाईट क्लब्स पसंद थे, मुझे रात की शांत सड़कें. शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे, मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था. लेखक बोरिंग लगते थे उसे, पर मुझे मिनटों देखा करती, जब मैं लिखता. वो न्यू यॉर्क के टाइम्स स्क्वायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाज़ार में शौपिंग के सपने देखती थी, मैं असम के चाय के बागों में खोना चाहता था, मसूरी के लाल टिब्बे में बैठकर सूरज डूबता देखना चाहता था. उसकी बातों में महंगे शहर थे, और मेरा तो पूरा शहर ही वो. न मैंने उसे बदलना चाहा, न उसने मुझे. अच्छा चला था इसी तरह सब. एक अरसा हुआ, दोनों को रिश्ते से आगे बढे. कुछ दिन पहले उनके साथ ही रहने वाली एक दोस्त से पता चला… वो अब शांत रहने लगीं हैं, लिखने लगीं हैं. मसूरी भी घूम आईं, लाल टिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रहीं. आधी रात को अचानक से उनका मन अब, चाय पीने का करता है. और मैं… मैं भी अब अकसर कॉफ़ी पी लेता हूँ, किसी महंगी जगह बैठक.
BRIJESH KUMAR
कॉफ़ी उसे अईलाइनर पसंद था मुझे काजल वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफ़ी पे मरती थी और मैं अदरक की चाय पे.
कॉफ़ी उसे अईलाइनर पसंद था मुझे काजल वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफ़ी पे मरती थी और मैं अदरक की चाय पे.
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