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Jitendra Singh
White शुप्रभात सोच सही है तो सब सही आपके दिमाग की खाता बही सकारात्मक परिणाम अच्छाई में आपका नाम अगर रहेगी अच्छी सोच आप करेंगे निशिचर पोच मन का रिस्ता सोच से पैर का रिस्ता मोच से बस सकारात्मक है तो सही नहीं तो होगा दिमाग का दही तड़प अगर सकारात्मक परिणाम भी सकारात्मक सही को ही बणे लोंगो ने सही कही ©Jitendra Singh #जितेन्द्रसिंहविकल
Jitendra Singh
।।ऊं घृणि सूर्याय नमः।। ।।छठ पूजा की हार्दिक बधाई। । ©Jitendra Singh #जितेन्द्रसिंहविकल
Jitendra Singh
वक्त के आसमान पर मै तो चला जाता हूं ।। गीत कोई गाता हूं ।। बीती बात बीत गई गर्मी गई शीत गई ।। अब निकली किरन नई नई बात मै सुनाता हूं गीत कोई गाता हूं ।। सारे अब है कान बहरे चलते हुए फिर भी ठहरे।। बिन जल भी उठ रही है सड़क पर अब ये लहरें।। झूठों के बीच में ही मैं सदा खुद को पाता हूं।। गीत कोई गाता हूं ।। सत्य तो अब छिप गया है झूठ के जंजाल में।। अब तो गूंगा बहरा है फंसा खुद के बवाल में।। डर से अब तो क्या कहूं सारी रात नहीं सो पाता हूं।। गीत कोई गाता हूं ।। इतना गया घबरा मैं डर डर के ही जी रहा मयखाने में मैं जाकर डर का जहर पी रहा।। भरी भीण में अब तो खुद को तनहा पाता हूं।। गीत कोई गाता हूं गीत कोई गाता हूं ।। ©Jitendra Singh #जितेन्द्रसिंहविकल
Jitendra Singh
White ये चांदनी भी कितनी खुबसूरत है।। फिर भी उन्हे सूरज की जरुरत है।। आसमान में छटा इनकी बिखरी है।। तारों के समूह के साथ निखरी है।। कैसी खिली वो भी खुशी की मूरत है।। ये चांदनी भी कितनी खुबसूरत है।। ©Jitendra Singh #जितेन्द्रसिंहविकल