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Anil Siwach
।।श्री हरिः।। 51 - आज का दिन अत्यन्त दुस्सह, बड़ा क्लेशदायी है आज का दिन। सबसे बुरी बात यह है कि यह प्रत्येक महीने आया ही रहता है। ये ऋषि-मुनि पता नहीं क्यों यह बात नहीं मान लेते कि सब बालकों का जन्म-नक्षत्र एक ही दिन मना लिया जाया करे। अनेक बालकों के जन्म-नक्षत्र एक साथ पड़ते हैं, तब कन्हाई का ही जन्म-नक्षत्र अकेला क्यों पड़ता है? इसका जन्म-नक्षत्र क्यों दूसरों के साथ नहीं पड़ जाया करता? जब जन्म-नक्षत्र पड़ेगा, जिसका भी पड़ेगा, उसे उस दिन पूजा में लगना पड़ेगा। पूजा करना तो अच्छा है; किन्तु उस
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।।श्री हरिः।। 45 - खायेगा? 'खायेगा!' कन्हाई के हाथ में मोदक है। केशर-पीत, खूब बड़ा-सा मोदक! बूंदी का बना ऐसा मोदक जिसे देखकर ही क्षुधा जाग जाय और फिर श्याम के हाथ का मोदक प्राप्त करने को तो स्वर्ग के देवता भी क्षुधातुर हो जायेंगे। मधुमंगल का तो सबसे प्रिय आहार है मोदक। सखाओं ने भरपूर शृंगार किया है ब्रजराज-कुमार का। अलकों से लेकर चरणों तक पुष्प-गुच्छ, गुञ्जा, किसलय, पिच्छ आदि से इसे सजाया है। इसके सम्पूर्ण शरीर को गैरिक, रामरज, खड़िया आदि से ऐसा चित्रित किया है कि यह चित्र-मन्दिर ही बन गया है।
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।।श्री हरिः।। 39 - आम चूसते आज कोई छीका नहीं लाया है। कल ही बालकों ने निश्चय कर लिया था कि वे प्रात: आम ही चूसेंगे।किसी ने भी बालकों के इस निर्णय का विरोध नहीं किया। बालक यदि हरिवासर के दिन अन्न नहीं लेते तो उत्तम ही है। वैसे भी इस पावस के प्रारम्भ में वन सूपक्व आम्रफलों से परिपूर्ण है। आम्र पोषक हैं और सुस्वादु तो हैं ही। वन में आकर आज बालकों ने शृंगार करने की चिन्ता ही नहीं की। किसी ने भी गुञ्जा, किसलय, पुष्प एकत्र करने की ओर ध्यान नहीं दिया। सब आम्रफल एकत्र करने में लग गये। रात्रि में वृक्
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|| श्री हरि: || 22 - नाम बताओ 'अरे, कौन है? छोड़ भी।' आज तनिक भद्र सखाओं से हटकर तमाल तरु के मूल में आ बैठा था। तमाल की ओट से आकर कन्हाई ने पीछे से उसके दोनों नेत्र अपने करों से बन्द कर लिये भद्र चौंका नहीं; किन्तु उसने अपने दोनों करों से नेत्र बन्द करने वाले के कर कलाइयों से कुछ ऊपर पकड़ लिये। अब यह स्पर्श भी क्या पहिचानने की अपेक्षा करता है? रुनझुन नूपुर भी बजे थे। बहुत सावधानी से आने पर भी कटि की मणिमेखला में कुछ क्वणन हुआ ही था और नन्दनन्दन के श्री अंग से जो उसकी वनमाला में लगी तुलसी का स
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|| श्री हरि: || 19 - चपल कन्हाई इतना चपल है कि कुछ मत पूछो। यह कब, क्या कर बैठेगा, इसका कुछ ठिकाना नहीं है। हिचकना, डरना तो इसे जैसे आता ही नहीं है। जब जो जी में आया, करके ही रहेगा। घर में मैया और रोहिणी माँ इसे सम्हालती हैं। गौष्ठ में चला जाय तो बाबा साथ लगे रहते हैं; किन्तु वन में आने पर तो यह स्वच्छन्द हो जाता है। श्याम दाऊ दादा का संकोच न करता हो ऐसी बात नहीं है। संकोच तो यह अपने से बड़ी आयु के सखा विशाल, वरूथप, ऋषभ, अर्जुन आदि का ही नहीं, समवयस्क भद्र तक का करता है; किन्तु बालक बडे-बूढे
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|| श्री हरि: || 12 - नृत्यरत ता थेई, ता थेई ता .... त थेई थेई, कन्हाई नाच रहा है। हिल रहा है मयूरपिच्छ मस्तक के ऊपर, हिल रही है अलकें और कुण्डल कपोलों पर ताल दें रहें हैं। कण्ठ में पड़ी मुक्तामाल, घुटनों से नीचे तक लटकती वनमाला के साथ लहरा रही है। फहरा रहा है पीतपट। वक्ष पर कण्ठ के कौस्तुभ की किरणें श्रीवत्स को चमत्कृत करती छहरा-छहरा उठती है।
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|| श्री हरि: || 7 - गायक श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए। वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।
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|| श्री हरि: || 6 - न्यायशास्त्री 'अरे, तूने फिर ये कपि एकत्र कर लिये?' माँ रोहिणी जानती हैं कि इस नीलमणिके संकेत करते ही कपि ऊपर से प्रांगण में उतर आते हैं। उन्हें डर लगता है, कपि चपल होतें हैं और यह कृष्णचन्द्र बहुत सुकुमार है। यह भी कम चपल नहीं है। चाहे जब कपियों के बच्चों को उठाने लगता है। उस दिन मोटे भारी कपि के कन्धे पर ही चढ़ने लगा था। कपि चाहे जितना इसे माने, अन्नत: पशु ही हैं। वे इसे गिरा दे सकते हैं। माता बार-बार मना करती है कि - 'कपियों को प्रांगण में मत बुलाया कर! मैं इनके लिए भवन
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