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Mansha Sharma

सुरमन_✍️ #सुगम #nojatohindi

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Ek villain

#सुगम बने आर्थिक सुधारों की राह #selfhate

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यह सही है कि स्वाधीनता के बाद से निरंतर देश का आर्थिक विकास हुआ है परंतु इस गति की अपेक्षाकृत कम रही है वैसे तो पिछली सदी के अंतिम दशक में अर्थव्यवस्था के मार्च में परिवर्तनकारी सुधार का व्यापक प्रयास किया गया था जिसे बेहतर नतीजे भी सामने आए बाद के सुधारकों ने अनुकूल परिस्थितियों का फायदा उठाया और वह सभी समान रूप से प्रभावशाली थे हालांकि उन देशों के एक बड़े हिस्से की उपभोक्ता वर्ग में ला खड़ा किया और अधिकांश को गरीब के जाल से बाहर निकाल देगा लेकिन किसी क्षेत्र को विशेष के उदार बनाने का अर्थ संबंधित नीतियों के गिरेबान में सुधार करना और व्यवसाय संघ के कारकों को तैयार करना भी कई बार अलग-अलग आगे बढ़ता है और बहुत ही विविध परिणामों के साथ आसमान गति को दर्शाता है एक संबंधी अध्ययन में समय के महत्व और सुधारों के क्रम में प्रकाश डाला गया है इससे स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास पर अल्पसंख्यकों के बीच में अंतर है ऐसे ही समझा जा सकता है कि आज टेलीकॉम का मतलब एक कॉल से कहीं अधिक है सूचना प्रौद्योगिकी तरह कोडिंग नहीं कर रही ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों का अर्थ होगा कि जीवाश्म ईंधन से आगे जाना और शोर नवीकरण ऊर्जा और अन्य हरित ऊर्जा को शामिल करना शिक्षा और श्रम सुधारों को से पहले कई अधिक गतिशील है बीमा क्षेत्र में सुधार व्यवस्था के आसपास और श्रम कौशल और भूमिका में सुधार निर्माण के आसपास केंद्रित है ऐसे में नीति निर्माताओं को विशेष रूप से सामाजिक सुधारों के लिए उनसे होने वाले अपेक्षा प्रभाव की समीक्षा करने की जरूरत है आर्थिक समृद्धि के लिए संवाद सर्वोपरि है विशेष रूप से अत्यधिक प्रतिस्पर्धी संध्या के भीतर जहां राजनीतिक रूप से यह काम हो चारों में उसका एक उदाहरण बीते दिनों उस समय सामने आया जब बीते वर्ष की निरंतर की वर्तमान केंद्र सरकार से उन लोगों को साझा करने में विफल हो रहे जिनका निर्माण करने के लिए किया गया था

©Ek villain #सुगम बने आर्थिक सुधारों की राह

#selfhate

मलंग

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तमस मेरे मन का हर दो
सरल सुगम ये पथ कर दो!
मिटा अंधेरा अज्ञान का
ज्ञान कलश तुम भर दो!!
नभ सा विशाल ह्रदय हो
मन में ना किंचित संशय हो
देकर ये आशीष मुझे तुम
जीवन मेरा सफल कर दो!
तमस मेरे मन का हर दो
सरल सुगम ये पथ कर दो!!
जन्म अर्थहीन ना हो मेरा
वचन कर्महीन ना हो मेरा
ना हारूँ मुश्किलें देखकर
विजय पा लूँ लक्ष्य भेदकर
प्रयत्न यूँ निरंतर करूँ मैं
प्रण मेराअटल कर दो!
तमस मेरे मन का हर दो
सरल सुगम ये पथ कर दो!!
क्रोध पर विजय पा सकूँ
असत्य को हरा सकूँ
आलोचना सह सकूँ
अकेला अडिग रह सकूँ
बना आदित्य मुझे प्रभु तुम
दूर सभी तिमिर कर दो!
तमस मेरे मन का हर दो
सरल सुगम ये पथ कर दो।
मिटा अंधेरा अज्ञान का
ज्ञान कलश तुम भर दो।।

रचयिता:- बलवन्त रौतेला (B.S.R.)
               रुद्रपुर
         24/04/2019  (4:45 pm)

मलंग

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सरकारी शिक्षक
सोचते हैं सब, शिक्षक तो पढ़ाता होगा
स्कूल जाकर सिर्फ ABCD कराता होगा।
जिस दिन तुम उसका हाल जान जाओगे
शिक्षा की बदहाली का राज जान जाओगे
कभी दाल सब्जी, कभी चावल है उठाता
कभी एम डी एम का ,है हिसाब लगाता
कम हो गए डाकिये, पर इनकी डाक कम ना हुई
घर घर जाकर भी , इनकी नाक कम ना हुई
चुनाव आते ही , ये मतदान अधिकारी बन जाते हैं
जब प्रिंसिपल ना हो तो , ये प्रभारी बन जाते हैं
हरफनमौला किरदार है इनका, पर घमंड बिल्कुल नहीं
ज्ञान के सागर हो जायें , पर पाखण्ड बिल्कुल नहीं।
नित नित नए प्रयोग, इन पर ही किये जाते हैं
नवाचार के बहाने  रोज नए टिप्स दिये जाते हैं
प्रयोगशाला नहीं उपकरण नहीं फिर भी प्रयोग कराना है
अनुदान मद प्राप्ति से पहले ही, उसका उपभोग कराना है
कभी बाबू कभी क्लर्क कभी चपरासी बन जाते हैं
अपने विभाग के लिए तो ये जगदासी बन जाते हैं
एम डी एम की थाली गिनकर भी, कभी ये बताते हैं
एम डी एम की गैस भरने की, लाइन भी ये लगाते हैं
ऑडिट के समय हर चीज का, हिसाब भी देना पड़ता है
विद्यालय बिल्डिंग का तो इन्हें, टेंडर भी देना पड़ता है
पढ़ लिखकर ठेकेदारी की, कला तो इनमें आई नहीं
इंजीनियरिंग की डिग्री भी, इन्होंने कभी पाई नहीं
पर शिक्षक बन अब हर चीज में, दिमाग लगाना पड़ता है
शिक्षण को ताक पर रखकर अब,हर कार्य कराना पड़ता है
फिर भी नजरों में सबके ये सिर्फ, हराम की ही खाते हैं
औरों के लिए तो ये स्कूल में सिर्फ, आराम फरमाते हैं
बच्चा लायक नहीं फिर भी पास करना है
रेड एंट्री से इन्हें हर दम हर समय डरना है
स्कूल ना आये बच्चा तो ,दोष इन पर ही मढ़ना है
घर जाकर हर बच्चे के, फिर पैर इन्हें ही पड़ना है
नित नए नए तुगलकी फरमान इन्हें ही सुनाये जाते हैं 
परीक्षा परिणाम बेहतर ना हो तो आरोप भी लगाये जाते हैं
अभी दुर्गम के शिक्षक का तो,हाल तुम ना पूछो
कैसे जिंदा है वो  वहाँ,  ये  राज तुम ना पूछो
अपने को दूसरी दुनिया का कभी वो पाता है
जान हथेली पर रखकर भी वो स्कूल जाता है
ऊपर से सरकार ने इस कदर  रहम किये
दुर्गम विद्यालय होकर भी सुगम कर दिए
अब भले ना सब्जी मिले ना मिले  यहाँ चावल
ना नहाने को पानी मिले ना पोछने को टॉवल
फिर भी सुगम की नौकरी ये कर रहे हैं
दुर्गम जैसे सुगम में  ,  ये मर रहे हैं
फिर भी किंचित गम ना करते 
बाधा देख कभी ना डरते
मिशन कोशिश तो अब आई है 
ये खुद कितने मिशन हैं करते
अब शिक्षकों पर प्रयोग तुम बंद करो
उलझाकर इनकी बुद्धि ना कुंद करो
राष्ट्र निर्माता को राष्ट्र निर्माण करने दो
बख्श दो इन्हें देश कल्याण करने दो
शिक्षक को शिक्षण के काम में ही लगाओ
इस डूबती व्यवस्था को कोई तो बचाओ
वरना वो दिन दूर नहीं 
जब सरकारी स्कूल सब खाली होंगे
ना  रंग बिरंगे फूल कोई
ना चौकीदार ना माली होंगे
गरीब का जो भला करना है 
तो सरकारी स्कूल बचाना होगा
गुरूओं को स्कूलों में
सिर्फ पढ़ाना होगा
यकीं मानो उस दिन 
इक नई भोर होगी
शिक्षा और खुशहाली
फिर चहुँ ओर होगी।

रचयिता-
 -बलवन्त रौतेला
   रुद्रपुर

प्रभाकर "प्रभू"

:- कविता -: उधेश्य हो, बस चलना निरन्तर। दुर्गम हो, या सुगम, पथ पर।। हो शहर, गांव, या जंगल। भले हो, कुछ अमंगल।। चल कभी ना, यूँ डर कर।

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:-  कविता  -:

उधेश्य हो, बस चलना निरन्तर।
दुर्गम हो, या सुगम, पथ पर।।

हो शहर, गांव, या जंगल।
भले हो, कुछ अमंगल।।
चल कभी ना, यूँ  डर कर।


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