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करण बोराणा
खूबसूरत लोग दफ़्तर जाते समय और घर आते वक़्त शाम को मेरी नजरें एक अज़नबी बूढ़ी अम्मा को ढूंढ़ती है दोस्तों कभी पास जाकर बात करने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन वो अम्मा किसी कलाकार से भी कम नहीं शुरू-शुरू में एक-दो बार मेरी नज़रें उन के ऊपर अचानक ही गई तब अम्मा ख़ुद ही अपने आप से ही बतिया रहे थे शायद अपने बचपन के वक़्त की एक "धुंधली सी याद" के सहारे ख़ुद को हौंसला दिला रहे थे अम्मा इतनी ख़ुद गर्ज़ की एक रुपया भी ना भीख समझ कर लेती एक बार मैंने छुप कर देखा एक आदमी ने उन्हें पाँच रुपये का सिक्का दिया अम्मा ने वो उसे ना देकर उसके जाने के बाद इधर-उधर नज़र घुमाई और तुरंत कूड़े में डाल दिया तब से मैं अम्मा का मुरीद हो गया वो ऊन को पुराने कपड़ों में पिरो कर गज़ब के कपड़े व फेन्सी चीज़े बनाकर अपना पेट पालती है शायद एकेली है और ख़ुद अपने-आप से ही बाते करती है मैं ये सब कुछ छुप-छुप कर देखता हूं बूढ़ी अम्मा को मेरा प्यार....😊 #Nojoto #बूढ़ीअम्मा #Inspiredme #mydiary
#बूढ़ीअम्मा #inspiredme #mydiary
read moreAbhishek Singh
#nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा..... जो रूह को भी छल देता था, वो दर्द कुत्ते को सुना दिया, हर शाम जवाँ हो जाती थी, वो टीस हृदय की बयाँ किया। मेरे चार बेटे है, बेटी है, बहुएँ है, बड़े बड़े पोते हैं और नाती हैं। पीर हृदय में ये है की उनको,
#Nojoto#Poetry#बूढ़ीअम्मा..... जो रूह को भी छल देता था, वो दर्द कुत्ते को सुना दिया, हर शाम जवाँ हो जाती थी, वो टीस हृदय की बयाँ किया। मेरे चार बेटे है, बेटी है, बहुएँ है, बड़े बड़े पोते हैं और नाती हैं। पीर हृदय में ये है की उनको,
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धीरे धीरे जब रात ढली, तब रात के संग में ठंड बढ़ी। जो अश्रु ठंड में निकल रहे, वो पलकों पे जमनें सी लगी। जो सिसकी मुख से निकल रही, वो आहें भी थमनें सी लगी। मन सिहर रहा तन पाला था, भीषण ठंडी की रात थी वो, बस अन्त ही होनें वाला था। वो ही कुत्ता ना जानें कहाँ से, इक पन्नी खींच के लाया था, उन कंपती ठिठुरी अम्मा को, पूरा ढक कर के उढ़ाया था। अब भी तो ठिठुर के काँप रहीं.... बूढ़ी अम्मा........ #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
Abhishek Singh
इक कुत्ता उनको ताक रहा, वो जीभ निकाले हाँफ रहा। रॉल जीभ से टपक गयी, उसके अंदर भी तो शायद, भूख की ज्वाला भड़क गयी, देख स्वान की हालत तब, अम्मा की ममता धड़क गयी जो मुँह में पानी आ गया था, उसको अम्मा फिर गटक गयी, वो अपनी भूख को भूल गयी, कुत्ते के दुःख में झूल गयी। अम्मा ने रोटी बढ़ा दिया, कुत्ते को थोड़ी हया लगी, उनसे खानें से मना किया। खा पी के अब वो लेट गयी.... बूढ़ी अम्मा......... #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
Abhishek Singh
इक रूमाल में बँधी हुयी, दो सूखी रोटी झाँक रही। दाँत नदारत थे मुँह से, खायें कैसे ये ताक रही। गन्दी संदी सी बोतल से, पानी उसपे था छिड़क लिया, फिर भी न पसीजी रोटी तो, पानी थोड़ा सा कड़क किया। रोटियों को जब शरम हुयी, तब जा के थोड़ा नरम हुयी। कुछ ध्यान से शायद देख रही .... बूढ़ी अम्मा........ #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
Abhishek Singh
इक तस्वीर निकाली गठरी से, जिसमें पूरा परिवार दिखा। सबको चूमा बारी बारी, उनको अपना संसार दिखा। सीने से अपनें भींच लिया, ले के तस्वीर को गोद में फिर, हर दर्द सुड़क के खींच लिया। आँखों में नमीं झलक आयी, दिल से सबको आशीष दिया, जो पीर चीर के उमड़ी थी, उस पीर से आँखे सींच लिया। फिर से गठरी को टटोल रही.... बूढ़ी अम्मा......... #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
Abhishek Singh
गम के बादल की चौखट पे, किस्मत ने उनको मोड़ा था। फटा पुराना सा चिथड़ा, जो साल उन्होंने ओढ़ा था। उसको नीचे बिछा के फिर, गठरी को उन्होंने खोला था। कुछ टूटे फूटे बर्तन थे, कुछ घिसे पिटे से कपड़े थे। उनका संसार उसी में था, कुछ दर्द सहेजे लफड़े थे। उस गठरी में कुछ ढूढ़ रही.... बूढ़ी अम्मा....... #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
Abhishek Singh
"बूढ़ी अम्मा'' दुबला सा तन, बोझिल जीवन, लकुटी गठरी बस दो साथी। थी विकट ठंड मन तक ठिठुरन, लँगड़ा लँगड़ा वो चल पाती, सूखी काया की सिकुड़न बटुरन, देख के उनपे दया आती। गाल पिचक के सिमटे थे, लगता है किस्मत रूठी थी। पेट- पीठ में चिपका था, शायद कुछ दिन से भूखी थी। पुलिया के नीचे नुक्कड़ पे, लाठी रखके वो बैठ गयी.... बूढ़ी अम्मा..... #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
Abhishek Singh
बूढ़ीअम्मा..... I am going to present a story like poetry at #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा..... #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
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