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Prashant Shakun "कातिब"

क्यूँ किसी को दुआके बदले दुआ नहीं मिलती क्यूँ किसी को खुशी के बदले खुशी नहीं मिलती #अंतर्मन_के_द्वंद्व #प्रशान्त_के_सवाल #प्रशान्त_की_ग़ज़ल #खुद_से_सवाल_जवाब #pshakunquotes

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उलझ  के  रह  गया  हूँ  मैं   इन  मोह  के  धागों  में।
क्यूँ   मिलाता  है   उनसे  जो  होते  नहीं   भागों  में।

मानता   हूँ    तुझे    बहुत    ज़्यादा   ऐ   मेरे   खुदा,
क्यूँ  शामिल  करता  है   हर  बार  मुझे  अभागों  में।

क्यूँ   मेरे   वजूद   से   नफरत   हर   किसी  को   है,
क्या   यूँ  ही  रहना  होगा   मुझे   सदा  अभावों   में।

मैं  तो  शिकायत  तक  नहीं करता  कभी  किसी  से,
फिर  क्यूँ  मेरी  शिकायतें  भर जाती उनके  बैगों  में।

तू तो जानता है ना खुदा मेरा प्यार कोई दिखावा नहीं,
फिर  बता  ज़रा  क्यूँ घिर जाता हूँ  इन  अपराधों  में।

यूँ  बुत  बना  ही  बैठा   रहेगा  क्या   उम्रभर  तू  भी,
कम  से कम सर तो हिला  मेरे सवाल के जवाबों  में।

©Prashant Shakun "कातिब" क्यूँ किसी को दुआके बदले दुआ नहीं मिलती
क्यूँ किसी को खुशी के बदले खुशी नहीं मिलती

#अंतर्मन_के_द्वंद्व 
#प्रशान्त_के_सवाल 
#प्रशान्त_की_ग़ज़ल 
#खुद_से_सवाल_जवाब
#pshakunquotes

Prashant Shakun "कातिब"

लुत्फ़-ए-हयात------- ज़िन्दगी जीने का मज़ा हसरत--------------- ख़्वाहिश ग़फ़लत-------------- बेपरवाही हिफाज़त------------ सुरक्षा शहर-ए-खुफ्तगां ----- कभी ना सोने वाला शहर हिजरत --------------- पलायन #ज़रूरी_है poetry #diary #ग़ज़ल #डायरी_के_पिछले_पन्नों_से #प्रशान्त_की_ग़ज़ल

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जो  पूरी  हो  हर  ख़्वाहिश  तो  नीरसता  बढ़ती  है 
लुत्फ़ - ए - हयात  के लिए  एक  हसरत ज़रूरी  है 

अनुशासन,   परिपक्वता  माना   है   बेहद  ज़रूरी 
जीने को  ज़िन्दगी  मगर  कुछ  ग़फ़लत  ज़रूरी  है 

हौसला देती है  यूँ तो  सुंदर सूरत आँख मिलाने का 
मिला सको आँख ईश्वर से, अच्छी सीरत ज़रूरी  है 

रख  दिये हैं  जो  जला  कर  दीये  ताक  पर तुमने 
ताक  पर  हवाओं से  उनकी  हिफाज़त  ज़रूरी है 

कैसे रहें इस शहर - ए - खुफ्तगां  में  तुम ही  कहो 
ख़ातिर - ए - सुकूँ अब  यहॉं से  हिजरत ज़रूरी  है 

लिख रहे हो ख़ुद को  जो किताबों में 'कातिब' तुम 
याद रखना पढ़ सके सभी, ऐसी लिखावट ज़रूरी है

©Prashant Shakun "कातिब" लुत्फ़-ए-हयात------- ज़िन्दगी जीने का मज़ा
हसरत--------------- ख़्वाहिश
ग़फ़लत-------------- बेपरवाही
हिफाज़त------------ सुरक्षा
शहर-ए-खुफ्तगां ----- कभी ना सोने वाला शहर
हिजरत --------------- पलायन

#ज़रूरी_है #poetry #diary #ग़ज़ल #डायरी_के_पिछले_पन्नों_से  #प्रशान्त_की_ग़ज़ल

Prashant Shakun "कातिब"

😍😍♥️😍😍 पर्दे के पीछे से ये झाँकती आँखें निहारती हमें ये काँपती आँखें जन्नत मैं देखता हूँ जब भी देखूँ इनमें सैर जन्नत की कराती आपकी आँखें

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©Prashant Shakun "कातिब" 😍😍♥️😍😍

पर्दे   के   पीछे    से   ये   झाँकती   आँखें 
निहारती     हमें     ये     काँपती     आँखें 

जन्नत  मैं  देखता  हूँ  जब  भी  देखूँ  इनमें 
सैर  जन्नत   की   कराती   आपकी  आँखें

Prashant Shakun "कातिब"

Prashant Shakun "कातिब"

13ra__Rao

#SunSet

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मैं नाराज होता तो उसको बताना पड़ता था 
मेरी खामोशी को भी नही वो समझती थी

©Rao Sahab @( मुसाफिर )@ #SunSet

Prashant Shakun "कातिब"

❣️❣️❣️🖤❣️❣️❣️🖤❣️❣️❣️ फ़क़त ----- सिर्फ़ अयाँ ----- स्पष्ट, ज़ाहिर, खुला होना सफ़र-ए-हयात ----- ज़िंदगी का सफ़र शब-ए-दैजूर ----- अमावस्या की रात आब ----- पानी बर्क़ ----- बिजली अब्र ----- बादल

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निगाहों  से  भी इश्क़  फ़क़त  उसी पर  बयाँ होता है, 
जिस  शख़्स पर  पूरी  तरह  यह दिल  अयाँ होता है। 

बिछड़  भी  जाये  कोई  सफ़र - ए - हयात  में अग़र, 
बिछड़  कर  भी  वो  हमसे  पूरा  जुदा  कहाँ होता है। 

शब - ए - दैजूर में  आँखें ढूँढती  रहती हैं चाँद ही को, 
मैं सोचता हूँ जब नहीं होता वो पास तो कहाँ होता है। 

ये बरसाती आब, बर्क़, अब्र, ज़ुल्मत  डराते हैं हमको, 
लेकिन जब साथ वो हों तो यही रूमानी समाँ होता है। 

यूँ   तो  खोल  देती   हैं  निगाहें  राज़   सभी   लेकिन, 
कशमकश  में  रखता है वो  इश्क़  जो  निहाँ होता है। 

धड़कना भूल जाता है दिल,  ख़्वाब सभी  सो जाते हैं, 
उनके  छूने से ही  कमबख़्त  लहू नसों में रवाँ होता है। 

लुभाता  है  उनका  साथ   इतना  मुझे   कि  हर  पल, 
वो  होते  हैं  जहाँ  ये   "कातिब"  भी   वहाँ  होता  है।

©Prashant Shakun "कातिब" ❣️❣️❣️🖤❣️❣️❣️🖤❣️❣️❣️
फ़क़त ----- सिर्फ़
अयाँ ----- स्पष्ट, ज़ाहिर, खुला होना
सफ़र-ए-हयात ----- ज़िंदगी का सफ़र
शब-ए-दैजूर ----- अमावस्या की रात
आब ----- पानी
बर्क़ ----- बिजली
अब्र ----- बादल

Prashant Shakun "कातिब"

Prashant Shakun "कातिब"

एक  आह   उभरी  तो   कविता   कही   गई 
एक   आहा  पर   भी    हैं    कविताएं   कई 

एक  मिसरा   ग़म - ए - हिज्र  कहता  है  तो 
एक  मिसरे में  हैं वस्ल  की  संभावनाएं कई 

एक ख़्वाब को सुलाया  तो  दूजा  जाग उठा 
एक   कल्ब   में   हैं   समाई   आशाएं   कई 

राब्ता  मेरा   मुझसे  भी   ना  रहा   अब  तो 
कि  कर चुका हूँ  मैं  अब  तक  खताएं  कई 

एक बार भी नहीं  पलटा  सितमगर जो गया 
एक मैं हूँ जो देता हूँ रोज़ ही उसे सदाएं कई

©Prashant Shakun "कातिब" #एक_आह_उभरी_तो #ग़ज़ल #प्रशान्त_की_ग़ज़ल #बातें_ज़िन्दगी_की  #एक_अधूरी_ग़ज़ल #pshakunquotes #pशकुन  #प्रशांत_शकुन_कातिब

Prashant Shakun "कातिब"

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