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Priya Dubey
साकेत "हे अम्ब, तुम्हारा राम जानता, जो उठूँ न मैं, क्यों तुम्हीं न आप उठाओ। वे शैशव के दिन आज हमारे बीते, माँ के शिशु क्यों शिशु ही न रहे मनचीते? तुम रीझ-खीझ कर कोप जनातीं मुझको, हँस आप रुठातीं, आप मनातीं मुझको। वे दिन बीते, तुम जीर्ण दुःख की मारी, मैं बड़ा हुआ अब और साथ ही भारी। अब उठा सकोगी तुम न तीन में कोई," "तुम हलके कब थे"-हँसी केकयी, रोई! "माँ, अब भी तुमसे राम विनय चाहेगा? अपने ऊपर क्या आप अद्रि ढाहेगा? अब तो आज्ञा की अम्ब, तुम्हारी वारी, प्रस्तुत हूँ मैं भी धर्मधनुर्धृतिधारी। जननी ने मुझको जना, तुम्हीं ने पाला, अपने साँचे में आप यत्न से ढाला। सब के ऊपर आदेश तुम्हारा मैया, मैं अनुचर पूत; सपूत, प्यार का भैया। वनवास लिया है मान तुम्हारा शासन, लूँगा न प्रजा का भार, राज-सिंहासन? मैथिली शरण गुप्त 🙏🏻 ©Priya Dubey #साकेत
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ज़िन्दगी की वीरान पगडंडियाँ.. ख़ामोश से रास्ते..ऐसे में..चुपके से.. गुफ़्तुगू करते..हम तुम... तुम्हारा करीब ना होना.. संभव ही नही.. #साकेत और #हनी अद्वैत सा निर्माण करते.. युगों से ज़िन्दा हैं..एक दूसरे के अंदर.. मौन आँखों में चंद ख़्वाब.. और होंठों पर दुआ लिये.. हाँथों से टटोल-टटोल के.. तुम्हारा हर क़तरा महसूस करते हुए लफ्ज़-लफ्ज़.. हर्फ़-हर्फ़.. सफ़्हा-सफ़्हा.. रोज़ यूँ पढ़ता हूँ तुम्हें.. देख नहीं सकता लेकिन, चूम के महसूस करता हूँ .. तुम्हारी पेशानी की आयतें कभी.. और कभी ताबीज़ सा तुझे गले में बाँध लेता हूँ। ये अकेलापन ..ये तन्हाई सुनसान सा ये मन...चुप सा है.. तुम्हें ख़ुद में.. जीते हुए.. ख़ुद में ही तुम्हें.. छूते हुए..!!
साकेत शाश्व़त
दो-चार दिन की , बातचीत से .... प्रेम नहीं होता , जब सांस लेने पर ... सांसे भी ... छिली हुई , महसूस हो ! तब समझना ... तुमने प्रेम के ... उस स्तर को , पा लिया है । #साकेत ©साकेत शाश्व़त #HeartBreak
साकेत शाश्व़त
ख्याल रखना मात्र एक क्रिया नहीं है यह भावनाओं का भावनाओं से उत्पन्न संवेदनाओ का आदान प्रदान है #साकेत ©साकेत शाश्व़त #standout
साकेत शाश्व़त
•••••••••लफ्ज़ यूँ रूठेंगें पता न था••••••••• मैंने तो बस अपना पता बदला था मेरे लफ्ज़ सारे तेरे हिमायती निकले तुझे देखकर चुप रहना ये मेरा बदला था ये लफ्ज़ो की बेवफाई मुझ वफापरस्त से थी मैंने तुझे ही छोड़ा था खुद को कहाँ बदला था #साकेत #RaysOfHope
साकेत शाश्व़त
तुम्हारी भावनाऐं अक्सर मेरे रुह के साथ खेल जाया करती हैं। जब भी ये अपनी वेग में बहती हैं । और मैं मुकदर्शक बना खुद को देख रहा होता हूँ। कभी खुद को डूबता हुआ कभी उभरता हुआ और आखिरकार डूब ही जाता हूँ उसमें: भावनाओं की घूँट पीकर। ऐसा नहीं कि मैं खुद को बचाने की कोशिश नहीं करता यथासंभव सारे जतन कर लेता हूँ , पर उन भावनाओं से जीत नहीं पाता। जानती हो! मैंने एक बार कहा था कि आज से हम और बात नही करेंगे , कम से कम तुम तो खुश रहोगी। इस पर तुमने कहा था, "ये कैसे सोच लिया कि मैं खुश रहूँगी ? क्या बिना बात कि0ये तुम खुश रह लोगे " मेरे पास कोई जवाब नहीं तुम्हारी उन बातों का और मैं फिर से डूब गया तुम्हारी भावनाओं के अंतस सागर में उनकी अनंत गहराइयों में #साकेत #Love
साकेत शाश्व़त
प्रेम तो चिलचिलाती धूप में भी ठंडी ब्यार की शीतलता का अभिप्राय है। प्रेम के रूप अनेक हो सकते है, पर उनमे बहती धारा निःस्वार्थ और निश्छल होती हैं। मान लो प्रेम किसी कि एक झलक मे निहित है,तो उसका बाल्कनी मे आना जेठ की दुपहरी मे भी हिमालय की ताज़ी हवाओं सा अहसास देगा। मान लो प्रेम को शब्दाकृति किसी कि शब्दध्वनि से मिलती हो तो उसका आवाज़ लगाना दुर्गम पहाड़ियों पे स्थित मंदिर की बजती घंटियो से होगा जो भटके हुये मुसाफ़िर अपने पास होने का अहसास कराती है। मान लो प्रेम की अनुभूति किसी के लिखित शब्दों में उसकी अभिव्यक्ति मे मिलती हो तो उसे पढ़ना मरुस्थल में प्यासे को मिले उस जलप्रपात से होगा जिसकी उड़ती हुई बूंदों से जिव्हा के साथ-साथ अंतर आत्मा भी तृप्त हो जाती हैं प्रेम की अभिलाषा अनंत हैं जिसकी तृप्ति संभव नही जितना मिल जाये जितना दे दिया जाये इसकी पूर्ति संभव नहीं पाने वाले के मन मे और पाने की देने वाले के मन मे और देने की महत्वाकांक्षा हमेशा बने रहती। नवस्फूटन नवजीवन ही प्रेम है। चाहे वो मन मे भावनाओं का हो या किसी व्यक्ति विशेष का नित नई जन्म लेती अभिलाषा ही प्रेम हैं #साकेत #footsteps
साकेत शाश्व़त
नूरजहाँ में चेहरा तेरा ताबीज़ हैं गर अफसोस कि तु मेरी दुनिया में काबिज़ नहीं #साकेत #Dark
साकेत शाश्व़त
चंद साँसे ले रहा हूँ मैं भी तेरी सोहबत में बिलकुल दिसम्बर की तरह है अफसोस की मैं फना हो जाऊँगा मुझे नया नहीं लगेगा नये कैलेन्डर की तरह #साकेत