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Shabd Shringaar

मेरी आपबीती

मन को प्रेम-रोग लगाए बैठे है , सुहाने सपने भी सजाए बैठे है। शाम होने को है तुम्हारे इंतेज़ार में , किवाड़ पर पलकें बिछाए बैठे है। प्रियतम प्रेम में तेरे सुध-बुध खो के , हम अपनी जान भी गवाएँ बैठे है।

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मन को प्रेम-रोग लगाए बैठे है ,
सुहाने सपने भी सजाए बैठे है। 
©आराधना 
( अनुशीर्षक में पढ़े ) मन को प्रेम-रोग लगाए बैठे है ,
सुहाने सपने भी सजाए बैठे है। 

शाम होने को है तुम्हारे इंतेज़ार में ,
किवाड़ पर पलकें बिछाए बैठे है।

प्रियतम प्रेम में तेरे सुध-बुध खो के  ,
हम अपनी जान भी गवाएँ बैठे है।

मेरी आपबीती

आख़री कुछ लम्हें बिताने दे तेरी क़ुर्बत में ,
के अब लोग दफ़न कर देंगे मुझे तुर्बत में।

नही मंजूर क़िस्मत को ये साथ तेरा-मेरा ,
अब हमे भी ये दिन काटने होंगे फ़ुर्क़त में।

इक गुलदस्ता ले आना कभी मेरी क़ब्र पर ,
के दिलभर निहारता रहू मैं तुम्हे फ़ुर्सत में।

मैने इश्क़ के गलियारों में सौ ख़्वाब है बुने ,
तुझसे ही सीखा मैंने इश्क़ तेरी सोहबत में।

जा रहा था हमेशा के लिए छोड़ कर  मुझे ,
मुड़ कर पीछे भी ना देख पाया ज़हमत में।

मिलना और बिछड़ना तो तय ही था हमारा , 
के बस तेरा साथ नही लिखा मेरी क़िस्मत में।

किसी मोड़ पर मिलेंगे जरूर अब हम-दोनों ,
के अब 'आरू' गुजारेगी ज़ीस्त इसी हसरत में।
©आराधना #nojoto #nojotohindi #nojotoapp #shabdshringaar #aabhawrites

मेरी आपबीती

तुम्हारे संग बिताए ख़ास लम्हें ,
तुमसे जुड़ी वो खूबसूरत यादें ,
उतनी ही मासूम ,खूबसूरत है ,
जितनी दुब पर गिरी ओस या , 
फूलों पर मंडराती तितली उसके रंग ,
जिनको छूते ही हाथो में आ जाते है ।
©आराधना #shabdshringaar 
#nojoto 
#nojotoapp 
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मेरी आपबीती

काक लेकर आये मधु संदेशा करे काँव काँव,
सुनके तेरा संदेशा जमी पर नही पड़े मेरे पाँव।

राहों पर मैने पलकें औऱ बहारों ने फूल बिछाए,
पड़ते ही जमी पर क़दम तेरे महक उठा ये गाँव।

इश्क़ में तेरे पियतम बन कर के मैं जोगनिया,
नाच नाच के मैने तोड़े घुंगरू ना थके मेरे पाँव।

कभी मिलन तो कभी विरह है हमारे दरमियाँ,
होंगे साक्षी मिलन के चाँद औ' बादल की छाँव।

डाँड़ उड़ते , भवँर घूमते , नाचे नीर में पाँव मेरे,
लहराए ,हिचकौले खाए मनसागर में तेरी ये नावँ।
©आराधना #shabdshringaar #nojoto #nojotoapp  #nojotohindi

मेरी आपबीती

उसकी सूरत मेरे दिल से उतरती रही ,
मुझसे किये वादों से वो मुकरती रही।

लगा के मुझे ये श्रृंगार रस है मेरे लिए  ,
पर रक़ीब के लिए सजती-सँवरती रही

छोड़ा उसने मुझे किसी और कि ख़ातिर ,
काँच की तरह टूट के रोज़ बिखरती रही। 

अक्सर जहाँ मिला करते थे हम दोनों ,
अब उन सभी गलियोंसे वो गुज़रती रही।

जहाँ से उसे दिखे मुझ गरीब का ख़ाना ,
गली के चौराहें पर घंटो वो ठहरती रही।
©आराधना #shabdshringaar #nojoto #nojotoapp #nojotohindi

मेरी आपबीती

दुःख का साया भी हट जाएगा ,
अपनो में सुख भी बट जाएगा।

यूँ ना हिम्मत मत हार ये नेक बंदे ,
ये मुश्किल वक़्त भी कट जाएगा।

जितना ज़रूरी है उतना ही तू माँग ,
माँगे ज्यादा तो झोला फट जाएगा।
©आराधना #shabdshringaar

मेरी आपबीती

जागतिक पुरुष दिन की शुभकामनाएं अपनों को ख़ुश रखना उसका कर्म होता है अपनों की रक्षा करना उसका धर्म होता है , बाहरी बर्ताव से दिखाए तुमको वो सख़्त है पर अंदर से वो तो मोम की तरह नर्म होता है।

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अपनों को ख़ुश रखना उसका कर्म होता है  
अपनों की रक्षा  करना उसका धर्म होता है ,

बाहरी बर्ताव से दिखाए तुमको वो सख़्त है
पर अंदर से वो तो मोम की तरह नर्म होता है।

जिसके सर से जब बड़ो का साया छूट जाता है 
जो जिम्मेदारी कंधे पर ले वो सच्चा मर्द होता है।

रोना चाहे पर वो तो किसी के सामने नही रोता ,
वो मर्द है तो क्या हुआ ? मर्द को भी दर्द होता है।

©आराधना जागतिक पुरुष  दिन की शुभकामनाएं 

अपनों को ख़ुश रखना उसका कर्म होता है  
अपनों की रक्षा  करना उसका धर्म होता है ,

बाहरी बर्ताव से दिखाए तुमको वो सख़्त है
पर अंदर से वो तो मोम की तरह नर्म होता है।

मेरी आपबीती

बेगुनाह , निष्पाप नन्हे बालक ये भोगते है ,
जो तुम मजे के लिए ऐसे कर्मकांड करते हो।

फेंक देते कूड़े या नाली में उस नन्हें शिशु को ,
कर के ऐसा महापाप तुम तो बस मुकरते हो ।

कितने भरे पड़े है अनाथालय  ऐसे अनाथ के ,
तुम तो उनको अपना नाम देने से कतराते हो।

नवजात शिशुओं को ऐसे मरने के लिए छोड़ कर ,
तुम ख़ुद चैन से रह लो गे , क्या ये तुम बिसरते हो। 

उसको अपना नाम दोगे तो क्या जाएगा तुम्हारा ,
खोखली मान-मर्यादा कलंकित होने से डरते हो।
©आराधना #shabdshringaar

मेरी आपबीती

तन्हा छोड़ के हमे , जाने वो किधर गए , है जिस गली में मयख़ाना हम उधर गए।   उसकी यादों से तंग आ के हम जाए कहा , जहाँ दीवानो का ठिकाना हम तिधर गए । उसके जाने से हम इतने टूट के बिखरे की , जाम से भरे पैमानें के पास हमारे अधर गए ।

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तन्हा छोड़ के हमे , जाने वो किधर गए ,
है जिस गली में मयख़ाना हम उधर गए।
 ©आराधना 
( अनुशीर्षक में पढ़े ) तन्हा छोड़ के हमे , जाने वो किधर गए ,
है जिस गली में मयख़ाना हम उधर गए।
 
उसकी यादों से तंग आ के हम जाए कहा ,
जहाँ दीवानो का ठिकाना हम तिधर गए ।

उसके जाने से हम इतने टूट के बिखरे की ,
जाम से भरे पैमानें के पास हमारे अधर गए ।
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