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ROHAN KUMAR SINGH
#इश्क़ क्या है..? #कूड़ा है, #कचरा है, #नाली है, नादान है..? चाहे जो कुछ भी हो पर इस #शख़्श पे तो खुदा #मेहरबान है ।। 😂😂😂 guriya kumari Priya Rajput (Beauty) Shikha Sharma Tabita thapa 🤗🤗💓 Pratibha Tiwari(smile)🙂
आदित्य रहब़र
मन के खिड़कियों से आपने कभी दिल की गली में झांक कर देखा है । देखने के बाद पता चलेगा कैसे खुद को दफन करके इसने अपने गली को आबाद बना रखा है। वहां इश्क का इक घर है जहां देखा है मैंने आह्लादित उस घर के सभी सदस्यों को , वहीं से थोड़ी दूर पर है बेवफाई की टूटी एक फूस की झोपड़ी है जिसमें जिजीविषा अभी भी जिंदा है इश्क को मुकम्मल करने की । उसी गली में एक आंसुओं की नाली भी बहती है जहां सब के आंसू एक साथ उसी नाले से बहता है। पाया मैंने इस गली के लोग भले ही वर्गों में विभक्त हो मगर जब आंसुओं की बारी आती है सब एक ही नाली से बहते हैं । वस्तुतः दुखों की समानता सभी जगह एक जैसी ही मालूम पड़ती है शायद!
Mukesh Patra "The Antidote🌱"
#OpenPoetry Dedicated to all the Daughters बेटी हूँ मैं बोझ नहीं हूँ....बोझ उठाने वाली मैं। आने दो मुझे जग में बापू ,मत फेंको ना नाली में। जी जाती हूं अक्सर अब मैं मुश्किल और बदहाली में। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। माँ के पेट से हिस्से मेरे , बिछते आये कांटे हैं। भ्रूण ही थी जब मेरे अपने, लड़का लड़की छाँटे हैं जननी भी जब बेटी जनती,खुद को कहे अभागन है। बेटा जो आये घर तो फिर बिन बरखा ही सावन है। माँ अंतर कर लेना मेरे और भाई की थाली में। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। भाई की पढ़ी किताबों से सारी ज़मात पढ़ जाउंगी। शादी की मत करना चिंता, खुद दहेज़ बन जाउंगी। बेटा पढ़ अपने घर में शिक्षा समृद्धि लायेगा। बेटी शिक्षित होवे तो पूरा समाज पढ़ जायेगा। मत कतरो पँखो को मेरे कैद करो न जाली में आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। मर्यादा से मर्यादित राम को कौन ज्ञान ये देता है। हर युग में सीता से क्यों वो अग्निपरीक्षा लेता है। मर्दो के अंधे समाज में नारी ही बदनाम हुई। खेला जुआ धर्मराज ने द्रौपदी क्यों नीलाम हुई। अबला ही मत समझो बन सकती हूँ चण्डी काली मैं। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। छेड़े मारे रेप करे फिर भी वो मर्द कहाता है। इसका दोष भी लड़की के उस पहनावे पर जाता है। तुच्छ समाज की ओछी बातें नारी पर ही आएंगे। बेटे की गंदी नजरों को कब माँ बाप झुकायेंगे। जैसी विवसता नारी की है कैसे वो जी पायेगी। गूंगी समाज केवल मर्दो की दासी ही रह जायेगी। माँ बहनों का नाम क्या अब बस रह जायेगा गाली में आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। बेटी हूँ मैं बोझ नहीं....खुद कर लुंगी रखवाली मैं। आने दो मुझे जग में बापू ,मत फेंको ना नाली में। जी जाती हूं अक्सर अब मैं मुश्किल और बदहाली में। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। #beti
Mukesh Patra "The Antidote🌱"
बेटी हूँ मैं बोझ नहीं हूँ....बोझ उठाने वाली मैं। आने दो मुझे जग में बापू ,मत फेंको ना नाली में। जी जाती हूं अक्सर अब मैं मुश्किल और बदहाली में। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। माँ के पेट से हिस्से मेरे , बिछते आये कांटे हैं। भ्रूण ही थी जब मेरे अपने, लड़का लड़की छाँटे हैं जननी भी जब बेटी जनती,खुद को कहे अभागन है। बेटा जो आये घर तो फिर बिन बरखा ही सावन है। माँ अंतर कर लेना मेरे और भाई की थाली में। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। भाई की पढ़ी किताबों से सारी ज़मात पढ़ जाउंगी। शादी की मत करना चिंता, खुद दहेज़ बन जाउंगी। बेटा पढ़ अपने घर में शिक्षा समृद्धि लायेगा। बेटी शिक्षित होवे तो पूरा समाज पढ़ जायेगा। मत कतरो पँखो को मेरे कैद करो न जाली में आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। मर्यादा से मर्यादित राम को कौन ज्ञान ये देता है। हर युग में सीता से क्यों वो अग्निपरीक्षा लेता है। मर्दो के अंधे समाज में नारी ही बदनाम हुई। खेला जुआ धर्मराज ने द्रौपदी क्यों नीलाम हुई। अबला ही मत समझो बन सकती हूँ चण्डी काली मैं। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। छेड़े मारे रेप करे फिर भी वो मर्द कहाता है। इसका दोष भी लड़की के उस पहनावे पर जाता है। तुच्छ समाज की ओछी बातें नारी पर ही आएंगे। बेटे की गंदी नजरों को कब माँ बाप झुकायेंगे। जैसी विवसता नारी की है कैसे वो जी पायेगी। गूंगी समाज केवल मर्दो की दासी ही रह जायेगी। माँ बहनों का नाम क्या अब बस रह जायेगा गाली में आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। बेटी हूँ मैं बोझ नहीं....खुद कर लुंगी रखवाली मैं। आने दो मुझे जग में बापू ,मत फेंको ना नाली में। जी जाती हूं अक्सर अब मैं मुश्किल और बदहाली में। आने दो मुझे जग में बापू,मत फेंको ना नाली में। #betibojhnhi #dedicatedtodaughter#emotionalpoetry #lovepoetry
Suraj P Mishra
.🙏अम्मा, तुम हम सबको बहुत डाँटती थी - “नल धीरे खोलो... पानी बदला लेता है! अन्न नाली में न जाए, नाली का कीड़ा बनोगे! सुबह-सुबह तुलसी पर जल चढाओ, बरगद पूजो, पीपल पूजो, आँवला पूजो, मुंडेर पर चिड़िया के लिए पानी रखा कि नहीं? हरी सब्जी के छिलके गाय के लिए अलग बाल्टी में डालो। अरे कांच टूट गया है। उसे अलग रखना। कूड़े की बाल्टी में न डालना, कोई जानवर मुँह न मार दे। .. ये हरे छिलके कूड़े में किसने डाले, कही भी जगह नहीं मिलेगी........ माफ़ करना माँ, तुम और तुम्हारी पीढ़ी इतनी पढ़ी नहीं थी पर तुमने धरती को स्वर्ग बनाए रखा, और हम चार किताबे पढ़ कर स्वर्ग-नरक की तुम्हारी कल्पना पर मुस्कुराते हुए धरती को नर्क बनाने में जुटे रहे।
Mukesh Poonia
Story of Sanjay Sinha कई कहानियां उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर ही गुज़रती हैं। मेरी आज की कहानी भी मुझे उन्हीं रास्तों से गुजरती नज़र आ रही है। वज़ह? वज़ह हम खुद हैं। कई बार हम ज़िंदगी की सच्चाई से खुद को इतना दूर कर लेते हैं कि हमें सत्य का भान ही नहीं रहता। हम अपनी ही कहानी के निरीह पात्र बन जाते हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि संजय सिन्हा तो सीधे-सीधे कहानी शुरू कर देते हैं, भूमिका नहीं बांधते। फिर आज ऐसी क्या मजबूरी आ पड़ी जो अपनी कहानी को उबड़-खाबड़ रास्तों पर छोड़ कर खुद आराम
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