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Abhilasha Sharma
White जितना अहंकार को त्याग कर आप प्रकृति के समीप जाएंगे , वह उतना ही आपको सनेह करेगी यह एक दम सत्य और प्रमाणिक बात है,जो मैंने अपने जीवन में अनुभव की है। अब आप ये सोच रहे होंगे कि प्रकृति क्या है कैसी दिखती है,देखिए प्रकृति असल में दो शब्दों से मिलकर बनी है , प्र+कृति प्र अर्थात प्रभु या परमेश्वर और कृति मतलब कार्य या रचना जिसका निर्माण ईश्वर के द्वारा किया गया है वह ही प्रकृति है । ईश्वर ने दो ही मात्र महत्वपूर्ण कार्य किए एक तो प्रकृति और दूसरा मनुष्य । और दोनों को एक दूसरे के प्रति उद्देश्य और कार्य भी बताए । मनुष्य को प्रकृति दी विवेक दिया जिससे वह अपने विवेक द्वारा अपने कर्तव्यों का प्रकृति के प्रति निर्वहन कर सके उसकी सेवा कर सके उससे प्रेम कर सके । और प्रकृति को उसका कार्य दिया जिससे वह अपने अन्न,फल, जल आदि से मनुष्य का भरण पोषण कर सके । एक के अभाव में एक पूर्ण नहीं है । अब जब प्रकृति अपने पथ संचलन से नहीं हटी तो हम मनुष्य क्यों दूर होते जा रहे हैं उससे प्रेम , संरक्षण ,दुलार देने के स्थान पर उसे ही भक्षण किए जा रहे हैं यह कैसी चाहत और मानवता है ...? प्रश्न तो आज हर एक मानव से है । क्या जिस प्रकार हम अपने परिवारजनों को चाहते हैं उनकी फिक्र करते हैं। क्या थोड़ा सा भी एहसास इस बात का नहीं है की आने वाली पीढ़ियां क्या दिखेंगी। खैर छोड़ो बात और आगे बढ़ जाएगी ....!! प्रकृति क्या है...क्या मात्र पेड़ पौधे आदि प्रकृति का हिस्सा हैं ...? नहीं प्रकृति में हर जीव आता है चिटी से लेकर हाथी , नदी से लेकर झरने, तालाब से लेकर सागर , गाय , हाथी , बंदर ,भालू , जिसमें भी प्राण है वो प्रकृति है । आइए प्रकृति को बचाएं । एक पौधा हर दिन कहीं न कहीं जरूर लगाएं। ✍️✍️✍️ ©Abhilasha Sharma #sad_dp #वृक्ष #प्लांट्स #Nature
Bindu Sharma
White चाहत हर किसी को ऊंचाई पर पहुंचने की, देखो फूलों से भरा वृक्ष भी चला है आसमान को छूने.. पहुंचता वही है ऊंचाई पर जो चलता है सबको साथ लेकर ©Bindu Sharma #sad_shayari #वृक्ष #ऊंचाई #आसमान
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read moreBindu Sharma
White सूर्य की लालिमा उगता सूरज ,ढलता सूरज प्रातः काल की बेला,गोधूलि अब नजर आती है कहां... घेर लिया ऊंची ऊंची इमारतों ने इंसानों को , वृक्षों से झांकती सूर्य की लाली, ओझल हो गई है जाने कहां... छत खो गई हैं शहरों में, चंद्रमा की शीतलता आनंद लेते थे जहां... पेड़ो कै काट कर ,खूले मैदानों में, खड़ी हो गई हैं लंबी-लंबी बिल्डिंग यहां, रात बदल गई कृत्रिम रोशनी में, घड़ी के अलार्म से, दिन होता है यहां खिलखिलाती सुबह,सुहावनी शाम गुम हो गई जानें कहां ,जाने कहां... ©Bindu Sharma #good_evening_ #good_morning #प्रातःकाल #गोधूलि #वृक्ष ,#poem #kavita #Shayari #Nojoto#nojohindi
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read moreबेजुबान शायर shivkumar
White गूंज उठे ये कुंजर भी , इन कलियों में पंखुड़ियां खिल सी आयी हैं । जीवन में अमृत बरसाने को, ये बारिश की बूंदें धरती पे उतर आयीं है ।। ये नन्हे नन्हे पेड़- पौधों से, उन जंगल में हरियाली सी खिलती है । लाल पीली कोंपल से, ये जीवन की छटा निराली सी होती है ।। वृक्षों की महिमा निराली , प्रकृति भी इन वृक्षों से जब सजती है। मोरों की कूंक और चिड़ियों की चहचहाहट, इन वनों में जब ये गूंजती है ।। वर्षा ऋतु भी अच्छी होती , जहां इन वृक्षों की अधिकता होती है । धरती रेगिस्तान बन सकती है , जहां इन वृक्षों की न्यूनता होती है ।। वन क्षेत्र के संरक्षक बनकर, वनों का महत्व समझाते रहते थे ।। जो धरा वृक्ष विहीन हो जाये तो , वहां ये धरती बंजर हो जाते थे ।। अच्छी उपजाऊ धरती में भी , बिन वृक्षों के कंगाली छा जाती है।। धरती को हमको बचाना है , इस धरा पर खूब वृक्ष लगाना है । आओ हम सब वृक्ष लगाएं , जीवन में हरियाली की खुशियां लाए । घर घर में छोटे छोटे पौधे लगाकर, उस घर संसार को उपवन बनाएं ।। ©बेजुबान शायर shivkumar #cg_forest #Forest #Nojoto गूंज उठे ये कुंजर भी , इन कलियों में पंखुड़ियां खिल सी आयी हैं । जीवन में अमृत बरसाने को, ये बारिश की बूंदें #धरती पे उतर आयीं है ।।
#cg_forest #Forest गूंज उठे ये कुंजर भी , इन कलियों में पंखुड़ियां खिल सी आयी हैं । जीवन में अमृत बरसाने को, ये बारिश की बूंदें #धरती पे उतर आयीं है ।।
read moreBindu Sharma
वृक्ष सूखा है तो भी खड़ा है, इतनी टहनियों को जो ले कर आगे बढ़ा है ... हकीकत में यह वृद्ध पिता है, जो इतनी जिम्मेदारी कंधे पर ले के चला है ©Bindu Sharma #Sukha #वृक्ष #वृद्ध #पिता #nojohindi #Nojoto
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read moreअदनासा-
Sanjay Tiwari "Shaagil"
_________________ पांव पांव चलोगे पहले, तब इस छांव चलोगे तुम! शहर औ शोर-शराबे से और, कितने गांव छलोगे तुम! पिघल गए यदि धवल बर्फ-नग, जल प्लावित धरती होगी क्या? या फिर सारा ताप फांक कर, जल वंचित परती होगी क्या? मानव निर्मित सुख संसाधन प्रकृति विनाशक कितनी हैं? लंबी निर्मित पुल मालाएं वट छाया बाधक कितनी हैं? भूमंडलीकृत हो चुका विश्व एक, आंगन है या युद्ध क्षेत्र है? अर्थवाद बस स्वार्थ सिद्ध या, सुंदर भविष्य का परिप्रेक्ष्य है? इन सारे प्रश्नों को पहले हल कर कभी सकोगे तुम! तब इस छांव चलोगे तुम! ~संजय तिवारी_शाग़िल✍️ ©Sanjay Tiwari "Shaagil" #plant #Trees #वृक्ष #सांसे
As. Poetry
जिंदगी उस वृक्ष की तरह हो चली हे। जो अपनी टहनियों को सींचने और अपनों को सुख देने में पूरा जीवन व्यतीत कर देता है परंतु एक दिन वही सुख पाने वाले अपने उसी को काटने की कोशिश करते है ©As. Poetry #Hope #टहनी #वृक्ष #अपने अपने ही आज गिराने का सामर्थ्य रखते है
HARSHIT369
हमारी राह मे बाधा कोई दुसरा नही बनता हम खुद अपने आप बनते है, हम हि जिम्मेदार होते है अपनी कमियो के आलस ,क्रोध,काम की वासना, किसी दुसरे कि प्रगती से सीखने कि बजाय चिड़ना.. यहि वो कारण होते है जो हमारे लक्ष मे बाधा बनते है अत हमे व्रक्ष कि भाती फल भी देने है छाया भी और आवश्यकता पढ़ने पर लकड़ी भी..!! ©SHI.V.A 369 #वृक्ष की छाया
#वृक्ष की छाया
read moreBalwant Mehta
वृक्ष धरा के हैं आधार पर्यावरण संतुलन करते हैं साकार सच में है चमत्कार ©Balwant Mehta #वृक्ष #पर्यावरण #चमत्कार