Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best पांडव Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best पांडव Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutकौरव पांडव की लड़ाई, पांडव वंश की वंशावली, पांचो पांडव के नाम, कौरव पांडव का युद्ध, पांडवों का अज्ञातवास,

  • 4 Followers
  • 15 Stories

Jiyalal Meena ( Official )

#द्रौपदी #इतिहास #महाभारत #पांडव 'महाभारत' में द्रौपदी का चीर हरण एक दु:खद घटना मानी जाती है. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी को द्युतक्रीड़ा में कौरवों से हार गए थे. ... इसके बाद कौरवों में दुर्योधन का छोटा भाई दुशासन द्रौपदी को उनके बाल पकड़ कर भरी सभा में भी लाया और फिर कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण किया था #Trending Geeta Modi Shiwani Aafiya Jamal ekrajhu Dk D Dolly shamshad King of Darkness Storyteller VOICE OF Anshika rasmi Anya Maurya Udass Afzal khan

read more

Ajay Amitabh Suman

#कविता #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य ===================== मन की प्रकृति बड़ी विचित्र है। किसी भी छोटी सी समस्या का समाधान न मिलने पर उसको बहुत बढ़ा चढ़ा कर देखने लगता है। यदि निदान नहीं मिलता है तो एक बिगड़ैल घोड़े की तरह मन ऐसी ऐसी दिशाओं में भटकने लगता है जिसका समस्या से कोई लेना देना नहीं होता। कृतवर्मा को भी सच्चाई नहीं दिख रही थी। वो कभी दुर्योधन को , कभी कृष्ण को दोष देते तो कभी प्रारब्ध कर्म और नियति का खेल समझकर अपने प्रश्नों के हल निकालने की कोशिश क

read more
==========================
मेरे  भुज बल की शक्ति  क्या  दुर्योधन  ने  ना   देखा?
कृपाचार्य  की  शक्ति  का  कैसे कर  सकते अनदेखा?
दुःख भी होता था हमको और किंचित इर्ष्या होती थी,
मानवोचित विष अग्नि  उर  में जलती थी बुझती  थी।
===========================
युद्ध लड़ा था जो दुर्योधन के हित में था प्रतिफल क्या?
बीज चने के भुने हुए थे  क्षेत्र  परिश्रम ऋतु फल क्या?
शायद  मुझसे  भूल हुई  जो   ऐसा  कटु फल पाता था,
या विवेक में कमी रही थी कंटक  दुख पल  पाता था।
===========================
या समय  का रचा हुआ लगता था पूर्व निर्धारित खेल,
या मेरे  प्रारब्ध  कर्म का दुचित  वक्त  प्रवाहित  मेल।
या स्वीकार करूँ दुर्योधन का  मतिभ्रम था ये कहकर,
या दुर्भाग्य हुआ प्रस्फुटण आज देख स्वर्णिम अवसर।
===========================
मन में शंका के बादल जो उमड़ घुमड़ कर आते थे, 
शेष बची थी जो कुछ  प्रज्ञा धुंध  घने कर जाते थे ।
क्यों कर कान्हा ने मुझको दुर्योधन के साथ किया?
या नाहक का हीं था भ्रम ना केशव ने साथ दिया? 
=========================
या गिरिधर  की कोई लीला थी शायद  उपाय भला,
या अल्प बुद्धि अभिमानी  पे माया का जाल फला।
अविवेक  नयनों पे इतना सत्य दृष्टि ना फलता था,
या मैंने स्वकर्म रचे जो  उसका हीं फल पलता था?  
==========================
या  दुर्बुद्धि फलित हुई  थी ना इतना  सम्मान किया,
मृतशैया पर मित्र पड़ा था ना इतना भी ध्यान दिया।
क्या  सोचकर  मृतगामी  दुर्योधन  के  विरुद्ध पड़ा ,
निज मन चितवन घने द्वंद्व में मैं मेरे  प्रतिरुद्ध अड़ा।
==========================
अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित

©Ajay Amitabh Suman #कविता  #दुर्योधन #अश्वत्थामा  #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा  #कृपाचार्य
=====================
मन की प्रकृति बड़ी विचित्र है। किसी भी छोटी सी समस्या का  समाधान न मिलने पर  उसको बहुत बढ़ा चढ़ा कर देखने लगता है। यदि निदान नहीं मिलता है तो एक बिगड़ैल घोड़े की तरह मन ऐसी ऐसी दिशाओं में भटकने लगता है जिसका समस्या से कोई लेना देना नहीं होता। कृतवर्मा को भी सच्चाई नहीं दिख रही थी। वो कभी दुर्योधन को , कभी कृष्ण को दोष देते   तो कभी प्रारब्ध कर्म और नियति का खेल समझकर अपने प्रश्नों के हल निकालने की कोशिश क

Ajay Amitabh Suman

#कविता  #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महादेव #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा #कृपाचार्य इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् सोलहवें  भाग में दिखाया गया जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा पांडव पक्ष के बाकी  बचे हुए जीवित योद्धाओं का संहार करने का प्रण लेकर पांडवों के शिविर के पास पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक विकराल पुरुष पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा करते हुए दिखाई पड़ा। उस महाकाल सदृश पुरुष की उपस्थिति मात्र हीं कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के मन में भय का संचार उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त

read more
======================
वक्त  लगा था अल्प बुद्धि  के कुछ तो जागृत होने में,
महादेव से  महा काल  से  कुछ  तो  परीचित होने में।
सोंच पड़े  थे  हम  सारे  उस  प्रण का रक्षण कैसे  हो ?
आन पड़ी थी विकट विघ्न उसका उपप्रेक्षण कैसे हो?
======================
मन में  शंका के बादल सब उमड़ घुमड़ के आते थे ,
साहस जो भी बचा हुआ था सब के सब खो  जाते थे।  
जिनके  रक्षक महादेव  रण में फिर  भंजन हो कैसे? 
जयलक्ष्मी की नयनों का आखिर अभिरंजन हो कैसे?
======================
वचन दिए थे जो मित्र को निर्वाहन हो पाएगा क्या?
कृतवर्मा  अब तुम्हीं कहो हमसे ये हो पाएगा क्या?
किस बल से महा शिव  से लड़ने का  साहस लाएँ?
वचन दिया जो दुर्योधन को संरक्षण हम कर पाएं?
=====================
मन  जो  भी  भाव निराशा के क्षण किंचित आये थे ,
कृतवर्मा  भी हुए निरुत्तर शिव संकट बन आये  थे।
अश्वत्थामा   हम  दोनों  से  युद्ध  मंत्रणा  करता  था ,   
उस क्षण जैसे भी संभव था हममें साहस भरता था ।
======================
बोला  देखों  पर्वत  आये  तो चींटी   करती है क्या ?
छोटे छोटे  पग उसके पर वो पर्वत से डरती  क्या ?
जो  संभव  हो  सकता उससे वो पुरुषार्थ रचाती है ,
छोटे हीं   पग उसके  पर पर्वत मर्दन कर जाती है।
======================
अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षि

©Ajay Amitabh Suman #कविता  #दुर्योधन #अश्वत्थामा #महादेव #महाभारत #कौरव #पांडव #कृतवर्मा  #कृपाचार्य 

इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् सोलहवें  भाग में दिखाया गया जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा पांडव पक्ष के बाकी   बचे हुए जीवित योद्धाओं का संहार करने का प्रण लेकर पांडवों के शिविर के पास पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक विकराल पुरुष पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा करते हुए दिखाई पड़ा। उस महाकाल सदृश पुरुष की उपस्थिति मात्र हीं कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के मन में भय का संचार उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त

Ajay Amitabh Suman

इस दीर्घ रचना के पिछले भाग अर्थात् बारहवें  भाग में आपने देखा अश्वत्थामा ने दुर्योधन को पाँच कटे हुए नर कंकाल  समर्पित करते हुए क्या कहा। आगे देखिए वो कैसे अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य के अनुचित तरीके के किये गए वध के बारे में दुर्योधन ,कृतवर्मा और कृपाचार्य को याद दिलाता है। फिर तर्क प्रस्तुत करता है कि उल्लू  दिन में  अपने शत्रु को हरा नहीं सकता इसीलिए वो रात में हीं  घात लगाकर अपने शिकार पर प्रहार करता है। पांडव के पक्ष में अभी भी पाँचों पांडव , श्रीकृष्ण , शिखंडी , ध्रीष्टदयुम्न आदि और अनगिनत

read more

Ajay Amitabh Suman

इस दीर्घ रचना के पिछले भाग अर्थात् ग्यारहवें भाग में आपने देखा कि युद्ध के अंत में भीम द्वारा जंघा तोड़ दिए जाने के बाद दुर्योधन मरणासन्न अवस्था में  हिंसक जानवरों के बीच पड़ा हुआ था। आगे देखिए जंगली शिकारी पशु बड़े धैर्य के साथ दुर्योधन की मृत्यु का इन्तेजार कर रहे थे और उनके बीच फंसे हुए दुर्योधन को मृत्यु की आहट को देखते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। परंतु होनी को तो कुछ और हीं मंजूर थी । उसी समय हाथों में  पांच कटे हुए  नर कपाल लिए अश्वत्थामा का आगमन हुआ  और दुर्योधन की मृत्यु का इन्तेजार कर

read more

Ajay Amitabh Suman

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-11 इस दीर्घ कविता के दसवें भाग में दुर्योधन  द्वारा श्रीकृष्ण को हरने का असफल प्रयास और उस असफल प्रयास के प्रतिउत्तर में श्रीकृष्ण वासुदेव द्वारा स्वयं के  विभूतियों के प्रदर्शन का वर्णन किया गया है।अर्जुन सरल था तो उसके प्रति कृष्ण मित्रवत व्यवहार रखते थे, वहीं  कपटी दुर्योधन के लिए वो महा कुटिल थे। इस भाग में देखिए , युद्ध के अंत में भीम द्वारा जंघा तोड़ दिए जाने के बाद मरणासन्न अवस्था में दुर्योधन  हिंसक जानवरों के बीच पड़ा हुआ था। जानवर की वृत्ति रखने वाला योद्धा स्वयं

read more

Harsh

Harsh

Harsh

Harsh

loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile