Find the Best किंतु Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutकिंतु परंतु का अर्थ, किंतु और परंतु, किंतु परंतु छोड़कर निरंकारी भजन, किंतु गाना, किंतु परंतु सॉन्ग,
Tony
मुफ्त में सिर्फ मां बाप का प्यार मिला है इसके बाद दुनिया में हर रिश्ते के लिए कुछ ना कुछ चुकाना पड़ता है ©Tony #लो #ध्यान #किंतु #कविता #ishq
Raja Hindustani
*-शब्दों का संसार-* शब्द रचे जाते हैं, शब्द गढ़े जाते हैं, शब्द मढ़े जाते हैं, शब्द लिखे जाते हैं, शब्द पढ़े जाते हैं, शब्द बोले जाते हैं, शब्द तौले जाते हैं, शब्द टटोले जाते हैं, शब्द खंगाले जाते हैं, *#अंततः* शब्द बनते हैं, शब्द संवरते हैं, शब्द सुधरते हैं, शब्द निखरते हैं, शब्द हंसाते हैं, शब्द मनाते हैं, शब्द रूलाते हैं, शब्द मुस्कुराते हैं, शब्द खिलखिलाते हैं, शब्द गुदगुदाते हैं, शब्द मुखर हो जाते हैं, शब्द प्रखर हो जाते हैं, शब्द मधुर हो जाते हैं, *#फिर भी-* शब्द चुभते हैं, शब्द बिकते हैं, शब्द रूठते हैं, शब्द घाव देते हैं, शब्द ताव देते हैं, शब्द लड़ते हैं, शब्द झगड़ते हैं, शब्द बिगड़ते हैं, शब्द बिखरते हैं शब्द सिहरते हैं, *#किंतु-* शब्द मरते नहीं, शब्द थकते नहीं, शब्द रुकते नहीं, शब्द चुकते नहीं, *#अतएव-* शब्दों से खेले नहीं, बिन सोचे बोले नहीं, शब्दों को मान दें, शब्दों को सम्मान दें, शब्दों पर ध्यान दें, शब्दों को पहचान दें, ऊँची लंबी उड़ान दे, शब्दों को आत्मसात करें... उनसे उनकी बात करें, शब्दों का अविष्कार करें... गहन सार्थक विचार करें, *#क्योंकि-* शब्द अनमोल हैं... ज़ुबाँ से निकले बोल हैं, शब्दों में धार होती है, शब्दों की महिमा अपार होती, शब्दों का विशाल भंडार होता है, *और सच तो यह है कि-* *शब्दों का अपना एक संसार होता है* ©Raja Hindustani #CityEvening
Ashis Barik
#किंतु जो कमियां निकालना चाहते हैं.. Sujata jha Abhinav jain👑 Nishu Gusain Shahnaj Khan Priya negi Deeksha Sharma Akanksha Priya Anjali Shahnaj Khan shayari dil ki💓 Akansha Dewan Navin kumar Bhardwaj Shivangi Sanawrites_______ Priya keshri (Kaise कहे हमे कितनी मोह्हबत हैं) Jg Varsha Sanjoli Jain Shubham Papney(The Advisor) निज़ाम खान ✍️ Kittu❤
read moreSachin Kumar Gautam
जलता हुआ रावण एक भ्रष्ट नेता की तीर के प्रहार को चुपचाप सह गया, आज विजयदशमी पर जलता हुआ रावण बहुत कुछ कह गया... आधुनिक भारतवर्ष में जो हो रहा है, वो त्रेता युग में कभी नही हुआ, दो वर्ष तक सीता मेरे पास रही, किंतु मैंने उसे कभी नही छुआ, तुमने तो रिश्तों की सभी मर्यादाओं का संहार कर दिया, जिस नारी को देवी मानकर पूजा, उसी की इज्जत को तार-तार कर दिया, कुछ बोल नहीं सकता था, किंतु जलते हुए पटाखों के साथ जमीं पर ढ़ह गया, आज विजयदशमी पर जलता हुआ रावण बहुत कुछ कह गया..... मुझसे तो एक गलती हो गई जिसका मुझे दंड मिला, किंतु क्या तुमने इतिहास से कोई सबक लिया, क्या नारी का सम्मान किया, अगर सबक लिया होता तो आज परिस्थिति ये ना होती, पाँच-पाँच दरिंदों के बीच अकेली फंसी दामिनी यों न रोती, हे....स्वयं को बुद्धिमान कहने वालों, जरा सामने आओ, अगर जलाना ही है तो अपने अंदर के रावण को जलाओ, खैर, मुझे तो जलाते रहो, क्योंकि शायद पुतले जलाना ही तुम्हरा काम है, परंतु एक बात सच-सच बताना....., क्या तुम में से कोई "राम" है.........? सचिन कुमार गौतम
Er.Shivampandit
हमेशा झूठ हम आपस में बोलते आए न मेरे दिल में न तेरी जबाँ पे छाला है…!! ©बेचैन.. ✍ #जो_जितना_व्यस्त_उतना_सफल.... सुख-दुख,आना-जाना सब जीवन के पहलू हैं हर कोई ये जानता भी है और समझता भी।सच भी यही है कि जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच तालमेल बनाए रखना चाहिए हर पल को आनंद से भर लेना चाहिए।कभी-कभी शायद सभी ने ऐसा महसूस किया ज़रूर होगा भले ही मात्र एक क्षण को जैसे खुशियाँ सारी पास हैं फिर भी कुछ तलाश है।कभी ऐसा भी लगता है कि आप चारों तरफ अपनों से उनके अपनत्व से घिरे हैं किंतु इतनी भीड़ के बावजूद भी कभी अकेलापन महसूस होता है.. जीवन में व्यस्तताएँ बहुत बढ़ गई हैं ऐसा लोग प्रायः कहते हैं किंतु क्या वास्तविकता यही है।थ्री-जी का जमाना है इधर सोचा उधर मिला,कार्य की तीव्रता इच्छाशक्ति समान हो गई है फिर व्यस्तता है कहाँ?परिवार के लिए समय नहीं,दोस्तों से भी संपर्क नहीं,ऑफिस के काम भी पैंडिग चल रहे है,फिर व्यस्त कहाँ हैं हम यही खबर नहीं.. शायद मन को व्यस्तता शब्द ने जकड़ लिया है बस।चारों तरफ एक भागमभाग मची हुई है कि कौन ज़्यादा व्यस्त है जितना ज़्यादा जिसने व्यस्त दिखा लिया स्वयं को उतना ही अधिक वो चर्चा में।जीवन में बड़ा कठिन है बदलते समय से तालमेल बिठाना-बगैर किसी परेशानी के परेशान होने का ख़िताब पाना। जैसे पहले लोगों को उनकी योग्यतानुसार उपाधियों से नवाज़ा जाता था वैसे ही आज भी यह प्रथा जोर-शोर से फल-फूल रही है समय के साथ उपाधियों के नाम में परिवर्तन भर हो गया है मात्र, ये हमारी आज के युग की प्रसिद्ध उपाधियाँ हैं-बेचारा-बेचारी,हैरान-परेशान,व्यस्त,काम ही काम और न जाने क्या-क्या… जीवन का आंनद लेना चाहिए शायद हमें यही सारे शब्द आनंदित कर देते हैं जब लोग कहते हैं हाँ-हाँ हम समझते हैं तुम्हें।चोट लगे बिना ही दवा-मरहम सब मिल रहा है,कितना आनंद आता है लोगों ने बेचारा कहा,परेशान कहा और व्यस्त भी कह दिया अब तो और भी बढ़िया-सोने पे सुहागा। कहावत भी कह डाली मन ही मन-हींग लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा। दो पक्तिंया याद आ रही हैं बस-
जो_जितना_व्यस्त_उतना_सफल.... सुख-दुख,आना-जाना सब जीवन के पहलू हैं हर कोई ये जानता भी है और समझता भी।सच भी यही है कि जीवन के उतार-चढ़ाव के बीच तालमेल बनाए रखना चाहिए हर पल को आनंद से भर लेना चाहिए।कभी-कभी शायद सभी ने ऐसा महसूस किया ज़रूर होगा भले ही मात्र एक क्षण को जैसे खुशियाँ सारी पास हैं फिर भी कुछ तलाश है।कभी ऐसा भी लगता है कि आप चारों तरफ अपनों से उनके अपनत्व से घिरे हैं किंतु इतनी भीड़ के बावजूद भी कभी अकेलापन महसूस होता है.. जीवन में व्यस्तताएँ बहुत बढ़ गई हैं ऐसा लोग प्रायः कहते हैं किंतु क्या वास्तविकता यही है।थ्री-जी का जमाना है इधर सोचा उधर मिला,कार्य की तीव्रता इच्छाशक्ति समान हो गई है फिर व्यस्तता है कहाँ?परिवार के लिए समय नहीं,दोस्तों से भी संपर्क नहीं,ऑफिस के काम भी पैंडिग चल रहे है,फिर व्यस्त कहाँ हैं हम यही खबर नहीं.. शायद मन को व्यस्तता शब्द ने जकड़ लिया है बस।चारों तरफ एक भागमभाग मची हुई है कि कौन ज़्यादा व्यस्त है जितना ज़्यादा जिसने व्यस्त दिखा लिया स्वयं को उतना ही अधिक वो चर्चा में।जीवन में बड़ा कठिन है बदलते समय से तालमेल बिठाना-बगैर किसी परेशानी के परेशान होने का ख़िताब पाना। जैसे पहले लोगों को उनकी योग्यतानुसार उपाधियों से नवाज़ा जाता था वैसे ही आज भी यह प्रथा जोर-शोर से फल-फूल रही है समय के साथ उपाधियों के नाम में परिवर्तन भर हो गया है मात्र, ये हमारी आज के युग की प्रसिद्ध उपाधियाँ हैं-बेचारा-बेचारी,हैरान-परेशान,व्यस्त,काम ही काम और न जाने क्या-क्या… जीवन का आंनद लेना चाहिए शायद हमें यही सारे शब्द आनंदित कर देते हैं जब लोग कहते हैं हाँ-हाँ हम समझते हैं तुम्हें।चोट लगे बिना ही दवा-मरहम सब मिल रहा है,कितना आनंद आता है लोगों ने बेचारा कहा,परेशान कहा और व्यस्त भी कह दिया अब तो और भी बढ़िया-सोने पे सुहागा। कहावत भी कह डाली मन ही मन-हींग लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा। दो पक्तिंया याद आ रही हैं बस-
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 1 - धर्मो धारयति प्रजाः आज की बात नहीं है। बात है उस समय की, जब पृथ्वी की केन्द्रच्युति हुई, अर्थात् आज से कई लाख वर्ष पूर्व की। केन्द्रच्युति से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण के दोनों प्रदेशों में मनुष्य सुखपूर्वक रहते थे। आज के समान वहाँ हिम का साम्राज्य नहीं था, यह बात अब भौतिक विज्ञान के भू-तत्त्वज्ञ तथा प्राणिशास्त्र के ज्ञाताओं ने स्वीकार कर ली है। पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुवप्रदेश में बहुत बड़ा महाद्वीप था अन्तःकारिक। महाद्वीप तो वह आज भी है।
read moreसुमित शर्मा
वेदनाओं के भँवर में घूमता अक्सर रहा मैं किंतु ये मालूम था कि वेदनाएँ मुक्त होंगी और फिर किसलय खिलेंगी अपेक्षाओं के जगत में संभाव्यता भी खत्म थी किंतु ये मालूम था कि उपेक्षाएं मुक्त होंगी और फिर किसलय खिलेंगी वे छण अभी तक याद है जब पाँव मेरे दग्ध थे किंतु ये मालूम था कि वे मरुस्थल मुक्त होंगी और फिर किसलय खिलेंगी मैं ही विष था,मैं मरुस्थल मैं ही खुद का शत्रु था किंतु ये मालूम था कि ये शत्रुता भी मुक्त होगी और फिर किसलय खिलेंगी|| 😊 मुस्कुराते रहिए 😊 ✍️ सुमित #DCF
Lokendra Thakur
२ मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु, इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा चिंताओ की रेखाएं अनगिनत विलुप्त तुम्हारे भाल से होगी कपोल पर स्पर्श अनुभूति मेरी बरखा संग शीत बयार से होगी विचारो की कालरात्रि में, भौर का विश्वास पर रखना मन का संपूर्ण तमस हरने को, प्रकाश प्रखर भेजूंगा मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु....................... श्याम घटा छंट जाने के पूर्व तुम उनमें उष्ण आस भर देना कह देना मेघो से अपने सब भाव और उनमें तुम सांसे भर देना उन सांसो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु................ (लोकेंद्र की कलम से ) #लोकेंद्र की कलम से
#लोकेंद्र की कलम से
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