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अदनासा-
@thewriterVDS
इंतजार है तुम्हारा जल्द आओ क्योंकि आओगे तो खुशियां लाओगे किसी को अपनी गलतियां सुधारनी है सेखी बघारनी है किसी को प्यार करना है इजहार करना है किसी को किसी का इंतजार है किसी से बेहद प्यार है किसी को शिकवे मिटाने हैं भुलाकर गले लगाने हैं किसी को डांट खाना है फिर भी वही कर जाना है किसी का घर आना है किसी को भूल जाना है ... Happy New Year 🎆2⃣0⃣1⃣9⃣🎆 #इंतजार #खुशियां #गलतियांसुधारनी #प्यारइजहार #शिकवेमिटाने #डांट #HappyNewYear #YQDidi Vaibhav Dev Singh
#इंतजार #खुशियां #गलतियांसुधारनी #प्यारइजहार #शिकवेमिटाने #डांट #HappyNewYear #yqdidi Vaibhav Dev Singh
read moreCharli Verma
मेरा डांटना बेवजह नहीं होता, कोई रोगी बिस्तर पर यूं नहीं सोता। अगर कह दो क़ि तुम बेवजह मुझपर चिल्लाते हो, फिर अकेले ही समन्दर में लगाना गोता। 🙁🙁🙁🙏🏻 ©Charli Verma मेरा डांटना #डांट #OneSeason
मेरा डांटना #डांट #OneSeason
read moredayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreramkumar aharwar
खुशीयो से भर गया मन अचानक बचपन की उन यादों में वो बारिश के मौसम में कागज की नाव तैराना और भीग कर वापस घर में आना फिर मां का कान पकड़कर डांट लगाना और बाद में कहना राजा बेटा खाना खा ले ऐसा सुनकर खुशीयों से मन भर गया अचानक फिर सुबह मित्रों के साथ छाता लेकर विद्यालय जाना और फिर भी भीगत हुए घर वापस आना था वो कितना प्यारा बचपन जिसमें मां की डांट भी अच्छी लगती थी काश कि लौट के आए वो बचपन जिससे खुशीयों से मन भर जाए अचानक स्वरचित रामकुमार अहरवार हर्रई बचपन
बचपन
read morebunny HindUstani
उठ मेरे बेटे उठ, क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं देख सुबह सर चढ कर मुंह चिढा रही है,क्या इसको सबक सिखाना नहीं ये वक़्त तुझसे रेस लगा रही है,क्या तुझे वक़्त को हराना नहीं उठ मेरे बेटे उठ,क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं नासाज़ थी तबियत कल तेरी,सबक अपना मुकम्मल किया नहीं डर है तुझे अपने उस्ताद की मार का, उनके डांट-डपट का पर मेरे शहजादे, बनती है एक खूबसूरत मुजस्सिम खाकर मार छेनी-हथौरे की ठीक उसी तरह उनके डांट से खुद को क्या तराशना नहीं उठ मेरे बेटे उठ,क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं दोस्तों के साथ खेल, एक-दूसरे को खाना बांटता स्कूल का मैदान,वो शरारत ,वो हंसी-ठिठोली लम्हे बेशकीमती ये आते हैं याद बाद में,क्या इन यादों को जीना नहीं उठ मेरे बेटे उठ, क्या तुझे आज स्कूल जाना नहीं #nojotohindi #school #mom
Ainam Singh
मम्मी -पापा का प्यार भी बड़ा अजीब होता है। हर दुख में उनका साथ जरूर होता है। अच्छा साथी चाहिए तो यह होते हैं हर दुख के साथी सिर्फ यह होते हैं। अगर मूर्ख देखना हो तो यह होते हैं क्योंकि मना करने पर भी सुख के साथी हो ना हो मगर दुख के साथी जरूर होते हैं। मम्मी -पापा का प्यार भी बड़ा अजीब होता है। उनकी डांट भी अजीब होती है ना जाने हर डांट के पीछे कैसे प्यार होता है । मम्मी -पापा का प्यार भी बड़ा अजीब होता है। "मम्मी पापा का प्यार"
"मम्मी पापा का प्यार"
read moreKajuKrGupta
बच्चपन और जवानी में बस एक ही फर्क पाया है मैंने.. पहले कुछ याद नहीं होता तो डांट पड़ती थी अब कुछ बाते याद है तो डांट पर रही हैं!