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Heer
मोहन मेरे मुरली धरी अधरो पर, मीठी धुन किसकी है आई, तनिक हमे भी बताओ, जिसके गीत तुम गुनगुना रहे हो। ©Heer #तनिक हमे भी बताओ? hindi poetry
#तनिक हमे भी बताओ? hindi poetry
read moreNirankar Trivedi
तूफानों से लड़ जाना तुम, तनिक नहीं घबराना तुम। विपदा भी टल जायेगी , खुद को धैर्य दिलाना तुम। मील का पत्थर साबित होना, खुद को अडिग बनाना तुम। तुझसे तेरा सब कुछ है, समझौतों में न झुक जाना तुम। सूर्य भी तुझसे परछाई मांगे, ऐसे तेज प्रकाशित होना तुम। अनमोल सदा ही बनकर रहना, कागज़ में न बिक जाना तुम। अर्थ व्यर्थ न होने देना, अर्थ समाहित रखना तुम। तूफानों से लड़ जाना तुम , तनिक नहीं घबराना तुम। ©Nirankar #InspireThroughWriting #तूफानों से लड़ जाना तुम #तनिक नहीं घबराना तुम Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" सुुमन कवयित्री Meghna kapoor Ram Sagar Panday its arpit
#InspireThroughWriting #तूफानों से लड़ जाना तुम #तनिक नहीं घबराना तुम Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" सुुमन कवयित्री Meghna kapoor Ram Sagar Panday its arpit
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 13 - हृदय परिवर्तन 'मैडम! यह मेरा उपहार है - एक हिंसक डाकू का उपहार!' मैडम ने आगन्तुक के हाथ से पत्र लेकर पढा। 'मैं कृतज्ञ होऊंगा, यदि इसे आप स्वीकार कर लेंगी।' चर दोनों हाथों में एक अत्यन्त कोमल, भारी बहुमूल्य कम्बल लिये, हाथ आगे फैलाये, मस्तक झुकाये खड़ा था। 'मैं इसे स्वीकार करूंगी।' एक क्षण रुककर मैडम ने स्वतः कहा। उनका प्राइवेट सेक्रेटरी पास ही खड़ा था और मैडम ने उसकी ओर पत्र बढ़ा दिया था। 'तुम अपने स्वामी से कहना, मैंने उनका उपहार स्
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 12 - भगवान ने क्षमा किया ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।
read moreAmitesh S. Anand
अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ खुद में हंस-रो कर खुद के खुदा संग हो लेती हूँ । बहती रहती गंग-धार सी भागीरथ प्रेम जटाओं से गिरती रहती अनवरत अनथक गोरसोप्पा प्रवाहों सी, समुद्र तक की पहुँच को स्याही शब्दों में पिरो लेती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं । तनिक प्रयास कर लेती हूँ । चित्-चिंताओं में उत्ताप लहरें विसरे सब अनुबंध हैं कितने भी रहें शून्य पिरोते 1से9 गुणा-जोड़ के प्रबंध हैं ऐसे ही गिर- उठ की छांव-धूप में प्रयासों को जगह देती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ । विद्या-अविद्या की प्रवृत्ति दोनों मेरी रग-रज में अविद्या का मुक्ति पथ विद्या से प्रशस्त अविद्या विद्या के समापन में ऐसी मन की तू-मै में हम संग हो लेती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ ।
Amitesh S. Anand
अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ खुद में हंस-रो कर खुद के खुदा संग हो लेती हूँ । बहती रहती गंग-धार सी भागीरथ प्रेम जटाओं से गिरती रहती अनवरत अनथक गोरसोप्पा प्रवाहों सी, समुद्र तक की पहुँच को स्याही शब्दों में पिरो लेती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं । तनिक प्रयास कर लेती हूँ । चित्-चिंताओं में उत्ताप लहरें विसरे सब अनुबंध हैं कितने भी रहें शून्य पिरोते 1से9 गुणा-जोड़ के प्रबंध हैं ऐसे ही गिर- उठ की छांव-धूप में प्रयासों को जगह देती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ । विद्या-अविद्या की प्रवृत्ति दोनों मेरी रग-रज में अविद्या का मुक्ति पथ विद्या से प्रशस्त अविद्या विद्या के समापन में ऐसी मन की तू-मै में हम संग हो लेती हूँ । अब लिख नहीं पाती गीत कोई मैं तनिक प्रयास कर लेती हूँ ।
Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 10 – अनुगमन 'ठहरो!' जैसे किसी ने बलात् पीछे से खींच लिया हो। सचमुच दो पग पीछे हट गया अपने आप। मुख फेरकर पीछे देखना चाहा उसने इस प्रकार पुकारने वाले को, जिसकी वाणी में उसके समान कृतनिश्चयी को भी पीछे खींच लेने की शक्ति थी। थोड़ी दूर शिखर की ओर उस टेढ़े-मेढ़े घुमावदार पथ से चढ़कर आते उसने एक पुरुष को देख लिया। मुण्डित मस्तक पर तनिक-तनिक उग गये पके बालों ने चूना पोत दिया था। यही दशा नासिका और उसके समीप के कपाल के कुछ भागों कों छोड़कर शेष मु
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