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Chanchal's poetry
sunset nature ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही, चित्र बन रहा लकीर मिट रही, आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक, राह किन्तु दूर दूर हट रही, इसलिए सुहागरात के लिए आँखों में न अश्रु है, न हास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। गा रहा सितार, तार रो रहा, जागती है नींद, विश्व सो रहा, सूर्य पी रहा समुद्र की उमर, और चाँद बूँद बूँद हो रहा, इसलिए सदैव हँस रहा मरण, इसलिए सदा जनम उदास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बूँद गोद में लिए अंगार है, होठ पर अंगार के तुषार है, धूल में सिंदूर फूल का छिपा, और फूल धूल का सिंगार है, इसलिए विनाश है सृजन यहाँ इसलिए सृजन यहाँ विनाश है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। व्यर्थ रात है अगर न स्वप्न है, प्रात धूर, जो न स्वप्न भग्न है, मृत्यु तो सदा नवीन ज़िन्दगी, अन्यथा शरीर लाश नग्न है, इसलिए अकास पर ज़मीन है, इसलिए ज़मीन पर अकास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। दीप अंधकार से निकल रहा, क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा, जी रही सनेह मृत्यु जी रही, क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा, इसलिए सदा अजेय धूल है, इसलिए सदा विजेय श्वांस है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है ~gopaldas neeraj ©Chanchal's poetry #sunsetnature #gopaldasneeraj #Poet
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sunset nature ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही, चित्र बन रहा लकीर मिट रही, आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक, राह किन्तु दूर दूर हट रही, इसलिए सुहागरात के लिए आँखों में न अश्रु है, न हास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। गा रहा सितार, तार रो रहा, जागती है नींद, विश्व सो रहा, सूर्य पी रहा समुद्र की उमर, और चाँद बूँद बूँद हो रहा, इसलिए सदैव हँस रहा मरण, इसलिए सदा जनम उदास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। बूँद गोद में लिए अंगार है, होठ पर अंगार के तुषार है, धूल में सिंदूर फूल का छिपा, और फूल धूल का सिंगार है, इसलिए विनाश है सृजन यहाँ इसलिए सृजन यहाँ विनाश है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। व्यर्थ रात है अगर न स्वप्न है, प्रात धूर, जो न स्वप्न भग्न है, मृत्यु तो सदा नवीन ज़िन्दगी, अन्यथा शरीर लाश नग्न है, इसलिए अकास पर ज़मीन है, इसलिए ज़मीन पर अकास है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है। दीप अंधकार से निकल रहा, क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा, जी रही सनेह मृत्यु जी रही, क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा, इसलिए सदा अजेय धूल है, इसलिए सदा विजेय श्वांस है। ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है.. ~gopaldas 'neeraj' ©Chanchal's poetry #gopaldasneeraj #legend #poet #meaningOfLIFE
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read moreनादान दिल.....
प्रस्तुत है,नीरज जी की नायाब रचना #gopaldasneeraj #NidhiSehgal #bestreels #bestpoetry #Quotes #Hindi Anshu writer Niaz (Harf) Hardik Mahajan Sethi Ji अदनासा-
read moreranjita jena
प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसी! अंत तक उसका निभाना ही कठिन है। है बहुत आसान ठुकराना किसी को, है न मुश्किल भूल भी जाना किसी को, प्राण-दीपक बीच साँसों को हवा में याद की बाती जलाना ही कठिन है प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसी! अंत तक उसका निभाना ही कठिन है। स्वप्न बन क्षण भर किसी स्वप्निल नयन के, ध्यान-मंदिर में किसी मीरा गगन के देवता बनना नहीं मुश्किल, मगर सब भार पूजा का उठाना ही कठिन है। प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसी! अंत तक उसका निभाना ही कठिन है। प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसी! अंत तक उसका निभाना ही कठिन है। है बहुत आसान ठुकराना किसी को, है न मुश्किल भूल भी जाना किसी को, प्राण-दीपक बीच साँसों को हवा में याद की बाती जलाना ही कठिन है
प्यार तो करना बहुत आसान प्रेयसी! अंत तक उसका निभाना ही कठिन है। है बहुत आसान ठुकराना किसी को, है न मुश्किल भूल भी जाना किसी को, प्राण-दीपक बीच साँसों को हवा में याद की बाती जलाना ही कठिन है
read moreNitin Kr Harit
शब्दों का ऐसा जादूगर, और कोई क्या मिलता है? हों प्रसन्न गोपाल, धरा पर, तब ही नीरज खिलता है। #गोपालदास_नीरज #पुण्यतिथि #yqbaba #yqdidi #gopaldasneeraj #yqhindi #nitinkrharit
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read moreKapil Kumar
"दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था| तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था। इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में, खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था।" - नीरज #gopaldasneeraj
Kapil Kumar
"अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए। जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।" - गोपालदास नीरज जन्मदिन 04 जनवरी 1925 #gopaldasneeraj #neeraj_poetry
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