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Devesh Dixit

#परिहास #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry परिहास (दोहे) जो करते परिहास हैं, उनका बढ़ता मान। आस पास सब हों मगन, खुश होते वो जान।। ऐसा क्यों परिहास हो, लगे व्यंग के बाण।

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Devesh Dixit

#परिहास #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi परिहास (दोहे) जो करते परिहास हैं, उनका बढ़ता मान। आस पास सब हों मगन, खुश होते वो जान।। ऐसा क्यों परिहास हो, लगे व्यंग के बाण।

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Devesh Dixit

#परिहास #nojotohindipoetry #दोहे # R K Mishra " सूर्य " Praveen Jain "पल्लव" Lalit Saxena Ajnabii Inherself Pooja's diary 💞

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Vinod Mishra

poonam atrey

Juhi Grover

कभी कुछ शरारत का मन हो तो कर जाइये,
पहले थोड़ा मुस्कुराइये, 
बीवी के पास जाइये,
गर्ल-फ्रैंड की तस्वीर दिखा ज़रा छिप जाइये,
दूर-दूर से ही गर्ल-फ्रैंड के किस्से सुनाइये,
बीवी बेलन लेकर आये तो नज़र न आइये,
कहीं कुछ टूट-फूट न हो, झटके से बच जाइये,
धड़ल्ले से यों बस चुटकुले सुनाइये,
परिहास में पूरे परिवार को ज़रा डुबोइये,
गमगीन माहौल को खुशनुमा बनाइये,
हँसी के फुव्वारे उड़ाते रहिये,
हँसते और हँसाते रहिये।  #हँसी 
#बेलन 
#फव्वारे
#परिहास
#चुटकुले
#धड़ल्ले
#yqhindi
#bestyqhindiquotes

उपांशु शुक्ला

उपांशु शुक्ला

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
14 – ममता

'मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 12 - स्नेह जलता है 'अच्छा तुम आ गये?' माता के इन शब्दों को आप चाहें तो आशीर्वाद कह सकते हैं; किंतु कोई उत्साह नहीं था इनके उच्चारण में। उसने अपनी पीठ की छोटी गठरी एक ओर रखकर माता के चरण छुये और तब थका हुआ एक ओर भूमि पर ही बैठ गया। 'माँ मुझे देखते ही दौड़ पड़ेगी। दोनों हाथों से पकड़कर हृदय से चिपका लेगी। वह रोयेगी और इतने दिनों तक न आने के लिये उलाहने देगी।' वर्षों से पता नहीं क्या-क्या आशाएँ उमंगें, कल्पनाएँ मन में पाले हुए था वह। 'मैं मा

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
12 - स्नेह जलता है

'अच्छा तुम आ गये?' माता के इन शब्दों को आप चाहें तो आशीर्वाद कह सकते हैं; किंतु कोई उत्साह नहीं था इनके उच्चारण में। उसने अपनी पीठ की छोटी गठरी एक ओर रखकर माता के चरण छुये और तब थका हुआ एक ओर भूमि पर ही बैठ गया।

'माँ मुझे देखते ही दौड़ पड़ेगी। दोनों हाथों से पकड़कर हृदय से चिपका लेगी। वह रोयेगी और इतने दिनों तक न आने के लिये उलाहने देगी।' वर्षों से पता नहीं क्या-क्या आशाएँ उमंगें, कल्पनाएँ मन में पाले हुए था वह। 'मैं मा
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