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अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C4PLgIGhIbu/?igsh=MXY5NTA4ZDBlZjcyNQ== #सामवेद #संगीत #शास्त्र #हिंदी #राग #धुन #शास्त्रीयसंगीत #Instagram #Facebook #अदनासा

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

उक्थं च न शस्यमानं नागो रयिरा चिकेत । 
न गायत्रं गीयमानम् ॥

पद पाठ
उ꣣क्थ꣢म् । च꣣ । न꣢ । श꣣स्य꣡मा꣢नम् । न । अ꣡गोः꣢꣯ । अ । गोः꣣ । रयिः꣢ । आ । चि꣣केत । न꣢ । गा꣣यत्रम् । गी꣣य꣡मा꣢नम् ॥

श्रद्धा-रहित मनुष्य का उच्चारण किया गया भी स्तोत्र अनुच्चारित के समान होता है, दिया हुआ भी दान न दिये हुए के समान होता है और गाया हुआ भी सामगान न गाये हुए के समान होता है। इसलिए श्रद्धा के साथ ही सब शुभ कर्म सम्पादित करने चाहिएँ ॥

 The hymn that is spoken of a man without reverence is like the recited, the given is the same as the donated and the sung is like the sung not sung.  Therefore, with reverence, all auspicious actions should be performed.

( सामवेद मंत्र २२५ ) #सामवेद #वेद #मंत्र #श्रद्धा #भक्ति #भक्ति_में_शक्ति

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

इममू षु त्वमस्माकꣳ सनिं गायत्रं नव्याꣳसम् । 
अग्ने देवेषु प्र वोचः ॥

पद पाठ
इ꣣म꣢म् । ऊ꣣ । सु꣢ । त्वम् । अ꣣स्मा꣡क꣢म् । स꣣नि꣢म् । गा꣣यत्र꣢म् । न꣡व्यां꣢꣯सम् । अ꣡ग्ने꣢꣯ । दे꣣वे꣡षु꣢ । प्र । वो꣣चः ॥

हे (अग्ने) विद्वन् जगदीश्वर वा आचार्य ! (त्वम् उ) आप (इमम्) इस (अस्माकं सनिम्) हमें बहुत बोध देनेवाले (गायत्रम्) गायत्री आदि छन्दों से युक्त वेदज्ञान को वा गायत्र नामक साम को (देवेषु) दिव्य गुणोंवाले सत्पात्रों में (सु प्रवोचः) भली-भाँति उपदेश करते हो ॥

Hey (fire), scholar Jagadishwar or Acharya!  (Tvamu) You (Imam) in this (Asmakam Sanim) teach us Vedigana with verses that give us a lot of knowledge (Gayatram), Gayatri etc., and the Sama (Deveshu) in the satrapas with divine qualities (Suvarocha) very well.

( सामवेद मंत्र १४९७ ) #सामवेद #वेद #ज्ञान

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

स नो वेदो अमात्यमग्नी रक्षतु शन्तमः । उतास्मान्पात्वꣳहसः ॥

पद पाठ

सः । नः꣣ । वे꣡दः꣢꣯ । अ꣣मा꣡त्य꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । र꣣क्षतु । श꣡न्त꣢꣯मः । उ꣣त꣢ । अ꣣स्मा꣢न् । पा꣣तु । अ꣡ꣳह꣢꣯सः ॥

परमात्मा में विश्वास से दिव्य गुण रक्षित होते हैं और पाप नष्ट हो जाते हैं।।

 Belief in the divine preserves divine qualities and sins are destroyed.

( सामवेद मंत्र  १३८१ ) #सामवेद #मंत्र #वेद #परमात्मा

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

इन्द्र इन्नो महोनां दाता वाजानां नृतुः ।
 महाꣳ अभिज्ञ्वा यमत् ॥

जगदीश्वर ही सबका उत्पादक, पालक, संहारक और कर्मफलों का प्रदाता है ॥

Jagadishwar is the producer, foster, destroyer and the worker of all.

( सामवेद मंत्र 715 ) #सामवेद #वेद #जगदीश्वर #जगदीश

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः । 
त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥

पद पाठ
त्वा꣢म् । इत् । हि । ह꣡वा꣢꣯महे । सा꣣तौ꣢ । वा꣡ज꣢꣯स्य । का꣣र꣡वः꣢ । त्वाम् । वृ꣣त्रे꣡षु꣢ । इ꣣न्द्र । स꣡त्प꣢꣯तिम् । सत् । प꣣तिम् । न꣡रः꣢꣯ । त्वाम् । का꣡ष्ठा꣢꣯सु । अ꣡र्व꣢꣯तः ॥

हे (इन्द्र) विपत्ति के विदारक और सब सम्पत्तियों के दाता परमेश्वर व राजन् ! (कारवः) स्तुतिकर्ता, कर्मयोगी हम लोग (वाजस्य) बल की (सातौ) प्राप्ति के निमित्त (त्वाम् इत् हि) तुझे ही (हवामहे) पुकारते हैं। (नरः) पौरुष से युक्त हम (वृत्रेषु) पापों एवं शत्रुओं का आक्रमण होने पर (सत्पतिम्) सज्जनों के रक्षक (त्वाम्) तुझे पुकारते हैं। (अर्वतः) घोड़े आदि सेनांगों के अथवा आग्नेयास्त्रों और वैद्युतास्त्रों के (काष्ठासु) संग्रामों में भी त्वाम् (तुझे) पुकारते हैं ॥

O (Indra) God and Rajan, dissecting of calamity and giver of all wealth!  (Karvah) Stutiakarta, Karmayogi We call (Tvam Iti) you (Hawamhae) for the (Vajasya) attainment of the (Vajasya) force.  (Nara:) We (Vritreshu) with Pourush call upon you (Svatipam) the protector of gentlemen (Tvam) ​​when sins and enemies are attacked.  (Arguably) horses also call Tvam (thee) in the warriors of Senangas or in the (Kashtasu) battles of firearms and Vaidutastras.

( सामवेद २३४ ) #सामवेद #वेद #इन्द्र #राजा

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

मा नो हृणीथा अतिथिं वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एषः । 
यः सुहोता स्वध्वरः ॥

पद पाठ
मा꣢ । नः꣣ । हृणीथाः । अ꣡ति꣢꣯थिम् । व꣡सुः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । पु꣣रुप्रशस्तः꣢ । पु꣣रु । प्रशस्तः꣢ । ए꣣षः꣢ । यः । सु꣣हो꣡ता꣢ । सु꣣ । हो꣡ता꣢꣯ । स्व꣣ध्वरः꣢ । सु꣣ । अध्वरः꣢ ॥

जैसे उत्तम प्रकार पूजा किया गया परमेश्वर पूजा करनेवाले को सद्गुण आदि की सम्पत्ति देकर उसका कल्याण करता है, वैसे ही भली-भाँति सत्कार किया गया अतिथि आशीर्वाद, सदुपदेश आदि देकर गृहस्थ का उपकार करता है। इसलिए परमेश्वर की उपासना में और अतिथि के सत्कार में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए ॥

Just as a well-worshiped God gives welfare to the worshiper by giving him the property of virtue etc., in the same way, the well-behaved guest blesses the householder by giving blessings, sodupadas etc.  Therefore, never worship God in worship and hospitality.

( सामवेद मंत्र ११० ) #सामवेद #वेद #आतिथ्य #अतिथि #परमेश्वर #उपासना

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत् । 
चक्राण ओपशं दिवि ॥

पद पाठ
य꣣ज्ञः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣वर्धयत् । य꣢त् । भू꣡मि꣢म् । व्य꣡व꣢꣯र्तयत् । वि꣣ । अ꣡व꣢꣯र्तयत् । च꣣क्राणः꣢ । ओपश꣢म् । ओ꣣प । श꣢म् । दि꣣वि꣢ ॥

(यज्ञः) परोपकार के लिए किये जानेवाले महान् कर्म ने (इन्द्रम्) परमात्मा को अर्थात् उसकी महिमा को (अवर्धयत्) बढ़ाया हुआ है। परमात्मा के यज्ञ कर्म का एक दृष्टान्त यह है (यत्) कि (दिवि) द्युलोक में (ओपशम्) सूर्यरूप मुकुट को (चक्राणः) रचनेवाला वह परमात्मा (भूमिम्) भूमि को (व्यवर्तयत्) सूर्य के चारों ओर घुमा रहा है ॥

(Yajna:) The great deeds performed for benevolence have increased (Indram) the divine, that is, his glory (Avardhyat).  A parable of the Yajna Karma of the divine is (Yat) that (Divya) in the dulok (opsham) is the creation of the sun (crown) in the sun (Chakraanah).

( सामवेद मंत्र १२१ ) #सामवेद #वेद #सूर्य #चक्र #भूलोक

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

मा न स्तरभिमातये ।

 आप हमें अभिमान के वश में न होने दें । इतना न उठाओ कि पतन हो जाए , अर्थात् धन , बल व ज्ञान में से किसी का भी अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि धन के अभिमान से धन , बल के अभिमान से बल , और ज्ञान के अभिमान से ज्ञान नष्ट हो जाता है।

Do not let us be under pride.  Do not lift so much that no one should boast of wealth, strength and knowledge, because the pride of wealth destroys wealth, the pride of power forces strength, and the pride of knowledge destroys knowledge.

 ( सामवेद १४२२ ) #सामवेद #वेद #अभिमान #pride #ego

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमो रयिं दाः ॥

पद पाठ
व꣡सुः꣢꣯ । अ꣣ग्निः꣢ । व꣡सु꣢꣯श्रवाः । व꣡सु꣢꣯ । श्र꣣वाः । अ꣡च्छ꣢꣯ । न꣣क्षि । द्युम꣡त्त꣢मः । र꣣यि꣢म् । दाः꣣ ॥


(अग्निः) अग्रनायक परमात्मा, राजा वा विद्वान् आचार्य (वसुः) सद्गुणों का निवासक और (वसुश्रवाः) विद्यादि धनों से कीर्तिमान् है। हे परमात्मन् राजन् वा आचार्य ! आप (अच्छ) हमारे अभिमुख (नक्षि) प्राप्त होओ। (द्युमत्तमः) अत्यधिक तेजस्वी आप (रयिम्) विविध दिव्य और भौतिक धन (दाः) दो ॥

(Agni:) Agranayaka Parmatma, the king or scholar Acharya (Vasu:) is the abode of virtues and (Vasushrava) is known for his wealth.  O God, the divine teacher!  You (good) get our orientation (nakshi).  (Dumattam:) Highly stunning you (ryim) give diverse divine and material wealth (da)

( सामवेद ११०८ ) #सामवेद #वेद #आचार्य #राजा #परमात्मा #कृपा #शांति #सुख
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