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vedaant hansabat
अब मैं थक गया हूं ऐ हवा तू बुझा दे मुझे।। ©vedaant hansabat #SAD #वेदांत
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अधम अधर्म पर बनकर मौन दुष्कर्म जब मात्र निहारे जाते हैं, भीष्म,द्रोण ,या कर्ण सा दानी सब के सब मारे जाते हैं...!!! ©vedaant hansabat #महाभारत #वेदांत # #candle Aditi Agrawal Arzooo Ruchika Pooja Singh Poonam Singh
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। आविः सन्निहितं गुहाचरं नाम महत् पदमत्रैतत् समर्पितम्। एजत् प्राणन्निमिषच्च यदेतज्जानथ सदस-द्वरेण्यं परं विज्ञानाद्यद्वरिष्ठं प्रजानाम् ॥ स्वयं आविर्भूत परम तत्त्व यहाँ सन्निहित है, यह हृद्गुहा में विचरने वाला महान् पद है, इसमें ही यह सब समर्पित है जो गतिमान् है, प्राणवान् है तथा जो दृष्टिमान् है। यह जो यही महान् पद है, उसको ही 'सत्' तथा 'असत्' जानो, जो परम वरेण्य है, महत्तम एवं 'सर्वोच्च' (वरिष्ठ) है, तथा जो प्राणियों (प्रजाओं) के ज्ञान से परे है। Manifested, it is here set close within, moving in the secret heart, this is the mighty foundation and into it is consigned all that moves and breathes and sees. This that is that great foundation here, know, as the Is and Is not, the supremely desirable, greatest and the Most High, beyond the knowledge of creatures. ( मुंडकोपानिषद २.२.१ ) #मुंडकोपनिषद #उपनिषद #ज्ञान_गंगा #ज्ञान #वेदत्व #वेदांत #mundakopanishad #upnishads
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आजकल ऐसे वफ़ादार यार बदल जाते हैं, जैसे हर सुबह के अख़बार बदल जाते हैं ©vedaant hansabat #वेदांत #mukhota
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Rose बड़े अजीब लोग हैं इन पर तो तरस आता है। जो कांटे बो कर जमीं से गुलाब मांगते हैं। ©vedaant hansabat #वेदांत #Rose
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इसी से जान गया मैं कि बख़्त ढलने लगे मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे मैं दे रहा था सहारे तो इक हुजूम में था जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे ©vedaant hansabat #वेदांत #mukhota
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्मादृचः साम यजूंषि दीक्षा यज्ञाश्च सर्वे क्रतवो दक्षिणाश्च। संवत्सरश्च यजमानश्च लोकाः सोमो यत्र पवते यत्र सूर्यः ॥ उसी 'परमात्म-तत्त्व' से ऋग्वेद की, सामवेद तथा यजुर्वेद की ऋचाएँ तथा मन्त्रगान हैं, दीक्षाएँ, समस्त यज्ञ तथा योग-कर्म और दान-दक्षिणाएँ हैं, उसी से संवत्सर हैं, यजमान हैं, लोक-लोकान्तर हैं जिनमें चन्द्रमा तथा सूर्य प्रकाश फैलाते हैं। From Him are the hymns of the Rig Veda, the Sama and the Yajur, initiation, and all sacrifices and works of sacrifice, and dues given, the year and the giver of the sacrifice and the worlds, on which the moon shines and the sun. ( मुंडकोपनिषद २.१.६ ) #मुण्डकोपनिषद #mundakopanishad #उपनिषद् #upnishad #वेद #वेदांत #vedant #him
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्माच्च देवा बहुधा संप्रसूताः साध्या मनुष्याः पशवो वयांसि। प्राणापानौ व्रीहियवौ तपश्च श्रद्ध सत्यं ब्रह्मचर्यं विधिश्च ॥ तथा 'उसी' से अनेकानेक देवगण उत्पन्न हुए हैं, उसी से साधुगण, मनुष्य तथा पशु-पक्षी उत्पन्न हुए हैं, प्राण तथा अपान वायु, धान तथा जौ (अन्न), तप, श्रद्धा, सत्य, ब्रह्मचर्य तथा विधि-विधानों का प्रादुर्भाव 'उसी' से हुआ है। And from Him have issued many gods, and demigods and men and beasts and birds, the main breath and downward breath, and rice and barley, and askesis and faith and Truth, and chastity and rule of right practice. ( मुंडकोपनिषद २.१.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #परमेश्वर #वेदांत
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।। ॐ ।। अथेन्द्रमब्रुवन् मघवन्नेतद्विजानीहि किमेतद्यक्शमिति तथेति तदभ्यद्रवत् तस्मात्तिरोदधे ॥ तब उन्होंने इन्द्र से कहा, ''हे सम्पदाओं के स्वामी (मघवन्), इसके विषय में ज्ञान प्राप्त करो कि यह बलशाली यक्ष क्या है।'' उसने कहा, ''तथा इति।'' वह द्रुतगति से 'उसकी' ओर गया। 'वह' इन्द्र के सामने से तिरोहित हो गया। Then they said to Indra, “Master of plenitudes, get thou the knowledge, what is this mighty Daemon.” He said, “So be it.” He rushed upon That. That vanished from before him. केनोपनिषद तृतीय खण्ड मंत्र ११ #केनोपनिषद #उपनिषद #वेदांत #इन्द्र #यक्ष #परब्रह्म
वेदों की दिशा
।। ॐ ।। वि॒द्यां चावि॑द्यां च॒ यस्तद्वेदो॒भय॑ꣳ स॒ह। अवि॑द्यया मृ॒त्युं ती॒र्त्वा वि॒द्यया॒मृत॑मश्नुते ॥१४ ॥ पद पाठ वि॒द्याम्। च॒। अवि॑द्याम्। च॒। यः। तत्। वेद॑। उ॒भय॑म्। स॒ह ॥ अवि॑द्यया। मृ॒त्युम्। ती॒र्त्वा। वि॒द्यया॑। अ॒मृत॑म्। अ॒श्नु॒ते॒ ॥ (यः) जो विद्वान् (विद्याम्) पूर्वोक्त विद्या (च) और उसके सम्बन्धी साधन-उपसाधनों (अविद्याम्) पूर्व कही अविद्या (च) और इसके उपयोगी साधनसमूह को और (तत्) उस ध्यानगम्य मर्म (उभयम्) इन दोनों को (सह) साथ ही (वेद) जानता है, वह (अविद्यया) शरीरादि जड़ पदार्थ समूह से किये पुरुषार्थ से (मृत्युम्) मरणदुःख के भय को (तीर्त्वा) उल्लङ्घ कर (विद्यया) आत्मा और शुद्ध अन्तःकरण के संयोग में जो धर्म उससे उत्पन्न हुए यथार्थ दर्शनरूप विद्या से (अमृतम्) नाशरहित अपने स्वरूप वा परमात्मा को (अश्नुते) प्राप्त होता है ॥ (Ie) the scholar (vidyam) aforesaid lore (f) and its related resources (avidyam) formerly said avidya (f) and its useful means and (t) that meditative heart (ubhyam), both of them (co) together He (the Vedas) knows that (avidya) from the Purushartha of the Shariadi root matter group (death), the fear of deathliness (tirtha), (the student) in the combination of the soul and the pure conscience, the religion arising out of the real philosophy (Amritam) is perishable in its form and God attains (Ashunate). ईशोपनिषद मंत्र १४ #ईशोपनिषद #वेद #उपनिषद #यजुर्वेद #वेदांत #विद्या #अविद्या