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वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। हिरण्मये परे कोशे विरजं ब्रह्म निष्कलम्। तच्छुभ्रं ज्योतिषां ज्योतिस्तद् यदात्मविदो विदुः ॥ उस परम हिरण्मय कोश में निष्कलंक, निरवयव 'ब्रह्म' निवास करता है 'वह' 'शुभ्र-भास्वर' है, वह 'ज्योतियों' की 'ज्योति' है, 'वही' है जिसे आत्म-ज्ञानी जानते हैं। In a supreme golden sheath the Brahman lies, stainless, without parts. A Splendour is That, It is the Light of Lights, It is That which the self-knowers know. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #स्वयं #self #brahman
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः। क्शीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे ॥ हृदय की सारी ग्रथियाँ खुल जाती हैं, समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, तथा मनुष्य के कर्मों का क्षय हो जाता है, जब उस 'परतत्त्व' का दर्शन हो जाता है, जो एक साथ ही अपरा सत्ता एवं 'परम सत्ता' है। The knot of the heartstrings is rent, cut away are all doubts, and a man's works are spent and perish, when is seen That which is at once the being below and the Supreme. ( मुण्डकोपनिषद २.२.९ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #हृदय #मुक्ति #परतत्व #परमात्मा #ईश्वर
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। यः सर्वज्ञः सर्वविद् यस्यैष महिमा भुवि। दिव्ये ब्रह्मपुरे ह्येष व्योम्न्यात्मा प्रतिष्ठितः ॥ जो 'सर्वज्ञ' है 'सर्वविद्' है जिसकी पृथ्वी पर यह सब महिमा है यह 'आत्मा' ही है जो इस दिव्य ब्रह्मपुरी में, इस व्योम में प्रतिष्ठित है। The Omniscient, the All-wise, whose is this might and majesty upon the earth, is this self enthroned in the divine city of the Brahman, in his ethereal heaven. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #गुरु
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। आविः सन्निहितं गुहाचरं नाम महत् पदमत्रैतत् समर्पितम्। एजत् प्राणन्निमिषच्च यदेतज्जानथ सदस-द्वरेण्यं परं विज्ञानाद्यद्वरिष्ठं प्रजानाम् ॥ स्वयं आविर्भूत परम तत्त्व यहाँ सन्निहित है, यह हृद्गुहा में विचरने वाला महान् पद है, इसमें ही यह सब समर्पित है जो गतिमान् है, प्राणवान् है तथा जो दृष्टिमान् है। यह जो यही महान् पद है, उसको ही 'सत्' तथा 'असत्' जानो, जो परम वरेण्य है, महत्तम एवं 'सर्वोच्च' (वरिष्ठ) है, तथा जो प्राणियों (प्रजाओं) के ज्ञान से परे है। Manifested, it is here set close within, moving in the secret heart, this is the mighty foundation and into it is consigned all that moves and breathes and sees. This that is that great foundation here, know, as the Is and Is not, the supremely desirable, greatest and the Most High, beyond the knowledge of creatures. ( मुण्डकोपनिषद् २.२.१ ) #मुण्डकोपनिषद #mundakopanishad #उपनिषद #द्वितीय #अध्याय
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।। ओ३म् ।। पुरुष एवेदं विश्वं कर्म तपो ब्रह्म परामृतम्। एतद्यो वेद निहितं गुहायां सोऽविद्याग्रन्थिं विकिरतीह सोम्य ॥ यह 'पुरुष-तत्त्व' ही सम्पूर्ण विश्व है; 'वही' कर्म है, 'वही' तप है तथा 'वही' परम तथा अमृतरूप 'ब्रह्म' है। हे सौम्य, जो हृद्गुहा में निहित इस तत्त्व को जानता है वह यहीं, इसी लोक में अविद्या-ग्रन्थि का उच्छेदन कर देता है। The Spirit is all this universe; He is works and askesis and the Brahman, supreme and immortal. O fair son, he who knows this hidden in the secret heart, scatters even here in this world the knot of the Ignorance. ( मुंडकोपानिषद २.१.१० ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #पुरुष #तत्व
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।। ओ३म् ।। अतः समुद्रा गिरयश्च सर्वेऽस्मात् स्यन्दन्ते सिन्धवः सर्वरूपाः। अतश्च सर्वा ओषधयो रसाश्च येनैष भूतैस्तिष्ठते ह्यन्तरात्मा ॥ 'उसी' से सारे समुद्र तथा ये सारे पर्वत, ये सब प्रकार की नदियाँ 'उसी' से प्रवाहित होती हैं; 'उसी' से समस्त वनस्पतियां तथा रसादि हैं जिनकी रसानुभूति से यह अन्तरात्मा भौतिक तत्त्वों के साथ निवास करती है। From Him are the oceans and all these mountains and from Him flow rivers of all forms, and from Him are all plants, and sensible delight which makes the soul to abide with the material elements. ( मुंडकोपनिषद २.१.९ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #पर्वत #mountains #rivers #creation #creator #Almighty
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। सप्त प्राणाः प्रभवन्ति तस्मात् सप्तार्चिषः समिधः सप्त होमाः। सप्त इमे लोका येषु चरन्ति प्राणा गुहाशया निहिताः सप्त सप्त ॥ उसी' से सप्त प्राणों का जन्म हुआ है, सप्त ज्वालाएँ, विभिन्न समिधाएँ सप्त होम तथा ये सन्त लोक जिनमें प्राण हृदय-गुहा को अपना बना कर विचरण करते हैं, 'उसी' से उत्पन्न हैं; सभी सात-सात के समूहों में हैं। The seven breaths are born from Him and the seven lights and kinds of fuel and the seven oblations and these seven worlds in which move the lifebreaths set within with the secret heart for their dwellingplace, seven and seven. ( मुंडकोपानिषद २.१.८ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #मंत्र #सप्त
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।। ओ३म् ।। तस्माच्च देवा बहुधा संप्रसूताः साध्या मनुष्याः पशवो वयांसि। प्राणापानौ व्रीहियवौ तपश्च श्रद्ध सत्यं ब्रह्मचर्यं विधिश्च ॥ तथा 'उसी' से अनेकानेक देवगण उत्पन्न हुए हैं, उसी से साधुगण, मनुष्य तथा पशु-पक्षी उत्पन्न हुए हैं, प्राण तथा अपान वायु, धान तथा जौ (अन्न), तप, श्रद्धा, सत्य, ब्रह्मचर्य तथा विधि-विधानों का प्रादुर्भाव 'उसी' से हुआ है। And from Him have issued many gods, and demigods and men and beasts and birds, the main breath and downward breath, and rice and barley, and askesis and faith and Truth, and chastity and rule of right practice. ( मुंडकोपनिषद २.१.७ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #देव #उत्पत्ति #creation #god #sanatandharm #Hindu
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्मादृचः साम यजूंषि दीक्षा यज्ञाश्च सर्वे क्रतवो दक्षिणाश्च। संवत्सरश्च यजमानश्च लोकाः सोमो यत्र पवते यत्र सूर्यः ॥ उसी 'परमात्म-तत्त्व' से ऋग्वेद की, सामवेद तथा यजुर्वेद की ऋचाएँ तथा मन्त्रगान हैं, दीक्षाएँ, समस्त यज्ञ तथा योग-कर्म और दान-दक्षिणाएँ हैं, उसी से संवत्सर हैं, यजमान हैं, लोक-लोकान्तर हैं जिनमें चन्द्रमा तथा सूर्य प्रकाश फैलाते हैं। From Him are the hymns of the Rig Veda, the Sama and the Yajur, initiation, and all sacrifices and works of sacrifice, and dues given, the year and the giver of the sacrifice and the worlds, on which the moon shines and the sun. ( मुंडकोपनिषद २.१.६ ) #मुण्डकोपनिषद #mundakopanishad #उपनिषद् #upnishad #वेद #वेदांत #vedant #him
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। तस्मादग्निः समिधो यस्य सूर्यः सोमात् पर्जन्य ओषधयः पृथिव्याम्। पुमान् रेतः सिञ्चति योषितायां बह्वीः प्रजाः पुरुषात् संप्रसूताः ॥ उसी' से अग्नि उत्पन्न होती है जिसकी समिधा है 'सूर्य', 'सोम' से वर्षा तथा पृथ्वी पर औषधियाँ (वनस्पतियाँ) उत्पन्न होती हैं, पुरुष स्त्री में वीर्य-सिंचन करता हैː इस प्रकार नानाविध प्रज्ञा उस 'परमात्म-तत्त्व' से उद्धूत हैं। From Him is fire, of which the Sun is the fuel, then rain from the Soma, herbs upon the earth, and the male casts his seed into woman: thus are these many peoples born from the Spirit. ( मुंडकोपनिषद २.१.५ ) #मुण्डकोपनिषद #mundakopanishad #उपनिषद #start #सृष्टि #सृष्टि_सृजन #सृजन #beginning