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rock star

#गायों प्रेम

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दुगो के बीच बातचीत

शीर्षक :-गाँव और रोजगार 

का  करब शहर में    जाके,
ना शुद्ध पानी मिली ना हावा । 
पैसा   के  थाह  लाग जाई,
किनत   - किनत    दावा ।।

गाँव के प्यार शहर में ना मिली,
नाही मिली  उहवाँ हरियाली।
एगो कमरा में बन्द भइल भइल
उड़ जाई तोहरा होठ के लाली।।

गाँव के चबूतरा प  बैठ साँझली बेरा, 
हमनी सब  जवन करीना जा  बात।
शहर   मँ ई  बतकही खातिर
 तू  तरसब   दिन-रात ।।

एहि से कह तानी एगो  बात,
सुन  ध्यान लगा के,
गाँव में ही काहे न कुछ कइल जाव,
एक दोसरा के तरफ हाथ बढ़ा के।।
                                :-विवेकानंद उपाध्याय #गायों प्रेम

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 15 - राधे-श्याम का कुआँ 'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।' मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
15 - राधे-श्याम का कुआँ

'इस कुऐँ में राधेश्याम कहना होता है। राधेश्याम कहो।'

मेरे साथी ने मुझे प्रेरित करते हुए स्वयं कुएं में मुँह झुकाकर बड़ी लम्बी ध्वनि से कहा 'रा-धे-श्या-म।'

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 51 - आज का दिन अत्यन्त दुस्सह, बड़ा क्लेशदायी है आज का दिन। सबसे बुरी बात यह है कि यह प्रत्येक महीने आया ही रहता है। ये ऋषि-मुनि पता नहीं क्यों यह बात नहीं मान लेते कि सब बालकों का जन्म-नक्षत्र एक ही दिन मना लिया जाया करे। अनेक बालकों के जन्म-नक्षत्र एक साथ पड़ते हैं, तब कन्हाई का ही जन्म-नक्षत्र अकेला क्यों पड़ता है? इसका जन्म-नक्षत्र क्यों दूसरों के साथ नहीं पड़ जाया करता? जब जन्म-नक्षत्र पड़ेगा, जिसका भी पड़ेगा, उसे उस दिन पूजा में लगना पड़ेगा। पूजा करना तो अच्छा है; किन्तु उस

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।।श्री हरिः।।
51 - आज का दिन

अत्यन्त दुस्सह, बड़ा क्लेशदायी है आज का दिन। सबसे बुरी बात यह है कि यह प्रत्येक महीने आया ही रहता है। ये ऋषि-मुनि पता नहीं क्यों यह बात नहीं मान लेते कि सब बालकों का जन्म-नक्षत्र एक ही दिन मना लिया जाया करे। अनेक बालकों के जन्म-नक्षत्र एक साथ पड़ते हैं, तब कन्हाई का ही जन्म-नक्षत्र अकेला क्यों पड़ता है? इसका जन्म-नक्षत्र क्यों दूसरों के साथ नहीं पड़ जाया करता?

जब जन्म-नक्षत्र पड़ेगा, जिसका भी पड़ेगा, उसे उस दिन पूजा में लगना पड़ेगा। पूजा करना तो अच्छा है; किन्तु उस

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 50 - ये असुर अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।' नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज

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।।श्री हरिः।।
50 - ये असुर

अभी कल तेजस्वी रोष में आ गया था। वह दाऊ का हाथ पकडकर मचल पड़ा था - 'तू उठ और लकुट लेकर मेरे साथ चल! मैं सब असुरों को - सब राक्षसों को और उनके मामा कंस को भी मार दूंगा।'

नन्हे तेजस्वी को क्या पता कि कंस कौन है। वह राक्षसों का मामा है या स्वयं दाऊ का ही मामा है। कंस बुरा है; क्योंकि वह ब्रज में बार-बार घिनौने असुर भेजता है, इसलिए तेजस्वी उसे मार देना चाहता था। उसे कल
दाऊ ने समझा-बहलाकर खेल में लगा लिया। लेकिन तेजस्वी की बात देवप्रस्थ के मन में जम गयी लगती है। अब यह आज

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 48 - गौ-गणना आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है। सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

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।।श्री हरिः।।
48 - गौ-गणना

आज गोपाष्टमी है। ब्रज में आज गौ-पूजा होती है। श्रीब्रजराज आज कन्हाई की वर्षगांठ के समान ही भद्र की वर्षगाँठ पूरे उत्साह से मनाते हैं और यह सब होता है मध्यान्ह तक। सब हो चुका है। अब तो सूर्यास्त से पूर्व गौ-गणना होनी है।

सम्पूर्ण ब्रज आज सुसज्ज है। प्रत्येक वीथी और चतुरष्क सिञ्चित, उपलिप्त, नाना रंगों के मण्डलों से सुचित्रित है। स्थान-स्थान पर मुक्तालड़िओं से शोभित वितान तने हैं। स्थान-स्थान पर जलपूरित पूजित प्रदीप एवं आम्रपल्लव-सज्जित कलश रखे हैं। प्रत्येक द्वार कदली

Rahul Mishra

Best Quotes चौराहे पे एक मुस्लिम युवक को पीटा जा रहा था. पीटने वाले दर्जन भर लोग खुद को गौ-रक्षक बता रहे थे और पिटने वाले पे गौ-हत्या का आरोप था. भीड़ धार्मिक कट्टरता से चमचमता हुआ राष्ट्रवाद का चश्मा पहन तमाशा देख रही थी. धर्म आधारित घृणा भीड़ के अंदर भी इस तरह घर कर गयी थी कि वहाँ तमाशा देख रहा हर व्यक्ति यही मान रहा था कि गौ-हत्यारों का यही हश्र होना चाहिए.  
मार खाने वाला युवक हाथ ते थे और पिटने वाला युवक जिसको सब गौ-हत्यारा समझ रहे थे , एक “पशु-चिकत्सक” था जिसने बहुत सी गायों का इलाज भी किया था. अन्य जानवरों के साथ साथ उसने कई बार बहुत सी गायों को भी बचाया था. 
जब भीड़ ने राष्ट्रवाद का चश्मा उतारा तो उन्हें रक्षक और भक्षक का फ़र्क भी धुँधला धुँधला दिखाई देने लगा. जाते जाते उनके चश्मों से धार्मिक कजोड़े, जान की भीख माँगता हुआ अपनी सफाई में कुछ कह भी रहा था मगर उसका बोला हर शब्द मारने वालों की गालियों, नारों और "गाय हमारी माता"  के शोर में खो सा गया.  थोड़ी देर में पुलिस आई, पूछताछ की और सबका पहचान पत्र देखा. पूछताछ करने पे मालूम हुआ  कि पीटने वालों में से पाँच “गौ-रक्षक” किसी कसाई-खाने में काम करट्टरता की चमक भी कम होती गयी. वापस जाते हुए भीड़ अपने साथ एक सबक और एक सवाल घर ले गयी . सबक यह कि हर हिंदू गौ-रक्षक नहीं होता,हर मुस्लिम गौ-हत्यारा नहीं होता. सवाल ये कि "असली गौ-रक्षक कौन??"

#RIPAkbarKhan #StopMobLynching #MobLynching #AkbarKhan

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 32 - क्या किया जाय? सबका उपाय है, किन्तु इस कन्हाई का कोई उपाय नहीं। यह कब क्या करने लगेगा, कब क्या मान बेठेगा, कुछ ठिकाना नहीं है। अब इसका भी कोई उत्तर है कि यह किसी को कहने लगे - 'तू थक गया है,' अथवा किसी के साथ उलझ जाय - 'तूझे भूख लगी है।' कोई कितना भी कहे कि वह थका नहीं है या भूखा नहीं है, किन्तु यह श्याम किसी की सुनता भी है। इसे तो जो धुन चढ गयी बस चढ गयी। फिर यह अपनी करके ही मानने वाला है। सुकुमार कन्हाई शीघ्र थक जाता है। कितने नन्हे कोमल चरण हैं इसके और दौड़ता फुदकता फिरता

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।।श्री हरिः।।
32 - क्या किया जाय?

सबका उपाय है, किन्तु इस कन्हाई का कोई उपाय नहीं। यह कब क्या करने लगेगा, कब क्या मान बेठेगा, कुछ ठिकाना नहीं है। अब इसका भी कोई उत्तर है कि यह किसी को कहने लगे - 'तू थक गया है,' अथवा किसी के
साथ उलझ जाय - 'तूझे भूख लगी है।' कोई कितना भी कहे कि वह थका नहीं है या भूखा नहीं है, किन्तु यह श्याम किसी की सुनता भी है। इसे तो जो धुन चढ गयी बस चढ गयी। फिर यह अपनी करके ही मानने वाला है।

सुकुमार कन्हाई शीघ्र थक जाता है। कितने नन्हे कोमल चरण हैं इसके और दौड़ता फुदकता फिरता

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 25 - रूठने की बात कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी? गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

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|| श्री हरि: ||
25 - रूठने की बात

कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी?

गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 11 - गोपाल 'कनूँ तू देवता है?' 'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे। पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।

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|| श्री हरि: || 
11 - गोपाल
'कनूँ तू देवता है?'

'तू देवता है।' कुछ चिढे स्वर में इस प्रकार कन्हाई ने कहा जैसे कोई किसी को गाली के बदले गाली दे दे।

पता नहीं क्या बात है कि इस श्रीदाम से कन्हाई खटपट करता ही रहता है! इसी को चिढाने-खिझाने पर उतारु रहता है। इतने पर भी श्रीदाम रहेगा इसी के साथ। इससे लडेगा, झगड़ेगा, खीझेगा; किन्तु इस व्रजराजतनय का साथ तो नहीं छोडा जा सकता।

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 17 - शीत में इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले

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।।श्री हरिः।।
17 - शीत में

इस शीत ऋतु में गायों, वृषभों, बछड़े-बछड़ियों को सांयकाल गोपगण ऊनी झूल से ढक देते हैं।प्रातः गोचारण के लिए पशुओं को छोड़ने से पूर्व ये झूल उतार लिए जाते हैं।पशु कहाँ समझते हैं कि ये झूल शीत से रक्षा के लिए आवश्यक हैं। वे प्रातः झूल उतार लिए जाने पर प्रसन्न होते हैं। बछड़े-बछड़ियाँ ही नहीं, गायें और वृषभ तक शरीर झरझराते हैं और खुलते ही दौड़ना चाहते हैं। शीत निवारण का यह सहज उपाय प्रकृति ने उनकी बुद्धि में दिया है। दौड़ना न हो तो सब सटकर बैठेंगे, चलेंगे या खड़े होंगे। ले
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