Find the Best नाश्ता Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutखुशियों से हर कोई नाश्ता, नाश्ता बनाने की विधि, नाश्ता बनाने की रेसिपी, सुबह का नाश्ता कैसे बनाएं, तरह तरह का नाश्ता,
Shashank Rastogi
आईगी क्या फिर वो सुबह लेके खुशियों की चाह फिर वही दफ्तर की मुश्किलों की राह फिर सुबह से लेके शाम तक थकने वाली दाह सुबह सुबह फिर से एक चाय की प्याली परांठों और माखन से भरी थाली साथ में दिन के लिए टिफिन ना जाने कब वापस आएंगे ऑफिस के वो दिन #सुबह #चाय #नाश्ता #ऑफिस #परांठे एक सुबह
Anjul Srivastava
#OpenPoetry सूरज ऊपर आ गया और खुली नहीं हैं मेरी आंख मम्मी चिल्लाते हुये आयी और लगा दी मेरी डांट उठो जल्दी तैयार हो, क्या स्कूल जाना नहीं तुम्हें ? इतनी देर कर ली, क्या आज भी नहाना नहीं तुम्हें ? मुझे उठाकर मम्मी काम करने किचिन को चली गयी आंख से पहले मेरी नाक खाने की खुशबू से खुल गयी बगैर नहाये जल्दी से तैयार होकर मैं नाश्ता करने गया मम्मी ने डांटकर कहा आज भी तुमसे नहाया नहीं गया जल्दी-जल्दी पर भरपूर स्वाद लेकर किया मैंने नाश्ता मम्मी को बाय-बाय कहकर उठा लिया मैंने बस्ता गाड़ी आयी और हम उस में बैठ कर चल दिये स्कूल में हम खेलने-कूदने और पढ़ने चल दिये © आंजनेय अंजुल #बचपन_और_स्कूल #आंजनेय_अंजुल #OpenPoetryChallenge #OpenPoetry #NojotoNews #NojotoHindi # Pintu Ghosh Ravindra Kumar Bijendra Kumar Amit Kumar Yadav Guriya Kumari
#बचपन_और_स्कूल #आंजनेय_अंजुल #openpoetrychallenge #OpenPoetry News #nojotohindi # Pintu Ghosh Ravindra Kumar Bijendra Kumar Amit Kumar Yadav Guriya Kumari
read moreSweety Mamta
घुँघरु कई सालों पहले अलमारी में रखे घुंघरू आज फिर अलमारी से झांकने लगे थे। इसलिए तो मौका पाते ही ,दोनों पैरों में पहनने वाले घुंघरू बाहर निकल आये, शायद मेरा सामान निकालना एक बहाना था। उनको तो बाहर आने का की मौका मिल गया। मैंने भी हड़बड़ी से उन घुंघरुओं को उठा कर युही अपने बिस्तर पर रख दिया , और सरपट रसोई में दौड़ी। और भिंडी की सब्जी काटते हुये सोचने लगी, ज्यो आज वो घुंघरू दिखी गए हैं तो मैं,, आज अपना कत्थक जरूर करूंगी। तब तक रवि ने आवाज लगाई ,, "अरे विद्या जरा तौलिया तो रख दो,, मुझे नहा कर निकलना
घुँघरु कई सालों पहले अलमारी में रखे घुंघरू आज फिर अलमारी से झांकने लगे थे। इसलिए तो मौका पाते ही ,दोनों पैरों में पहनने वाले घुंघरू बाहर निकल आये, शायद मेरा सामान निकालना एक बहाना था। उनको तो बाहर आने का की मौका मिल गया। मैंने भी हड़बड़ी से उन घुंघरुओं को उठा कर युही अपने बिस्तर पर रख दिया , और सरपट रसोई में दौड़ी। और भिंडी की सब्जी काटते हुये सोचने लगी, ज्यो आज वो घुंघरू दिखी गए हैं तो मैं,, आज अपना कत्थक जरूर करूंगी। तब तक रवि ने आवाज लगाई ,, "अरे विद्या जरा तौलिया तो रख दो,, मुझे नहा कर निकलना
read moreWay With Words
एक दीवाना था। (पार्ट 5) मनहरलालजी को चौट लगने के बाद दुकान की सारी ज़िम्मेदारी अब अक्षत पर आ गई थी। वह भी मन लगाकर दुकान के काम में जुट गया था। काम जैसे उसके टूटे हुये दिल के लिये दवा का काम कर रहा था। एक दिन वह दुकान में बैठा था कि माँ का फ़ोन आ गया। “बेटा! अभी के अभी घर आ जाओ।“ सुन कर अक्षत घबरा गया। “माँ, सब कुछ ठीक तो है?” “हाँ, सब ठीक है। मीना को देखने लड़केवाले आने वाले है। तो तू जल्दी से आजा। और सुन थोड़ी मिठाई भी लेते आना।“ अक्षत जब घर पहुँचा तो लड़केवाले आ गये थे। सब बातें कर रहे थे। “यह हमारा बेटा अक्षत है
मनहरलालजी को चौट लगने के बाद दुकान की सारी ज़िम्मेदारी अब अक्षत पर आ गई थी। वह भी मन लगाकर दुकान के काम में जुट गया था। काम जैसे उसके टूटे हुये दिल के लिये दवा का काम कर रहा था। एक दिन वह दुकान में बैठा था कि माँ का फ़ोन आ गया। “बेटा! अभी के अभी घर आ जाओ।“ सुन कर अक्षत घबरा गया। “माँ, सब कुछ ठीक तो है?” “हाँ, सब ठीक है। मीना को देखने लड़केवाले आने वाले है। तो तू जल्दी से आजा। और सुन थोड़ी मिठाई भी लेते आना।“ अक्षत जब घर पहुँचा तो लड़केवाले आ गये थे। सब बातें कर रहे थे। “यह हमारा बेटा अक्षत है
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एक दीवाना था। (पार्ट 3) “बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?” रमा बहन ने पूछा। “ठीक से खाना भी नहीं खाया तुमने!” अक्षत क्या बोलता? दिल पर चोट लगी थी पर किसी को बता नहीं सकता था। बस इतना कह दिया की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। घर पहुँचते ही वह अपने कमरे में चला गया। अकेले में आँखों से आँसू निकल आये। उसने बत्ती बुज़ा दी। नींद तो आनेवाली नहीं थी बस अँधेरे में तनूजा के बारे में सोचता रहा। “भैया! उठ भी जाओ अब। काफी देर हो चुकी है। कितना सोओगे?” मीना ने दरवाज़ा खटखटाया। अक्षत ने दरवाज़ा नहीं खोला। मन नहीं था किसी से बात करने का।
“बड़े चुप चुप से हो, बेटा!?” रमा बहन ने पूछा। “ठीक से खाना भी नहीं खाया तुमने!” अक्षत क्या बोलता? दिल पर चोट लगी थी पर किसी को बता नहीं सकता था। बस इतना कह दिया की तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। घर पहुँचते ही वह अपने कमरे में चला गया। अकेले में आँखों से आँसू निकल आये। उसने बत्ती बुज़ा दी। नींद तो आनेवाली नहीं थी बस अँधेरे में तनूजा के बारे में सोचता रहा। “भैया! उठ भी जाओ अब। काफी देर हो चुकी है। कितना सोओगे?” मीना ने दरवाज़ा खटखटाया। अक्षत ने दरवाज़ा नहीं खोला। मन नहीं था किसी से बात करने का।
read moreRamandeep Kaur
"विज्ञान का सुख या प्रकृति का आनंद" लघु कथा "निशा चाय बन गयी क्या ?" राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। "नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है, बादल भी है और मिट्टी की महक भी है लगता है पानी बरसेगा इसलिए पकौड़ी बना रही हूँ। बना दूँ क्या? चाय में थोड़ी देर लगेगी।" निशा ने कहा। "नेकी और पूँछ पूँछ ये भी कोई पूँछने की बात है" और वह अखवार पढ़ने में मग्न हो गया। उधर निशा नाश्ता तैयार करने में लग गयी। तभी बादलों के गरजने की आवाज तेज हुई और पानी जोरों से बरसने लगा। जैसे ही बारिश की ठंडी हवा अखबार को धकेलती हुई
read moreParul Sharma
#Rain लघु कथा. ll बारिश ll "निशा चाय बन गयी क्या ?" राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। "नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है बादल भी है और मिट्टी की महक भी है लगता है पानी बरसेगा इसलिए पकौड़ी बना रही हूँ बना दूँ क्या चाय में थोड़ी देर लगेगी।" निशा ने कहा। "नेकी और पूँछ पूँछ ये भी कोई पूँछने की बात है" और वह अखवार पढ़ने में मग्न हो गया। उधर निशा नाश्ता तैयार करने में लग गयी। तभी बादलों के गरजने की आवाज तेज हुई और पानी जोरों से बरसने लगा। जैसे ही बारिश की ठंडी हवा अखबार को धकेलती हुई राकेश के चेहरे को छू
#rain लघु कथा. ll बारिश ll "निशा चाय बन गयी क्या ?" राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। "नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है बादल भी है और मिट्टी की महक भी है लगता है पानी बरसेगा इसलिए पकौड़ी बना रही हूँ बना दूँ क्या चाय में थोड़ी देर लगेगी।" निशा ने कहा। "नेकी और पूँछ पूँछ ये भी कोई पूँछने की बात है" और वह अखवार पढ़ने में मग्न हो गया। उधर निशा नाश्ता तैयार करने में लग गयी। तभी बादलों के गरजने की आवाज तेज हुई और पानी जोरों से बरसने लगा। जैसे ही बारिश की ठंडी हवा अखबार को धकेलती हुई राकेश के चेहरे को छू
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