Find the Best निकलते Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos about'जब हम दोनो #भाई एक #साथ #सड़क पर निकलते हे , तो लोग😦😱 #confused हो जाते है कि 👫दोस्ती 👨किस 👦से करे, एक 💪#Dadagiri करता है तो दूसरा 👦#Bhaigiri .......', किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल, किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंजिल, परसेंटेज कैसे निकलते है formula, परसेंटेज कैसे निकलते है,
Dilbag-Heart of Garden
नम आंखों से आंसू निकलते रूकते नहीं होठों पर हंसी कुछ पल के लिए भी रूकती नहीं बिन आंसू हम भरी महफिल रो दिये और लोग देखकर मेरा मुस्कराता चेहरा कहते हैं इसे किसी बात का ग़म नहीं ©Dilbag Creator #नम #आंखों #से #आंसू #निकलते #रूकते #नहीं #Dilbag #dilbagcreator Ambika Jha Vani gaTTubaba
OMG INDIA WORLD
#_राहों का #ख़्याल है #मुझे, #मंजिल का #हिसाब नहीं #रखते #_अल्फ़ाज़_दिल से #निकलते हैं, #हम कोई #किताब नहीं #रखते •~~ ©OMG INDIA WORLD #OMGINDIAWORLD #_राहों का #ख़्याल है #मुझे, #मंजिल का #हिसाब नहीं #रखते #_अल्फ़ाज़_दिल से #निकलते हैं, हम कोई #किताब नहीं रखते •~~
#OMGINDIAWORLD #_राहों का #ख़्याल है #मुझे, #मंजिल का #हिसाब नहीं #रखते #_अल्फ़ाज़_दिल से #निकलते हैं, हम कोई #किताब नहीं रखते •~~
read moreChandan Sharma
#Chandan Sharma.#कोरोना #बहुत ही स्वाभिमानी और #आत्मसम्मान से #भरा हुआ #वायरस है। #वो तब तक #आपके घर नहीं आएगा #जब तक आप उसे लेने खुद #बाहर नहीं #निकलते घर पर ही रहे .. #उसे लेने बाहर न जाए । #Chandan Sharma(Virat) ✔️✔️✔️🔥🔥🔥🔥🔥😊
Kuldeep KumarAUE
घर से निकलते वक्त जाती हो तुम मुँह छिपाकर जैसे किसी का खून किया हो या कोई तुम्हे छेड़ रहा हो फिर क्यों ऐसा करती हो क्यों जाती हो मुँह छिपाकर part-1 kuldeep kumarAUE #घर से #निकलते वक्त जाती हो तुम मुँह छिपाकर जैसे किसी....
Kabir Befikra
के वो छोड़ देगें, तो बिख़र जाएेंगें एेसा सोच्चते थे हम. ना थी खब्बर के चौराहें से ओर, बहुत रास्ते निकलते हैं. # Kabir #चौराहे से ओर #बहुत रास्ते #निकलते हैं by ME 😊😊 #Kabir
Raj studio barmer
शब्द तो ‘दिल’ से निकलते हैं; ‘दिमाग’ से तो ‘मतलब‘ निकलते हैं। एक बेहतरीन इंसान; अपनी जुबान से ही पहचाना जाता है; वर्ना अच्छी बातें तो; दीवारों पर भी लिखी होती हैं। सुप्रभात
Tilka Raman
बरसात के दिनों में अचानक आपने बरसाती मेंढक निकलते देखा होगा ठीक उसी प्रकार आज सिमडेगा जिला में भी चुनाव के समय बरसाती मेंढक निकलते देख रहे हैं जो बरसात खत्म होते ही अपने बिलों में अपने स्वार्थ पूर्ति में लग जाएंगे तो चले हर हर मोदी घर-घर रघुवर के साथ जय भारतीय जनता पार्टी
बरसात के दिनों में अचानक आपने बरसाती मेंढक निकलते देखा होगा ठीक उसी प्रकार आज सिमडेगा जिला में भी चुनाव के समय बरसाती मेंढक निकलते देख रहे हैं जो बरसात खत्म होते ही अपने बिलों में अपने स्वार्थ पूर्ति में लग जाएंगे तो चले हर हर मोदी घर-घर रघुवर के साथ जय भारतीय जनता पार्टी
read moredayal singh
जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है। हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है। वो सपने सुहाने ... छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन। तोतली व भोली भाषा बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं। जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया? जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है। वो पापा का साइकल पर घुमाना... हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां? साइकलिंग थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी। लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी। हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन! मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!! राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din
bachpan ke din
read moreAnkitmotivation06
शब्द “दिल” से निकलते हैं “दिमाग”से तो उसके मतलब निकलते हैं… -- Ankitmotivation06 #Nojoto #Nojotoapp #Shayari #Stories #Poem ✍️✍️✍️#शब्द #दिल #निकलते #दिमाग #उसके #मतलब #निकलते #है #शायरी #कविता #कहानी #कविताएं #जिंदगी #कामयाबी AS_writes अंजलि सिंह Nehu❤ Rana Hassan Shi
संजय श्रीवास्तव
अनुभूति कई बार वो खुशियां ! अंतस मे उतर जाती है जिन्हें हम सोचे ही नहीं घर से निकलते हुये ! अचानक मौसम का खुशगवार होना ! किसी मंदिर से शंख की मधुर आवाज कानों में उतरना ! मस्जिद से गूंजती अजान ! अनिर्वचनीय सुख से भर देती है ! घर के पीछे खड़े पेड़ो की झुरमट में परिंदो के चहचहाने की आवाज ! किसी डाल पर बैठी कोयल का राग ! संगीत का स्वर देती है ! अनकहे शब्दों से हर प्रश्न का उत्तर देती हैं! बारिशों से तरबतर छत की मुँडेर से निकलते पानी में छपाछप करता बचपन ! तमाम रंगीन स्वप्न लिए झूला झूलता यौवन ! कभी कभी वो काट लेना चिंकोटी ! मुझे तृप्त कर देती है! बस यही सुख पाकर तो जिंदा है हम ! भूल जाता हूँ कि जिंदगी मे है ढेर सारे गम ! संजय श्रीवास्तव अनुभूति
अनुभूति
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