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Anuradha T Gautam 6280
शादी के बाद औरत की #हालत देखकर उसके #मां_बाप की नहीं बल्कि उसके #पति_और_ससुराल की #औकात का पता चलता है जब देखो #मायके का ताना देते रहेंगे उसके मायके में #ऐसा_वैसा_कैसा बस मायके को लेकर #पीछे ही पड़ जाएंगे #चल_हट बड़े आए ससुराल वाले..🖊️
read moreकवि मनोज कुमार मंजू
जो गृहणी घर की हर बात मायके पहुँचाती है वो घर की खुशियों में ग्रहण का काम करती है... ©कवि मनोज कुमार मंजू #गृहणी #घर #मायके #खुशियों #ग्रहण #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू #moonnight
#गृहणी #घर #मायके #खुशियों #ग्रहण #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू #moonnight
read moreMini Mishra
कुछ खास नहीं बदली है ज़िन्दगी, शादी के बाद। पहले बाहर से घर आते थे, अब ससुराल या मायके जाते हैं।। #खास नहीं बदली है #ज़िन्दगी पहले बाहर से #घर आते थे,अब #ससुराल या #मायके जाते हैं।। #yourquotedidi #yourquotebaba
#खास नहीं बदली है #ज़िन्दगी पहले बाहर से #घर आते थे,अब #ससुराल या #मायके जाते हैं।। #yourquotedidi #yourquotebaba
read moreनितिन कुमार 'हरित'
मायके की चिट्ठी आज वो बड़ी खुश थी, मानो लंबे पतझड़ के बाद रिमझिम फुआर छाई थी, खुशी खुद ही उसके दरवाजे पर दस्तक देने आई थी । नीले कागज पर बड़ी बन ठन के उतरी थी, दरअसल ये कोई और नहीं, उसके मायके की चिट्ठी थी । और ये आज नहीं, दो रोज़ पहले आई थी,
read moreKhushbu Rawal Khushi
बेटी के दिल की बात दिल ही जाने मायके से ब्याह कर ससुराल चली में पंछी बन उड़ चली में मैया की जो थी लाडली में पिता की अब भी छोटी सी कली में कैसे भूल पायु,ये दिल ना जाने छोड़ के सारे ख्वाब ,लिए सपने नये छोड़ मां का आंगन, दूसरे आंगन में छोड़ मीठी यादें, कुछ नई सजाने कैसे भूल पाऊ,ये दिल ना माने बचपन से लेकर जवानी बिताई हर पल खुशी ही खुशी पाई कैसे मिटाऊं सब करके बिदाई कभी मायका याद ना आए,ये दिल ना माने दिल से दिल जहा हो मिले हर वक़्त सब संग चले इस दिल से अब कैसे निकले किसको ये समझाए ,ये दिल ना जाने आसान है कहना,तू हुई पराई अब तेरा घर ससुराल ,सासू तेरी माई नया संसार बसाना,सबने यही बात बताई कितना मुश्किल है,ये कोई ना जाने दिल से सांसों को अलग कर पाना मां बाप को को भूल जाना मायके की याद ना आना ना हो पाएगा मुझसे, मंज़ूर हो तो कोई अपनाना पंछी हूं आसमान कितना बड़ा क्यों ना , भूलती नहीं आशियाने को अपने ये कोई नहीं जाने ,सिर्फ दिल ही जाने।। मायके से ब्याह कर ससुराल चली में पंछी बन उड़ चली में मैया की जो थी लाडली में पिता की अब भी छोटी सी कली में कैसे भूल पायु,ये दिल ना जाने छोड़ के सारे ख्वाब ,लिए सपने नये छोड़ मां का आंगन, दूसरे आंगन में छोड़ मीठी यादें, कुछ नई सजाने
मायके से ब्याह कर ससुराल चली में पंछी बन उड़ चली में मैया की जो थी लाडली में पिता की अब भी छोटी सी कली में कैसे भूल पायु,ये दिल ना जाने छोड़ के सारे ख्वाब ,लिए सपने नये छोड़ मां का आंगन, दूसरे आंगन में छोड़ मीठी यादें, कुछ नई सजाने
read moreRoopanjali singh parmar
मायका और ससुराल (एक नज़रिया) (कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) रीना की शादी को चार साल हो गए थे, उसका एक बेटा भी था अभय, जो एक साल का था। पति हर्ष और सास करुणा उसे बहुत प्यार करते थे, और ससुर महेंद्र सिंह भी कभी उसके साथ ससुर की तरह पेश नहीं आये थे। रीना की एक नन्द भी थी 'दिव्या'। उनके बीच सहेलियों जैसा रिश्ता था। दिव्या यूँ तो रीना से बड़ी थी मगर उस पर ना हुकुम चलाती और ना कभी किसी बात पर रोक-टोक करती। दिव्या की शादी उसके भाई हर्ष की शादी के दो साल पहले ही हुई थी। परिवार में हँसी ख़ुशी का माहौल बना रहता था। एक दिन सास करुणा, पड़ोसन सरिता के साथ अपने बरामदे म
रीना की शादी को चार साल हो गए थे, उसका एक बेटा भी था अभय, जो एक साल का था। पति हर्ष और सास करुणा उसे बहुत प्यार करते थे, और ससुर महेंद्र सिंह भी कभी उसके साथ ससुर की तरह पेश नहीं आये थे। रीना की एक नन्द भी थी 'दिव्या'। उनके बीच सहेलियों जैसा रिश्ता था। दिव्या यूँ तो रीना से बड़ी थी मगर उस पर ना हुकुम चलाती और ना कभी किसी बात पर रोक-टोक करती। दिव्या की शादी उसके भाई हर्ष की शादी के दो साल पहले ही हुई थी। परिवार में हँसी ख़ुशी का माहौल बना रहता था। एक दिन सास करुणा, पड़ोसन सरिता के साथ अपने बरामदे म
read moreJVS RAWAT
*🙏🏻❤❤ हरि ऊँ ❤❤🙏🏻* *देवभूमि के 27 दिवसीय यात्रा के अध्ययन के बाद * 1- *लेख में यदि कोई उर्दू का शब्द किसी के संग्यान में आये तो अवश्य अवगत कीजिएगा, क्योंकि लेखक भारतीय है, व भारत की राजभाषा हिन्दी है* 2- *लेखों पर किसी की पसन्द या ना पसन्द की भ्रामकता अथवा आशा से सदैव दूर रहने का प्रयत्न भी रहता है, पाठक पढ़ सकें, आत्मसात कर सकें, नया भारत के निर्माण में सहयोग कर सकें, इतना ही पर्याप्त है* 3- *कितनी अवैग्यानिक बात है कि जिन नव युवतियों व नव युवकों के पास शिक्षा के ढेरों प्रमाण पत्र व दस्तावेज हैं- वे, ग्रामीण समाज व वातावरण में, वैग्यानिक दृष्टिहीन, अशिक्षित, अनपढ़, सामाजिकहींन, अविकसित मानसिकता, प्रगतिहीन रिश्ते-नातों की रूढ़ीवादी बेडि़यों में बुरे ढंग से बांधा गया है, वे क्यों बंधे हैं, क्या विवशता है, ऐसे कारण भी ढूंढ़ने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ !!! यदि कोई पूछे तो अवश्य बता सकूंगा, लेकिन यहां अभिव्यक्त नहीं कर सकूंगा। 4- यह दल, जिसका वर्तमान नाम - *माँ हम सदैव तेरी ऋणी* हैं, व्हट्सअप पर बनाया गया है, जिसमें सिर्फ गांव के ही 60 सदस्य तक हैं, जिसमें बहुएं, बेटियां, नवयुवक व हम जैसे नादान भी विद्यमान हैं* यह दल ग्राम- राजबगटी, पत्रालय- नन्दप्रयाग, जिला - चमोली, उत्तराखंड, (नया भारत) की शिक्षित बेटियों, शिक्षित बहुओं एवं नयी शिक्षित पीढ़ी को अर्पित है, अन्य पाठक इस लेख से प्रभावित होते हों, एवं आवश्यक लाभ लेना चाहें तो तहदिल से स्वीकार्य है, वे और दलों पर भी बांट सकते हैं, 5- *जैसा कि हमने अतीत में देखा, समझा व अनुभव किया है कि पहाडी़ नारी को भी विकसित समाजों की तरह समय के साथ कदम से कदम मिलाने की आवश्यकता है, लेकिन उन्हें वैग्यानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करना होगा, हर रूढिवादी बातों व परम्पराओं पर अपने ग्यानचक्षुओं से समझना होगा, हां, यदि कोई इन्टर नैट (आन्तरिक जाल) का अच्छा अनुभवी है, तो उनका स्वागत है, इन्टरनेट, आज की *मौलिक आवश्यकताओं* में से एक है* 6- *यदि कोई असामाजिक व अवसंवैधानिक साइटों पर हैं तो उन्हें वहीं से ग्यान प्राप्त हो सकेगा, सबकुछ देखकर घृणा आएगा, विछन आयेगी, आत्मग्लानि होगी, तब वे जो सकारात्मक रास्ता चुनेंगे, उस पर मजबूती से चलना सीख जाएंगे, क्योंकि जिसने बुराई को समझ लिया, देख लिया, उसके बाद ही वह उचित व आवश्यक मार्ग के महत्व को जान पाएगा, यह कहा जाए कि कल्याण के द्वार तब ही खुलेंगे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, लेकिन लेखक आन्तरिक जाल की गलत साइटों पर जाने की वकालत नहीं कर सकता, जिसने अपने लक्ष्य पहले ही निर्धारित कर लिए हैं, उन्हें कोई नहीं भटका सकता है, लेकिन गलत स्टैंड पर न जाए तो अच्छा है, व यदि चला गया तो, जानकारी हासिल करने तक की पढ़ाई अवश्य की जानी चाहिए, वहीं नहीं समा जाना है, वहीं नहीं चिपके रहना है, क्योंकि जीवन यात्रा में सम्मानजनक वातावरण अनुभव करने के लिए बहुत कुछ जानने-सीखने की आवश्यकता होती है* 7- *वैसे आन्तरिक जाल (इन्टरनेट) पर विलक्षण ग्यान का भण्डार है वशर्ते हमें इसका सही उपयोग करना आता हो, यदि हमारे मन में कोई जिग्यासा, बात या भ्रम है, तो तत्काल गूगल (Google) पर सर्च (ढू़ंढ़) कर उचित जानकारी लेते हुए, अपना ग्यान बढा़ सकते हैं, भ्रम या सन्देह को तत्काल दूर कर सकते हैं, अपने साथ वालों या बच्चों का उचित मार्ग-दर्शन कर सकते हैं* 8- *आप अच्छी व प्रखर बुद्धि व समझ के होते हुए भी यदि धन के अभाव, पिछड़े सामाजिक परिवेश या पिछड़ी धारणाओं, अवैग्यानिक मान्यताओं से घिरे समाज में जन्म लेने के कारण जो इच्छाएं, चाहत एवं महत्वकाक्षाएं पूर्ण न कर सके थे, उन्हें अपने बच्चों के माध्यम से तैयार कर, उनके रुप में, वही सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं, वशर्तें उन पर धन लगाना होगा, यदि आप छोटी आय के चलते, मिट्टी का ढेर (जमीन), पत्थरों का ढेर (मकान-दुकान) के चक्कर में उलझ गये तो आपके कल्पनाओं व महत्वकाक्षाओं की भैंस पानी में भी जा सकती है, आपकी कल्पनाएं, गौते लगाती नजर आ सकती है* 9- *इसलिये अपनी प्रारम्भिक आवश्यकता, मिट्टी का ढेर (जमीन), ईंट-पत्थररों का ढे़र (मकान-दुकान) न बनाए, इन पर अनमोल व कीमती धन व्यय न करें। आपकी प्रथम आवश्यकता, बच्चों के उचित संस्कार, शिक्षा, संगत व समाज होनी चाहिए, डीएनए को सुधार सकना आपके हाथों में नहीं है, इसके लिए एक सफल आध्यात्मिक गुरु की शरण में जाना होगा, बताई गयी बातों को आत्मसात करना होगा, ध्यान साधना के माध्यम से अन्तर में जमे हुए, जन्म-जन्मों के करकट व कूड़े को नष्ट करना होगा, बच्चों में बचपन से ही आध्यात्मिक संस्कार भरने होंगे* वैग्यानिक दृष्टिकोण के बीज बोने होंगे, तब जाकर आगे की पीढि़यों में कूडा़-कबाड़ जमा नहीं होगा, अन्यथा परमांत्मा के नाम पर, पौंगा-पण्डितों के कहने पर, 3 वर्ष, 5 वर्ष, 7 वर्ष, 12 वर्ष में कुछ पशुओं, जीवों व बकरियाँ की हत्या कर इतराते रहोगे, हाथ कुछ नहीं लगेगा, ऐसे दुष्कर्म कृत्य से अथवा करवाने से पीढि़यों के सुकर्मों में भी पाप व कुकर्मों का कुनमोल भण्डार भरते रहोगे* 10- *जिसके पास जिग्यासा है, मेहनत करने का मादा है, कुछ कर सकने की उर्जा सक्रिय होती है, ग्यान की प्यास है, कुछ कर गुजरने की मन्शा है, तो, आपको कोई नहीं रोक सकता है, जीवन यापन करने व सफलता हासिल करने के लिए आपको किसी पहचान, पद अथवा दिखावे की कभी आवश्यकता नहीं पड़ती है, यह भी आवश्यक नहीं कि उनके पास कोई सरकारी पद हो, जादा धन, वेतन या पैंशन पाता हो, सफलता का सम्बन्ध एक विचार, एक जिग्यासा, एक कल्पना व उस पर कड़ी मेहनत करने से उत्पन्न होगी* 11- *मेहनत, सच्ची लगन, प्रत्येक से सहानुभूति पूर्वक व्यवहार, हृदय में विनम्रता, सत्य का आचरण, स्वयं का सम्मान, आत्मीय सम्मान, उत्पन्न करना होगा, वशर्तें कोई पूर्वाग्रहों से पीड़ित न हो, रुपयावाद या भौतिकवाद से पीड़ित न हो, जो स्वयं को सम्मान देता हो वह दूसरों को सम्मान क्यों नहीं देगा, लेकिन स्वाभिमान व अंहकार में अन्तर करना होगा, यदि किसी को लगता है कि वह बहुत कुछ जानता है, तो वह गिरने की कगार पर है, ऐसा व्यक्ति कभी आगे नहीं बढ़ पाता है, क्योंकि ऐसा समझना आत्मग्लानि का कारण है, कुकर्मों की अधिकता से, बदनामी से, असफलता से घिरा व्यक्ति अहंकार का शिकार हो जाता है, यह समझ लें कि- धन, पद, भौतिक सुख-सुविधाएं ये सभी जीवन यापन के साधन मात्र हैं, इनकी उपलब्धता या अधिकता कभी भी यह सिद्ध नहीं करती कि आप प्रखर बुद्धि के हैं, क्योंकि ग्यान का सम्बन्ध भौतिक वासनाओं से नहीं है, वासनापूर्ति, इन्द्रियों की शिथिलता तक समाप्त न होने वाली अपूर्ण तृप्ति से है, सच्चे आनन्द व आत्मीय सुख से इनका कोई मेल नहीं है* 12- *यदि जीवन में सुखी रहना चाहते हैं व जीवन यात्रा का आनन्द लेना चाहते हैं तो, अपने हृदय को सरल, निष्कपट, निश्छल, स्वच्छ व पवित्र रखना होगा, विनम्र व कृतग्य बनने का निरन्तर प्रयत्न करना होगा, बुरी संगत से मस्तिष्क को दूर रखना होगा, अन्यथा भौतिकवाद से परिपूर्ण होने पर भी कभी आत्मसुख व सच्ची अनुभूति नहीं हो सकेगी, हमें अपने भीतर से उत्पन्न सकारात्मक उर्जा से सक्रिय रहना होगा, स्वयं की समझ से प्रेरित होते होना होगा, संवैधानिक लाभ व ग्यान के कार्यों हेतु स्वयं को उकसाना होगा* 13- *दूसरे हमारे बारे में क्या राय रखते हैं या हमारे बारे में क्या सोचते या समझते हैं, क्या बदनामी देते हैं, ऐसी बातों पर कभी भी ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, नाहीं किसी से भिड़ने की आवश्यकता है, बस स्वयं को उन्नति के पथ पर धकेलते रहना है, समय लग सकता है, गिरने से बचना होगा, यदि आप असफल लोगों या नादानों की बातों पर अपना बुरा कर बैठे तो आप आगे नहीं चल पाएंगे, वे गिरे हुए लोग ऐसा ही चाहते हैं कि अमुक व्यक्ति कब हमसे उलझे, व कब इसे अपने लिए खोदे हुए खड्डे में खींच चलें, इसलिये स्वयं भी बचें व आसनों को भी बचाते चलें, समाज को भी बचाएं, आगे एक सुनहरा भविष्य आपकी प्रतीक्षा कर रहा है, दुष्ट भावनाएं हमारे अन्दर कभी भी सच्चा सुख व आनन्द उत्पन्न नहीं होने देती* 14- *आज के रुपयावाद व भौतिकवाद युग में, हर मानव अपने को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति अनुभव कर रहा है जो अच्छी बात है व होनी भी चाहिए, लेकिन यह समझ कि दूसरे उससे आगे न बढ़ें, उससे अधिक समझदार न हों, ऐसी भावना व समझ जिसके अन्दर भी उत्पन्न होगी वह दूसरों को कम समझने या आंकने की बीमारी होगी, यह एक निश्चित व कड़वा सत्य है कि उस पिण्ड, शारीरिक ढांचे, मन्दबुद्धि को, सबसे अधिक सीखने व सुधार करने की आवश्यकता होगी* 15- *हर योग्य अभिभावक, जिसे यह पता नहीं कि ये इन्टरनेट, व्हट्सअप, फेसबुक या अन्य आन्तरिक जाल सामग्री क्या है, या इसका क्या उपयोग है, तो वह अपनी आज की वैग्यानिक सोच वाली पीढ़ी का मार्ग दर्शन नहीं कर सकता है, यदि वह यह सब जानता है तो वह किसी भी स्कूल, कालेज, या आजकल के प्रचलन जैसे- प्राइवेट, अंग्रेजी अथवा कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाली पीढ़ी को भले-बुरे का ग्यान बता सकता है, उसकी गतिविधियों पर नजर रख सकता है, समय रहते उन्हें उचित मार्गदर्शन कर सकता है कि उसके लिए क्या अच्छा या बुरा है*। 16- *एक महत्वपूर्ण बात यह है कि, दल (group) पर दूसरे क्या सामग्री प्रेषित करते या भेजते हैं अथवा क्यों भेजते हैं, अथवा क्यों लिखते हैं, हम सभी को अपनी विकसित समझ के अनुसार समझना व आंकलन करना होता है, यदि आपको अच्छा लगता है तो अवश्य अपनाए, यदि नहीं तो नकार दें, बस किसी से भिड़ने की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि अपनी-अपनी समझ का एक दायरा होता है, कुछ लोग एक निश्चित दायरे से ऊपर नहीं सोच, समझ या देख पाते हैं* 17- *सरल हृदयी बनकर, सकारात्मक दृष्टि से हर बात के मौलिक तथ्य सामने आ जाते हैं, ऐसा करने से हम आवश्यक दृष्टि प्राप्त कर लेते हैं, हमें उचित ग्यान प्राप्त हो सकता है, यदि हमारा अपरिपक्व मस्तिष्क किसी बात को खराब समझ रहा है तो इसमें हमारी समझ में भी कमी हो सकती है, क्योंकि हम उसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हमने अपने मन में उस बात के नकारात्मक तथ्य संजोए हुए हैं, हमारे पास उस सम्बन्ध में गलत अनुभव हो सकते हैं, जिस कारण हमें कुछ गलत प्रतीत होता है, नैट पर बंटने वाली सामग्री या चीजों में सिर्फ ग्यान व संदेश छुपा होता है, हमारी समझ, दृष्टिकोण व अनुभव उसे खराब या अच्छा समझ सकती है, जबकि कोई भी ग्यान अच्छा या खराब नहीं होता है, ग्यान सिर्फ ग्यान होता है, हमारी समझ या दृष्टिकोण में खराबी हो सकती है*। 18- *हम परम पिता परमात्मा व जगत जननी माँ से विनम्रता पूर्वक प्रार्थना करते हैं कि हमारे गांव की बेटियां, बहुएं व बालक खूब शिक्षित हों, ग्यानवान हों, बाल बच्चे होने के बाद भी पढ़ना बन्द ना करें, अपने रुचि के बिषयों पर पीएचडी कर सकें, डाक्टर की उपाधि लें, अपने शौधों से समाज व हम सभी को लाभ पहुंचाएं, लेकिन प्रमाण पत्रों व ग्यान के बीच के अन्तर को भी समझ सकें, यह समझना भी आवश्यक है कि दस्तावेज हासिल करने से कुछ नहीं होने वाला है, प्रमाण पत्रों का महत्व सिर्फ प्रवेश तक मान्य होता है, उसके बाद इनका महत्व राख के बराबर है, ध्यान रहे, प्रमाण पत्रों को नष्ट किया जा सकता है, लेकिन ग्यान को कभी नहीं, ग्यान ही प्रकाश है, परमाँत्माँ है, मौक्ष का आधार है, संसार पर विजय पाना है तो स्वयं को हराना सीखना होगा, स्वयं से जीत जाने पर ही संसार नतमस्तक होना चाहेगा* 19- *सदस्यों से विशेष* हां, दल पर कुछ भी सामग्री प्रेषित करने वाले महानुभावों से विनम्रता व प्रेमपूर्वक निवेदन है कि वे जिन संदेशों को स्वयं न पढ़ते हैं, न समझ सकते हों, उन्हें *इस दल पर प्रेषित करने में संकोच अवश्य कीजिएगा, कई बार समझदार समझे जाने वाले सज्जनों ने गहरी गलतियां की हैं, या तो उन्होंने स्वयं नहीं पढा़ या समझा, या उनकी समझ के दायरे की पकड़ में ऐसे बिन्दु न आ सके, जिसके कारण पीठ पीछे उनकी बुद्धि पर खूब चर्चा हुई, बात का बतंगड़ बना, स्वस्थ रहें, मस्त रहें, उचित समझ विकसित कीजिएगा, बुराई बुरी हो सकती हैं, लेकिन हम यदि उन्नति करने के इच्छुक हैं, तो हमें बुरा न बनकर, अपना नजरिया बदलना ही होगा, तभी समय को पकड़ कर उसके साथ चला जा सकता है, अन्यथा समय ने कई भंयकरों को विलुप्त होते देखा है। 20- *हे माँ, अपनी कोशिस रहती है कि सभी आपस में जुड़े रहें, प्रेम पूर्वक रहें, लेकिन हमारे पास ऐसी कोई घुट्टी भी नहीं कि जो आपको पिला दी जाए व आप दल (ग्रुप) पर नियमित बने रहें, हम किसी को कौन सी घुट्टी पिलाएं, ताकि लोग प्रत्येक को उसी रुप में स्वीकार कर सकें, जिस रुप में वह है, अनपढो़ वाली समझ व रास्ते पर चलने से आप शिक्षित व संस्कारी कैसे समझे जा सकते हैं* 21- *हे माँ, यदि हम अपने लोगों को (वैश्विक मानव समाज) अपने गांव, क्षेत्र, देश व विश्व वासियों के साथ ही एक साथ, मिलकर नहीं रह सकते हैं, तो निश्चित ही हमें बहुत कुछ जानने, सीखने व समझने की आवश्यकता है, हमें स्वयं में बहुत बड़े बदलाव लाने की आवश्यकता है, कुछ खराबी लोगों में नहीं, हमारी समझ में भी हो सकती है, हमारे संस्कारों में हो सकती है, हमारे ग्यान में हो सकती है, हमारे समझने व अनुभव करने के ढंग में हो सकती है, हमारे सामाजिक, जीवन, शिक्षा, ग्यान, एवं हमारे अभिभावकों द्वारा न सीखे होने के ढंग में हो सकती है, 22- *निम्नतर समाजों में कभी भी यह नहीं सिखाया जाता कि अमुक व्यक्ति अच्छा है, उससे लाभ लेना सीख लो, यह नहीं सिखाया जाता उसमें ये या ऐसी अच्छाई हैं, इसलिये वह सफल हुआ है, सफल व्यक्ति की सारी कमियां या खामियाँ बाहर करने लगेंगे, सिर्फ हम ही अच्छे हैं यह संस्कार व सिखलाई दी जाती है, हमारे आज के अजीब वर्तमान का कारण ऐसी ही बातें हैं, अविकसित समाज ऐसी ही चर्चा करते पाए जाते हैं, ऐसा सुनने वाले भी अपने अन्दर ऐसी बात संरछित कर अपना भविष्य भी बहुत उच्चता तक नहीं ले जा पाते, क्योंकि हम किसी को समझने का प्रयास ही नहीं करते हैं, व्यक्तित्व निर्माण के महत्व को हम समझते ही नहीं हैं, हमें सिखाया ही नहीं गया है, हम समझना ही नहीं चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने भी पशु प्रवृति में ही जीवन यापन कर लिया है, और हम भी अपने बच्चों के लिए बहुत प्रयासरत नहीं हैं, निम्नता, हमारे चिन्तन, मंथन, व बातों को समझने के ढंग में है, क्योंकि हमारा समाज अभी बहुत पिछड़ा हुआ है, हमें दुनिया के विकसित वंशजों व समाजों के साथ चलने में अभी बहुत बड़ी तपस्या की आवश्यकता है।* 23- *चाहे हमने कितना भी भौतिक विकास कर लिया हो, हम कितने भी आधुनिक सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण हो गये हों, इनका महत्व तब तक रिक्त से भी निम्न्वत है, जब तक कि हमने आत्मिक व बौद्धिक विकास नहीं कर लिया, जब तक हमने सभी को उसी रुप में स्वीकार करना न सीख लिया, यदि हमने स्वयं को सुधारना सीख लिया तो अवश्य ही एक स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु प्रयास प्रारम्भ हो चुका होगा, पहले स्वयं, फिर परिवार, फिर समाज की कडी़-ऋंखला हमारे अन्दर, इसी जन्म में, जीते जी, स्वर्ग का निर्माण किया जा सकता है, तभी एक दिन हम मोक्ष के लिए मार्ग तैयार कर सकेंगे, जन्म-जन्मान्तरों से पीढ़ी दर पीढ़ी, हमारे अन्दर जो कूडा़-कबाड़, वैचारिक गन्दगी भरी पडी़ है, उसे हटाने हेतु नियमित प्रयत्न करना होगा, तब जाकर कहीं मानसिक व बौद्धिक उच्चता व उन्नति की और बढ़ सकेंगे, जहां ग्यान होगा वहां विनम्रता जागेगी, उसका प्रयोग व प्रभाव दिखेगा, विकास की अवधारणा जागेगी, अग्यान्ता का उन्मूलन होगा, लेकिन जहां अहंकार जागेगा वहां विनाश ही होगा, विनाश चाहे शरीर का हो, बुद्धि का हो, भावनाओं का हो, संवेदनाओं का हो, अउन्नति तो का कष्ट तो मस्तिष्क को ही होगा। 24- *हे माँ, सत्संग का अर्थ भजन-कृतन, हो-हल्ला नहीं है, इसका अर्थ अपने दिल, दिमाग, हृदय, मस्तिष्क, आचरण को सत्य के साथ स्थापित करना होता है, यहीं से शान्ति पथ व आत्मिक सुख के द्वार खुलते हैं, कई लोग यह समझते हैं कि उन्होंने परमात्मा की प्रतिमा या कागजी छवि, फोटो के आगे धूप- अगरबत्ती जलाकर, घन्डोली हिलाकर, शंख पे फूंक मारकर, थोड़ी देर आंखें बन्द कर *माँ जगत जननी* व *हरि ऊँ* पर कितना बड़ा अहसान कर लिया है, इन्हें खरीद लिया है, जबकि ये सब क्रियाएं प्रारम्भिक चरण हैं, आध्यात्मिक मार्ग की प्रथम सीढ़ी हैं, अभिभावकों द्वारा बचपन में दिये जाने वाले संस्कार हैं। क्या पूरी उम्र ऐसा ही करते रहेंगें, क्या इसमें आगे भी कुछ किया जाना होगा, तो सुनिए, जी हां, आगे ही सब कुछ है, पीछे सिर्फ बुनियाद होती है*। 25- *हे माँ, यदि किसी को ऐसा प्रतीत होता है कि मैं हमेशा ही पाप मार्ग पर चलूं व मेरे मरने के बाद गरुड़ पुराण करने, अमुक या निश्चित व्यापारिक केन्द्रों या स्थानों पर पिण्ड भरने, कथा-पाठ करने, करवाने से मुक्ति या मोक्ष मिल जाएगा, तो वे अपने जन्म-जात संस्कारों से ये बात जड़ से निकाल दें, अध्यात्मिक व्यवस्था में ऐसी कोई विद्या या विग्यान नहीं है कि आत्मां या प्राण को किसी युद्धक, लड़ाकू मिसाइल, राकेट की तरह जब चाहा, मनचाहे ग्रह या लोक में प्रक्षेपित कर लिया जाए, नहीं !!! यह सब एक षड़यंत्र का हिस्सा है, व्यापार का हिस्सा है, अग्यान्ता में रखने का गहरा षड़यंत्र है, जिस दिन आपका तीसरा नेत्र खुलेगा, उस दिन पश्चयताप के लिए भी समय न होगा* 26- *हे माँ, यदि कोई पाठक इन्हें पढ़ता है व उसे ऐसा प्रतीत होता है कि ये बातें उसे चुभ रही हैं, दिल को किसी भी रुप में प्रभावित कर रही हैं, तो निश्चित ही इन बातों के साथ सत्य में स्थिर होकर अपने अन्तर की आवाज से मिलान करें, न कि जैसा बामण जी ने बताया। माँ, ऐसा नहीं कहती कि धर्म-कर्म के कार्य गलत हैं, अवश्य किए जाने चाहिए, लेकिन इन सबसे पहले हमारा आचरण ठीक कराने की आवश्यकता है, सबसे प्रेम करने की आवश्यकता है, मिल-जुल कर रहने की आवश्यकता है, भाई-बन्धुओं की त्रुटियों को नजर अन्दाज करने की आवश्यकता है, सभी को प्रेमपूर्वक सुधारने की आवश्यकता है*। 27- *हे मां, बहू के रुप में नारियां दूसरे घरों से आईं होती हैं, वे अपने मायके के लिए बहुत स्वार्थी हो जाती हैं, ससुराल में एक ही दिन बज्रपात हो जाए वे बिल्कुल भी विचलित नहीं हो सकती हैं, लेकिन मायके में बिल्ला भी बीमार हो जाए तो यह घटना संसार की सबसे बड़ी घटना समझती है, वे भाइयों में फूट डाल सकती हैं, लेकिन उन नामर्दों को समझना होगा कि खून का रिश्ता व धन खर्च कर बनाये गये रिश्ते में किसको महत्व दिया जाना चाहिए, जो इन बातों का पालन कर सकता है तो उसकी पीढि़यां इससे लाभान्वित अवश्य होंगी, अन्यथा पशु व मानव में सिर्फ शारीरिक बनावट का अन्तर है, सामाजिकता व मानवीय गुण एकत्रित करने के बाद ही कोई पशु इस स्तर से ऊपर उठता है, जागृत होकर सामाजिक पशु याने मानव की श्रेणी में आंका जाने लगता है।* *!!! दया रहे !!!* *धन्यवाद* jaiveersinghr52@gmail.com jvs9366@gmail.com *🙏🏻❤❤ जै माँ ❤❤🙏🏻* ।। शून्य से अनन्त की ओर ।।
।। शून्य से अनन्त की ओर ।।
read moreAnjali Bhanushali
ऐक ऐहसास बेटी का शादी होने पर लड़की अपना शरीर तो साथ ले जाती है मगर रूह मायके में ही अपने कमरे की अलमारी में छोड़ जाती है। सोचकर कि ये तो मेरा घर है। पग फेरे पर आती है तो सब कुछ पहले जैसा होता है। वही घर वही आंगन वही सीढ़ियां और वही अलमारी और उसका कमरा सब कुछ वैसा ही। अलमारी में बैठी रूह को तस्सली देती है देख तू है न मजे में। माँ-बाबा के पास भाई के प्यार से बंधी और बहन के दुलार में इस कमरे में आराम फरमाती हुई। दूसरी बार मायके आती है। हर कोई दुलारता है। चाय के बाद अपने कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी रूह अलम
शादी होने पर लड़की अपना शरीर तो साथ ले जाती है मगर रूह मायके में ही अपने कमरे की अलमारी में छोड़ जाती है। सोचकर कि ये तो मेरा घर है। पग फेरे पर आती है तो सब कुछ पहले जैसा होता है। वही घर वही आंगन वही सीढ़ियां और वही अलमारी और उसका कमरा सब कुछ वैसा ही। अलमारी में बैठी रूह को तस्सली देती है देख तू है न मजे में। माँ-बाबा के पास भाई के प्यार से बंधी और बहन के दुलार में इस कमरे में आराम फरमाती हुई। दूसरी बार मायके आती है। हर कोई दुलारता है। चाय के बाद अपने कमरे में जाती है तो देखती है कि उसकी रूह अलम
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