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Ghumnam Gautam

Vikash Kamboj

#शाप

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Shankar Kamble

शापित यक्ष...

शामलवर्णी अस्तर ओढून
गूढ नभाचे तेज लोपले
झरोक्यातूनी डोकावत का
अनोळखी मी बिंब गोपले..

उगां वाटते वठल्या झाडां
कधी तरी येईल पालवी
आस मनीची सुकते तेंव्हा
वसंत जेंव्हा गरळ कालवी..

कैक फुलांचे कैक ताटवे
स्वैर मुखाने दिशा चुंबिती
कोश पांघरूण खुळा भ्रमर तो
राग वीराणी सर गुंफिती..

विलुप्त झाल्या खुणा गहिऱ्या
मागमूस ना मातीला
आत कोंदला गंध कस्तुरी
कळ युगाची छातीला..

चमचमणारे मंद काजवे
भार पेलती नक्षत्रांचा
शापित यक्ष पैलतीरी मी
श्राप भोगतो आठवांचा..

©Shankar Kamble #Blossom #शाप #एकाकी #कवी #मराठीकविता #शापित #सुमन #काव्य

Abhishek Panchal

दुसऱ्याच्या मनात नसलेल्या गोष्टीही 
Imagine करण्याचा शाप
आपल्या प्रत्येकाला आहे #मराठीलेखणी #मराठी_quote #शाप #marathiquotes

Prita

Yeh dil aur dimaag ki baatein sunke ..... रूह सिसकते हुए कहती है , गुनाह तो मेरा भी नहीं था उस शक्स ने फिर क्यों मुझे इतना अपनापन देकर, किसी दुसरे रुह से इश्क़ कर बैठा ! #इश्क़

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दिमाग कहता है,
निकाल फेक उस शक्स को,
जो छोड़ तुझे, किसी और को अपनालिया है !

दिल बड़े नज़ाकत से कहता है,
तू खुद भी कहां भुला पाया है उस शक्स को,
मैंने तो उसे अपने दिल में पनाह दिया था,
जब उसे किसी और ने अपने ज़िंदगी से बेघर किया था ! Yeh dil aur dimaag ki baatein sunke .....

रूह सिसकते हुए कहती है ,
गुनाह तो मेरा भी नहीं था 
उस शक्स ने फिर क्यों मुझे इतना अपनापन देकर,
किसी दुसरे रुह से इश्क़ कर बैठा !

#इश्क़

kaushik

#शाप या वरदान

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विज्ञान की देन है,		
शाप या वरदान है,		
धन का प्रवाह बढ़ा,		
लोगों में विश्वास घात बढ़ा,		
		
कलयुग की देन है,		
संघ शक्ति का वरदान है,		
गांधी से सत्य मीला,		
भारत देश आज़ाद हुआ,		
		
विज्ञान की देन है,		
शाप या वरदान है,		
असत्य का प्रभाव बढ़ा,		
भ्रष्टाचार से बर्बाद हुआ,,,,,,,, #शाप या वरदान

laxman swami

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तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी
जीवन भर का खुद को मै तो संताप नहीं दे पाऊंगी
हे राजदुलारे राज तिलक देखो कितना  निकट अभी
कुछ ही पल में हो जाएगा फिर समय यहां भी विकट अभी
इस भारत वंश को सुनो राम अभिशाप नहीं दे पाऊंगी
तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी

तुम ज्येष्ठ पुत्र हो योग्य बड़े  जाओ तुम ही युवराज बनो
इस अवध प्रांत के जनता की दुख सुख में तुम आवाज बनो
मै वर मांगु इस क्षण मुझसे ये पाप नहीं हो पाएगा 
ये कुटिल भयंकर कड़वा मुझसे जाप नहीं हो पाएगा
वन के पीड़ा की प्रिय पुत्र मै ताप नहीं दे पाऊंगी
तुम क्षमादान दे दो राघव मैं शाप नहीं दे पाऊंगी

मुझको  है ये  मालूम  अकेले  तुम  वन को ना जाओगे
तुम संग में अपने मात पिता की भी खुशियां ले जाओगे
राहे वन की दुष्कर होंगी और  नही कोई अपना होगा 
राजभवन का  सारा  सुख वन में केवल सपना होगा
कांटो के पथ पर सीता  पग की छाप नहीं दे पाऊंगी
तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी

आने वाला भविष्य में मां से ऐसा काम नहीं होगा 
सब नाम रखा जाएगा पर कैकैयी नाम नहीं होगा 
कल भोर नहीं होगी कोशल में तम का पहरा छाएगा
सब कुछ पहले जैसा होगा बस केवल राम नहीं होगा
जिस स्वर को सुन वन जाओ आलाप नहीं दे पाऊंगी
तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी

जो जिम्मेदारी तुमको दी माना है बहुत कठिन माता
सर्वस्व  समर्पित  कर दे जो इतिहास उन्हीं के गुण गाता
जग निंदा कुछ क्षण की है उन बातो को फिर धड़ना क्या
जब राम तुम्हारे साथ खड़ा तुमको इस जग डरना क्या
मै तुम्हे भेज कर वन में भरत को राज नहीं दे पाऊंगी
तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी

रजनीश "स्वच्छंद"

गांधारी, आज भी।। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की। एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की। पतिमोह में पट्टी बांधी, पुत्रमोह ने जकड़ा था। जो झांको उसके मन ने,

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गांधारी, आज भी।।

कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।
एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की।

पतिमोह में पट्टी बांधी, 
पुत्रमोह ने जकड़ा था।
जो झांको उसके मन ने,
अंतर्द्वंद्वओं का झगड़ा था।
थी अवतार मति की वो,
एक अंधे से बांधी गयी।
ये कपटी लक्ष्मण रेखा,
भीष्म के द्वारा लांघी गयी।
पतिमोह या विरोध था,
दुनिया से अनजान हुई।
अपने पूत को देखा नहीं,
जिसकी सौ सौ संतान हुई।
पर्दा पड़ा था आंखों पर,
धृतराष्ट्र जिसे न देख सका।
गांधारी के कहने पर भी,
उतार जिसे न फेंक सका।
उस अबला की है कहानी,
जिसने भगवन को शाप दिया।
आदि अनन्त स्वरूप जिसका,
उसका कूल तक माप दिया।
आंख रही पर देख न पायी, रंग वो उजियारी की।
कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।

ये युग तो बदला बहुत पर,
वही कहानी जारी है।
धृतराष्ट्र अभी भी अंधा है,
पट्टी डाले गांधारी है।
भीष्म अमर है यहां मगर,
वो सत्ता का रखवाला है।
अपना वचन निभाने को,
घी डाले जहां भी ज्वाला है।
सत्ता भोगी बन बैठे कौरव,
भारत माँ पट्टी बांध खड़ी।
मज़हब शकुनि बन डटा रहा,
उसकी संताने निर्बाध लड़ी।
शाप भी वो अब दे किसको,
कहाँ कृष्ण वो पाती है।
हर वाणी में दुर्योधन बैठा,
कर्कश तीक्ष्ण वो पाती है।
पुत्रों के खोने का दंश,
कहो वो कैसे सह पाती।
मुख पे भी ताले डाल रखी,
सच भी वो कैसे कह पाती।
कल भी वही, आज वही है, व्यथा हर नारी की।
कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।

©रजनीश "स्वछंद" गांधारी, आज भी।।

कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।
एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की।

पतिमोह में पट्टी बांधी, 
पुत्रमोह ने जकड़ा था।
जो झांको उसके मन ने,

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 14 - कोप या कृपा 'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है। 'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
14 - कोप या कृपा

'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है।

'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक


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