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Ghumnam Gautam
प्रीत पुनीत बड़ी मगर, समझी जाए पाप जाने किस युग प्रीत को, दिया गया यह शाप ©Ghumnam Gautam #प्रीत #पाप #शाप #दोहा #ghumnamgautam
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read moreShankar Kamble
शापित यक्ष... शामलवर्णी अस्तर ओढून गूढ नभाचे तेज लोपले झरोक्यातूनी डोकावत का अनोळखी मी बिंब गोपले.. उगां वाटते वठल्या झाडां कधी तरी येईल पालवी आस मनीची सुकते तेंव्हा वसंत जेंव्हा गरळ कालवी.. कैक फुलांचे कैक ताटवे स्वैर मुखाने दिशा चुंबिती कोश पांघरूण खुळा भ्रमर तो राग वीराणी सर गुंफिती.. विलुप्त झाल्या खुणा गहिऱ्या मागमूस ना मातीला आत कोंदला गंध कस्तुरी कळ युगाची छातीला.. चमचमणारे मंद काजवे भार पेलती नक्षत्रांचा शापित यक्ष पैलतीरी मी श्राप भोगतो आठवांचा.. ©Shankar Kamble #Blossom #शाप #एकाकी #कवी #मराठीकविता #शापित #सुमन #काव्य
Abhishek Panchal
दुसऱ्याच्या मनात नसलेल्या गोष्टीही Imagine करण्याचा शाप आपल्या प्रत्येकाला आहे #मराठीलेखणी #मराठी_quote #शाप #marathiquotes
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read morePrita
दिमाग कहता है, निकाल फेक उस शक्स को, जो छोड़ तुझे, किसी और को अपनालिया है ! दिल बड़े नज़ाकत से कहता है, तू खुद भी कहां भुला पाया है उस शक्स को, मैंने तो उसे अपने दिल में पनाह दिया था, जब उसे किसी और ने अपने ज़िंदगी से बेघर किया था ! Yeh dil aur dimaag ki baatein sunke ..... रूह सिसकते हुए कहती है , गुनाह तो मेरा भी नहीं था उस शक्स ने फिर क्यों मुझे इतना अपनापन देकर, किसी दुसरे रुह से इश्क़ कर बैठा ! #इश्क़
Yeh dil aur dimaag ki baatein sunke ..... रूह सिसकते हुए कहती है , गुनाह तो मेरा भी नहीं था उस शक्स ने फिर क्यों मुझे इतना अपनापन देकर, किसी दुसरे रुह से इश्क़ कर बैठा ! #इश्क़
read morekaushik
विज्ञान की देन है, शाप या वरदान है, धन का प्रवाह बढ़ा, लोगों में विश्वास घात बढ़ा, कलयुग की देन है, संघ शक्ति का वरदान है, गांधी से सत्य मीला, भारत देश आज़ाद हुआ, विज्ञान की देन है, शाप या वरदान है, असत्य का प्रभाव बढ़ा, भ्रष्टाचार से बर्बाद हुआ,,,,,,,, #शाप या वरदान
#शाप या वरदान
read morelaxman swami
तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी जीवन भर का खुद को मै तो संताप नहीं दे पाऊंगी हे राजदुलारे राज तिलक देखो कितना निकट अभी कुछ ही पल में हो जाएगा फिर समय यहां भी विकट अभी इस भारत वंश को सुनो राम अभिशाप नहीं दे पाऊंगी तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी तुम ज्येष्ठ पुत्र हो योग्य बड़े जाओ तुम ही युवराज बनो इस अवध प्रांत के जनता की दुख सुख में तुम आवाज बनो मै वर मांगु इस क्षण मुझसे ये पाप नहीं हो पाएगा ये कुटिल भयंकर कड़वा मुझसे जाप नहीं हो पाएगा वन के पीड़ा की प्रिय पुत्र मै ताप नहीं दे पाऊंगी तुम क्षमादान दे दो राघव मैं शाप नहीं दे पाऊंगी मुझको है ये मालूम अकेले तुम वन को ना जाओगे तुम संग में अपने मात पिता की भी खुशियां ले जाओगे राहे वन की दुष्कर होंगी और नही कोई अपना होगा राजभवन का सारा सुख वन में केवल सपना होगा कांटो के पथ पर सीता पग की छाप नहीं दे पाऊंगी तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी आने वाला भविष्य में मां से ऐसा काम नहीं होगा सब नाम रखा जाएगा पर कैकैयी नाम नहीं होगा कल भोर नहीं होगी कोशल में तम का पहरा छाएगा सब कुछ पहले जैसा होगा बस केवल राम नहीं होगा जिस स्वर को सुन वन जाओ आलाप नहीं दे पाऊंगी तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी जो जिम्मेदारी तुमको दी माना है बहुत कठिन माता सर्वस्व समर्पित कर दे जो इतिहास उन्हीं के गुण गाता जग निंदा कुछ क्षण की है उन बातो को फिर धड़ना क्या जब राम तुम्हारे साथ खड़ा तुमको इस जग डरना क्या मै तुम्हे भेज कर वन में भरत को राज नहीं दे पाऊंगी तुम क्षमादान दे दो राघव मै शाप नहीं दे पाऊंगी
रजनीश "स्वच्छंद"
गांधारी, आज भी।। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की। एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की। पतिमोह में पट्टी बांधी, पुत्रमोह ने जकड़ा था। जो झांको उसके मन ने, अंतर्द्वंद्वओं का झगड़ा था। थी अवतार मति की वो, एक अंधे से बांधी गयी। ये कपटी लक्ष्मण रेखा, भीष्म के द्वारा लांघी गयी। पतिमोह या विरोध था, दुनिया से अनजान हुई। अपने पूत को देखा नहीं, जिसकी सौ सौ संतान हुई। पर्दा पड़ा था आंखों पर, धृतराष्ट्र जिसे न देख सका। गांधारी के कहने पर भी, उतार जिसे न फेंक सका। उस अबला की है कहानी, जिसने भगवन को शाप दिया। आदि अनन्त स्वरूप जिसका, उसका कूल तक माप दिया। आंख रही पर देख न पायी, रंग वो उजियारी की। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की। ये युग तो बदला बहुत पर, वही कहानी जारी है। धृतराष्ट्र अभी भी अंधा है, पट्टी डाले गांधारी है। भीष्म अमर है यहां मगर, वो सत्ता का रखवाला है। अपना वचन निभाने को, घी डाले जहां भी ज्वाला है। सत्ता भोगी बन बैठे कौरव, भारत माँ पट्टी बांध खड़ी। मज़हब शकुनि बन डटा रहा, उसकी संताने निर्बाध लड़ी। शाप भी वो अब दे किसको, कहाँ कृष्ण वो पाती है। हर वाणी में दुर्योधन बैठा, कर्कश तीक्ष्ण वो पाती है। पुत्रों के खोने का दंश, कहो वो कैसे सह पाती। मुख पे भी ताले डाल रखी, सच भी वो कैसे कह पाती। कल भी वही, आज वही है, व्यथा हर नारी की। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की। ©रजनीश "स्वछंद" गांधारी, आज भी।। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की। एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की। पतिमोह में पट्टी बांधी, पुत्रमोह ने जकड़ा था। जो झांको उसके मन ने,
गांधारी, आज भी।। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की। एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की। पतिमोह में पट्टी बांधी, पुत्रमोह ने जकड़ा था। जो झांको उसके मन ने,
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 14 - कोप या कृपा 'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है। 'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक
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