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कुलदीप सिंह चौहान
आटा दाल का भाव मुझे पता चल गया , जबसे मैं दोस्तों घोड़ी चढ गया,, कभी दस रुपये में दिन अपना कट जाता था, आज पाँच सौ का नोट भी छोटा पड गया,, पहले न कोई रोक टोक थी मुझ पर, बीबी का हुकुम चलता है अब मुझ पर,, चलते समय वो रोज मुझसे कहती है, आ जाना तुम शाम को टाइम पे घर पर,, शुरूवात में वो लगी मुझे हीर की तरह, बातें करे वो मीठी लगे खीर की तरह,, धीरे धीरे जैसे जैसे दिन गुजरे, उसकी जुबां से निकली बात लगे तीर की तरह,, उलझनो के जाल में अब हूँ मैं फस गया, पछतावा ये होता है कयूं मैं घोडी चढ गया,, निकल जाता है दिन अब यही सोचकर, अकेला ही था मैं अच्छा कयूं मैं दूल्हा बन गया..... #NojotoQuote
Anil Siwach
।।श्री हरिः।। 32 - क्या किया जाय? सबका उपाय है, किन्तु इस कन्हाई का कोई उपाय नहीं। यह कब क्या करने लगेगा, कब क्या मान बेठेगा, कुछ ठिकाना नहीं है। अब इसका भी कोई उत्तर है कि यह किसी को कहने लगे - 'तू थक गया है,' अथवा किसी के साथ उलझ जाय - 'तूझे भूख लगी है।' कोई कितना भी कहे कि वह थका नहीं है या भूखा नहीं है, किन्तु यह श्याम किसी की सुनता भी है। इसे तो जो धुन चढ गयी बस चढ गयी। फिर यह अपनी करके ही मानने वाला है। सुकुमार कन्हाई शीघ्र थक जाता है। कितने नन्हे कोमल चरण हैं इसके और दौड़ता फुदकता फिरता
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