Find the Best चढ़ Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutसावन कितने तारीख को चढ़ रहा है, यशस्वी सूर्य अम्बर चढ़ रहा है, जीना चढ़ाने की विधि, चढ़ता सूरज की कव्वाली, चढ़ाऊं फूलों की,
Maneesh Ji
Mr. MANEESH ......................................................................... 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 #ज़ख़्म #दर्द - ए - #दिल के ,, कभीं #सिलतें नहीं जों #फूल मुर्झा गये हैं ,, फ़िर वों #खिलतें नहीं लाख कोशिशे कर लो चाहें तुम कितनी भी जों #चढ़ गये हैं #रंग #मौंहब्ब़त के ,, फ़िर वों #उतरतें नहीं
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read moreAnìKet SuryVanshì
तेरे इश्क का खुमार चढ़ रहा था , मुझे धीरे-धीरे बुखार चढ़ रहा था ! कैसे दबा करू मै, इश्क की वो तो बुखार से भी तेज चढ़ रहा था ! खुन तो रहा ही नही मुझमे वो इश्क ही तो था , जो मेरी हर एक नशो मे बह रहा था!!!!! अनिकेत!!!! इश्क & बुखार
इश्क & बुखार
read moreshubham gautam
इस तरह आशिकी का असर मेरे सिर पर चढ़ जायेगा,शायद मैंने कभी सोचा नहीं था। बस खुदा से एक ही तमन्ना है,की बहुत जल्द ही मेरे सपनो को हकीकत में बदल दे।। और उस पगली पर भी मेरे प्यार की आशिकी का असर चढ़ जाय।।।। love at first sight
love at first sight
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया
read moreSeema Thakur
#OpenPoetry *#माहवारी_को_टालना_खतरे_की_घंटी* मैं जिस विषय पर आज बात करना चाहती हूँ वह आज के दिन देश में चल रहे कुछ अति वायरल मुद्दों जितना प्रसिद्ध नहीं है किंतु देश की आधी आबादी के स्वास्थय से जुड़ा है इसलिए देश के लिए अति महत्तवपूर्ण है। देश की आधी आबादी यानी मातृ शक्ति, माँ..........यानी संतानोपत्ति की अहम क्रिया, यह क्रिया जुड़ी है माहवारी से। माहवारी, वह प्रक्रिया जिसके अभाव में कदाचित् सृष्टि का क्रम ही रुक जाता। आज इस एक शब्द को टेबू के रूप में कुछ इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि आधुनिक पीढ़ी या यूँ कहूँ नारीवादी लोग खून सना सेनेटरी पेड हाथ में लेकर फोटो खींचवाना, नारी सम्मान का पर्याय समझते हैं। कुछ ऐसे परम्परावादी लोग भी है जो काली पॉलीथीन में सेनेटरी पेड को लेकर जाने, उन खास दिनों में महिलाओं और बच्चियों के अलग रहने, घर के पुरुषों से इस बात को छिपाने आदि की वकालत करते हैं। इन दोनों ही समूहों ने, धड़ल्ले से दिखाने और सबसे छिपाने के बीच की एक कड़ी को पूर्णतया गौण कर दिया है। यह कड़ी है तीज-त्यौहार एवं शादी-ब्याह के अवसरों पर माहवारी के समय महिलाओं की मनःस्थिति। कुछ वर्ष पहले तक बहुत अच्छा था क्योंकि विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की थी कि इस प्राकृतिक प्रक्रिया को रोका जा सके या कुछ दिन के लिए स्थगित किया जा सके। न जाने इस खतरनाक आविष्कार के पीछे क्या अच्छी मंशा रही होगी यह तो मैं नही जानती किंतु आज हर पाँचवी औरत इस आविष्कार को लाख दुआएँ देकर अपनी जिंदगी से समझौता कर रही है। जी हाँ, शायद आप ठीक समझ रहे हैं। मैं बात कर हूँ उन दवाइयों की जो माहवारी के समय के साथ छेड़छाड़ करने के लिए ली जाती है। मासिक धर्म दो हार्मोन्स, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन पर निर्भर करता है। ये दवाइयाँ इन हार्मोन्स के प्राकृतिक चक्र के प्रभावित करती है और माहवारी स्थगित हो जाती है। मजे की बात यह भी है कि कोई भी चिकित्सक कभी किसी महिला को ये दवाइयाँ खाने की सलाह नहीं देता, आत्मिक रिश्ते के कारण दे भी देता है तो अपनी पर्ची में लिखकर नहीं देता क्योंकि वह बहुत अच्छी तरह से इनके दुष्प्रभावों को जानता है। विडम्बना किंतु यह है कि हर एक फार्मेसी पर ये धड़ल्ले से बिकती है। महिलाएँ अन्य किसी दवा के बारे में जाने या न जाने इस दवा के बारे में अवश्य जानती है क्योंकि यह उन्हें अपनी पक्की सहेली लगती है जिसके दम पर वे नियत दिन (सोमवार को, यदि माहवारी का समय हो तो भी) शिवजी के अभिषेक कर सकती है, वैष्णो देवी की यात्रा कर सकती है, छुट्टी में दो दिन के लिए घर पर आये बच्चों को उनकी पसंद के पकवान बनाकर खिला सकती है, देवर या भाई की शादी में रात-दिन काम कर सकती है, दिवाली के दिन उसे घर के अंधेरे कोने में खड़ा नहीं होना पड़ता, वह अपने हाथों से दीपक जला सकती है, होलिका दहन की खुशी में मिठाई बना सकती है, केदारनाथ, बद्रीनाथ की पूरे संघ के साथ यात्रा कर सकती है, सम्मेद शिखरजी का पहाड़ चढ़ सकती है। और भी न जाने कितने कार्य जो माहवारी के दौरान करने निषेध है वे य़ह एक दवा खाकर बड़े आराम से कर सकती है। सहूलियत इतनी है कि वह अपनी मर्जी के हिसाब से चाहे जितने दिन अपनी माहवारी को रोक सकती है। मेरे अनुभव के अनुसार शायद ही कोई महिला मिले जिसने यह दवा न खाई हो (मैं भी इसमें शामिल हूँ।) सवाल यह है कि यह एक दवा जब सब कुछ इतना आसान कर देती है तो फिर मुझे क्या आपत्ति है। विज्ञान के असंख्य चमत्कारों में यह भी महिलाओं के लिए एक रामबाण औषधि मानली जानी चाहिए और एक दो प्रतिशत महिलाएँ जो कदाचित् इसकी जानकारी नहीं रखती है, उन्हें भी इसके लिए अवगत करवा दिया जाए। लेकिन नहीं, यह बहुत खतरनाक है। उतना ही जितना देह की स्वाभाविक क्रिया शौच और लघुशंका को किसी कारण से रोक देना। ये दवाइयाँ महिलाएँ इतनी अधिक लेती है कि कभी कभी तो लगातार दस से पंद्रह दिन भी ले लेती है। सबसे अधिक इन दवाइयों की बिक्री त्यौहार या किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय होती है। एक रिसर्च बताती है कि भादवे के महीने में आने वाले दशलक्षण पर्व के दौरान पचास फिसदी जैन महिलाएँ इन दवाइयों का इस्तेमाल करती है जिससे वे निर्विघ्न मंदिर जा सके, अपनी सासू माँ के लिए शुद्ध भोजन बना सके, पति को दस दिल फलाहार करा सके। कितनी नादान है जानती ही नहीं है कि वे कितनी बड़ी-बड़ी बीमारियों को न्यौता दे रही है। ये वे महिलाएँ है जो बहुत खुश रहती है, जिन्हें किसी भी नशीले पदार्थ को बचपन से भी नहीं छुआ है, खानपान में पूरा परहेज रखती है पर एक दिन ये दिमागी बीमारियों की शिकार हो जाती है। ब्रेन स्ट्रोक जिनमें सबसे कॉमन बीमारी है। कब ये महिलाएँ अवसाद का शिकार होती है, कब कोमा में चली जाती है, कब आत्म हत्या तक के फैसले ले लेती है कोई जान ही नहीं पाता। केवल इसलिए क्योंकि इन्हें बढ़-चढ़ कर धार्मिक और सामाजिक क्रियाओं में भाग लेना था, केवल इसलिए क्योंकि ये अपनी सासू माँ से नहीं सुनना चाहती थी, “जब भी काम होता है तुम तो मेहमान बनकर बैठ जाती हो”, केवल इसलिए कि ये त्यौहार के दिनों में अपनी आँखों के सामने घरवालों को परेशान होते नहीं देख सकती। मैं आज आपसे इस बारे में बात नहीं कर रही कि माहवारी के दौरान रसोई घर और मंदिर में प्रवेश करना सही है या गलत। यह टी आर पी बटोरने वाला विषय है, इस पर अनेकों बार चर्चा हो चुकी है और आगे भी हो जायेगी। मैं आज केवल आपसे इतनी ही विनती करूँगी कि उन खास दिनों में आपके घर की मान्यता के अनुसार आपका यदि मंदिर छूटता है तो छोड़ दीजिये पर कृपया इन दवाइयों को टा टा बाय बाय कह दीजिये। खुदा न करे कि इन गंभीर बीमारियों को झेलने वाली सूची में अगला नम्बर आपका हो जिनका कोई इलाज ही नहीं है। मेरी एक परिचिता को आज ही इनकी वजह के ब्रेन स्ट्रोक हुआ है इसलिए मैंने सारे काम छोड़कर यह लिखना जरुरी समझा। पहले से भी मैं ऐसे कई केस जानती हूँ जिनमें लगातार दस दिन ये दवाइयाँ खाने वाली महिला आज कोमा में है और उसकी आठ वर्ष की बेटी उसे सवालिया निगाहों से घूरकर पूछती है, “मम्मी आप कब उठोगी, कब उठकर मुझे गले लगाओगी।” एक परिचिता औऱ है जो अतीत में इन दवाइयों का अति इस्तेमाल करके तीस वर्ष की उम्र में ही मोनोपॉज पा चुकी है और आज उसके दिमाग की नसों में करंट के वक्त बेवक्त झटके लगते हैं जिन्हें सहन करने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं है। क़पया इस पोस्ट को हल्के में न ले। मैं नहीं कहूँगी कि जहाँ तक हो इन दवाइयों से बचे, मैं कहूँगी कि इन दवाइय़ों को कतई न ले। ईश्वर की पूजा हम मन से करेंगे तब भी वह हमारी उतनी ही सुनेगा जितनी हमारी जान को जोखिम में डालकर उसके प्रतिबिम्ब के समक्ष हमारे द्वारा कि गई प्रार्थना से सुनेगा। कदाचित् तब कम ही सुनेगा क्योंकि उसे भी अफसोस होगा कि मेरे द्वारा दी गई देह को यह मेरे ही नाम पर जोखिम में डाल रही है। मैं डॉक्टर नहीं हूँ पर मैंने विशेषज्ञों से बात करके जितनी जानकारी जुटाई है उसका सारांश यही है कि इन दवाइयों का किसी भी सूरत में सेवन नहीं करना चाहिए। मैं तो कहती हूँ कि एक आंदोलन चलाकर इन्हें बाजार में बैन ही करवा दिया जाना चाहिए जिनके कारण भारत की हर दूसरी महिला पर संकट के बादल हर समय मंडराते रहते हैं। मैं आम तौर पर कोई भी पोस्ट रात को नहीं करती पर आज मेरी परिचिता के बार में सुनकर मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूँ और अभी यह पोस्ट कर रही हूँ। निवेदन के साथ कि आप इसे अधिक से अधिक शेयर करे। हर एक लड़की भले वो आपकी पत्नी हो, माँ हो, प्रेमिका हो, बहन हो, बुआ हो, बेटी हो, चाची हो, टीचर हो अवश्य पढ़ाये......और मेरी जितनी बहनें इसे पढ़ रही है, वे यदि मुझसे बड़ी हो तो मैं उनके चरण स्पर्श करके करबद्ध निवेदन करती हूँ कि वे कभी इन दवाओं का सेवन न करे और यदि मुझसे छोटी है तो उन्हें कान पकड़कर कर सख्त हिदायत देती हूँ कि वे इन दवाओं से दूर रहे। ............................Seema
Sameer Awasthi
❤️.................. यादें ...................❤️ तेरी यादों का दायरा कुछ यूं बढ़ गया है, कि दिल के साथ साथ दिमाग में चढ़ गया है..............2 समझ नहीं आता कैसे सम्भालूं इस दिल को, ये दिल तो तेरी यादों पे अड़ गया है।। तेरी यादों का दायरा कुछ यूं बढ़ गया है, कि दिल के साथ साथ दिमाग में चढ़ गया है............ सहारा लेता हूं चाय और एक सिगरेट का, पर ये दिल तो तेरी लबों कि मुस्कराहट पे अड़ गया है, तेरी यादों का दायरा कुछ यूं बढ़ गया है, कि दिल के साथ साथ दिमाग में चढ़ गया है............. ।। तेरी चाहत का पैमाना समझ नहीं आता, तो दिमाग ने दूर जाने की ख्वाहिश की है, पर दिल तो आख़िर दिल है, एक बार फिर, मेरा दिल, मेरे दिमाग से लड़ गया है, तेरी यादों का दायरा कुछ यूं बढ़ गया है, दिल के साथ साथ दिमाग में चढ़ गया है..........।। समझा लो न अपनी यादों को क्यूँ हमें इतना परेशान करती हैं, ये दिल तेरी यादों कि आदत में पड़ गया है, तेरी यादों का दायरा कुछ यूं बढ़ गया है कि दिल के साथ साथ दिमाग में चढ़ गया है.......... ।। कुनबे की उलझनों में मसरूफ है वो शायद, या हम आते ही नहीं उसके ख्यालों में, कोई उनसे बोलो कि हमे भी थोड़ा याद कर लें, आज दिल फिर उनके ख्यालों के आसमाँ में उड़ रहा है, तेरी यादों का दायरा कुछ यूं बढ़ गया है, कि दिल के साथ साथ दिमाग में चढ़ गया है......... ।। - sm awasthi #यादें
Vicky Khatri
ये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ। आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है। महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहींये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ। आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है। महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहीं चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता! आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है । नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं। यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है। चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काट रहा है।" आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता! आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ! आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती । आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है । नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं। यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना चाहिए। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है।
Ashu awara
#OpenPoetry कभी कभी में छत पे चढ़ कर रोने जाता हूँ कभी कभी में अासमान से ऑख मिलाता हूँ कभी कभी में सीधे चलता फिर मुड़ जाता हूँ कभी कभी में चलते चलते ही सो जाता हूँ कभी कभी अपनों की खातिर में दब जाता हूँ कभी कभी सपनों की खातिर में उठ जाता हूँ कभी कभी में दिल की सुनता फिर झुठलाता हूँ कभी कभी में सच्चाई को गले लगाता हूँ कभी कभी में छत पे चढ़ कर रोने जाता हूँ कभी कभी दुनिया की बातों से घबराता हूँ कभी कभी हिम्मत करके सबसे लड़ जाता हूँ कभी कभी बचपन की यादों में खो जाता हूँ कभी कभी तन्हा होकर ही में हस पाता हूँ कभी कभी में छत पे चड़ कर रोने जाता हूँ Ashu awara #OpenPoetry a lonely boy feeling
#OpenPoetry a lonely boy feeling
read moreअतुल कुमार मिश्रा
कब तक भाग्य और आश मे अपने को लगाये बैठे रहोगे । अपना लो कर्म और मेहनत को हर पल जीवन मे खुशी पाओगे। चिड़िया हर रोज अपने भोजन कें लिये घूमती रहती है । कभी मिलता है तो कभी ख़ाली वापस आ जाती है । सीढ़ी चढ़-चढ़ कर ऊपरी मंजिल तक पहुँच जाते है । फिर क्यो नही धीरे-धीरे चल कर सफल हो सकते है । क्यो अपने को कमजोर और समय गवातें रहते हो । लगा लेते है अपनी मेहनत जीवन सफल बना लेते है। ©अतुल कुमार मिश्रा प्रेरणादायक ।
प्रेरणादायक ।
read moreDivyansh Sheela Sinha
अब होली पहले सी ना रही। "सुनो, कल आओगे ना होली खेलने?" ये उसने पूछा मुझसे। मैं फोन में ही उसके गालों की लालिमा देख सकता था। मुस्कुराते हुए मैंने पूछा-" आऊंगा तो क्या मिलेगा?९ बजे आऊंगा वैसे" "धत्त ठेंगा मिलेगा, अच्छा फोन रखती हूं मम्मी बुला रही हैं, डिनर बनाना है बाय गुड नाईट लव यू" "लव यू टू गुड नाइट" मेरी गुड नाईट अधूरी ही रह गई कि उसका फ़ोन कट गया। मेरी सारी समझ सब बुद्धि सारा सोचना विचारना उसके। एक धत्त के सामने कहीं खो सा जाता था। ये लड़की भी ना अजीब सी थी, मुझपे अपना सबकुछ हार बैठी थी और बदले में बस मुझे दो पल देखना चाहती थी हर रोज़। मैं रात में १० बजे भी ऑफिस से लौटता तो वो अपने घर की बालकनी में आ जाती। उसका घर मेरी गली के मुहाने पे था। मुझे देखती मुस्कुराती आस पास देखकर कि कोई देख तो नहीं रहा एक फ्लाइंग किस देती। उस पल जब वो मुझे देखती थी तब उस के चेहरे पर जो चमक आती ना मानो वो मीरा मुझमें अपना कृष्ण देखती।अगली सुबह मैं ८ बजे ही उसके घर के नीचे पहुंच गया। अभी मैं कुछ सोचता उसके पहले ही मेरे ऊपर छपाक से पानी गिरा। मैंने ऊपर देखा तो वो हाथ में बाल्टी लिए खिलखिला रही थी। उफ्फ उसकी ये बेपरवाह खिलखिलाहट। मुझे फिर से बेपनाह मोहब्बत हो गई। मैं सीढ़ियों से चढ़ के ऊपर गया। रास्ते में सोच रहा था कि बोला तो ९ बजे था और आया ८ बजे तो भी ये तैयार थी। फिर याद आया मुझे इससे बेहतर और कौन जानता है। ये सोचते ही मैं ऊपर चढ़ गया मुस्कुराते हुए। मुझे देखते ही वो दौड़ते हुए छत पे चली गई और उसके पीछे पीछे मैं भी। उस छत पर सिर्फ हम दोनों ही थे। मैंने उसका हाथ पकड़ा और जेब से गुलाल निकाल कर उसके माथे और गालों में लगाया। वो बस नज़रों को बंद करके मुस्कुराते हुए रंग लगवाए जा रही थी। फिर धीरे से उसने कहा," अब मेरी बारी" फिर उसने मेरे ही हाथ से गुलाल लेकर मेरे माथे गाल और पूरे चेहरे पर लगाया। और यक़ीन मानो दोस्तों जब उसकी हथेलियां मेरे चेहरे पर रंग लगा रही थीं तो वो रंग इश्क़ का था जिसमें हम दोनों रंगे हुए थे। मैंने उसके चेहरे को हाथ में थामा और उसके माथे पर अपने होंठ रख कर धीरे से कहा,"हैप्पी होली" होली अपने उफान पर थी और हम दोनों ने इश्क़ के रंग को साथ चखा था । अब दोनों के लिए होली पहले सी ना रही थी। कल फिर होली है और रात में फिर उसका फ़ोन आएगा कल आने के लिए। सोच रहा इस बार रंग दूं उसे अपने ही रंग में। इस होली उसका हाथ मांग लूं उसके घरवालों से क्यूंकि अब होली पहले सी ना रही। #nojoto #love #holi #meandyou #sirftum #newcreation