Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best उदर Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best उदर Shayari, Status, Quotes from top creators only on Gokahani App. Also find trending photos & videos aboutउदर का अर्थ,

  • 4 Followers
  • 219 Stories

अदनासा-

गौरव 'हिन्दुस्तानी'

उदर की तालाबन्दी

रात के तकरीबन 3 बज रहे होंगे कि अचानक पेट की पीड़ा से आँख खुल गयी। पीड़ा भी ऐसी कि किसी तरह लुंगी सम्भालते हुए गुसलख़ाने की तरफ भागा। 15 मिनट तक गुसलख़ाने में मेहनत करने के बाद जब बाहर आये, तब भी दर्द में कोई फ़र्क नहीं पड़ा। घर मे दर्द की पड़ी दवाईयाँ भी खा लिए लेकिन दर्द ऐसे कुंडली मार कर बैठा था जैसे उसका स्थायी पता यही हो। दर्द के इस आलम में बरबस ही मुँह से निकल पड़ा "साला ये कौन सी मुसीबत आन पड़ी।"
तभी आकाशवाणी की तरह ही उदरवाणी हुई, कुछ गड़-गड़ाहट, कुछ फुस्सा-फुसी और कुछ परपराहट के बाद एक स्पष्ट आवाज़ कानों में आयी....

उदरवाणी- "बस चंद मिनटों की पीड़ा तुम्हें मुसीबत लगने लगी और मुझे जो पिछले 16 दिनों से लगातार पीड़ा दे रहे हो उसका क्या ?"
 मैं- "मैंने कौन सी पीड़ा दी तुम्हें ?"
उदरवाणी- "पापी एक तो पाप करते हो और अब अन्जान बन रहे हो"
मैं- "पाप ? मैंने कौन सा पाप किया ?"
उदरवाणी- पिछले 16 दिनों से बैठे बैठे जो घास फूस मुझमें भर रहे हो, वो पाप नहीं तो क्या है ?
मैं-  "भाई वो तो शुद्ध सात्विक भोजन है।"
उदरवाणी- "भाई मत बोल, भाई बोलने का हक़ खो दिया तूने और क्या शुद्ध सात्विक भोजन बे साले। बड़ा संत बन रहा है तू ? उतने दिनों से जो लज़ीज़ माँस और अमृत समान मदिरा का सेवन करा रहा था क्या वो पाप था चू..."
मैं- (बीच में रोकते हुए) "ओये अपशब्द मत बोल।"
उदरवाणी- "अबे चुप चूड़ा के छटे हुए कचड़े, ये बता मेरी ख़ुराक मुझे देता है या बढ़ाऊँ अपना टॉर्चर?"
मैं- "अरे यार इस तालाबंदी में मैं तेरी ख़ुराक कहाँ से लाऊँ ?"
उदरवाणी- "साले आम के अचार के गुठली ये भी मैं ही बताऊँ ? मुझे इनकी आदत लगाने से पहले सोचना था तुम्हें।"
मैं- "अरे यार गलती हो गयी मुझसे, आगे से ध्यान रखूँगा। लेकिन अभी मुझे इस पीड़ा से मुक्त कर दे मुझसे सहन नहीं हो रहा।"
उदरवाणी- "सुन बे चिमण्डी से शक्ल के मेरा ख़ुराक मुझे दे वर्ना वो हश्र करूँगा कि उदर की तालाबंदी करना भूल जाएगा।"
........और तभी एक जोर के गड़-गड़ाहट, कुछ फुस्सा-फुसी और कुछ परपराहट के साथ मेरी आँखें खुल गयी और मैं भागता हुआ गुसलख़ाने में घुसा।

✒️गौरव 'हिन्दुस्तानी' #उदर #तालाबन्दी #हास्य_व्यंग्य

Deepansh Mittal

read more
प्रेम  कोणी  कोई  बंधन  जाने 
कोणी  जाने  कोई  रीत - दस्तूर   
उदर, उदर मिलन  को  तरस  रहे  
प्रेमियन  का,  कइयाँ  कोणी  कसूर

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 45 - खायेगा? 'खायेगा!' कन्हाई के हाथ में मोदक है। केशर-पीत, खूब बड़ा-सा मोदक! बूंदी का बना ऐसा मोदक जिसे देखकर ही क्षुधा जाग जाय और फिर श्याम के हाथ का मोदक प्राप्त करने को तो स्वर्ग के देवता भी क्षुधातुर हो जायेंगे। मधुमंगल का तो सबसे प्रिय आहार है मोदक। सखाओं ने भरपूर शृंगार किया है ब्रजराज-कुमार का। अलकों से लेकर चरणों तक पुष्प-गुच्छ, गुञ्जा, किसलय, पिच्छ आदि से इसे सजाया है। इसके सम्पूर्ण शरीर को गैरिक, रामरज, खड़िया आदि से ऐसा चित्रित किया है कि यह चित्र-मन्दिर ही बन गया है।

read more
।।श्री हरिः।।
45 - खायेगा?

'खायेगा!' कन्हाई के हाथ में मोदक है। केशर-पीत, खूब बड़ा-सा मोदक! बूंदी का बना ऐसा मोदक जिसे देखकर ही क्षुधा जाग जाय और फिर श्याम के हाथ का मोदक प्राप्त करने को तो स्वर्ग के देवता भी क्षुधातुर हो जायेंगे। मधुमंगल का तो सबसे प्रिय आहार है मोदक।

सखाओं ने भरपूर शृंगार किया है ब्रजराज-कुमार का। अलकों से लेकर चरणों तक पुष्प-गुच्छ, गुञ्जा, किसलय, पिच्छ आदि से इसे सजाया है। इसके सम्पूर्ण शरीर को गैरिक, रामरज, खड़िया आदि से ऐसा चित्रित किया है कि यह चित्र-मन्दिर ही बन गया है।

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 44 - नित्य मिलन श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो। मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं। भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि

read more
।।श्री हरिः।।
44 - नित्य मिलन

श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो।

मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं।

भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 42 - कुछ बात है आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है। मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा

read more
।।श्री हरिः।।
42 - कुछ बात है

आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है।

मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 39 - आम चूसते आज कोई छीका नहीं लाया है। कल ही बालकों ने निश्चय कर लिया था कि वे प्रात: आम ही चूसेंगे।किसी ने भी बालकों के इस निर्णय का विरोध नहीं किया। बालक यदि हरिवासर के दिन अन्न नहीं लेते तो उत्तम ही है। वैसे भी इस पावस के प्रारम्भ में वन सूपक्व आम्रफलों से परिपूर्ण है। आम्र पोषक हैं और सुस्वादु तो हैं ही। वन में आकर आज बालकों ने शृंगार करने की चिन्ता ही नहीं की। किसी ने भी गुञ्जा, किसलय, पुष्प एकत्र करने की ओर ध्यान नहीं दिया। सब आम्रफल एकत्र करने में लग गये। रात्रि में वृक्

read more
।।श्री हरिः।।
39 - आम चूसते

आज कोई छीका नहीं लाया है। कल ही बालकों ने निश्चय कर लिया था कि वे प्रात: आम ही चूसेंगे।किसी ने भी बालकों के इस निर्णय का विरोध नहीं किया। बालक यदि हरिवासर के दिन अन्न नहीं लेते तो उत्तम ही है। वैसे भी इस पावस के प्रारम्भ में वन सूपक्व आम्रफलों से परिपूर्ण है। आम्र पोषक हैं और सुस्वादु तो हैं ही।

वन में आकर आज बालकों ने शृंगार करने की चिन्ता ही नहीं की। किसी ने भी गुञ्जा, किसलय, पुष्प एकत्र करने की ओर ध्यान नहीं दिया। सब आम्रफल एकत्र करने में लग गये।

रात्रि में वृक्

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 36 - बाबा के पास 'तुम हाऊ के बाबा हो?' भद्र ने हंसते-हसते ब्रजराज से पूछा। 'मैं हाऊ का बाबा क्यों होने लगा।' बाबा भी हंसे - 'मैं तेरा बाबा हुँ और इस नीलमणिका बाबा हूँ।' 'और दाऊ दादा के, तोक के, अंशु के, तेजस्वी के, देव के, विशाल के....।' कन्हाई एक ओर से सब सखाओं के नाम गिनाता ही चला जा रहा है।

read more
।।श्री हरिः।।
36 - बाबा के पास

'तुम हाऊ के बाबा हो?' भद्र ने हंसते-हसते ब्रजराज से पूछा।

'मैं हाऊ का बाबा क्यों होने लगा।' बाबा भी हंसे - 'मैं तेरा बाबा हुँ और इस नीलमणिका बाबा हूँ।'

'और दाऊ दादा के, तोक के, अंशु के, तेजस्वी के, देव के, विशाल के....।' कन्हाई एक ओर से सब सखाओं के नाम गिनाता ही चला जा रहा है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 27 - उपहार 'मेरी मुट्ठी में क्या है?' कन्हाई बहुत प्रसन्न है। दौड़ा-दौड़ा आया है और दाहिने हाथ की मुट्ठी बन्द किये भद्र के सम्मुख मटकता पूछ रहा है। 'हाऊ!' मधुमंगल ने समीप आकर कह दिया। 'उसे तू खा लेना।' श्यामसुन्दर हंसकर बोला। जब यह खुलकर हंसता है, कपोलो में नन्हे गड्ढे पड जाते हैं। कुन्दकली के समान उज्जवल, सटी पतले दातों की पंक्तियां चमक उठती हैं और पतले-कोमल अरुण अधर मानो दूध क धार से स्निग्ध हो जाते हैं।

read more
|| श्री हरि: || 
27 - उपहार

'मेरी मुट्ठी में क्या है?' कन्हाई बहुत प्रसन्न है। दौड़ा-दौड़ा आया है और दाहिने हाथ की मुट्ठी बन्द किये भद्र के सम्मुख मटकता पूछ रहा है।

'हाऊ!' मधुमंगल ने समीप आकर कह दिया।

'उसे तू खा लेना।' श्यामसुन्दर हंसकर बोला। जब यह खुलकर हंसता है, कपोलो में नन्हे गड्ढे पड जाते हैं। कुन्दकली के समान उज्जवल, सटी पतले दातों की पंक्तियां चमक उठती हैं और पतले-कोमल अरुण अधर मानो दूध क धार से स्निग्ध हो जाते हैं।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 8 - निर्माता 'कनूँ ! क्या कर रहा है तू?' भद्र ने पूछा समीप आकर। उसे कुछ आहट लगी थी गोष्ठ में और यह देखने आ गया था कि यहाँ कौन क्या कर रहा है। गायें, वृषभ, बछड़े-बछडियाँ सब अभी-अभी चरने को गयी हैं। कोई सेवक या सेविका अभी गोष्ठ स्वच्छ करने आयी नहीं है। केवल सद्य:प्रसूता गाये हैं अपने बच्चों के साथ और वे गोष्ठ के एक भाग में हैं। गोमय, गोमूत्र, गायों के खा लेने से बची घास जो उनके खुरों से कुचली है, पूरे गोष्ठ में फैली है। गोष्ठ इस समय अस्वच्छ है। ऐसे समय गोष्ठ में कन्हाई चुपचाप घु

read more
|| श्री हरि: || 
8 - निर्माता

'कनूँ ! क्या कर रहा है तू?' भद्र ने पूछा समीप आकर। उसे कुछ आहट लगी थी गोष्ठ में और यह देखने आ गया था कि यहाँ कौन क्या कर रहा है।

गायें, वृषभ, बछड़े-बछडियाँ सब अभी-अभी चरने को गयी हैं। कोई सेवक या सेविका अभी गोष्ठ स्वच्छ करने आयी नहीं है। केवल सद्य:प्रसूता गाये हैं अपने बच्चों के साथ और वे गोष्ठ के एक भाग में हैं। गोमय, गोमूत्र, गायों के खा लेने से बची घास जो उनके खुरों से कुचली है, पूरे गोष्ठ में फैली है। गोष्ठ इस समय अस्वच्छ है।

ऐसे समय गोष्ठ में कन्हाई चुपचाप घु
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile