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K.K.Karan

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 8 - असुर उपासक 'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
8 - असुर उपासक

'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह

anil kumar y625163

शनि के नाम से ही हर व्यक्ति डरने लगता है। शनि की दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़ेसात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान भक्तों को शनि से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि ने हनुमान को भी डराना चाहा लेकिन मुंह की खानी पड़ी आइए जानें कैसे... महान पराक्रमी हनुमान अमर हैं। पवन पुत्र हनुमान रघुकुल के कुमारों के कहने से प्रतिदिन अपनी आत्मकथा का कोई भाग सुनाया करते थे। उन्होंने कहा कि मैं एक बार संध्या समय अपने आराध्य श्री राम का स्मरण करने लगा तो उसी समय ग्रहों में पाप ग्रह, मंद गति सूर्य पुत्र श

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शनि के नाम से ही हर व्यक्ति डरने लगता है। शनि की दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़ेसात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान भक्तों को शनि से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि ने हनुमान को भी डराना चाहा लेकिन मुंह की खानी पड़ी आइए जानें कैसे... 
महान पराक्रमी हनुमान अमर हैं। पवन पुत्र हनुमान रघुकुल के कुमारों के कहने से प्रतिदिन अपनी आत्मकथा का कोई भाग सुनाया करते थे। 

उन्होंने कहा कि मैं एक बार संध्या समय अपने आराध्य श्री राम का स्मरण करने लगा तो उसी समय ग्रहों में पाप ग्रह, मंद गति सूर्य पुत्र श

Shreyashi Mishra

.......... #अग्रज,,, कठिन नही सरल लिख रही हूँ,,

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सीखा है मैंने सलीका मुस्कुराने का,,
अनगिनत लम्हो को पंक्तियों में संजोने का।।
 #NojotoQuote ..........
#अग्रज,,, कठिन नही सरल लिख रही हूँ,,

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 23 - भूख लगी है 'दादा, मुझे भूख लगी है।' कन्हाई आकर दाऊ के वाम पार्श्व में बैठ गया है। दोनों भुजाएं अग्रज के कंधे पर सिर रख दिया है इसने। 'तब तु आम खा ले।' दाऊ ने छोटे भाई की अलकों पर स्नेहपूर्वक अपना दाहिना हाथ घुमाया। 'नहीं, आम की भूख नहीं लगी है।' कृष्ण का उदर अद्भुत है। नन्दनन्दन की क्षुधा ऐसी नहीं है कि यह चाहे जिस पदार्थ से बुझ जाय। इसे भूख भी कभी फल की लगती है, कभी दही या नवनीत की लगती है और कभी माखन-रोटी की लगा करती है।

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|| श्री हरि: || 
23 - भूख लगी है
'दादा, मुझे भूख लगी है।' कन्हाई आकर दाऊ के वाम पार्श्व में बैठ गया है। दोनों भुजाएं अग्रज के कंधे पर सिर  रख दिया है इसने।

'तब तु आम खा ले।' दाऊ ने छोटे भाई की अलकों पर स्नेहपूर्वक अपना दाहिना हाथ घुमाया।

'नहीं, आम की भूख नहीं लगी है।' कृष्ण का उदर अद्भुत है। नन्दनन्दन की क्षुधा ऐसी नहीं है कि यह चाहे जिस पदार्थ से बुझ जाय। इसे भूख भी कभी फल की लगती है, कभी दही या नवनीत की लगती है और कभी माखन-रोटी की लगा करती है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 3 - सचिन्त 'भद्र। बाबा भद्र कहाँ है?' ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि श्याम गोदोहन करने गोष्ठ में जाय और भद्र उसे दोहिनी लिये न मिले। आज भद्र कहाँ गया? कन्हाई ने भद्र को इधर उधर देखा, पुकारा और फिर अपने दाहिने हाथ की दोहनी बांयें हाथ में लेते हुए बाबा के समीप दौड़ गया। राम-श्याम दोनों भाई प्रातःकाल उठते ही मुख धोकर पहिले गोदोहन करने गोष्ठ में आते हैं। प्रातःकृत्य गोदोहन के पश्चात होता है। बाबा के साथ ही भद्र सोता है। उनके साथ ही दोहनी लिए सवेरे दोनों भाइयों को गोष्ठ में मिलता है। लेकिन

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|| श्री हरि: ||
3 - सचिन्त

'भद्र। बाबा भद्र कहाँ है?' ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि श्याम गोदोहन करने गोष्ठ में जाय और भद्र उसे दोहिनी लिये न मिले। आज भद्र कहाँ गया? कन्हाई ने भद्र को इधर उधर देखा, पुकारा और फिर अपने दाहिने हाथ की दोहनी बांयें हाथ में लेते हुए बाबा के समीप दौड़ गया।

राम-श्याम दोनों भाई प्रातःकाल उठते ही मुख धोकर पहिले गोदोहन करने गोष्ठ में आते हैं। प्रातःकृत्य गोदोहन के पश्चात होता है। बाबा के साथ ही भद्र सोता है। उनके साथ ही दोहनी लिए सवेरे दोनों भाइयों को गोष्ठ में मिलता है। लेकिन

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 69 - सेवा 'दादा, तू सुबल की गोद में सिर रखकर सो जा।' कन्हाई को जब जो धुन चढ गयी, अपनी धुन तो वह पूरी ही करेगा। अपने बडे़ भाई का हाथ पकडकर यह खीचने लगा है। स्वयं अपने हाथों इस तमाल के नीचे किसलय तथा कुसुमदल बिछाकर शय्या बनायी है बड़े श्रम से इसने। अब उस श्रम को सफल भी तो होना चाहिए। 'क्यों?' दाऊ ने पूछ लिया। 'तू थक गया है। देख मैंने तेरे लिए कितनी सुंदर शय्या बनायी है।' कितना बढिया तर्क है। श्याम ने शय्या बनायी है इसलिए दाऊ थक गया है।

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|| श्री हरि: ||
69 - सेवा

'दादा, तू सुबल की गोद में सिर रखकर सो जा।' कन्हाई को जब जो धुन चढ गयी, अपनी धुन तो वह पूरी ही करेगा। अपने बडे़ भाई का हाथ पकडकर यह खीचने लगा है। स्वयं अपने हाथों इस तमाल के नीचे किसलय तथा कुसुमदल बिछाकर शय्या बनायी है बड़े श्रम से इसने। अब उस श्रम को सफल भी तो होना चाहिए।

'क्यों?' दाऊ ने पूछ लिया।

'तू थक गया है। देख मैंने तेरे लिए कितनी सुंदर शय्या बनायी है।' कितना बढिया तर्क है। श्याम ने शय्या बनायी है इसलिए दाऊ थक गया है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 52 - उपहार 'दादा! बता तो मैं क्या लाया हूँ?' पीताम्बर के भीतर कोई गोल वस्तु छिपाये यह श्यामसुंदर दौड़ा-दौड़ा हंसता-हंसता आया और दाऊ के सामने बैठ गया। किसी गोपकुमार को - कहना यह चाहिए कि व्रज में किसी को, स्वयं दाऊ को भी कोई सुंदर स्वादिष्ट या आकर्षक वस्तु मिले तो वह उसी समय कृष्णचंद्र के लिए सुरक्षित हो जायगी। उसे पाने वाला झटपट श्याम के पास उसे पहुंचाना चाहेगा। और यह श्याम - कोई रत्न, कोई बड़ा - सा पुष्प - गुच्छ, कोई सुंदर फल, कोई लुभावना फूल, कोई भी वस्तु जो इसे पसंद आ जाय,

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|| श्री हरि: ||
52 - उपहार


'दादा! बता तो मैं क्या लाया हूँ?' पीताम्बर के भीतर कोई गोल वस्तु छिपाये यह श्यामसुंदर दौड़ा-दौड़ा हंसता-हंसता आया और दाऊ के सामने बैठ गया।


किसी गोपकुमार को - कहना यह चाहिए कि व्रज में किसी को, स्वयं दाऊ को भी कोई सुंदर स्वादिष्ट या आकर्षक वस्तु मिले तो वह उसी समय कृष्णचंद्र के लिए सुरक्षित हो जायगी। उसे पाने वाला झटपट श्याम के पास उसे पहुंचाना चाहेगा। और यह श्याम - कोई रत्न, कोई बड़ा - सा पुष्प - गुच्छ, कोई सुंदर फल, कोई लुभावना फूल, कोई भी वस्तु जो इसे पसंद आ जाय,
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