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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

📜देव...एक शायर📜

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तुम ही कृष्णा 
तुम ही मोहन
तुम ही मधुसूदन हो

दुनियाँ कहती भगवान तुझे
फिर भी देवकी नन्दन हो

तुम ही सिया के वर
श्रीराम मर्यादापुरषोत्तम हो
जगत पिता पार-ब्रह्म परमेश्वर हो
फिर भी दसरथ-कौशल्या नन्दन हो

तुम ही मीरा के श्याम हो
शबरी के श्रीराम हो
तुम ही जसुदा मैया के लल्ला
तुम ही रघुकुल के रघुनंदन हो

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 46 - कन्हाई का पक्षी आज एक पक्षी वाला आ गया नन्दग्राम में। एक ही पक्षी था इसके पास; किंतु इतना सुन्दर पक्षी तो इधर दीखता नहीं। मयूर की कलंगी से भी अत्यन्त सुन्दर कलंगी और सुरंग पक्षी। बालकों के समान मधुर भाषा में छोटे-छोटे शब्द मानवभाषा के बोल लेता है। पक्षीवाला कहता था - 'यह बहुत शुभ पक्षी है और अनेक बार इसकी भविष्यवाणियाँ सर्वथा सत्य होती हैं। यह आगमज्ञानी पक्षी है।' पक्षीवाला ही कहता था कि यह हिमालय के बहुत ऊपरी भाग में हिमक्षेत्र में होता है। इसने भी यह पक्षी किसी दूसरे से क्

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।।श्री हरिः।।
46 - कन्हाई का पक्षी

आज एक पक्षी वाला आ गया नन्दग्राम में। एक ही पक्षी था इसके पास; किंतु इतना सुन्दर पक्षी तो इधर दीखता नहीं। मयूर की कलंगी से भी अत्यन्त सुन्दर कलंगी और सुरंग पक्षी। बालकों के समान मधुर भाषा में छोटे-छोटे शब्द मानवभाषा के बोल लेता है। पक्षीवाला कहता था - 'यह बहुत शुभ पक्षी है और अनेक बार इसकी भविष्यवाणियाँ सर्वथा सत्य होती हैं। यह आगमज्ञानी पक्षी है।'

पक्षीवाला ही कहता था कि यह हिमालय के बहुत ऊपरी भाग में हिमक्षेत्र में होता है। इसने भी यह पक्षी किसी दूसरे से क्

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 10 - गाय ब्यायी 'मेरी पुनीता बच्चा देने वाली है।' तोक ने कहा। 'तुझे कैसे पता लगा?' कन्हाई ने तोक की ओर आश्चर्यपूर्वक देखा। तोक तो उससे छोटा है - सब सखाओं में छोटा है, इसे पता लग गया और श्याम को पता नहीं लगता। 'मैया कह रही थी।' तोक ने बतलाया - इसी से तो पुनीता को बाबा चरने नहीं जाने देते हैं।'

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|| श्री हरि: || 
10 - गाय ब्यायी

'मेरी पुनीता बच्चा देने वाली है।' तोक ने कहा।

'तुझे कैसे पता लगा?' कन्हाई ने तोक की ओर आश्चर्यपूर्वक देखा। तोक तो उससे छोटा है - सब सखाओं में छोटा है, इसे पता लग गया और श्याम को पता नहीं लगता।

'मैया कह रही थी।' तोक ने बतलाया - इसी से तो पुनीता को बाबा चरने नहीं जाने देते हैं।'


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