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#broken_heart_boy_R_1

jivan ka safar Satyaprem Internet Jockey Vinay Vinayak Radhey Ray Gaganjit K

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अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा ! उससे धोखा खाकर 
अपनो से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा था, 
बेवफ़ाई कर के गई
ओर मिलने भी कब आई यारों
जब में कब्र में लेटा था, 
कब्र में लेटा था में खामोश 
मेरे आस पास लगा मेरी मातम का मेला था ,
थे मेरे साथ सारे अपने 
फिर भी में अकेला था 
फिर भी में अकेला था.....

R_1_Rathod
 #NojotoQuote jivan ka safar Satyaprem Internet Jockey Vinay Vinayak Radhey Ray Gaganjit K

smriti srivastava

अभी कुछ दिनों पहले में कही किसी काम से गया था वहा मेने देखा कि एक खेल दिखाने वाला परिवार खेल दिखा रहा था मेने देखा कि खेल दिखाने वाला वो इंसान उस परिवार का ख़ास हैं वो एक पिता था वो खेल दिखाने वाला अपने बच्चो को खेल दिखाने को बोल रहा था और वो बच्चे उसके एक इशारे पर खेल दिखाने लगते वो पिता बोलता

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 अभी कुछ दिनों पहले में कही किसी काम से गया था
वहा मेने देखा कि 
एक खेल दिखाने वाला परिवार खेल दिखा रहा था
मेने देखा कि खेल दिखाने वाला वो इंसान 
उस परिवार का ख़ास हैं वो एक पिता था
वो खेल दिखाने वाला अपने बच्चो को खेल 
दिखाने को बोल रहा था और वो बच्चे उसके 
एक इशारे पर खेल दिखाने लगते वो पिता बोलता

Yogesh

Let's smile for a while. एक जमींदार के लिए उसके कुछ किसान एक भुना हुआ मुर्गा और एक बोतल फल का रस ले आए। जमींदार ने अपने नौकर को बुलाकर चीजें उनके घर ले जाने को कहा। नौकर एक चालाक, शरीर लड़का था। यह जानते हुए जमींदार ने उससे कहा, "देखो, उस कपड़े में जिंदा चिड़िया है और बोतल में जहर है। खबरदार, जो रास्ते में उस कपड़े को हटाया, क्योंकि अगर उसने ऐसा किया तो चिड़िया उड़ जाएगी। और बोतल सूंघ भी ली तो तुम मर जाओगे। समझे?" नौकर भी अपने मालिक को खूब पहचानता था। उसने एक आरामदेह कोना ढूंढा और बैठकर भुना म

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Let's smile for a while.
एक जमींदार के लिए उसके कुछ किसान एक भुना हुआ मुर्गा और एक बोतल फल का रस ले आए। जमींदार ने अपने नौकर को बुलाकर चीजें उनके घर ले जाने को कहा। नौकर एक चालाक, शरीर लड़का था। यह जानते हुए जमींदार ने उससे कहा, "देखो, उस कपड़े में जिंदा चिड़िया है और बोतल में जहर है। खबरदार, जो रास्ते में उस कपड़े को हटाया, क्योंकि अगर उसने ऐसा किया तो चिड़िया उड़ जाएगी। और बोतल सूंघ भी ली तो तुम मर जाओगे। समझे?" 

नौकर भी अपने मालिक को खूब पहचानता था। उसने एक आरामदेह कोना ढूंढा और बैठकर भुना म

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 77 - विश्राम 'कनूं, तू थक गया है। आ, तेरे पैर दबा दूं।' भद्र धीरे से श्याम के चरणों के समीप बैठ गया। 'तू थक गया हो तो तेरे पैर दबा दूं।' कृष्ण इस समय अपनी मौज में है। भद्र इसके पैर दबाने लगे तो कोई पत्ता लेकर वायु करने आ पहुंचेगा। यह सब इस समय इसे अभीष्ट नहीं। भद्र के पास से अपने चरण इसने एक ओर खिसका लिये। हरी-हरी कोमल दूर्वा है। कहीं-कहीं शंखपुष्पी के उज्जवल पुष्प हैं उसमें छोटे-छोटे। ऊपर मौलिश्री की घनी छाया है। दाऊ पालथी मारे बैठा है और बडे़ भाई के समीप ही श्याम पेट के बल घ

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|| श्री हरि: ||
77 - विश्राम

'कनूं, तू थक गया है। आ, तेरे पैर दबा दूं।' भद्र धीरे से श्याम के चरणों के समीप बैठ गया।

'तू थक गया हो तो तेरे पैर दबा दूं।' कृष्ण इस समय अपनी मौज में है। भद्र इसके पैर दबाने लगे तो कोई पत्ता लेकर वायु करने आ पहुंचेगा। यह सब इस समय इसे अभीष्ट नहीं। भद्र के पास से अपने चरण इसने एक ओर खिसका लिये।

हरी-हरी कोमल दूर्वा है। कहीं-कहीं शंखपुष्पी के उज्जवल पुष्प हैं उसमें छोटे-छोटे। ऊपर मौलिश्री की घनी छाया है। दाऊ पालथी मारे बैठा है और बडे़ भाई के समीप ही श्याम पेट के बल घ

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 60 - ऊंघ 'राम, दूध पी ले बेटा! तू दूध पीयेगा तो श्याम भी पीयेगा।' माता रोहिणी अपने आगे बैठाये है अपने स्वर्णगौर कुमार को। दाऊ दोनों चरण आधे मोड़े बैठ गया है और उसके दोनों हाथ भी दूध के कटोरे पर हैं, किंतु नेत्र बंद हैं। अलकें बिखरी हैं मुखपर। वह अधर कटोरे पर लगाकर भी ऊंघ रहा है। माता अपने हाथ से कटोरा सम्हाले है और बार-बार स्नेहपूर्वक दूध पी लेने के लिए कह रही है। 'तू दूध पीयेगा तो श्याम भी पीयेगा।' नींद के वेग में भी दाऊ जैसे कुछ न कुछ समझ लेता है इस बात को। उसके अधर हिल जाते

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|| श्री हरि: ||
60 - ऊंघ

'राम, दूध पी ले बेटा! तू दूध पीयेगा तो श्याम भी पीयेगा।' माता रोहिणी अपने आगे बैठाये है अपने स्वर्णगौर कुमार को। दाऊ दोनों चरण आधे मोड़े बैठ गया है और उसके दोनों हाथ भी दूध के कटोरे पर हैं, किंतु नेत्र बंद हैं। अलकें बिखरी हैं मुखपर। वह अधर कटोरे पर लगाकर भी ऊंघ रहा है। माता अपने हाथ से कटोरा सम्हाले है और बार-बार स्नेहपूर्वक दूध पी लेने के लिए कह रही है।

'तू दूध पीयेगा तो श्याम भी पीयेगा।' नींद के वेग में भी दाऊ जैसे कुछ न कुछ समझ लेता है इस बात को। उसके अधर हिल जाते

Anil Siwach

35 - गोष्ठशायी || श्री हरि: ||

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35 - गोष्ठशायी 
 || श्री हरि: ||

Anil Siwach

33 - गोपाल || श्री हरि: ||

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33 - गोपाल 
 || श्री हरि: ||


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