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SUmeet arora

बेखबर प्यासा कोई कूद गया आशिकी समुंदर में😍
पर पता ना था ये प्यास खून - के - आंसू पर रुकेगी😭

- SUmeet Arora #आंसू #कूद #प्यास   #आशिकी #समुंदर  #follow #shayri #Instagram @itz_sumeet_arora

SUmeet arora

#Motivation  बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए- इश्क़ में कोई

अपने थे  कि महव-ए-तमाशा बन देखते रहे  अभी..

-SUmeet Arora #Motivation #बेकरार #कूद #इश्क #विचार #फॉलो #follow  #Instagram @itz_sumeet_arora

Bhagwanta sahu

#दिल #मन #हालात #दिल की सुने की मन का माने

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मन विचार कर रहा था कि छत से कूद जाऊ
लेकिन दिल का क्या वो जो कह रहा रहा था
तेरे कूदने से क्या होगा जो खुद कूद रहा
जहा से कूद रहा वो खुद वही रह जायेगा। #दिल #मन #हालात #दिल की सुने की मन का माने

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 12 - भगवान ने क्षमा किया ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
12 - भगवान ने क्षमा किया

ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।

Vikramkumar

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#OpenPoetry रक्षा बंधन क्या है 🤔

रक्षाबन्धन एक ऐसा त्यौहार जिस। दिन भाई ,बहन का प्यार कूद कूद कर बाहर आता है
हाय मेरा भाई, हाय मेरी बहन

लेकिन ऐसा होता कुछ नही है 
पूरे साल ऐसे कुत्ते -बिल्ली की तरह लड़ते हैं
की खुद के मा -बाप कहते है कि कैसी जानवर औलादे पाल रहे है
😛😛🤣

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

Prince Kumar

prince Raj...

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आइये कुछ अच्छा पढ़ते हैं।।

कहीं दूर ले चल मुझे
  
ऐ दिल चल कहीं दूर ले चल मुझे,
जहाँ फिर कोई ना तोड़ सके तुझे।

एक खामोश झील हो, एक झरना हो,
पहाड़ों की गोद से उसे बिखरना हो।

खुले आसमां में तारों तले सोएं हम,
हसें भी वहीँ, उसी माटी में रोएं हम।

छोटा सा आशियां हो सर छुपाने को,
कोई अपना ही गीत हो गुनगुनाने को।

रिश्तों का बोझ ना हो बेड़ियाँ बन कर,
कलम से निकलें लफ्ज़ खुशियाँ बन कर।

ना तलाश हो ना राह देखें किसी की हम,
ना उम्मीदें हों, ना हो सपने टूटने का ग़म।

नाज़ुक ओस की बूंदों से नज़रें मिलाएं,
पत्तों की चाद्दर से कूद कर वो इठलाएं।

खामोश है दरिया, पर दूर नहीं जाता,
दिल तोड़ने का हूनर इसे नहीं आता।

हवाओं का एहसास भी महोब्बत सा हैं,
माटी में लोटना जैसे एक इबाद्दत सा है।

वो पहली बारिश में बस भीगते ही जाना,
बूंदों का तालाब में कूद कर टिमटिमाना।

ऐसी एक दुनिया में जल्द ही ले चल मुझे,
ये नाउम्मीद सांसें जाने कब छोड़ दे मुझे।

ऐ दिल चल अब कहीं दूर ले चल मुझे,
बस दूर बहुत दूर कहीं भी ले चल मुझे।

लेखक ~प्रिंस कुमार prince Raj...

Vikash Mehra KD

मेरी डायरी मेरा बचपन

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बचपन और बारिश बारिश का आना ,हमारा काम था नहाना,
सिर्फ पहन के कच्छा, बूंदों को सहलाना ।
पानी में कूद कूद के ऊंची छलांग लगाना,
कच्ची भीगी मिट्टी में जान भूझकर फिसलजाना ,
भैंसों के साथ जोहड़ में नंगे नहाना
सच में कुछ ऐसा था हमारा,
 बचपन और बारिश का याराना ।। मेरी डायरी मेरा बचपन

Aaditya Sharma

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करते होंगे वो बादल भी गुरुर ख़ुद पर,
जब भीगती होगी,
 तुम बारिश में कूद कूद कर।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 2 - भगवान की पूजा एक साधारण कृषक है रामदास। जब शुक्र तारा क्षितिज पर ऊपर उठता है, वह अपने बैलों को खली-भूसा देने उठ पड़ता है। हल यदि सूर्य निकलने से पहले खेत पर न पहुँच जाय तो किसान खेती कर चुका। दोपहर ढल जाने पर वह खेत से घर लौट पाता है। बीच में थोड़े-से भुने जौ या चने और एक लोटा गुड़ का शर्बत - यही उसका जलपान है। जाड़े के दिन सबसे अच्छे होते हैं। उन दिनों जलपान में हरी मटर उबाल कर नमक डाल कर घर से आ जाती है खेतपर और गन्ने का ताजा रस आ जा

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
2 - भगवान की पूजा


एक साधारण कृषक है रामदास। जब शुक्र तारा क्षितिज पर ऊपर उठता है, वह अपने बैलों को खली-भूसा देने उठ पड़ता है। हल यदि सूर्य निकलने से पहले खेत पर न पहुँच जाय तो किसान खेती कर चुका। दोपहर ढल जाने पर वह खेत से घर लौट पाता है। बीच में थोड़े-से भुने जौ या चने और एक लोटा गुड़ का शर्बत - यही उसका जलपान है। जाड़े के दिन सबसे अच्छे होते हैं। उन दिनों जलपान में हरी मटर उबाल कर नमक डाल कर घर से आ जाती है खेतपर और गन्ने का ताजा रस आ जा
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