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Surendra Verma
जड़ों को खोदते हो, कभी शाख़ें काटते हो फिर मुझसे पूछते हो, क्या छाँव बाँटते हो... #छाँव#जड़ों
Naresh Chandra
अपनी #जड़ों की ओर लौटिए। अपने #सनातन_मूल की ओर लौटिए, व्रत, पर्व, #त्यौहारों को मनाइए अपनी #संस्कृति और सभ्यता को #जीवंत कीजिये। आपस में एक दूसरे से #आगे निकलने की #होड़, पद व पैसे के #घमंड को थोड़ी देर छोड़कर इस पर भी विचार करें :- ० यदि #मातृनवमी थी तो मदर्स डे क्यों लाया गया? ० यदि कौमुदी महोत्सव था तो #वेलेंटाइन डे क्यों लाया गया? ० यदि #गुरुपूर्णिमा थी तो टीचर्स डे क्यों लाया गया? ० यदि धन्वन्तरि जयन्ती थी तो #डाक्टर्स डे क्यों लाया गया? ० यदि #विश्वकर्मा जयंती थी तो #प्रद्यौगिकी दिवस क्यों लाया? ० यदि #सन्तान_सप्तमी थी तो #चिल्ड्रन्सडे क्यों लाया गया? ० यदि #नवरात्रि और कंजिका भोज था तो #डॉटर्स_डे क्यों लाया? ० #रक्षाबंधन है तो #सिस्टर्स_डे क्यों? ० भाईदूज है #ब्रदर्स_डे क्यों? ० आंवला नवमी, #तुलसी_विवाह मनाने वाले हिंदुओं को #एनवायरमेंट डे की क्या आवश्यकता? ० नवरात्रि को #स्त्री के #नवरूप दिवस के रूप में स्मरण कीजिये। सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये। #नव_संवत्सर को #अप्रैल_फूल डे घोषित कर एक जनवरी हैप्पी #न्यू_ईयर कर दिया गया! अब #पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। यदि हम समय रहते नहीं #चेते तो वे ही हमें #वेद_शास्त्र_संस्कृत भी पढ़ाने आ जाएंगे! *उत्सव और पर्व सनातन धर्म की शक्ति हैं।।* भारतीय परंपरा #लक्ष्मीनरेश #flyhigh
भारतीय परंपरा #लक्ष्मीनरेश #flyhigh
read moreअनजान पथिक
मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझा दिए जाएँगे वक़्त की एक फूँक से, मैं एक ज़िद की तरह उग आऊँगा कोपलों के रूप में। मुझे मिट्टी में रोप कर काश नए जीवन बनाए जा सकें! सुनो, उस वक़्त तुम बस अपनी पलकों के नीचे मेरे लिए कुछ बूँदें बचा कर रखना। मेरी जड़ें तुम्हारे आँसुओं की छुअन पहचानती हैं। तुम्हारे बाद, मैंने अपने अन्दर उस छुअन से अपनी जड़ों को फैलता हुआ महसूस किया है। हम इंसान के रूप में शायद कमज़ोर हो जायें, पर एक पेड़ के रूप में मज़बूत हो जाते हैं किसी के जाने के बाद। मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझ
मैं धूप में बैठता हूँ तो खिल उठता है मेरा रोम-रोम, बारिश होती है तो अपने अन्दर कुछ रिसता हुआ महसूस होता है। रोशनी में ढूँढता हूँ दाना-पानी और अंधेरा होने पर मुरझा जाता हूँ, बंद कर लेता हूँ अपने सारे खिड़की दरवाज़े किसी बाहरी खटके से बचने के लिए। मुझे कई बार लगता है कि मेरे अंदर एक पेड़ है, जो इस जिस्म में क़ैद कर दिया गया है। अपनी जड़ों की टोह पाने के लिए मैंने कई बार खरोंचा है अपनी रूह की दीवारों को। वहाँ बस एक ठण्डी सी चुप है। जाने अजाने एक ख़्वाहिश गूँजा करती है, बस। जब सारे सूरज, चाँद, तारे बुझ
read moreShivam Mishra
खाद तेरी जड़ों मे पड़ी खाद हूँ मैं तू बस बीच मे है तेरे पहले भी हूँ तेरे बाद भी हूँ तेरी जड़ों मे पड़ी खाद हूँ मैं तू बस बढ़ता रहे इसी तरह तुझे आबाद करने के लिये ही बर्बाद हूँ मैं तेरी जड़ों मे पड़ी खाद हूँ मैं एक दिन मे नहीं बना मैं ऐसा कभी किसी के अच्छे दिनों की याद हूँ मैं तेरी जड़ों मे पड़ी खाद हूँ मैं ©शिवम मिश्र
Rohit Thapliyal (Badhai Ho Chutti Ki प्यारी मुक्की 👊😇की 🙏)
हर शहीद की आत्मा हम सभी को सर्तक करते हुए यह कह रही है कि- "ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा मेरे वतन को भी टटोलो! इसमें भी कुछ गद्दार छुपे होंगे, जो आतंक रूपी पेड़ की जड़ों को सींच रहे होंगे! जब उनका पता चल जायेगा, तो आतंक की जड़ों को तो नष्ट करना बहुत ही आसान हो जायेगा!" 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 बधाई हो छुट्टी की by #NojotoQuote हर शहीद की आत्मा हम सभी को सर्तक करते हुए यह कह रही है कि- "ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा मेरे वतन को भी टटोलो! इसमें भी कुछ गद्दार छुपे होंगे, जो आतंक रूपी पेड़ की जड़ों को सींच रहे होंगे! जब उनका पता चल जायेगा,
हर शहीद की आत्मा हम सभी को सर्तक करते हुए यह कह रही है कि- "ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा मेरे वतन को भी टटोलो! इसमें भी कुछ गद्दार छुपे होंगे, जो आतंक रूपी पेड़ की जड़ों को सींच रहे होंगे! जब उनका पता चल जायेगा,
read moreतितली
तितली;जरा गुनगुनाओ न कुछ गीत-२ फैला पँखों को हवा में उड़ते हुए; छेड़ दो न इक तराना इन पत्तों संग-२ जिन्हें है मिटटी में मिल जाना फिर जड़ों से होते हुवे शाखाओं में घुल जाना;तितली प्रकृती में प्रवाह है-२ कड़ों का कड़ों में;जड़ों का जड़ों में, जैसे तुम्हारे गीत जो होते हैं प्रवाहित हवा के रास्ते कानों तक फिर दिल में जाकर रूह में उतर जाते हैं #part_1#my_life#titli#Mylove#hug_day
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