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धाकड़ है हरियाणा
DHAKAD HAI HARYANA
Amit Saini
Winter and Snowfall इन सर्दियों में अगर तू भी ना होती तो तुझे भी बेवफा कहते जमने वाली ओस की बूंदे #जमकर होगी बर्फबारी सर्दियों में
#जमकर होगी बर्फबारी सर्दियों में
read moreManeesh Ji
Read In Caption - MERI SHAYARI MERI DASTAAN #शराब🍷 ,, #साकीं 🙋♀️,, #मदिरा🍺 ,, #मदिरालय 🍻 और #मैं 🙋♂️ ............................................................................ 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 साकीं 👉 साकीं वों जों #मयख़ानें में #शराब पिलाने का #काम करतीं हैं ............................................................................ 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
#शराब🍷 ,, #साकीं 🙋♀️,, #मदिरा🍺 ,, #मदिरालय 🍻 और #मैं 🙋♂️ ............................................................................ 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 साकीं 👉 साकीं वों जों #मयख़ानें में #शराब पिलाने का #काम करतीं हैं ............................................................................ 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
दर्द बहा फिर पानी बनकर।। जमकर रोया, आंख भिगोया, दर्द बहा फिर पानी बनकर। नमक घुला आंसू में मेरे, प्यार रहा नादानी बनकर। क्या थी दस्तक, कौन था आया, किससे करूँ मैं अपनी बातें। आकर अब तो दीप बुझा जा, रास न आयीं अपनी रातें। रोते रहे बस नाम ले तेरा, और कहां कोई नाम सुना था। दुनिया दुश्मन आज बनी है, और कहां कोई नाम चुना था। ले जा अपना गीला दुपट्टा, यादें जी भर के हैं नहाईं। गीला बदन है, गीली यादें, रातें जी भर के है समाईं। वो जुगनू जो टिम टिम करता, आज ज़मीं निस्तेज पड़ा है। जीवन के कई रंग हैं देखे, ये ज़ालिम रंगरेज़ बड़ा है। तुमको रंगता मुझको रंगता, आज रंगा है कहानी बनकर। जमकर रोया, आंख भिगोया, दर्द बहा फिर पानी बनकर। वो बारिश की बूंदे फिर से, आग लगाने अंगना आयीं। ख़्वाब सजे बारात सजी थी, आज चढ़ाने कंगना लायीं। दिल मेरा शहनाई हुआ है, दर्द में भी ये बजता है। दीवारों पे भी लग गईं लड़ियाँ, आंखों में मोती सजता है। आज विदा कर दो तुम मुझको, आये बाराती गए बाराती। यादें दुल्हन बनकर निकलीं हैं, टीका लगाती बिंदि सजाती। सेज सजाया है फूलों से, आतुर हैं सांसें सोने को। तुम जो गयी है ग़म भी नहीं, है कौन बचा अब रोने को। इश्क कराहें ले कहता है, क्या पाया तू जवानी बनकर। जमकर रोया, आंख भिगोया, दर्द बहा फिर पानी बनकर। ©रजनीश "स्वछंद" दर्द बहा फिर पानी बनकर।। जमकर रोया, आंख भिगोया, दर्द बहा फिर पानी बनकर। नमक घुला आंसू में मेरे, प्यार रहा नादानी बनकर। क्या थी दस्तक, कौन था आया,
दर्द बहा फिर पानी बनकर।। जमकर रोया, आंख भिगोया, दर्द बहा फिर पानी बनकर। नमक घुला आंसू में मेरे, प्यार रहा नादानी बनकर। क्या थी दस्तक, कौन था आया,
read moreसोमेश त्रिवेदी
इक नज़र का दोष है जो इस क़दर भटका हुआ हूं, ये है पता कि रिस्क है पर प्यार में लटका हुआ हूं। जिस गली है घर तेरा उस गली में हो बसेरा, पर डर है तेरे बाप की नजरों में मैं खटका हुआ हूं। इश्क़ में जब तक कुटाई या पिटाई हो नहीं, जमकर सुताई हो नहीं जमकर धुनाई हो नहीं। तब तक नहीं मिलता है दर्जा मजनुओं को मजनुओं का, इसी आसरे में आसरा है इसी आसरे अटका हुआ हूं। ये है पता कि रिस्क है पर प्यार में लटका हुआ हूं #NojotoQuote इक नज़र का दोष है जो इस क़दर भटका हुआ हूं, ये है पता कि रिस्क है पर प्यार में लटका हुआ हूं। जिस गली है घर तेरा उस गली में हो बसेरा, पर डर है तेरे बाप की
इक नज़र का दोष है जो इस क़दर भटका हुआ हूं, ये है पता कि रिस्क है पर प्यार में लटका हुआ हूं। जिस गली है घर तेरा उस गली में हो बसेरा, पर डर है तेरे बाप की
read moreArpi Dwivedi
#बारिश जमकर वर्षा आज हमारे शहर में पानी मैंने भी मौका नहीं छोड़ा 👇👇👇 जमकर नहाया जमकर रोया Manu bhatt reena uikey Danish Mehra Lokesh Jain Divya Joshi #बारिश#लव
Anil Siwach
।।श्री हरिः।। 53 - श्याम भी असमर्थ आज फिर भद्र रूठ गया है। कन्हाई इसकी सुनता नहीं - इतना विलम्ब हो गया, इसके अरूण कोमल अधर सूखने लगे, उदर नीचा हो गया, यह क्षुधातुर है और भद्र की बात ही नहीं सूनता। ऐसा खेल में लगा है कि इसे अपने श्रान्त होने, क्षुधातुर होने का ध्यान नहीं। भद्र कहता है - 'अब चल, सब भोजन करें।' 'तू भूखा है? तुझे अभी से क्षुधा लगी है?' श्याम उलटे ही पूछता है - 'तू छीका नहीं लाया तो सुबल का छीका खा ले।' यह भी कोई बात हुई। भद्र अपनी क्षुधा के कारण कन्हाई को क्रीड़ा-विरमित होने को क
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 2 -उलझन में राम श्याम दोनों आकर द्वार के बाहर खड़े ही हुए थे कि एक तितली कहीं से उड़ती आयी और दाऊ की अलकों पर बैठ गयी। कन्हाई यह कैसे सहन करले कि यह क्षुद्र प्राणी उसके अग्रज के सिर पर ही बैठे; किन्तु तितली को हटाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह अलकों से उड़ कर इसके दाहिने हाथ की नन्हीं मध्यमा अँगुली पर ही आ बैठी। इतनी सुकुमार, इतनी अरुण अँगुली - तितली को बैठने के लिए इससे अधिक मृदुल, सुन्दर सुरभित कुसुम भला कहाँ मिलने वाला है। अब श्याम उलझन में पड़ गया है। यह अपनी अँगुली पर बैठी इस छो
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