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Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय"

नोट:- शब्दार्थ #प्रभा = उजाला #तिमिर = अँधेरा #जमघट = भीड़ #अंचल = इलाका #standAlone #मंजुलाहृदय #2liner #Motivation #Rekhasharma #feb 18th, 2021 @01:51 am

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चल चलें प्रभा से दूर कहीं घोर तिमिर की ओर हृदय!
      अब ये जमघट वाला अंचल हमें तनिक भी रास नहीं आता...
-रेखा "मंजुलाहृदय"

©Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" नोट:- शब्दार्थ
#प्रभा = उजाला
#तिमिर = अँधेरा
#जमघट = भीड़
#अंचल = इलाका

#standAlone #मंजुलाहृदय #2liner #motivation #Rekhasharma #feb 18th, 2021
@01:51 am

Ayaan Singh

my #Love my #Dream my #अंचल

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आ चल हम दोनों भी 
मोहब्बत वाला खेल खेलेंगे 
हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगे
धोखेबाजी और दर्द का 
कहीं नाम भी ना होगा 
इसलिए मोलभाव करके 
ही दिलों की सौदेबाजी करेंगे my #love
my #dream 
my #अंचल

सारस(रमेश शर्मा)

#अंचल #मोह के धागे

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 3 - भरोसा भगवान का 'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक क

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
3 - भरोसा भगवान का

'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक क

Bhaskar Anand

"कोमल किशलय के अंचल में" उतश्रृंखल नयन गहन विषाद में तड़पता मन सुख अंचल आश में विस्मृत तन-मन सूखे आषाढ़ में बह चला कहीं अनंत वियाग में मैंने पाया स्वतृष्णा को

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"कोमल किशलय के अंचल में"

उतश्रृंखल नयन गहन विषाद में
तड़पता मन सुख अंचल आश में
विस्मृत तन-मन सूखे आषाढ़ में
बह चला कहीं अनंत वियाग में

मैंने पाया स्वतृष्णा को

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 3 - भरोसा भगवान का 'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक की पीठपर ही सही, सोलह मील की यात्रा करके क

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|| श्री हरि: ||
3 - भरोसा भगवान का

'वह देखो!' याक की पीठ पर से ही जो कुछ दिखाई पड़ा उसने उत्फुल्ल कर दिया। अभी दिनके दो बजे थे। हम सब चले थे तीर्थपुरी से प्रात: सूर्योदय होते ही, किंतु गुरच्याँग में विश्राम-भोजन हो गया था और तिब्बतीय क्षेत्र में वैसे भी भूख कम ही लगती है। परन्तु जहाँ यात्री रात-दिन थका ही रहता हो, जहाँ वायु में प्राणवायु (आक्सिजन) की कमी के कारण दस गज चलने में ही दम फूलने लगता हो और अपना बिस्तर समेटने में पूरा पसीना आ जाता हो, वहाँ याक की पीठपर ही सही, सोलह मील की यात्रा करके क


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