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Best निद्रा Shayari, Status, Quotes, Stories

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Ekta Gour

मै जागती हूँ इसलिए 
कयोकि मुझे निंद नहीं आती|

देर से भी सोऊँ तो सुबह 
जल्दी निंद खुल जाती|

जलती हुई शंमा भी जल कर बुझ जाती 
पर मेरी निद्दीयाँ मेरी ना हो पाती|

जब ना वो माँ पास तो में डर जाती
कही खयालो की चपेट में मै आ जाती|



 #निद्रा #जागतीआँखें 
#yqdidi #yqquotes

Ekta Gour

बैचेन दिल को चैन कहाँ
बिना बात किये तुमसे आँखो में निंद कहाँ #बैचन #निद्रा #goodnight

Vibha Katare

जब घड़ी के उत्तरीय ध्रुव पर मिनट और घंटे की सुइयाँ अपनी तयशुदा मीटिंग करने ही वाली हो..
या 
आंखों के दरवाजे स्वतः ही किसी जगमगाते मॉल के आटोमेटिक प्रवेश द्वार की भांति ओपन शट का गेम खेलने लगे..
या
आपके मष्तिष्क के तंत्रिका तन्तु के सभी प्रोटॉन और इलेक्ट्रान आपस मे युद्ध छेड़ दे औऱ न्यूट्रॉन्स को गेहूं के घुन समझ बेहाल करने लगें 
तब
आप अपनी व्यस्त या अस्त व्यस्त दिनचर्या को विराम दें
अपने फोन / लैपटॉप/ टी वी की जगमगाती दुनिया को विश्राम दें
और नए दिन के लिए सपनों को रिचार्ज करने की प्रक्रिया अर्थात निद्रावस्था में विस्थापित हो जाएं ।
शुभ रात्रि । #cinemagraph #midnightthoughts #goodnight #निद्रा #hindiquotes  #yqdidi

Vibha Katare

निद्रा में आये स्वप्न कभी
कभी स्वप्न में आई निद्रा..
सो जायूँ या सपने देखूँ,
सपने देखूँ या सो जायूँ,
हर रोज यही है दुविधा । #स्वप्न #निद्रा #दुविधा #yqdidi #nightowl

Ambrish Shukla

'निद्रा' हम सभी को 'नया दिन' दिखाती है
वहीं 'चिरनिद्रा' हमको 'नया जीवन'
दिखाती है
दोनों ही आवश्यक है हम सबके लिए
निद्रा अल्पविश्राम और चिरनिद्रा
दीर्घ विश्राम लाती है #निद्रा #चिरनिद्रा #अल्पविश्राम #दीर्घविश्राम #शायरी

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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माँ निंद्रा देवी

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जय मां निद्रा देवी 

दिन सर्म्पित रात सर्म्पित
घर का सारा कामकाज सर्म्पित
चाहता हूँ निद्रा देवी तुझे कूछ और भी दूं ,

मातपिता का दूलार सर्म्पित
भाईबहन का प्यार सर्म्पित
teachar का आर्शिवाद सर्म्पित
चाहता हू निद्रा देवी तुझे कूछ और भी दूं ,

Timex घडी का Time सर्म्पित
 Mob. का Alarm सर्म्पित
चाहता हूं निद्रा देवी तुझे कुछ और भी दूं ,
 
दैवी तुम्हारा ऋण बहूत है,
मैं अकेला किन्तू इतना कर रहा तुझको सर्म्पन...
 
   -- तुझे मैं ओर क्या दूं ॥ माँ निंद्रा देवी

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 17 - सात्विक त्याग कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन। संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।। (गीता 18।9)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
17 - सात्विक त्याग

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन।
संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।।
(गीता 18।9)

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 15 - तामस त्याग नियतस्य तु संन्यास: कर्मणो नोपपद्यते। मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परिकीर्तितः।। (गीता 18।7)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
15 - तामस त्याग

नियतस्य तु संन्यास: कर्मणो नोपपद्यते।
मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परिकीर्तितः।।
(गीता 18।7)

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 ||श्री हरिः|| 6 - भगवत्प्राप्ति 'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो मह

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

||श्री हरिः||
6 - भगवत्प्राप्ति

'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो मह
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