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Best सघन Shayari, Status, Quotes, Stories

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Ghumnam Gautam

सहारा भी चमन हो नाच उठा, नभ नील सघन हो नाच उठा
सहसा एक नई पीड़ मिली, मन मस्त मगन हो नाच उठा

©Ghumnam Gautam #Dance 
#सघन 
#नभ  
#ghumnamgautam

Anjali Raj

ज्यों क्षत विक्षत से घन त्यों ही बिखरा बिखरा मन
घन में दिनकर शोभित मन मेँ छाया तिमिर सघन

 #YQdidi #अंजलिउवाच #घन #सघन #मन #दिनकर #क्षतविक्षत

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#सघन_बागवानी_क्यो_करें? 1)#अब_गर्मी_मे_कागजी_लिंबु_कि_पैदावार_ले, 1एकड मे 6 एकड कि उपज प्राप्त करे बडी आसानीसे 2)#ब्राझील बेस (#Sweet_Lime) #मौसमी कि सघन बागवानी, 3)#केशरआम कि सघन बागवानी 20 एकड कि उपज 1 एकड मे पाए,

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 #सघन_बागवानी_क्यो_करें?

1)#अब_गर्मी_मे_कागजी_लिंबु_कि_पैदावार_ले,     1एकड मे 6 एकड कि उपज प्राप्त करे बडी आसानीसे

2)#ब्राझील बेस (#Sweet_Lime) #मौसमी कि सघन   बागवानी,

3)#केशरआम कि सघन बागवानी 20 एकड कि उपज 1 एकड मे पाए,

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना

'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।

राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

Kumar sanskar

#पानी

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पानी के विविध रूप है,
कभी बर्फ तो कभी तरल
तपित धूप में बन उड़ता है
बदली के कुछ वाष्प सघन
बन बूंदें जब आंच छोड़ें
बदली के घर से वाष्प सघन
बूंदों के भाग्य का निर्णय
होता है उनकी यात्रा पर।
कुछ खतों में, कुछ नदियों में
तो कुछ कोमल पुष्पों पर गिरतीं।
इनमें से कुछ होती ऐसी,
जो सीप के मुख पर जा गिरती है,
जो भाग्य पर जाएं मचल।
हो जाता इसके जीवन का,
अंतिम लक्ष्य का सार सफल।
                     - राजेश कुमार

 
 

 #gif #पानी

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 44 - नित्य मिलन श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो। मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं। भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि

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।।श्री हरिः।।
44 - नित्य मिलन

श्याम आज बहुत प्रसन्न है। यह आनन्दकन्द - इसके समीप पहुँचते ही दुसरों का विषाद-खिन्न मुख खिल उठता है। जहाँ जाता है, हर्ष-आह्लाद की वर्षा करता चलता है; किन्तु आज तो लगता है जैसे पूर्णिमा के दिन महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो।

मैया ने शृंगार कर दिया है। सिर पर तैल-स्निग्ध घुंघराली काली सघन मृदुल अलकें थोड़ी समेट कर उनमें मोतियों की माला लपेट दी है और तीन मयूरपिच्छ लगा दिये हैं।

भालपर गोरोचन की खोर के मध्य कुंकुम का तिलक है। कुटिल धनुषाकार सघन भौंहों के नीचे अंजन-रंजि

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 25 - रूठने की बात कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी? गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

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|| श्री हरि: ||
25 - रूठने की बात

कन्हाई कभी-कभी हठ करने लगता है। कभी ऐसी हठ करता है कि किसी की सुनता ही नहीं। कोई इसके सुख की, इसके मन की बात हो तो इसकी हठ मान भी ली जाए, किन्तु यह भी कोई बात है कि यह आज हठ पर उतर आया है कि पुलिन पर खेलेगा। ग्रीष्म ऋतु है और यहाँ पुलिन पर छाया है नहीं। क्या हुआ कि मेघ आकाश में छत्र बने आतप को रोकते हैं, किन्तु क्या मेघ रहने से ही धूप की उष्णता पूरी रूक जाती है? क्या इसी से पुलिन रेणुका उष्ण नहीं होगी?

गोचारण के लिए वन में आकर शीतल पुलिन पर क्रीडा हो चुकी। स्न

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 18 - वर्षा में श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है। प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे

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।।श्री हरिः।।
18 - वर्षा में

श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है।

प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - गायक श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए। वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है। वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।

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|| श्री हरि: || 
7 - गायक

श्याम गा रहा है - अस्फुट स्वर में कुछ गा रहा है। गुनगुना रहा है, कहना चाहिए।

वृन्दावन का सघन भाग - अधिकांश वृक्ष फल-भार से झुके हैं और उन पर हरित पुष्पगुच्छों से लदी लताएँ चढी लहरा रही हैं। भूमि कोमल तृणों से मृदुल, हरी हो रही है।

वृक्षों पर कपि हैं और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पूरे वन के कपि और पक्षी मानो यहीं एकत्र हो गये हैं; किन्तु इस समय न कपि कूदते-उछलते हैं, न पक्षी बोलते हैं। सब शान्त-निस्तब्ध बैठे हैं। एक भ्रमर तक तो गुनगुनाता नहीं; क्योंकि श्याम गा रहा है।
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