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Ex_bhoot
हमारे लिए हमारा धर्म सर्व प्रथम है, अगर हमारे धर्म से आपके प्रेम में व्यदाये आती हैं, तो जाइए हम आपका और अपने प्रेम का त्याग करते हैं। ©Evil spirit (bhoot) sanatan #सर्वथा #evilspirit #viral #Nojoto
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read moreतन्हा
राष्ट्रपिता इस राष्ट्र के हो तुम , अहिंसा के संसार हो सत्य , अहिंसा और प्रेम का , एक सत्य पुकार हो भारतवर्ष आजाद रहे सर्वथा , तुम्हारा यह सपना साकार हो तुम मेरे स्वपन हो , मेरी भाषा , मेरे सत्य विचार हो पर इतना बतला दो बापू , क्या भगत सिंह की फांसी का तुम भी जिम्मेदार हो...??? मैं समाज के कुछ लोगों से यह सुनता आया हूं।कि गांधीजी चाहते तो भगतसिंह की फांसी रुक सकती थी। क्या आप भी यही मानते हैं? मैं इस प्रश्न का उत्तर आप सभी से पूछता हूं मेरी नजरों में बापू ऐसा नहीं थे आप क्या सोचते हैं। #राष्ट्रपिता इस #राष्ट्र के हो तुम , #अहिंसा के #संसार हो #सत्य , #अहिंसा और #प्रेम का , #एक #सत्य #पुकार हो #भारतवर्ष #आजाद रहे #सर्वथा , #तुम्हारा यह #सपना #साकार हो #तुम मेरे #स्वपन हो , मेरी #भाषा , मेरे #सत्य #विचार हो
मैं समाज के कुछ लोगों से यह सुनता आया हूं।कि गांधीजी चाहते तो भगतसिंह की फांसी रुक सकती थी। क्या आप भी यही मानते हैं? मैं इस प्रश्न का उत्तर आप सभी से पूछता हूं मेरी नजरों में बापू ऐसा नहीं थे आप क्या सोचते हैं। #राष्ट्रपिता इस #राष्ट्र के हो तुम , #अहिंसा के #संसार हो #सत्य , #अहिंसा और #प्रेम का , #एक #सत्य #पुकार हो #भारतवर्ष #आजाद रहे #सर्वथा , #तुम्हारा यह #सपना #साकार हो #तुम मेरे #स्वपन हो , मेरी #भाषा , मेरे #सत्य #विचार हो
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 5 - भक्ति-मूल-विश्वास 'पानी!' कुल दस गज दूर था पानी उनके यहाँ से; किंतु दुरी तो शरीर की शक्ति, पहुँचने के साधनपर निर्भर है। दस कोस भी दस पद जैसे होते हैं स्वस्थ सबल व्यक्ति को और आज के सुगम वायुयान के लिये तो दस योजन भी दस पद ही हैं; किंतु रुग्ण, असमर्थ के लिए दस पद भी दस योजन बन जाते हैं - 'यह तो सबका प्रतिदिन का अनुभव है। 'पानी!' तीव्र ज्वराक्रान्त वह तपस्वी - क्या हुआ जो उससे दस गज दूर ही पर्वतीय जल-स्त्रोत है। वह तो आज अपने आसन से उठन
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 ||श्री हरिः|| 6 - भगवत्प्राप्ति 'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो मह
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 15 - कलियुग के अन्त में आपने यदि वैज्ञानिक कही जाने वाली कहानियों में से कोई पढी हैं तो देखा होगा कि किस प्रकार दो-चार शती आगे की परिस्थिति का उनमें अनुमान किया जाता है और वह अनुमान अधिकांश निराधार ही होता है। यह कहानी भी उसी प्रकार की एक काल्पनिक अनुमान मात्र प्रस्तुत करती है; किंतु यह सर्वथा निराधार नहीं है। पुराणों में कलियुग के अन्त समय का जो वर्णन है, वह सत्य है; क्योंकि पुराण सर्वज्ञ भगवान् व्यास की कृति है। उनमें भ्रम, प्रमाद सम्भव न
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 2 – ग्रह-शान्ति 'मनुष्य अपने कर्म का फल तो भोगेगा ही। हम केवल निमित्त हैं उसके कर्म-भोग के और उसमें हमारे लिये खिन्न होने की कोई बात नहीं है।' आकाश में नहीं, देवलोक में ग्रहों के अधिदेवता एकत्र हुए थे। आकाश में केवल आठ ग्रह एकत्र हो सकते हैं। राहु और केतु एक शरीर के ही दो भाग हैं और दोनों अमर हैं। वे एकत्र होकर पुन: एक न हो जायें, इसलिये सृष्टिकर्ता ने उन्हें समानान्तर स्थापित करके समान गति दे दी है। आधिदैवत जगत में भी ग्रह आठ ही एकत्र होते
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||श्री हरिः|| 6 - भगवत्प्राप्ति 'मनुष्य जीवन मिला ही भगवान को पाने के लिए है। संसार भोग तो दूसरी योनियों में भी मिल सकते हैं। मनुष्य में भोगों को भोगने की उतनी शक्ति नहीं, जितनी दूसरे प्राणियों में है।' वक्ता की वाणी में शक्ति थी। उनकी बातें शास्त्रसंगत थी, तर्कसम्मत थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि उनका व्यक्तित्व ऐसा था जो उनके प्रत्येक शब्द को सजीव बनाये दे रहा था। 'भगवान को पाना है - इसी जीवन में पाना है।भगवत्प्राप्ति हो गई तो जीवन सफल हुआ और न हुई तो महान हानि हुई।' प्रवचन समाप्त हुआ। लोगों
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